क्यों एक मसीही को सुसमाचार से लज्जाना नहीं चाहिए?

What Does It Mean To Not Be Ashamed Of The Gospel? एक मसीही व्यक्ति को सुसमाचार प्रचार करने से क्यों नहीं लज्जाना चाहिए?

क्यों एक मसीही को सुसमाचार से लज्जाना नहीं चाहिए? (What Does It Mean To Not Be Ashamed Of The Gospel?) पौलुस सुसमाचार (Gospel) से लज्जाता नहीं था? भला लज्जा या शर्म किस बात की? जब इस भ्रष्ट दुनियां में किसी को बुराई करने से लज्जा नहीं, झूठ फ़ैलाने में लज्जा नहीं आती तो पौलुस भला सुसमाचार यानी शुभसंदेश अर्थात अच्छी खबर को बताने से क्यों शरमाए अथवा क्यों लज्जाए? (रोमियो 1:16)

यीशु मसीह धरती पर के अपने कार्यकाल के दौरान परमेश्वर के राज्य के प्रति बहुत गंभीर थे, इसलिए तो वे आराधनालयों, नगरों और गावों में सुसमाचार प्रचार से रुकते नहीं थे। एक बार जब चेले भोर को उन्हें ढूंढते-ढूंढते पाते हैं क्योंकि वे प्रार्थना के लिए एकांत में गए थे। वे यीशु से कहते हैं कि सब लोग आपको ढूंढ रहे हैं, तो क्या आपको मालूम है यीशु ने उन्हें क्या जवाब दिया? यीशु ने उनसे कहा कि “आओ हम आसपास की बस्तियों में जाएं कि मैं वहां भी प्रचार करूं।” (मरकुस 1:35-38) 

इससे इतना तो साफ हो जाता है कि वे इसलिए आए थे कि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक परमेश्वर के राज्य की कथा सुनाएं ताकि कोई भी नाश न हों परन्तु हर एक विश्वास करने वाले जन का उद्धार हो। (यूहन्ना 3:16)

आज हमें भी इस बात को देखना है कि हमारे जीवन का केंद्रीय क्या है? हम कहां खोए हुए हैं? क्या हम जीवन के उद्देश्य को जानते हैं? यदि हम अपने जीवन के उद्देश्य को जानते हैं तो यह हमारे प्रतिदिन की कार्यप्रणाली को अवश्य ही प्रभावित करेगा।

यीशु अपने उद्देश्य को जानते थे, तभी तो यीशु ने स्वर्गारोहण से पहले भी अपने चेलों को यही आदेश दिया कि “तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार (Gospel) प्रचार करो।” (मरकुस 16:15)

आज बहुत से लोग सुसमाचार ही नहीं सुनाते हैं, शायद उन्हें मालूम नहीं कि कैसे सुसमाचार सुनाया जाता है, या बहुत से लोग सुसमाचार इसलिए भी नहीं सुनाते हैं क्योंकि उन महानुभावों को इससे शर्मिंदगी महसूस होती है। तभी तो पौलुस ने कहा कि मैं सुसमाचार से नहीं लज्जाता। आज भी लोग सुसमाचार के प्रति लापरवाह दिखाई देते हैं, शायद वे इसकी सामर्थ को नहीं जानते कि सुसमाचार क्या कर सकता है? 

सुसमाचार क्या है?

आखिर यह सवाल भी उठता है कि सुसमाचार (Gospel) क्या है? सीधे शब्दों में कहें तो सुसमाचार हर एक विश्वास करने वालों के उद्धार के लिए परमेश्वर की सामर्थ्य है। सुसमाचार वास्तव में यीशु का आना और परमेश्वर के द्वारा मानवजाति को बचाने की योजना को कहते हैं। 

यीशु मसीह का मानवजाति को पापों के दंड से बचाने के लिए इस दुनियां में आना, उनका बलिदान, उनका मारा जाना, उनका गाड़ा जाना और जी उठने पर विश्वास करना मनुष्य को नरक से बचाता है। जो भी व्यक्ति इस योजना पर विश्वास करता है अनन्त जीवन पाता है, क्योंकि यह परमेश्वर की योजना है कि “कोई भी प्राणी नाश न हो बल्कि मोक्ष प्राप्त करे।”

क्यों सुसमाचार से नहीं लज्जाना है?

