हर परिस्थिति में धन्यवादी कैसे बने रहें?

हर परिस्थिति में धन्यवाद कैसे करें? बाइबल धन्यवादी मसीही जीवन के बारे में बाइबल क्या कहती है? (What does the Bible say about the thankful Christian life?)

हर परिस्थिति में धन्यवादी कैसे बने रहें? हर हालात में धन्यवाद कैसे करें? धन्यवादी मसीही जीवन के बारे में बाइबल क्या कहती है? (What does the Bible say about the thankful Christian life?) क्यों हमें परमेश्वर का धन्यवादी रहना है? हमें क्यों परमेश्वर के आभारी होना है? बाइबल धन्यवाद/कृतज्ञता के बारे में क्या कहती है? 

आज बहुत से लोग धन्यवादी नहीं है। परमेश्वर हर किसी को ऑक्सीजन, सूरज की रोशनी, मौसम, प्रकृति, समाज, परिवार की आशीषें देता हैं। पर कितने आज धन्यवादी हैं इन आशीषों के लिए?

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एक मसीही होने के नाते हमें परमेश्वर के धन्यवादी/आभारी/कृतज्ञ होना जरूरी है। क्योंकि परमेश्वर ने हमारे लिए सब कुछ दिया है जिसकी हमें जरूरत थी। परमेश्वर हमेशा विश्वासयोग्य परमेश्वर है। वह हमेशा भला परमेश्वर है। एक मसीही से परमेश्वर चाहता है कि एक धन्यवादी जीवन बिताए। 

कई बार धन्यवाद देना हमारे लिए बहुत मुश्किल होता है। कई बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं जब हम कह सकते हैं कि हम किस बात के लिए धन्यवाद दें? 

हर परिस्थिति में धन्यवादी कैसे बने रहें? (Thankful Christian life?)
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बाइबल में कई ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने मुश्किल वक्त में भी अपने जीवन में परमेश्वर का धन्यवाद दिया। उन्होंने परमेश्वर पर उंगली नहीं उठाई, परमेश्वर से सवाल नहीं पूछा। हम अय्यूब के जीवन में देख सकते हैं कि उसका सब कुछ ख़त्म होने पर भी वो आभारी रवैय्या प्रदर्शित करता है। और अगर हम यूसुफ के बारे में देखें, उसे हम कहीं पर भी ये शिकायत करते हुए नहीं पाते हैं कि प्रभु मुझसे मेरे भाई इतना नफरत क्यों करते हैं? मुझे अपने भाइयों के द्वारा क्यों बेचा गया? मुझे बार-बार क्यों बेचा गया? जब मैंने कोई गलती नहीं की तो मुझे क्यों जेल में रहना पड़ रहा है? मेरी सुधि क्यों नहीं परमेश्वर! बल्कि हम देख सकते हैं कि वह इन सब बातों को परमेश्वर की योजना का एक हिस्सा कहता है और अपने भाइयों को क्षमा करता है। हम कह सकते हैं कि उसने एक धन्यवादी जीवन जीया। 

दानिय्येल, शद्रक, मेशक, अबेदनगो जैसे और भी कई लोग हैं जिन्होंने परमेश्वर पर उंगली नहीं उठाई, पर हर परिस्थिति में धन्यवादी बने रहे। विश्वासयोग्य बने रहे। इब्रानी 12 अध्य्याय में जितने भी नाम लिखे गए हैं या लेखक समय की कमी से लिख नहीं पाया उन सभी ने एक धन्यवादी और विश्वासयोग्य जीवन जीया था।

इन्होंने कभी नहीं कहा कि प्रभु मैं यहां पर क्यों गुलामी में हूँ। मैंने तो कोई गलत काम नहीं किया। मैं क्यों जेल में हूँ। फिर मुझे क्यों यहां पर गुलामों की तरह बेचा जा रहा है। मुझे क्यों यहां से वहां पर धक्के खाने पड़ रहे हैं। इनके जीवन में एक धन्यवादी रवैया था। पौलुस थिस्सलुनीकियों के विश्वासियों को प्रोत्साहित करते हुए कहता है कि हर परिस्थिति में धन्यवाद करो। क्यों? (पढ़िए 1 थिस्सलुनीकियों 5:18) क्योंकि तुम्हारे लिए मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है। 

ऐसी परिस्थितियों में हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है? “हर परिस्थिति में धन्यवाद करें।” पौलुस ने हर परिस्थिति में धन्यवादी रहना सीखा था, इसलिए वो कहता है कि “हर परिस्थिति में धन्यवाद करो।” (फिलिप्पियों 4:11-13) अगर हम भजन संहिता 103:2 पढ़ेंगे तो वहां भजनकार अपने आप से कहता है, “हे मेरे मन! परमेश्वर के किसी उपकार को नहीं भूलना!” हमारे जीवन में परमेश्वर के बहुत सारे उपकार हैं, बहुत कुछ किया है परमेश्वर ने हमारे लिए। क्या आप कुछ उपकारों को गिना सकते हैं? 

