मसीही जीवन में प्रार्थना का महत्व

Importance of Prayer in the Christian Life (ACTS Prayer Sample)

मसीही जीवन में प्रार्थना का महत्व। (Importance of Prayer in the Christian Life. ACTS Prayer Sample) मसीही जीवन प्रार्थना के बिना जीवित नहीं रह सकता। जैसा कि आपको मालूम ही है कि मसीही जीवन कोई धर्म नहीं है बल्कि परमेश्वर के साथ निरंतर बढ़ता हुआ संबंध है। 

Table of Contents

Prayer परमेश्वर के साथ बातचीत है। प्रार्थना के द्वारा हम परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते में घनिष्ठता की ओर बढ़ते हैं। प्रार्थना प्रत्येक मसीही के लिए सांस की तरह अति आवश्यक है। 

प्रार्थना अतिआवश्यक क्यों है?

प्रार्थना का अवहेलना करना या उस पर ध्यान ना देना प्रभु के लिए बहुत दुखदाई है।

यशायाह 43:21 के अनुसार परमेश्वर ने हमें अपनी महिमा करने के लिए बनाया है। हमारा सम्पूर्ण जीवन में यही उद्देश्य होना चाहिए क्योंकि हमें इसलिए बनाया गया है कि हम प्रभु की महिमा करते रहें और प्रार्थना के द्वारा उससे बातचीत करते रहें। यदि हम प्रभु से प्रार्थना न करें तो ये प्रभु के लिए बहुत दुखदाई है। (यशायाह 43:22)

मसीही जीवन में प्रार्थना का महत्व। (Importance of Prayer in the Christian Life. ACTS Prayer Sample)
Photo by Patrick Fore on Unsplash

प्रार्थना परमेश्वर के साथ हमारी बातचीत है। हम परमेश्वर की संतान है और हमें अपने आत्मिक पिता से निरंतर बातचीत करते रहना चाहिए। इस दुनियां में रहते हुए जब हम अपने सांसारिक माता-पिता से भी बात नहीं करते हैं तो यह उनके लिए बेहद दुखदाई होता है। इसी प्रकार प्रार्थना की अवहेलना करना प्रभु के लिए भी दुखदाई है।   

प्रार्थना की कमी से हमारे जीवन और समाज में बहुत सी बुराईयाँ आ जाती है।

हम अपने जीवन में विपत्तियों को आमंत्रित करते हैं। प्रार्थना की कमी से आत्मिक स्तर गिर जाता है और धीरे-धीरे लोग परमेश्वर से दूर हो जाते हैं। (दानिय्येल 9:13-14)

प्रार्थना की अवहेलना करना पाप है।

1 शमूएल 12:23 यहां शमूएल लोगों को संदेश देते हुए कहता है कि यदि मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना ना करूं तो मैं परमेश्वर के विरूद्ध पापी ठहरूंगा। 

निरंतर प्रार्थना में लगे रहना एक सकारात्मक आज्ञा है।

निरंतर प्रार्थना में लगे रहना एक सकारात्मक आज्ञा है। इसलिए हमें निरंतर प्रार्थना करते रहना चाहिए। (कुलुस्सियों 4:2, 1 थिस्सलुनीकियों 5:17)

प्रार्थना, परमेश्वर की ओर से हमारे लिए एक साधन है।

प्रार्थना, परमेश्वर की ओर से हमारे लिए एक साधन है कि हम उसके वरदानों को प्राप्त कर सकें। (दानिय्येल 9:3, मती 7:7-11, मरकुस 9:24-29, लूका 11:13)  

प्रेरित प्रार्थना को अपना सबसे महत्वपूर्ण कार्य समझते थे।

आरंभिक कलीसिया में प्रेरित प्रार्थना को अपना सबसे महत्वपूर्ण कार्य समझते थे। (प्रेरितों 1:14, 2:42, 4:23-31, 6:4, 7:59, 13:2-3, रोमियों 1:9-10) यहां तक कि वे कैदखाने में भी, और सताव होने के बाद भी वो प्रार्थना करते रहते थे। प्रेरित पौलुस सभी विश्वासियों को अपनी प्रार्थना में याद करता था।

प्रार्थना हमारे आत्मिक युद्ध के लिए एक आत्मिक हथियार है।

प्रार्थना हमारे आत्मिक युद्ध के लिए एक आत्मिक हथियार है। ये हथियार शारीरिक नहीं बल्कि एक आत्मिक हथियार है। जो गढ़ो को ढाने के लिए परमेश्वर द्वारा सामर्थी है।  (इफिसियों 6:18, 2 कुरिन्थियों 10:3-5)  

प्रार्थना कैसे करें?

