अस्थियों के ढेर में पुनर्जागरण

Revival In A Bone Yard By Leonard Ravenhill

अस्थियों के ढेर में पुनर्जागरण। (Revival In A Bone Yard) यह लेख आत्म जागृति में देरी क्यों? (Why Revival Tarries?) नामक पुस्तक से लिया गया है। जिसे लियोनार्ड रेवनहिल द्वारा लिखा गया है। उनके डांट भरे सन्देश हमें वापिस परमेश्वर के पास आने के लिए प्रेरित करते हैं। मुझे विश्वास है कि ये सन्देश आपकी भी परमेश्वर के पास आने में मदद करेंगे।


“यहोवा की शक्ति मुझ पर हुई, और वह मुझ में अपनी आत्मा समवाकर बाहर ले गया और मुझे तराई के बीच खड़ा कर दिया; वह तराई हड्डियों से भरी हुई थी… और तराई की तह पर बहुत सी हड्डियां थी, और वे बहुत सूखी थीं… तब उसने मुझसे कहा इन हड्डियों से भविष्यवाणी करके कह, हे सूखी हड्डियों, यहोवा का वचन सुनो… इस आज्ञा के अनुसार मैं भविष्यवाणी करने लगा… तब सांस उन में आ गई और वे जी कर अपने अपने पांव के बल खड़े हो गए और एक बहुत बड़ी सेना हो गई।” (यहेजकेल 37:1-14)

अस्थियों के ढेर में पुनर्जागरण। (Revival In A Bone Yard)
Contributed by Sweet Publishing

क्या इतिहास जो धार्मिक या सांसारिक हो, वह इससे भी अधिक हास्यास्पद तस्वीर प्रकट करता है? यह घटना पूर्ण निराशा को दर्शाती है। किसके ऐसे मूक श्रोता हुए हैं? उपदेशक संभावनाओं में कार्य करते हैं परंतु भविष्यवक्ता असंभावनाओं में। यशायाह ने इस राष्ट्र को सड़े हुए घावों से भरा देखा, परंतु यह बीमारी पहले मृत्यु तक पहुंची फिर विघटन और अब खुली हुई अस्थियों के बीच में यह निराशा को उजागर कर रही है। इन संपूर्ण परिस्थितियों में “असंभावित” (IMPOSSIBILITY) शब्द बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है। यहां संभावित बातों के लिए विश्वास की आवश्यकता नहीं है।

सच में कहा जाए तो इस विश्वास का एक छोटा सा भाग असंभव कार्य को पूरा कर सकता है। यहां तक कि राई के दाने के बराबर विश्वास, वह कार्य कर सकता है जिसे हमने सपने में भी नहीं सोचा होगा। बार-बार परमेश्वर मनुष्यों से ऐसे कार्य को करने नहीं कहता है जिसे वे कर सकते हैं परंतु उस कार्य को करने को कहता है जिसे वे नहीं कर सकते, यह सिद्ध करने के लिए कि कोई निपुण हाथों ने यह कार्य नहीं किया है। परंतु मनुष्य अपने निर्बलता को परमेश्वर की सामर्थ्य से जोड़े ताकि असंभव शब्द उसके शब्दकोष से अलग हो जाए। 

भविष्यवक्ता एकांत व्यक्ति होते हैं। वह अकेले चलते हैं, अकेले प्रार्थना करते हैं और परमेश्वर भी उनको अकेला बनाता है। उनके लिए कोई सांचा नहीं होता है, उनके सही अधिकार परमेश्वर के साथ होते हैं क्योंकि किस आधार पर परमेश्वर भविष्यवक्ताओं को चुनता है यह हमें ज्ञात नहीं है। लेकिन इससे मनुष्य को निराश नहीं होना चाहिए। हम में से किसी को यह नहीं कहना चाहिए क्योंकि मेरी उम्र ज्यादा हो गई है इसलिए परमेश्वर मेरा उपयोग नहीं कर सकता। मूसा 80 वर्ष का था जब उसने गुलाम और टूटे हुए लोगों का नेतृत्व संभाला। जॉर्ज मूलर ने 70 वर्ष की उम्र में 7 बार पूरे विश्व का भ्रमण किया था और बिना दूरसंचार की व्यवस्था के लाखों लोगों को सुसमाचार सुनाया।