उसके किसी भी उपकार को नहीं भूलना। अगर आपसे पूछा जाए कि परमेश्‍वर ने आपके लिए क्या किया है? …थोड़ी देर सोचिए और परमेश्वर का धन्यवाद कीजिये।

इस्राएलियों का इतिहास हमें आज भी सीखने में मदद करता है कि यदि हम आभारी नहीं रहते हैं तो हम बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं उन्होंने अपनी आँखों से देखा था कि परमेश्वर ने उन्हें कैसे आश्चर्यकामों के साथ मिस्र की गुलामी से निकाला, उन्होंने अपनी आँखों से देखा था कि कैसे परमेश्वर ने लाल समुद्र के पानी को दो भागों में बांटा और उनके लिए रास्ता निकाला था, पर अफ़सोस कि वे थोड़ी देर के बाद ही भूल जाते थे कि परमेश्वर उनके साथ है। वे जंगल में कुड़कुड़ाते रहे कभी परमेश्वर पर, तो कभी अपने अगुवे मूसा पर। कभी उनको मिस्त्र में गुलामी की प्याज, लहसुन, खीरे, खरबूजे और मछली याद आ जाती थी। (गिनती 11:4-6)

हर परिस्थिति में धन्यवादी कैसे बने रहें? (Thankful Christian life?)
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पर हम देख सकते सकते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें जंगल में खाने का इंतजाम किया, उनकी अगुवाई की, उनकी सुरक्षा की, यहाँ तक कि चालीस वर्ष की इस यात्रा में उनको किसी चीज की कमी नहीं हुई। पर फिर भी हम उन्हें परमेश्वर को धोखा देते, कुड़कुड़ाते हुए देखते हैं, कभी पानी के लिए, कभी खाने के लिए, कभी अपने अगुवे के लिए। 

उन्होंने आभारी रवैया नहीं अपनाया था, जिस वजह से लोग वहां नहीं पहुंचे जहाँ परमेश्वर उन्हें पहुँचाना चाहता था। ये आज भी हमारे लिए चेतावनी है। (1 कुरिन्थियों 10:1-11) परमेश्वर ने हमें शैतान की गुलामी से आज़ाद किया, शारीरिक बीमारी, आत्मिक बीमारी का इलाज़ किया, अपने स्वर्ग राज्य का वारिस बनाया। फिर भी बहुत से लोग आज धन्यवादी नहीं हैं। यह बहुत खतरनाक है। हमें परमेश्वर के अनुग्रह को तुच्छ नहीं समझना चाहिए। वो परमेश्वर भला परमेश्वर है। पर याद रखें कि वह एकमात्र सच्चा न्यायी भी है। जिसके सामने हमें हर बात का, हर कार्य का लेखा देना होगा। 

वो परमेश्वर एक भस्म करने वाली आग है उसको ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता। (गलातियों 6:7) आज भी बहुत से मसीही एक लापरवाही वाला जीवन जी रहे हैं। वे अपनी आँखों की अभिलाषाओं के अनुसार, शरीर की अभिलाषाओं के अनुसार जी रहे हैं और अपनी जीविका पर फूलते हैं। ये सब चीजें ख़त्म हो जाएँगी पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है वो हमेशा बना रहेगा। (1 यूहन्ना 2:15-17) इसलिए हमें एक धन्यवादी मसीही जीवन जीने की आवश्यकता है क्योंकि उसके हमारे जीवन में बेशुमार उपकार हैं। आइए कुछ बात करते हैं कि क्यों हमें धन्यवादी रहना है परमेश्वर का?

हर परिस्थिति में धन्यवादी कैसे बने रहें?

परमेश्वर यही चाहता है कि हम धन्यवादी बने रहें।

“हर परिस्थिति में धन्यवाद दो; क्योंकि मसीह यीशु में तुम्हारे लिये परमेश्वर की यही इच्छा है।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:18) धन्यवादी होने का विपरीत कुड़कुड़ाना होता है। यदि हम भी धन्यवाद नहीं देंगे तो हम कुड़कुड़ाते रहेंगे, जो कि परमेश्वर को क्रोधित करता है। (गिनती 11:1-2)

