संपूर्ण शक्ति के साथ पवित्र आत्मा का अभिषेक प्राप्त करो। आइए “आत्म जागृति में देरी क्यों?” का अध्ययन साथ में करें!…
संपूर्ण शक्ति के साथ पवित्र आत्मा का अभिषेक प्राप्त करो।
आजकल की कलीसिया में प्रार्थना सभा का स्थान एक “उपेक्षित सेविका” के समान है। परमेश्वर की यह सेविका अर्थात प्रार्थना को लोग इस कारण पसंद नहीं करते क्योंकि वह ज्ञान के मोती पिरोए हुए नहीं है, ना उसके पास कोई फिलॉसफी है, ना मनोवैज्ञानिकता से उसका कोई नाता है। वह सच्चाई, निष्कपटता, वह नम्रता के वस्त्र पहने हुए है इसलिए घुटने टेकने से डरती नहीं है।
प्रार्थना का दोष यह है कि वह मानसिक क्षमता से नहीं बंध सकती (कहने का अर्थ यह नहीं है कि प्रार्थना मानसिक आलस्य की साथी है। इन दिनों में मानसिक क्षमता बढ़ रही है।) केवल आत्मिकता ही प्रार्थना को अनुकूलित कर सकती है। ऐसे उपदेश जिन की भाषा शैली उत्तम है, इन्हें कोई भी व्यक्ति बनाकर प्रचार कर सकता है। कहने का अर्थ यह है कि प्रचार करने के लिए उस व्यक्ति को आत्मिक होने की आवश्यकता नहीं है।
याददाश्त, ज्ञान, जिज्ञासा, व्यक्तित्व इसके साथ ढेर सारी पुस्तकें और आत्मविश्वास इन सब को जोड़कर प्रचार करने के लिए मेरे भाई, इन दिनों में मंच आपके लिए हर जगह है। इस प्रकार का प्रचार मनुष्य को प्रभावित करता है; प्रार्थना परमेश्वर को प्रभावित करती है। प्रचार समय को प्रभावित करता है; प्रार्थना अनंत काल को प्रभावित करती है। मंच हमारी योग्यताओं का प्रदर्शन स्थल बन सकता है; प्रार्थना की कोठरी योग्यताओं के प्रदर्शन का अंत है।
इस अंतिम घड़ी की दुःखद बात यह है कि आज हमारे मंचों (Pulpits) पर बहुत से आत्मिक रूप से मृत व्यक्ति हैं, जो बहुत से मृत संदेश, बहुत से मृत लोगों को दे रहे हैं। ओह! कैसी भयंकर स्थिति है? सूर्य के नीचे मैंने एक अत्यंत अजीब बात देखी है और वह यह है आज प्रचारक बिना अभिषेक उपदेश दे रहे हैं, यहां तक कि यह ऐसे समूहों में भी पाया जा रहा है जो अपने को मूल सैद्धांतिक होने का दावा करते हैं।
अभिषेक क्या है? मैं स्वयं इसे नहीं जानता। परंतु मैं जानता हूं कि यह क्या नहीं है। (इतना जरुर जानता हूं कि किस वक्त मेरी आत्मा पर यह नहीं उतरा।) बिना अभिषेक का प्रचार जीवनदायक होने के बजाय मृत्युदायक है। वह उपदेशक जिसका अभिषेक न हुआ हो उसका वचन मृत्यु का स्वाद देता है वचन जीवनदायक नहीं होता है जब तक कि अभिषेक प्रचारक पर नहीं है। इसलिए हे उपदेशक अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ अभिषेक प्राप्त कर!