यहेजकेल भविष्यद्वक्ता ने अपने समय में न ही किसी कमेटी को बुलाया, न ही उसने कोई प्रार्थना पत्र भेजा और न ही उसने पैसे की मांग की, क्योंकि उसे लोकप्रियता प्राप्त करने से सख्त नफरत थी। लेकिन यह स्थिति उसके लिए जीवन मृत्यु का प्रश्न थी। (आज का प्रचार कार्य ऐसा ही है – इसलिए, प्रत्येक प्रचारक सावधान रहें कि कहीं उसके “धर्मशास्त्र के ज्ञान से” उसका श्रोता उसके लिए यह न कहने लगे कि वह “बहुत ज्ञानवान है!” इसके विपरीत वह अपने श्रोता को पूर्ण आत्मिक अंधकार में रखे हुए हो!) परमेश्वर ने यहेजकेल को यह आज्ञा दी कि वह इस हड्डियों के पहाड़ से कहे “तू यहां से हट जा!” जैसा यहेजकेल ने कहा वैसा ही हुआ। यहां श्राप था – क्या उसके पास इलाज था? यहां मृत्यु थी – क्या वह जीवन ला सकता था? यहां कोई शिक्षा (Doctrine) की घोषणा नहीं थी।

प्रिय विश्वासियों, सुनिए: संसार सुसमाचार की नई परिभाषा के लिए ठहरा हुआ नहीं है परंतु सुसमाचार की सामर्थ का नया प्रदर्शन चाहता है। राजनीतिक असफलताओं, नैतिक पतन और आत्मिक असफलताओं के दिनों में कहां है वे लोग जिनके पास शिक्षा नहीं, परंतु विश्वास हो! दुनियां के आंकड़े यह सिद्ध कर रहे हैं कि आज इस संसार की स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है। इस नष्ट करने वाली बाढ़ को रोकने वाली दीवारें ढह चुकी हैं और इन गंदी लहरों ने इस पीढ़ी को डुबो दिया है। ऐसी स्थिति में हमारे पास शिक्षा की अधिकता हो गई है जबकि यह सारा संसार बीमार, दुःखी, पापयुक्त तथा व्यभिचार में सराबोर है।

इस क्रूर क्षण में, सारा विश्व अंधकार में सो रहा है, और कलीसिया ज्योति में सो रही है। ऐसी स्थिति में मसीह अपने ही प्रेमियों के घर में घायल है। इस लंगड़ाती हुई, लड़ने में व्यस्त कलीसिया को दूसरे शब्दों में निर्बल कलीसिया कहते हैं। प्रत्येक वर्ष हम मृतक अवस्था को प्राप्त करते हुए व्यक्तियों के विचारों को लिखने के लिए पहाड़ जितने कागज़ों का और नदी जितनी स्याही का इस्तेमाल करते हैं जबकि पवित्रात्मा ऐसे व्यक्तियों को चाहता है जो अपने ज्ञान को अपने पांव तले रौंद दें, अपने घमंड को खत्म कर दें और यह अंगीकार कर लें कि वे देखते हुए भी अंधे हैं। ये वे व्यक्ति हैं जो टूटे हुए हृदय के साथ अभिषिक्त सुर्मा अपनी आंखों में लगाने को चाहते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी आत्मिक आंखें तभी खुलेंगी जब वे ईमानदारी से यह स्वीकार करेंगे कि उनकी आत्मा में खालीपन है। 

कुछ वर्ष पूर्व एक सेवक ने अपनी कलीसिया के सामने एक बोर्ड लगाया जिसमें लिखा हुआ था, “इस कलीसिया में या तो बेदारी होगी या बर्बादी!” ऐसी निराशा से परमेश्वर अति प्रसन्न है परंतु नर्क उदास। वैसे आप इसे पागलपन कहेंगे, ठीक भी है! लेकिन एक शांत कलीसिया किसी काम की नहीं है। इस समय आवश्यकता है ऐसे लोगों की, जो पवित्र आत्मा के पूर्ण नशे में हो। क्या परमेश्वर पक्षपाती है? क्या केवल वेस्ली, व्हीटफील्ड, फिन्नी, हडसन टेलर विशेष सेवक थे? नहीं! यदि मैं सही रीति से प्रेरितों के काम की पुस्तक को पढ़ता हूं तो ये केवल साधारण लोग थे। 