कभी-कभी ऐसा महसूस हो सकता है कि हमारे पास धन्यवादी/आभारी होने के लिए कुछ भी तो नहीं है। लेकिन परमेश्वर को धन्यवाद देने के बहुत सारे कारण हैं। कभी-कभी आपको केवल छोटी शुरुआत करने और धन्यवाद देने का चुनाव करने की आवश्यकता होती है। छोटी शुरुआत करने से आपको आदत और अनुशासन बनाने में मदद मिल सकती है जो अंततः आपके दृष्टिकोण को बदल सकता है। आप दिन के लिए या जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसके लिए आभारी होकर शुरुआत कर सकते हैं। 

“यदि आप अपने लगातार अपने साथियों/सहकर्मियों के बीच निराशा, अवसाद, भय या चिंता पाते हैं, तो आप उन्हें अपने आस-पास मौजूद कठिन या दर्दनाक परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार मान सकते हैं। लेकिन मैं सुझाव देना चाहता हूँ कि आपकी परिस्थिति या आपके जीवन का मौसम चाहे जितना चुनौतीपूर्ण हो, आपको एक आभारी हृदय विकसित करने की आवश्यकता है। क्योंकि हम उसकी दी हुई सामर्थ से बहुत कुछ कर सकते हैं। (फिलिप्पियों 4:11-13)

परमेश्वर ने हमें जो दिया है उसके लिए हमें आभारी होना चाहिए:

परमेश्वर ने हमें क्या दिया है? उसने हमें प्रेम के कारण अनंत जीवन दिया है। 

हमें परमेश्वर ने अपने प्रेम के कारण अनन्त जीवन दिया है।  

हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम धन्यवाद देने का निरंतर स्रोत है। उसने हमें अपना प्रेम दिया है। परमेश्वर प्रेम है, और यह प्रेम इसमें नहीं कि हम ने परमेश्वर से प्रेम किया, परन्तु इसमें है कि उसने हमसे प्रेम किया।” उसने हमारे पापों के प्रायश्चित बलिदान के रूप में अपने पुत्र को भेजा ताकि हम जीवन पाएं।” (1 यूहन्ना 4:9-10) हमें निरंतर उसके कभी कम न होने वाले प्रेम के लिए धन्यवादी बने रहना है। (भजन 107 पढ़ें) 

उस प्रेम के कारण उसने हमें अनंत जीवन प्रदान किया है। हमें अनन्त जीवन के लिए आभारी होना है। यीशु में विश्वास के माध्यम से अनन्त जीवन के वादे के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दें। क्योंकि परमेश्वर चाहता है कि हम सदैव उसके साथ रहें। उसने हमसे इतना प्यार किया कि अपने आपको हमारे लिए दे दिया, ताकि हम नाश न हों पर हमेशा का जीवन पाएं। (यूहन्ना 3:16) 

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जब परमेश्वर ने यीशु को कब्र से पुनर्जीवित किया, तो उसने हमें अनन्त जीवन पाने का अवसर दिया। यीशु मसीह का बलिदान महत्वपूर्ण है लेकिन उनका पुनरुत्थान भी हमारे उद्धार का केंद्र है। (1 कुरिन्थियों 15:17) हमें पाप और मृत्यु से बचाने के लिए मसीह का क्रूस पर चढ़ना और पुनरुत्थान दोनों आवश्यक थे। सम्पूर्ण बाइबिल उसके प्रेम से भरपूर है। हमें याद रखने की आवश्यकता है कि कोई भी हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकता है। (रोमियों 8:28-39) स्वर्ग के परमेश्‍वर का धन्यवाद करो, उसकी करुणा सदा की है। (भजन 136:26)

हमें परमेश्वर के अनुग्रह और क्षमा के लिए धन्यवादी होना चाहिए।

हम परमेश्वर के अनुग्रह के लिए आभारी हैं जो हमारी कमियों को ढाँप देता है। उसका अनुग्रह हमारे लिए काफी है जो हमारी निर्बलताओं में सिद्ध होता है। (2 कुरिन्थियों 12:9) परमेश्वर का अनुग्रह हमें मसीह यीशु में दिया गया है। (1 कुरिन्थियों 1:4) वह अनुग्रहकारी परमेश्वर है। 

हम उस मृत्यु के योग्य थे जो यीशु ने हमारी ओर से सही, लेकिन उसके बलिदान के कारण हमें क्षमा कर दिया गया है। परमेश्वर के अनुग्रह से हमें छुटकारा मिलता है और हम अपने जीवन पर पाप की पकड़ से मुक्त हो जाते हैं। उसमें हमें उसके लहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात उसके अनुग्रह के धन के अनुसार हमारे अपराधों की क्षमा मिलती है। (इफिसियों 1:7, 2:8) इसलिए उसके अनुग्रह, उसकी क्षमा के लिए निरंतर हमें धन्यवादी बने रहना चाहिए। (भजन संहिता 30 और 136 पढ़ें) 