क्योंकि सुसमाचार परमेश्वर की सामर्थ्य है जो किसी भी विश्वास करने वाले के उद्धार के लिए है। (रोमियो 1:16) जी हां, सुसमाचार परमेश्वर का सुसमाचार है ये सर्वशक्तिमान, सृजनहार परमेश्वर का शुभ संदेश है। इसलिए हमें सुसमाचार से नहीं लज्जाना चाहिए।

क्यों एक मसीही को सुसमाचार से लज्जाना नहीं चाहिए? (What Does It Mean To Not Be Ashamed Of The Gospel?)

सुसमाचार (Gospel) सभी बाधाओं को पार करता है। आज तक सुसमाचार रोकने के लिए अंधकार की पूरी सामर्थ कोशिश कर रही है कि ये सब लोगों तक न पहुंच पाए, पर आज तक सुसमाचार को कोई भी रोक नहीं पाया है क्योंकि ये परमेश्वर का सुसमाचार है।

सुसमाचार हमारी आत्मा की गहरी लालसा को संतुष्ट करता है। सुसमाचार में जीवन बदलने की सामर्थ्य है। सुसमाचार हर एक विश्वासी को मसीह का एक निडर गवाह बनने के लिए प्रोत्साहित करता है। सुसमाचार हर एक इंसान को सब कुछ परमेश्वर को बलिदान करने के लिए अगुवाई करता है। हमें भी सुसमाचार से इसलिए नहीं लज्जाना चाहिए कयोंकि…..

ये परमेश्वर की आज्ञा है।

सर्वप्रथम सुसमाचार से लज्जाने की जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि यह परमेश्वर की आज्ञा (Commandment Of Christ) है। वह परमेश्वर जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, सारी सृष्टि का रचयिता है और हर एक प्राणी का आत्मिक पिता है। वही देह धारण करके इस दुनियां में आया, जो कहता है सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो। (मरकुस 16:15, मती 28:18-20) प्रभु यीशु हमें आज्ञा देते हैं कि जैसे उसने हमसे प्यार किया है, हम भी वैसा ही प्रेम संसार में एक दूसरे से करें। (यूहन्ना 13:34-35) और यदि हम एक दूसरे से प्यार करते हैं तो हम भी यही चाहेंगे कि कोई भी आत्मा नाश न हो। इसलिए हमें सुसमाचार से लज्जाने की आवश्यकता नहीं है। सुसमाचार से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि….

मनुष्य पापी है और उसको सुसमाचार की आवश्यकता है।

मनुष्य को सुसमाचार (Gospel) की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि पाप के कारण मनुष्य की स्थिति (Condition of Man) बहुत ही ख़राब है। पवित्र शास्त्र स्पष्ट रीति से बताता है कि कोई भी धर्मी नहीं है, एक भी नहीं। कुछ मनुष्य तो अपने मन में यह तक भी सोचते हैं कि परमेश्वर है ही नहीं, वे बिगड़ गए हैं। वचन बताता है कोई भी धर्मी नहीं, सब भटक गए हैं सब भ्रष्ट हो गए हैं, कोई सुकर्मी नहीं एक भी नहीं। इस संसार में जितने भी प्राणी है, सबने पाप किया है और इस पाप की वजह से वे परमेश्वर से दूर है। (रोमियों 3:23, भजन संहिता 14:1-3)

सुसमाचार ही एकमात्र रास्ता है जो परमेश्वर के साथ मनुष्य का मेल मिलाप करवाता है, परमेश्वर से हमारी दूरी को खत्म करता है और हमें परमेश्वर के नजदीक लाता है। इसलिए पापों से बचाने के लिए परमेश्वर ने जो उपाय किया, उस उपाय पर विश्वास करना मनुष्य की जरूरत है, जिससे वह नाश न हो। सुसमाचार से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि….