इस समय अणु बम ने कलीसिया को छोड़कर विश्व के हर एक जन को व्याकुल कर दिया है। हम अपने आत्मिक दिवालियापन को छिपाने के लिए परमेश्वर के एकाधिपत्य पर अत्यधिक जोर देते हैं परंतु नरक भरता जा रहा है। इस समय जबकि संसार में साम्यवाद फैल रहा है, कलीसिया आधुनिकतावाद से प्रभावित है तथा मूलसिद्धांतवादियों ने सांसारिक बातों के साथ समझौता करके अपने को अलग कर लिया है। क्या ऐसी परिस्थिति में परमेश्वर किसी मनुष्य को रिक्त स्थान (Gap) में खड़ा होने के लिए ढूंढेगा नहीं, जैसा यहेजकेल को ढूंढा था? मेरे प्रचारक भाइयों, इन दिनों हम लोग प्रार्थना में प्रसव पीड़ा उठाने के बजाय, पर्यटन को ज्यादा पसंद करते हैं। इसलिए आत्मिक बच्चे पैदा नहीं हो रहे हैं। परमेश्वर तू जल्दी ऐसे भविष्यवक्ता को भेज, जो जोड़ से अलग हुई कलीसिया के साथ-साथ ना चले। 

समय काफी हो चुका है और हम एक और नया समूह (Denomination) न बनाएं। परमेश्वर एलिय्याह जैसे भविष्यवक्ताओं को इसी समय, इस संसार की अभक्ति एवं दुष्टता की विरुद्ध (चाहे वह राजनैतिक या धर्म के झूठे आडंबरओं से लिप्त हो) एक अंतिम युद्ध लड़ने के लिए तैयार कर रहा है। पवित्र आत्मा द्वारा संचालित अंतिम जागृति, उस दाखरस की तरह होगी जो संप्रदायवाद की सूखी मश्कों को फाड़ देगी। हालेलूय्याह!

कृप्या ध्यान दें, यहेजकेल वह व्यक्ति था, जिसे पवित्रात्मा की अगुवाई थी। मनुष्य होने के नाते तमाम लोगों की हड्डियों के भयंकर ढेर को देखकर उसका हृदय अवश्य कांप गया होगा परंतु यहेजकेल के विश्वास की धुरी लाखों लोगों के भविष्य चक्र से जुड़ी हुई थी – ध्यान दीजिए, विश्वास की – प्रार्थना की नहीं! प्रार्थना तो कई लोग करते हैं लेकिन विश्वास कम के पास होता है। इस दृश्य को देखकर कैसा पवित्र कंपन उसके हृदय को बेधकर निकला होगा! इस बात के दर्शक सिर्फ स्वर्ग और नरक ही थे। निश्चित ही यदि यहेजकेल आज के समय जीवित होता तो उस स्थिति की तस्वीर जरूर छपवाता! फिर आंकड़ों के प्रेम के कारण, वह हड्डियों को गिनता; और फिर उन में हलचल होने लगती, तो निश्चय ही वह भीड़ को बुलाकर अपने काम का प्रदर्शन दिखाता (ताकि कहीं ऐसा न हो कि लोग उसे राष्ट्रीय प्रचारकों के साथ सही स्थान देने में चूक कर जाएं!)

अस्थियों के ढेर में पुनर्जागरण। (Revival In A Bone Yard)
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परंतु यहेजकेल ने ऐसा नहीं किया – यहां सुनिए “आज्ञा के अनुसार मैं भविष्यवाणी करने लगा” (यही निर्णायक क्षण था, वह परमेश्वर के लिए मूर्ख बना) “हे सूखी हड्डियों, यहोवा का शब्द सुनो” पागलपन? जी हां, यह निरा पागलपन ही है। उसने हड्डियों से कहा “सुनो!” जबकि उन हड्डियों में कोई कान नहीं थे! यहेजकेल ने वैसा ही किया जैसा उसे कहा गया था। अपने चेहरे को बचाने के लिए हम परमेश्वर की आज्ञा को बदल देते हैं और ऐसा करने से हम अपने चेहरे को खो देते हैं। परंतु यहेजकेल ने आज्ञा मानी; और परमेश्वर ने हमेशा की तरह अपना कार्य किया: “एक आहट आई” हम लोग मात्र आहट से प्रसन्न हो गए होते! परंतु यहेजकेल ने उत्तेजना को रचना, क्रिया को अभिषेक और खड़खड़ाहट को जागृति समझने की गलती नहीं की। 