इससे पहले हमने Five Fingers Prayer के बारे में बात किया था। आज हम ACTS प्रार्थना नमूना के माध्यम से प्रार्थना करना सीखेंगे। जरूरी नहीं है कि आप इन प्रार्थना नमूनों के द्वारा ही प्रार्थना करें। आप अपने स्वर्गीय पिता से जैसे चाहें वैसे प्रार्थना कर सकते हैं, और आने वाले समय में हम शिष्यों की प्रार्थना के बारे में भी सीखेंगे जो उनको प्रभु यीशु ने सिखाई थी।

मसीही जीवन में प्रार्थना का महत्व। (Importance of Prayer in the Christian Life. ACTS Prayer Sample)
Photo by Jon Tyson on Unsplash

जब भी हम प्रार्थना करें तो कम से कम हमारी प्रार्थना में चार भाग होने चाहिए – अंग्रेजी शब्द (ACTS) याद रखें।

प्रशंसा (Adoration)

सर्वप्रथम हम अपनी प्रार्थना परमेश्वर की आराधना और प्रशंसा करें क्योकि वो इसी के योग्य है। सारी सृष्टि उसकी महिमा का वर्णन करती है। वो भला परमेश्वर है, वो प्रेमी परमेश्वर है, वो क्षमा करने वाला परमेश्वर है। उसके तुल्य दूसरा कोई भी नहीं है।

वो हमें कभी न छोड़ता है और न कभी त्यागता है। वो सच्चा व न्यायी परमेश्वर है। वो कभी भी धोखा नहीं देता है। वह विश्वास के योग्य परमेश्वर है। उसके प्रेम की कोई सीमा नहीं है। आप परमेश्वर की प्रशंसा करें जिसके वो योग्य है।

पाप अंगीकार (Confession)

हमें हर एक उस पाप के लिए अंगीकार करना है जिसको हम जानते हों। और जब भी हम अपने पापों को स्वीकार करते हैं तो प्रभु हमें क्षमा कर देते हैं। (भजन संहिता 32:5) 

धन्यवाद (Thanksgiving)

धन्यवाद, परमेश्वर के प्रति हमारा उचित प्रतिउत्तर है। धन्यवाद देने वाला परमेश्वर की महिमा करता है। उसके उपकार हमारे जीवन में बहुत हैं। (फिलिप्पियों 4:6) कभी भी परमेश्वर के उपकारों को न भूलें। हमारी सांसें उसके ही अनुग्रह से चली हुई हैं।

हमें काम करने में वो ही सामर्थ देता है। बुद्धि और सब ज्ञान के सोते भी उसी के पास हैं। उसने अपना कीमती बलिदान देकर हमें पापों से मुक्ति दी है जिसको हम विश्वास के द्वारा ग्रहण करते हैं। हर परिस्थिति में उसका धन्यवाद करते रहें।

विनती (Supplication)

मध्यस्थता, निवेदन, विनती करना जरूरी है। (1 तीमुथियुस 2:1) स्वयं प्रभु यीशु भी हमारे लिए प्रार्थना करते रहते हैं। पौलुस भी अपनी प्रार्थनाओं में कलीसिया और अन्य लोगों के लिए प्रार्थना करते रहते थे। परमेश्वर का राज्य आए, उसकी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे ही इस पृथ्वी में भी पूरी हो।

प्रार्थना में रुकावटें।

बहुत बार जब हम प्रार्थना करते हैं तो कई बार हमें उसका उत्तर भी नहीं मिलता है। इसके कुछ कारण हो सकते हैं। प्रार्थना नहीं सुनी जा सकती है जब:

  • यदि अविश्वास से प्रार्थना की जाए। (याकूब 1:6-8)
  • यदि हम क्षमा ना करेंगे। (मरकुस 11:25) क्षमा करना जरूरी है। याद रखिए हम ही प्रार्थना करते हैं कि जिस प्रकार हमने माफ किया है वैसे ही हमें भी माफ करें।  
  • यदि हमारे जीवन में अधर्म हो। (भजन 66:18) सर्वप्रथम अपने पापों को स्वीकार करें, पश्चाताप करें। अपने आप को जांचें।
  • यदि गलत मांग की जाए। (याकूब 4:3) परमेश्वर की इच्छा के अनुसार मांगना लाभप्रद रहता है। बहुत बार हम अपनी अभिलाषाओं के अनुसार प्रार्थना में मांगते हैं। याद रखिए परमेश्वर हमारी Need को पूरी करने का वादा करता है हमारी Greed को नहीं।

पर ये बात भी स्मरण रखें कि कई बार हमारे जीवन के लिए परमेश्वर कि बड़ी योजना होती है, इसलिए भी कभी प्रार्थना का उत्तर मिलने में देरी हो सकती है। धीरज को भी अपना काम करने दें ताकि आप के आत्मिक जीवन में कोई कमी ना रह जाए।

प्रार्थना की कुछ प्रतिज्ञाएं व शर्तें। 

  • विश्वास के साथ मांगेंजब भी हम परमेश्वर से प्रार्थना करें तो विश्वास करें अर्थात हमने जो भी माँगा है वो हमें मिल गया है। परमेश्वर का वादा है कि ऐसा करने से हमारे लिए वैसा ही हो जाएगा जैसा कि हमने माँगा है। (मरकुस 11:24)
  • परमेश्वर में बने रहेंपरमेश्वर में बने रहना महत्वपूर्ण है, उसके वचन के अनुसार जीएँ। (यूहन्ना 15:7)
  • परमेश्वर की इच्छा के अनुसार मांगेजब भी आप परमेश्वर से मांगें तो उसकी इच्छा के अनुसार मांगें, परमेश्वर जरुर देगा। (1 यूहन्ना 5:14-15) 
  • परमेश्वर हमारी हर एक घटी को पूरी करेगा। (फिलिप्पियों 4:19)
  • किसी भी बात की चिंता मत कीजिए। (फिलिप्पियों 4:6)
  • हमारा स्वर्गीय पिता भला है। (लूका 11:9-13) 
  • उसका अनुग्रह आवश्यकता के समय हमारी मदद करता है। (इब्रानियों 4:16)
मसीही जीवन में प्रार्थना का महत्व। (Importance of Prayer in the Christian Life. ACTS Prayer Sample)
Image by congerdesign from Pixabay

इसको भी याद रखें कि प्रार्थना परमेश्वर के सामने अपनी List को रखना ही नहीं है। ये परमेश्वर के साथ बातचीत है, और प्रार्थना परमेश्वर के साथ घनिष्ठता का भी एक साधन है। प्रार्थना परमेश्वर पर भरोसा करना भी है। हठी ना बनें। सब्र रखें।

परमेश्वर आपसे बहुत प्रेम करता है। सदैव उसकी योजनाएं आपकी भलाई के लिए है। उसकी योजनाओं में आपके लिए लेश मात्र भी हानि नहीं है। मसीही जीवन का भरपूर आनंद लें।

शालोम

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Anand Vishwas
Anand Vishwas
आशा है कि यहां पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हम सबको बुलाया है। प्रभु का आनंद हमारी ताकत है।

More articles ―

My First Illustrated Bible Stories New Testament Boxed Set of 10 Books

My First Illustrated Bible Story series is a collection of richly illustrated well-known stories from the Old Testament. Each story is written in an easy-to-understand manner, which will surely be enjoyed by its readers. This boxed set is perfect for sharing.This book is a must-have for all children!• Has well-researched and child-friendly content• Is an excellent selection for gifting and school libraries• Contains ten most well-known stories from the Old Testament• Features gorgeous and bright illustrations on every page• Is a highly recommended addition to beginner’ s Bible collection