हमें शांति देने के लिए धन्यवादी होना चाहिए।

परमेश्वर हमें वह शांति प्रदान करता है जो समझ से परे है। उसकी शांति हमारे ह्रदय और विचारों को मसीह में सुरक्षित रखती है। (फिलिप्पियों 4:7) वह स्वयं शांतिदाता है, शांति का राजकुमार है। वो ऐसी शांति देता है जो स्थायी है। यीशु ने कहा, “मैं तुम्हें अपनी शांति देता हूँ।” (यूहन्ना 14:27, 16:33) उसकी शांति इस संसार से अलग है। और आप इस शांति का अनुभव उस वक़्त भी कर सकते हैं जब आपके चारों ओर का माहौल अशांत है। 

मार्गदर्शन और बुद्धि के लिए धन्यवादी होना चाहिए।

हम अपने जीवन में परमेश्वर के मार्गदर्शन और बुद्धि के लिए आभारी हो सकते हैं। (नीतिवचन 3:5-6) परमेश्वर ही है जो बुद्धि और ज्ञान का सोता है। उसका आदर करना बुद्धि की शुरुआत है। उसकी बुद्धि अगम है। (रोमियों 11:33-36) 

उसके प्रावधान के लिए धन्यवादी होना चाहिए।

परमेश्वर हमारी हर आवश्यकताओं को पूरा करता है, और हमें उसके प्रावधान के लिए आभारी होना चाहिए। (फिलिप्पियों 4:19) वो ही है जो हमारी प्रतिदिन की जरुरत को पूरा करता है। (मती 6:11) स्वर्गीय पिता सबको खिलाता है। (मती 6:26) हम तभी कमा पाते हैं क्योंकि वो हमें सामर्थ देता है, अच्छा स्वास्थ्य देता है। इसलिए जरुरी है कि हम हर प्रावधान के लिए परमेश्वर के आभारी हों। 

परिवार के लिए धन्यवादी होना चाहिए।

हमें अपने परिवार, अगुवों, पासवानों, अपने सलाहकारों और अपने कलीसिया के सदस्यों के कारण परमेश्वर के धन्यवादी होना है। (इफिसियों 4:11-16) परमेश्वर हमें रिश्तों की आशीष देते हैं। मसीह के साथ हमारे चलने में हमें प्रोत्साहित करने और समर्थन करने के लिए परमेश्वर ने हमें आत्मिक परिवार का सदस्य बनाया है। (भजन संहिता 68:6, 1 कुरिन्थियों 12: 12-31, इब्रानियों 10:25)

हमें सृष्टि और जीवन के लिए परमेश्वर का आभारी होना चाहिए।

संसार की रचना करने और हमें जीवन देने के लिए परमेश्वर के आभारी होना है। (उत्पत्ति 1:1, भजन संहिता 139:13-18) उसने हमारी रचना करने से पहले हमारे लिए माहौल बनाया जिसमें हम रह सकें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप दुनियांं में कहां हैं या आप किस दौर से गुजर रहे हैं, आप परमेश्वर की सराहना कर सकते हैं। आकाश में पक्षी, विभिन्न प्रकार के फूल, पेड़ पौधे इत्यादि। आप इस तथ्य के कारण भी सराहना कर सकते हैं कि परमेश्वर ने हमें सृष्टि का सह-शासक बनाया है। वह हमसे बहुत प्यार करता है और उसने अपनी रचना की देखभाल और सुरक्षा का जिम्मा हमें सौंपा है। (उत्पति 1:28)

उसके वचन के लिए धन्यवादी होना चाहिए। 

परमेश्वर का वचन हमारे घावों को ठीक करता है, हमें आराम देता है, हमारी रक्षा करता है, हमारा मार्गदर्शन करता है और हमें प्रोत्साहित करता है। परमेश्वर का वचन हमेशा से Updated है। इसमें वास्तविकता के बारे में सच्चाई मौजूद है जो कभी नहीं बदलती है। उनका वचन हमारे जीवन में, व्यक्तिगत रूप से, हमारे लोगों में और पीढ़ियों से जीवित और सक्रिय है। (2 तीमुथियुस 3:15-17, इब्रानी 4:12) इसलिए उसके धर्ममय नियमों के कारण हमें उसके धन्यवादी रहना है। (पढ़ें भजन संहिता 119:62 आप पूरा अध्याय पढ़ कर जान सकते हैं कि उसका वचन कितना महत्वपूर्ण है।)