जागृति और सुसमाचार प्रचार, हालांकि निकटता से जुड़े हुए हैं, भ्रमित नहीं होना चाहिए। जागृति कलीसिया में एक अनुभव है; सुसमाचार प्रचार कलीसिया की अभिव्यक्ति है। -Paul S. Rees

यदि परमेश्वर चाहता होता तो अपने सर्वशक्तिमान होठों से एक ही सांस में उस पूरे हड्डी के ढेर में जीवन डाल सकता था। परंतु उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि उसके पहले भी कई क्रियाएं होनी थी। “पहले हड्डियां पास आईं और अपनी हड्डी से जुड़ गई” (अब हड्डियों का ढेर नहीं रहा) ऐसी घटना हम लोगों को अपना आपा खोने के लिए मजबूर कर देती! परंतु यहेजकेल के साथ ऐसा नहीं हुआ। लेकिन हड्डी के ढांचे से क्या लाभ? क्या वे परमेश्वर के लिए लड़ाई लड़ सकते हैं? इस अवस्था में क्या उनके द्वारा परमेश्वर के नाम की महिमा हो सकती थी?

आजकल बहुत बार अंधे अगुवे “कंकालों” को गिनते हैं जो वेदी के पास आते हैं – वचन से तो वे जरूर प्रभावित होते हैं परंतु नए जन्म के प्रभाव से दूर हैं। उनके थोड़े से आंसुओं को देखकर हम उनको जबरदस्ती परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करने के लिए कहते हैं। लेकिन अभी तक उनमें जीवन नहीं है। जबकि इन कंकालों में पहले मांस चढ़ेगा और फिर चमड़ी मांस को ढकेगी। इसका परिणाम यह हुआ कि तराई लाशों से भर गई! इनमें परमेश्वर को क्या कुछ लाभ हुआ? अभी तक तो नहीं! उनके पास आंखें तो हैं पर देख नहीं सकते, हाथ तो हैं पर लड़ नहीं सकते, पांव तो हैं पर चल नहीं सकते।

यही स्थिति उन लोगों की भी है जो अभी तक खोजी हैं – जब तक यह अंतिम कार्य उनके जीवन में न हो जाए। “मैंने पुनः भविष्यवाणी की” यहेजकेल विश्वास में बना रहा। उसने संदेह का सामना किया। इन कंकालों तथा लाशों से निराश होने के बजाय उसने विश्वास किया कि परमेश्वर उसके साथ है। केवल परमेश्वर के साथ रहकर वह जयवंत हुआ। उसने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार भविष्यवाणी की, “तब सांस उनमें आ गई और वे जी कर अपने-अपने पांव के बल खड़े हो गए।” (यहेजकेल 37:10)

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परंतु आज यह कौन कह सकता है “जैसी मुझे आज्ञा मिली वैसी मैंने भविष्यवाणी की और लोग जीवित हो गए?” हमें भीड़ मिल सकती है। हम विज्ञापनों, रेडियो एवं संगीत द्वारा इस भीड़ को आकर्षित कर सकते हैं परंतु हो सकता है हम यह भी नहीं जानते हों कि सेवकाई में प्रवेश के लिए प्रभु ने हमें बुलाया है या नहीं। क्या हमारे हृदय में नर्क गामी लोगों के लिए पीड़ा है? क्या बिना मसीह के प्रति मिनट 85 लोगों की मृत्यु, हमारे आनंद को दुःख में बदलती है? क्या हर्ष का वस्त्र उतारती है? और हमें बोझ का आत्मा देती है?