भाइयों, यदि हमारे पास दोगुनी आत्मिकता है तो इस युग का आधा बौद्धिक ज्ञान ही हमारे लिए पर्याप्त है। प्रचार एक आत्मिक कार्य है। जो संदेश मस्तिष्क में उत्पन्न होता है वह अगले व्यक्ति के मस्तिष्क तक ही पहुंचता है; परंतु जो संदेश हृदय में उत्पन्न होता है वह अगले व्यक्ति के हृदय में पहुंचता है। परमेश्वर के अधीन एक आत्मिक प्रचारक, आत्म चिंतन वाले लोग उत्पन्न करेगा। अभिषेक भोला कबूतर नहीं है जो अपने पर (पंख) प्रचारक के हृदय की सीखचों के बाहर फड़फड़ाए; परंतु उसका पीछा करके उसे प्राप्त करना है। अभिषेक को सीखा नहीं जा सकता, इसे प्रार्थना द्वारा पाया जाता है। यह परमेश्वर के द्वारा दिया गया वीरता का वह पुरस्कार है जिसे उन सैनिक उपदेशकों को दिया जाता है जो प्रार्थना में मल्लयुद्ध करके विजय प्राप्त करते हैं।
मंच पर ज्ञान और हंसी-मजाक प्रचार करके विजय नहीं प्राप्त होती है, परंतु यह प्रार्थना की कोठरी में प्राप्त होती है। मंच पर प्रचारक के एक कदम पड़ने से पहले ही यह हो या तो प्राप्त हो जाती है या हार में बदल जाती है। अभिषेक डायनामाइट की तरह है। यह ना तो बिशप के हाथ रखने के द्वारा प्राप्त होता है और न ही किसी अभिषिक्त को जेल में डालने से लुप्त होता है। अभिषेक धीरे-धीरे रिसकर पूरे जीवन में फैल जाता है और जीवन को मधुर और सभ्य बनाता है। जब बौद्धिक तर्क और मानव उत्साह की आग पत्थर जैसे हृदय को खोलने में असमर्थ हो जाते हैं वहां अभिषेक समर्थ होता है।
आजकल चर्च भवन बनाने का कैसा उत्साह है! परंतु बिना अभिषिक्त प्रचारकों के इन चर्च भवनों की वेदियों पर पश्चातापी व्यक्ति कभी नजर नहीं आएंगे। मान लीजिए हमने मछली पकड़ने वाली नाव देखी हो जिसमें आधुनिक रडार और मछली पकड़ने के यंत्र लगे हो, जो हर माह समुद्र में मछली पकड़ने के लिए भेजी जाती हो, परंतु वह बिना मछली पकड़े लौट आती हो; इस प्रकार खाली लौट आने का क्या बहाना हो सकता है?
इसी प्रकार हजारों कलीसिया में सप्ताह दर सप्ताह, साल दर साल वेदियां बिना पश्चातापी व्यक्तियों के खाली हैं, और हम इस बांझपन को वचन से गलत संदर्भ देकर ढकने का प्रयत्न करते हैं, “मेरा वचन व्यर्थ ठहर कर मेरे पास ना लौटेगा।” (शायद विद्वान लोग हमें यह बताना भूल गए कि यह वचन थोड़े से वचनों में से एक है जो यहूदियों को लिखा गया था।)
कटु सत्य है कि वेदी की आग या तो बुझ गई है या बहुत धीमी जल रही है। प्रार्थना सभा या तो मृत हो गई है या हो रही है। प्रार्थना के प्रति हमारे दृष्टिकोण के द्वारा हम परमेश्वर को बताते हैं कि जो आत्मा के आरंभ किया गया था उसे हम शरीर में समाप्त कर सकते हैं। कौन सी कलीसिया अपने होनहार सेवकों से पूछती है कि कितना समय वे प्रार्थना व्यतीत करते हैं? फिर भी जो सेवक दिन में 2 घंटे प्रार्थना में व्यतीत नहीं करते वे किसी योग्य नहीं है, चाहे उनके पास डिग्रियां हों या ना हों।
हम प्रचार करते-करते नष्ट हो सकते हैं, परंतु हम प्रार्थना करते-करते नष्ट नहीं हो सकते। – लियोनार्ड रेवनहिल
हटा दीजिए ऐसे पक्षाघाती और निर्जीव प्रचार को, क्योंकि इसकी उत्पत्ति कोख में होने के बजाय कब्र में हुई है और इसका पोषण आग रहित और प्रार्थना रहित हृदय में हुआ है। हम प्रचार करते-करते नष्ट हो सकते हैं, परंतु हम प्रार्थना करते-करते नष्ट नहीं हो सकते। यदि परमेश्वर ने हमें सेवकाई के लिए बुलाया है तो मेरे प्रिय भाई, हमें पहले अभिषेक प्राप्त करना है। संपूर्ण शक्ति के साथ और आत्मा का अभिषेक प्राप्त करो, अन्यथा खाली वेदियां, अभिषेक विहीन, बौद्धिकता का चिन्ह बनकर रह जाएंगी।
(Taken from the book, Why Revival Tarries? By Leonard Ravenhill)
ये संदेश “आत्म जागृति में देरी क्यों?” नामक पुस्तक में से लिया गया है। जिसको लियोनार्ड रेवनहिल के द्वारा लिखा गया है। इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि हम परमेश्वर द्वारा दी गई सेवा के प्रति गंभीर हो जाएं। और हम पहले प्रभु के साथ अपने संबंध को सही करें।
एक सेवक होने के नाते हमारे पास बहुत सी जिम्मेदारियां हैं पर प्रार्थना के समय के साथ समझौता न करें। अन्यथा जो भी हम अपने बौद्धिक ज्ञान से प्रचार तैयार करते हैं वो किसी भी व्यक्ति को पश्चाताप करने के लिए प्रेरित नहीं करेगा। आत्म जागृति में देरी इसलिए है क्योंकि प्रार्थना के महत्व को बहुत कम कर दिया गया है।