सहायक देने के लिए हमें धन्यवादी होना चाहिए।

उसने हमें अकेला नहीं छोड़ा है। उसने हमें सहायक दिया है। उसने हमसे वादा किया है कि वह हमें कभी छोड़ेगा नहीं। (यूहन्ना 14:18, 26-27) आपको लग सकता है कि आप अकेले हैं, लेकिन परमेश्वर हमेशा आपके साथ है। आप जहां भी हों, वह आपको देखता है और आपका दर्द जानता है। हमें साहसी होने की आवश्यकता है। (यहोशू 1:9) हम कभी भी उससे दूर नहीं जा सकते हैं (भजन संहिता 139:1-13) 

आत्मिक आशीषों के लिए धन्यवादी होना चाहिए।

हमें परमेश्वर द्वारा दी गई सब प्रकार की आत्मिक आशीषों के लिए धन्यवादी होना चाहिए। उसने हमें स्वर्गीय स्थानों में मसीह के साथ बिठाया है। (इफिसियों 1:3-23, कुलुस्सियों 3:1-4) उसने हमें आत्मिक वरदान दिए हैं, आत्मिक आशीषें दी हैं, आत्मिक हथियार दिए हैं ताकि हम इन्हें अपने आत्मिक जीवन में इस्तेमाल करें। और हमारे जीवन में आत्मिक फल दिखाएँ दें। परमेश्वर का बहुत बहुत धन्यवाद। 

विजय के लिए धन्यवाद देना चाहिए। 

विजय के लिए धन्यवाद देना है जो हमें यीशु मसीह के द्वारा प्राप्त होती है। परमेश्वर हमें विजय देता है। (1 कुरिन्थियों 15:57) अन्धकार और शैतान की ताकत पर विजय देता है। हमें याद रखना चाहिए कि क्रूस पर यीशु के कार्य द्वारा विजय पहले ही हासिल हो चुकी है। (कुलुस्सियों 2:14-15) अब हम अन्धकार की ताकतों के गुलाम नहीं हैं। हमें अन्धकार के वश से छुड़ाया हुआ है। तो जरुरी हो जाता है कि हम परमेश्वर का धन्यवाद करें। 

साथी मसीहियों की आत्मिक उन्नति के कारण धन्यवाद करना चाहिए।

प्रेरित पौलुस हमेशा परमेश्वर का धन्यवाद देता था और अपनी प्रार्थनाओं में दूसरे साथी मसीहियों को स्मरण करता था। (इफिसियों 1:3, 15-23) वह उनकी उन्नति से प्रसन्न होकर परमेश्वर का धन्यवाद देता है। (फिलेमोन 4) यहाँ हमारे लिए भी सबक है कि हम दूसरों के जीवन में आत्मिक उन्नति के लिए भी परमेश्वर का धन्यवाद करें। 

“मैं तुम्हारे लिये सदैव अपने परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ… क्योंकि उसी में तुम हर प्रकार से, अर्थात् अपने सारे वचन, और अपने सारे ज्ञान में धनी किए गए…” (1 कुरिन्थियों 1:4-5)

मेरे प्रियो, सिर्फ यही कारण नहीं हैं जिनके कारण हमें धन्यवादी होना चाहिए। बल्कि और भी कई कारण हैं जिनके लिए हमें परमेश्वर के धन्यवादी होना चाहिए। हमें उसकी सुरक्षा के लिए धन्यवादी होना चाहिए। (भजन संहिता 121, 127:1)

परमेश्वर ने जो किया है उसके लिए हमें आभारी होना चाहिए:

उसने हमारे रिश्ते को पुनर्स्थापित किया है।

मसीहत एकमात्र ऐसा जीवन है जो इस बारे में है कि परमेश्वर ने आप तक पहुँचने के लिए क्या किया। हमें पाप और मृत्यु से बचाने के लिए मसीह का क्रूस पर चढ़ना और पुनरुत्थान दोनों आवश्यक थे। यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान ने हमारे लिए परमेश्वर के साथ संबंध को फिर से बहाल कर दिया। 

परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह हमसे प्यार करते हैं और हमारे साथ रिश्ता चाहते हैं। वह जानता था कि हम उसके खिलाफ विद्रोह करते रहेंगे और हम कभी भी परिपूर्ण नहीं हो सकते, लेकिन फिर भी उसने हमारे लिए उसके साथ संबंध बनाने का एक रास्ता बना दिया। हमें इस अद्भुत उपहार के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए।

उसने प्रार्थना सुनी और मेरा उद्धार बना। 

भजनकार कहता है कि मैं परमेश्वर का धन्यवाद करूँगा क्योंकि उसने मेरी सुन ली है और मेरा उद्धार बना है। (भजन संहिता 118:21) हमारे लोग प्रार्थना किया करते थे कि प्रभु मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चल, मुझे अन्धकार से ज्योति की ओर ले चल और मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चल। हम इस प्रार्थना की पूर्ति यीशु में पाते हैं। उसने कहा मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। (यूहन्ना 14:6) हमें हमारी प्रार्थना का उत्तर मिला इसलिए हमें परमेश्वर के धन्यवादी होना है।  