क्या इस क्षण में हम जीवते परमेश्वर की ओर निहारते हैं? (क्योंकि वह नीचे हमें देखता रहता है) और क्या हम कह सकते हैं, “मैं सुसमाचार न सुनाऊं तो मुझ पर हाय?” (1 कुरिन्थियों 9:16) क्या हम यह सचमुच में कह सकते हैं कि, “प्रभु का आत्मा मुझ पर है,” इसलिए कि उसने… सुसमाचार सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है। (लूका 4:18-19) क्या हमें नरक की दुष्ट आत्माएं जानती हैं? मेरा मतलब क्या दुष्ट आत्माएं कह सकती हैं, “कि यीशु को मैं जानती हूं और पास्टर को भी जानती हूं।” या जब हम प्रचार करते हैं, क्या वे कहती हैं, “परंतु तुम कौन हो।?” (प्रेरितों 19:15)

राजनैतिक भविष्य की समीक्षा करने वाले हमें अच्छे भविष्य का समाचार नहीं देते हैं, और विश्व के वरिष्ठ नेता व्यर्थ में पुकार कर कह रहे हैं कि हम साहस रखें। साधारण नागरिक घबराए हुए दर्शक की तरह खड़ा देख रहा है, कि यहोवा विटनेस जैसे समूह अपनी शिक्षा के ज़हर को उसके घर के सामने बेच रहे हैं। मसीही विज्ञान जो न तो मसीही है और न पूर्ण विज्ञान है, रोमन कैथोलिक एवं सेवन डे एडवेंटिस्ट के साथ उसको स्वर्ग पहुंचाने का दावा कर रहा है। उस नागरिक ने अपने कान से सुसमाचार सुना तो है परंतु उसकी आंखों ने कभी नहीं पढ़ा और न ही उसकी आत्मा ने पवित्रात्मा की सामर्थ का अनुभव किया। उसे यह पूछने का पूरा अधिकार है, “उनका ईश्वर कहाँ है?” हम उसे क्या जवाब दें? 

परमेश्वर ने कभी नहीं चाहा कि उसकी कलीसिया एक ऐसा रेफ्रिजरेटर हो जिसमें नाशवान धर्मपरायणता को बनाए रखा जा सके। उन्होंने इसे एक इनक्यूबेटर बनाने का इरादा किया जिसमें परिवर्तित लोगों को बाहर निकाला जा सके। -F. LINCICOME

सबसे कठिन बात जो मैं जानता हूं वह है सत्य का सामना करना। हम शिक्षा (Doctrine) के आदी हो चुके हैं। हममें से कई लोग यह जानते हैं कि आगे उपदेशक क्या कहने वाला है परंतु आत्मा से प्रभावित प्रचार की सच्चाई की तुलना में तेजधार वाला उस्तरा भी बेकार है। प्रभु के सेवक, और संसार के विभिन्न देशों के लोग सबकी एक ही व्यथा जान पड़ती है, क्योंकि आधुनिक प्रचार बहुत ज्यादा दिन तक प्रभावकारी नहीं है, चाहे वह मूल सिद्धांतवादी हो। इसे हम कैमरे का “फ्लैश बल्व” प्रचार कह सकते हैं – जो थोड़ी देर बहुत चमकता है, लेकिन ओह…!

हो सकता है कलीसियाओं में जागृति (Revival) की आत्मा हो। लेकिन हम ईश्वर रहित लाखों लोगों में जागृति नहीं ला पा रहे हैं। हमारी बड़ी – बड़ी सुसमाचार सभाओं में विशेष रेलगाड़ियों में भर कर लोग आते हैं, यह वे लोग हैं जो विश्वासी हैं या कलीसिया जाते हैं, परंतु हमें साल्वेशन आर्मी के संस्थापक जनरल बूथ जैसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो भटके हुए लोगों को सुसमाचार सुनाए। 

पुराने संत गाया करते थे… “धन्य हैं वे मनुष्य जिनके हृदय टूटे हुए हैं, जो पाप के लिए पूरे अंतर्मन से विलाप करते हैं।” 