उसने हमें छुड़ाया। 

उसने हमें छुड़ाया। उसने अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रकट की कि जब हम पापी ही थे तो वो हमारे लिए मरा। (रोमियों 5:8) इसलिए जरुरी है कि जो कुछ भी उसने हमारे लिए किया उसके कारण उसका धन्यवाद किया जाना चाहिए। 

उसने हमें योग्य बनाया। 

वचन बताता है कि उसने हमें इस योग्य बनाया ताकि हम ज्योति में पवित्र लोगों के साथ मीरास में सहभागी हों। इसलिए हमें परमेश्वर का धन्यवाद करते रहना चाहिए क्योंकि उसने हमें योग्यता दी है। (कुलुस्सियों 1:12)

हमें इसके लिए आभारी होना चाहिए कि परमेश्वर कौन है:

परमेश्वर धन्यवाद के योग्य है।

धन्यवाद उसके योग्य बलिदान है। (भजन संहिता 50:14, 100:4) धन्यवाद के सिवा और हम क्या दे सकते हैं परमेश्वर को? सब कुछ परमेश्वर का है, आप भी परमेश्वर के हैं और आपके पास जो कुछ भी है सब परमेश्वर ने आपको सौंपा है। हमें इसलिए परमेश्वर का धन्यवादी होना है क्योंकि परमेश्वर धन्यवाद के योग्य है। परमेश्वर योग्य है और वह इसका हकदार है।

परमेश्वर विश्वासयोग्य और धर्मी है।

परमेश्वर की वफ़ादारी/विश्वासयोग्यता हमेशा धन्यवाद का एक कारण है। “प्रभु के महान प्रेम के कारण हम नष्ट नहीं होते, क्योंकि उसकी करुणा कभी समाप्त नहीं होती। उसकी करुणा प्रति भोर नई होती हैं; उसकी सच्चाई महान है।” (विलापगीत 3:22-23) वह विश्वासयोग्य और धर्मी परमेश्वर है। (1 यूहन्ना 1:9)

परमेश्वर भला है।

परमेश्वर भला है उसकी करुणा सदा की है। (1 इतिहास 16:34, भजन संहिता 136) उसकी भलाई कभी मिटती नहीं है। वह पक्षपात रहित है। वह भले बुरे दोनों पर सूर्य उगाता है। उसमें कुछ भी बुराई नहीं है। इसलिए उसकी भलाई के कारण हमें उसका धन्यवाद करना चाहिए।  

वह सच्चा न्यायी है। 

इस दुनियां में चारों तरफ अन्याय ही अन्याय दिखाई देता है। इस दुनियां के न्यायी घूस लेते हैं पर परमेश्वर ही एकमात्र सच्चा न्यायी है। उसके न्याय का दिन आने वाला है। (1 इतिहास 16:33) वह धर्मी है इसलिए वह धार्मिकता से जगत का न्याय करेगा। वह हर एक को सच्चा न्याय देगा। एक मसीही होने के नाते हो सकता है कि हमें इस दुनियां में सच्चा न्याय न मिले पर घबराएँ नहीं, परमेश्वर आपका न्यायी है। इसलिए वह धन्यवाद के योग्य है क्योंकि वह एक मात्र सच्चा न्यायी है। 

वह पवित्र है।

जैसा कि हमने परमेश्वर के धर्मी और न्यायी गुणों को देख लिया है। परमेश्वर पवित्र है इसलिए वह हमेशा धर्मी न्यायी है। वह चाहता है कि हम भी उसके जैसे पवित्र बने। (1 पतरस 1:15-16)

हमें उसके हर एक चरित्र के लिए धन्यवादी होना है। क्योंकि सब कुछ परमेश्वर की ओर से है। धन्यवाद देने के लिए हमारे दिलों को प्रशिक्षित करना कई अच्छे काम करता है। यह वहां श्रेय देता है जो इसके योग्य है। यह हमें कड़वाहट, अहंकार और निराशा से बचाता है। यह हमें विनम्र रखता है और हमें परमेश्वर की आवश्यकता की याद दिलाता है।

परमेश्वर को धन्यवाद देने के क्या फ़ायदे होते हैं?