यहां पर तीन महत्वपूर्ण मुद्दे हैं: टूटे हुए हृदय, विलाप तथा पापपहली बात है, “परमेश्वर टूटे और पिसे मन को तुच्छ नहीं जानता।” (भजन संहिता 51:17) वास्तविकता तो यह है कि परमेश्वर केवल टूटी हुई वस्तुओं का उपयोग करता है। उदाहरण के लिए प्रभु यीशु मसीह ने उस लड़के से रोटी ली, उसे तोड़ा और उसके पश्चात ही वे भीड़ को खिला सके। (यूहन्ना 6:9, मती 14:19) जब इत्र वाला संगमरमर का पात्र टूटा तभी उसकी सुगंध घर में फैली – और विश्व में भी। (मरकुस 14:3-9) यीशु ने कहा, “यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिए तोड़ी जाती है।” (लूका 22:19) यदि ऐसे मार्ग से प्रभु होकर गए हैं तो क्या इस मार्ग से शिष्य को नहीं जाना चाहिए? अपने जीवन को बचाने के प्रयत्न में न केवल हम उसे खो देते हैं बल्कि दूसरे लोगों को भी खो देते हैं। (मरकुस 8:35-37)

दूसरी महत्वपूर्ण बात है, पाप लिए विलाप करना। यिर्मयाह ने पुकारा, “भला होता कि मेरा सिर जल ही जल और मेरी आंखें आंसुओं का सोता होती।” (यिर्मयाह 9:1) और भजन संहिता का लेखक कहता है, “मेरी आंखों से जल की धारा बहती रहती है।” (भजन संहिता 119:136) प्यारे भाइयों, हमारी आंखें सूखी हैं क्योंकि हमारे हृदय सूखे हैं। आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जहां हमें दया के बिना ही धार्मिकता प्राप्त हो जाती है, जो कि अत्यंत विचित्र बात है। जब साल्वेशन आर्मी की कुछ सेवकों ने विलियम बूथ को लिखकर बताया कि आत्मिक जागृति के लिए उनके सारे प्रयत्न असफल रहे तो इसका उन्होंने एक संक्षिप्त उत्तर दिया, “आंसू बहा कर देखिए!” उन्होंने वैसा ही किया और सफलता प्राप्त की।

बाइबल स्कूलों में “आंसुओं” के विषय कोई शिक्षा नहीं दी जाती है। वास्तव में तो यह सिखाया भी नहीं जा सकता है। क्योंकि इसे पवित्रात्मा ही सिखा सकता है, और एक प्रचारक चाहे वह कितनी डिग्रियां या डॉक्ट्रेट की उपाधियों से लदा हो, उसने कुछ प्राप्त नहीं किया यदि उसने इस वर्तमान समय के पापमय वातावरण से दुःखी होना न जाना हो। डेविड लिविंगस्टन की सतत् पुकार थी, “कि हे प्रभु, इस संसार के पाप के घाव कब शुद्ध होंगे?” परंतु क्या हम प्रार्थना बोझ व विलाप के साथ करते हैं? क्या हमारी शोक भरी प्रार्थनाओं के द्वारा हमारे तकिए आंसुओं से भीग जाते हैं, जैसे जॉन वेल्च के होते थे?

विद्वान एंडू बोनार, एक शनिवार के दिन अपने घर की दूसरी मंजिल पर जब लेटे थे तब वहां से उन्होंने नीचे सड़क पर उन लोगों को देखा जो शराब की दुकान व सिनेमाघरों से लौट रहे थे। उनको देखकर उन्हें अत्यंत दुःख हुआ और वे व्यथित होकर कहने लगे “आह वे नाश हो रहे हैं, वे नाश हो रहे हैं।” हे मेरे भाइयों, हमने मसीह को इस प्रकार नहीं जाना है। हममें से कई लोग मात्र चिकने आंसूरहित, करुणारहित व बिना आत्माओं को जीते हुए प्रचार को जानते हैं और इसे ही लोग परमेश्वर की सेवकाई की संज्ञा देते हैं।

तीसरी बात, पाप के विषय में। पवित्रशास्त्र के अनुसार “मूर्ख इसे ठट्टों में उड़ाते हैं।” (भजन 14:1) (ऐसा मूर्ख ही कर सकते हैं) कलीसिया के कुछ शिक्षकों ने पापों का वर्गीकरण किया है और “सात भयंकर पाप” बताए हैं। हम जानते हैं कि वे लोग गलत हैं क्योंकि सभी पाप भयंकर हैं। ये सात पाप वे गर्भ हैं जिसमें से 70 बार के 70 लाख गुना पाप जन्म लेते हैं। यह उस एक दैत्य के सात सिर हैं जो अत्यंत तीव्र गति से इस युग को निगल रहा है। सुख सुविधा के नशे में डूबे जवान का हम सामना कर रहे हैं जिसको परमेश्वर की जरा भी चिंता नहीं है। मिथ्या बौद्धिक ज्ञान से भरपूर, आत्मिक बातों के प्रति अपनी उपजाई हुई उदासीनता से अपने को उन्होंने अवरोधक कर लिया है। बड़े दुःख की बात है कि, वे नैतिकता के स्वीकृत मानकों की भी धज्जियां उड़ाते हैं।

यह एक हास्यास्पद बात होगी, यदि कोई अभिनेत्री (जो कम कपड़े पहनने के लिए मशहूर हो) अपनी ही फिल्म का प्रीमियर शो देखने से इसलिए इनकार करे क्योंकि उसमें अश्लील दृश्य थे। (जबकि ऐसे दृश्यों की भयंकर मांग रहती है और इसलिए ये बनाए भी जाते हैं।) 

यूनान की एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा (Mythology) है जिसमें एपियंस देश का राजा एजियस अपने मवेशियों की बहुलता के लिए प्रसिद्ध था। उसके पास बारह सफेद बैल थे जो हेलियोस देवता के लिए पवित्र किए गए थे। कई वर्षों तक इन बैलों की गोशाला को साफ नहीं किया गया था। फिर युरिथियस ने यह कार्य हेरेक्ल्स को सौंपा कि वह एक दिन संपूर्ण गौशाला को साफ करे। हेरेक्लस ने यह कार्य एलफियुस व पेन्युस नामक दो नदियों की जल धाराओं की दिशा को बदलकर गौशाले के बीच से ऐसा बहाया कि वर्षों की गंदगी एक दिन में साफ हो गई। 

हम मसीही भी अपने अपने घुटनों पर आ जाएं। अपने व्यक्तिगत व अंतर्राष्ट्रीय पापों को धर्मज्ञान (Theology) के गुलाब जल के छिड़काव से पवित्र करने की मूर्खता से दूर रहें! इस दुर्गंध के विरुद्ध प्रार्थना में आंसुओं की महान नदियों को एवं अभिषिक्त प्रचार को बहने दीजिए, जब तक सब दुर्गंध साफ न हो जाए।

शिविर में पाप है। आज देशद्रोह है!
क्या यह मुझ में है? क्या यह मुझ में है?
हार और देरी के लिए हमारे रैंकों में कारण है;
हे प्रभु, क्या यह मुझ में है?
कुछ स्वार्थ, वस्त्र या सोना,
युवा या वृद्ध में कुछ बाधा,
कुछ ऐसा क्यों है कि परमेश्वर अपनी आशीष को रोक लेता है;
हे प्रभु, क्या यह मुझ में है?
क्या यह मुझ में है? क्या यह मुझ में है?
यह है। हे परमेश्वर। मुझ में?

(Taken from the book, Why Revival Tarries? By Leonard Ravenhill)


परमेश्वर कभी भी नहीं बदलता है। परमेश्वर आज भी वही काम कर सकता है जो हम उसके पवित्रशास्त्र में पढ़ते हैं। बस हम भी अपने टूटे हुए मन उसके पास लायें, जिन्हें वह कभी तुच्छ नहीं जानता है। हम भी इस संसार के पाप के लिए विलाप करें। पाप के साथ परमेश्वर कभी भी समझौता नहीं करेगा। सिर्फ सुचामाचार ही पाप के गर्त में जाने वालों को बचा सकता है।

इसलिए हे प्रभु के सेवको, गंभीर हो जाओ और प्रभु का भय मानते हुए खोई हुई आत्माओं को बचाने का प्रयास करो। सूखी हड्डियों की तराई से परमेश्वर हमें ये सिखाना चाहते हैं कि चाहे हमारी आशा जाती रहे, चाहे ऐसा क्यों न लगे कि अब जीवन नहीं रहा; परमेश्वर कहता है, “मैं तुम में अपना आत्मा समवाऊंगा, और तुम जीओगे… तब तुम जान लोगे कि मुझ यहोवा ही ने यह कहा, और किया भी है, यहोवा की यही वाणी है।” (यहेजकेल 37:14)

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Anand Vishwas
Anand Vishwashttps://disciplecare.com
आशा है कि यहां पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हम सबको बुलाया है। प्रभु का आनंद हमारी ताकत है।

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