धन्यवाद देना परमेश्वर की महिमा करता है।

हमारा धन्यवादी होना परमेश्वर की महिमा करता है क्योंकि हम उपहारों की नहीं, बल्कि उपहार देने वाले की प्रशंसा करते हैं। आभारी होना हमें यह एहसास करने में मदद करता है कि हमारे पास जो कुछ भी है वह हमारी वजह से नहीं, बल्कि परमेश्वर की ओर से आया है। (2 कुरिन्थियों 4:15)

धन्यवाद देने से हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है।

जब हम अपनी प्रार्थनाओं में आभारी होते हैं, तो हमारा ध्यान खुद से हटकर परमेश्वर की भलाई और उसने हमारे लिए जो कुछ किया है, उस पर केंद्रित हो जाता है। हमारा हृदय खुशी से रोमांचित हो जाता है। हमारा आनंद उमड़ने लगता है और परिणाम स्वरुप हम यीशु के जैसे बनते जाते हैं। हम फलवन्त होते हैं।

धन्यवाद देना या कृतज्ञता हमें परमेश्वर को देखने में मदद करती है।

कृतज्ञता हमारी आध्यात्मिक आँखें खोलती है। परमेश्वर को धन्यवाद देने का एक सुंदर चक्र है: जितना अधिक हम उसे धन्यवाद देते हैं, उतना अधिक हम उसे अपने अंदर और अपने आस-पास काम करते हुए देखते हैं। कृतज्ञता हमें परमेश्वर की उपस्थिति, उनकी व्यक्तिगत देखभाल और उनके सही समय को समझने में मदद करती है। हमें याद रखना चाहिए कि हर एक उत्तम दान उसी से आता है। (याकूब 1:16-17)

धन्यवादी होना शांति लाता है।

धन्यवादी होना हमें यह देखने में मदद करता है कि सभी चीज़ें परमेश्वर के नियंत्रण में हैं। किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्‍वर की शान्ति, जो सारी समझ से परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी। (फिलिप्पियों 4:6-7)

धन्यवादी होना हमें परमेश्वर की ओर खींचता है।

हम देखते हैं कि जब यीशु ने 10 कोढ़ियों को ठीक किया। यीशु वहां से गुजरे, सभी 10 लोग चंगाई के लिए चिल्लाने लगे। यीशु ने आज्ञा दी, “जाओ, अपने आप को याजकों को दिखाओ,” और जैसे ही वे गए, वे ठीक हो गए! उंगलियां ठीक हो गईं और छाले गायब हो गए क्योंकि उनके चेहरे और अंगों में पूरी संवेदना लौट आई। निश्चित रूप से वे सभी खुश थे, लेकिन केवल एक ही धन्यवादी था। केवल एक ही यीशु के पास वापस लौट आया, उसके पैरों पर गिरा और उसे धन्यवाद दिया।

हर परिस्थिति में धन्यवादी कैसे बने रहें? (Thankful Christian life?)
Contributed by Sweet Publishing

यीशु ने पूछा, “क्या सभी दस शुद्ध नहीं हुए? बाकी नौ कहाँ हैं? क्या इस परदेशी को छोड़ और कोई परमेश्वर की स्तुति करने को नहीं लौटा?” तब उस ने उस से कहा, उठ, और जा; तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें अच्छा बनाया है।” (लूका 17:11-19)

धन्यवादी बने रहना संतुष्टि लाता है।

यदि हम परमेश्वर ने हमें जो दिया है उसके लिए आभारी नहीं हैं, तो अधिक प्राप्त करने से भी हमें संतुष्टि नहीं मिलेगी। आभारी होना संतोष की कुंजी है। …संतोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है। क्योंकि हम जगत में कुछ भी नहीं लाए, और न हम इसमें से कुछ ले जा सकते हैं। परन्तु यदि हमारे पास भोजन और वस्त्र हों, तो हमें इन्हीं में संतुष्ट रहना चाहिए। (1 तीमुथियुस 6:6-8)

पौलुस ने अपने जीवन के संघर्षों में संतुष्टि वाला धन्यवादी रवैया अपनाया था तभी वो अपनी पत्रियों के माध्यम से कलीसियाओं को भी यही रवैया अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। (फिलिप्पियों 4:11-13)

धन्यवादी होना हमारे विश्वास को गहरा करता है।

जब हम नई कठिनाई का सामना करते हैं तो अपने जीवन में पीछे देखने से, परमेश्वर के पिछले कार्य को याद करना हमारे विश्वास को बढ़ावा देता है। इसीलिए परमेश्वर ने इस्राएल को अपने महान कार्यों को याद रखने की आज्ञा दी। प्रभु का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है। उसका प्रेम सदैव बना रहता है। (भजन संहिता 136:1)

धन्यवादी होना हमें ईर्ष्या से बचाता है।

ईर्ष्या वह चाहती है जो किसी और के पास है। आभारीपन हमें यह अहसास दिलाता है कि परमेश्वर ने हमें हमारी योग्यता से कहीं अधिक दिया है। चूँकि वहाँ हर किसी के लिए पर्याप्त है, हम तुलना करने के बजाय खुश हो सकते हैं। पूरी तरह से कृतज्ञ हृदय में ईर्ष्या के लिए कोई जगह नहीं बचती। मैं अपने सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा। (भजन संहिता 138:1)

आभारीपन हमें वर्तमान में जीने में मदद करता है।

कभी हमें यह नहीं कहना चाहिए कि पिछले दिन इनसे अच्छे क्यों थे? क्योंकि हम यह बुद्धि से नहीं पूछते। (सभोपदेशक 7:10)

धन्यवादी होना हमारी मदद करता है गवाही देने में।

जब हम खुले तौर पर परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं और स्वीकार करते हैं कि उसने हमारे लिए क्या किया है, तो हम अपने आस-पास की दुनियांं के लिए एक व्यक्तिगत, देखभाल करने वाले परमेश्वर की घोषणा करते हैं। हम दिखाते हैं कि संतुष्टि और शांति उस चीज़ से नहीं आती जो हमारे पास है बल्कि उससे आती है जिसे हम जानते हैं। यहोवा का धन्यवाद करो, उस से प्रार्थना करो, देश देश के लोगों में उसके कामों का प्रचार करो! (भजन संहिता 105:1)

धन्यवाद की कमी हमें आगे बढ़ने से रोकती है।

“मैंने इस्राएलियों का बुड़बुड़ाना सुना है…” (निर्गमन 16:12)

परमेश्वर द्वारा अपने लोगों को मिस्र से बाहर वादा किए गए देश की ओर ले जाने के बाद, उन्होंने अपना समय जंगल में शिकायत करते हुए बिताया। परिणामस्वरूप, उनकी नज़रें बड़ी तस्वीर से हट गईं और उन्होंने जंगल में जितना समय बिताना चाहिए था, उससे कहीं अधिक समय बिताया। वादा किया हुआ देश इंतज़ार कर रहा था, लेकिन उनकी कृतज्ञता की कमी ने उन्हें इसमें अपना अगला कदम उठाने से रोक दिया। कृतज्ञता हमें उस जीवन में आगे बढ़ाती है जिसे परमेश्वर ने हमारे लिए बनाया है।

सारांश

बाइबल लोगों को परमेश्वर के प्रति आभारी होने के अनेक कारण प्रदान करती है। ये आयतें उन कुछ मुख्य कारणों पर प्रकाश डालती हैं जिनके कारण बाइबल लोगों को परमेश्वर के प्रति आभारी होने के लिए प्रोत्साहित करती है। बाइबल में कृतज्ञता/आभारी होना एक केंद्रीय विषय है। परमेश्वर की आशीष और अच्छाई को पहचानना मसीही जीवन का एक अनिवार्य पहलू है। यह एक ऐसा जीवन है जो स्वीकार करता है कि सब कुछ परमेश्वर से आता है और वह हमारे निरंतर धन्यवाद और प्रशंसा का पात्र है। एक धन्यवादी मसीही जीवन की विशेषता खुशी, संतुष्टि और परमेश्वर के वचन में विश्वास की गहरी भावना है।

परमेश्वर को धन्यवाद देने के बहुत सारे कारण हैं। मुझे आशा है कि यह लेख आपको याद दिलाएगा कि आप चाहे कैसी भी परिस्थिति में हों, जीवन या अपनी सेवकाई में किसी चीज का अभाव महसूस कर रहे हों, फिर भी जो कुछ आपके पास उपलब्ध है आप धन्यवादी बन सकते हैं। हमें भी सीखना है, क्योंकि जो हमें सामर्थ देता है उससे हम सब कुछ कर सकते हैं। (फिलिप्पियों 4:11-13) याद रखें जो थोड़े में विश्वासयोग्य है वह बहुत में भी विश्वासयोग्य होगा। कुड़कुड़ाना हमेशा नुकसानदायक है इसलिए एक मसीही होने के नाते धन्यवादी ह्रदय विकसित करें। 

शालोम

  1. प्रभु का धन्यवाद 🙏🏻
    बहुत ही व्यापक और व्यवहारिक समझ है।
    प्रभु आपको bless करे… 🙌

    • सारा आदर और महिमा हमेशा प्रभु का है और प्रभु को ही मिले।

      धन्यवाद कि आपके पढ़ने के लिए समय निकाला… प्रभु आपको भी आशिषित करे और अपने राज्य में इस्तेमाल करे।

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Anand Vishwas
Anand Vishwas
आशा है कि यहां पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हम सबको बुलाया है। प्रभु का आनंद हमारी ताकत है।

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