क्रूस की वजह से।

हमें उस क्रूस (Cross) के कारण भी सुसमाचार से लज्जाने की आवश्यकता नहीं है। बहुत से लोग आज क्रूस की कहानी अर्थात् सुसमाचार का मजाक इसलिए उड़ाते हैं क्योंकि वे परमेश्वर के उद्धार की योजना को समझने में अक्षम है। वे यीशु के धरती पर आगमन और उनका क्रूस पर मारे जाने का मजाक उड़ाते हैं। कुरिंथ को लिखते हुए, पौलुस क्रूस की सामर्थ को स्पष्ट कर देता है कि क्रूस की कहानी नाश होने वालों के लिए तो मूर्खता है पर जो लोग उस क्रूस की कथा पर विश्वास करते हैं उनके उद्धार के लिए ये परमेश्वर की सामर्थ्य है। (1 कुरिंथियों 1:18)

यही बात पौलुस रोमियाें को लिखते हुए भी कहता है कि वह इसलिए सुसमाचार से नहीं लज्जाता है क्योंकि सुसमाचार वास्तव में हर एक विश्वास करने वालों के उद्धार के लिए परमेश्वर की सामर्थ है। (रोमियो 1:16) सुसमाचार से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि….

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कीमत की वजह से। 

हमें सुसमाचार (Gospel) से इसलिए भी लज्जाना नहीं चाहिए क्योंकि इसके लिए एक बड़ी कीमत (Cost) चुकाई गई है। जैसा कि पतरस बताता है “हमारा छुटकारा किसी नाशवान चीज के द्वारा नहीं हुआ है, इसके लिए प्रभु यीशु का बहुमूल्य खून बहा है जो कि निर्दोष और निष्कलंक था। (1 पतरस 1:18-19) आज बहुत से लोग अपनी कीमत चुका कर परमेश्वर को प्रसन्न करने के असफल प्रयास में लगे हैं। असफल इसलिए क्योंकि हम अपने कार्यों के द्वारा उसको प्रसन्न नहीं कर सकते हैं कयोंकि ये सारे प्रयास मनुष्य पाप की दशा में करता है। इसलिए हमें परमेश्वर के उपाय पर, उसके बलिदान पर विश्वास करने की आवश्यकता है। 

परमेश्वर ने हमें यह आज्ञा दी है कि हम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करें जिसे उसने अपने लहू से खरीदा हुआ है। (प्रेरितों 20:28) यीशु ने हर एक मनुष्य को बचाने के लिए मृत्यु का स्वाद चखा है। (इब्रानियों 2:9) इस बात को कभी भी न भूलें कि आपके लिए एक बड़ी कीमत चुकाई गई है। उसने सारी यातनाओं को, कोड़ों को,अपमान को, हमें बचाने के खातिर ही सहा है। इसलिए हमारा यह फर्ज़ बन जाता है कि हम अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करें। (1 कुरिंथियों  6:20) सुसमाचार से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि….

हर एक आत्मा कीमती है।

नाश हो रही आत्माओं की चिंता (Concern for Soul) भी हमें सुसमाचार सुनाने के लिए प्रेरित करती है। परमेश्वर ने हर एक व्यक्ति को अपने स्वरूप व समानता में बनाया है। हर एक आत्मा परमेश्वर की दृष्टि में बहुमूल्य है। जैसे कि किसी चरवाहे के पास सौ भेड़ें हैं और उनमें से एक खो जाती है तो वह निन्यानवे को छोड़कर उस एक को ढूंढने जाता है जो खो गई है। जबकि निन्यानवें तो उसके पास हैं ही पर उसके लिए वह एक भेड़ भी बहुत मूल्य रखती है। जब वह भेड़ उसे मिलती है तो स्वर्ग में बहुत आनंद होता है। (पढ़ें लूका 15:1-7) प्रभु यीशु इसलिए तो आए कि जो खो गए हैं उन्हें ढूंढे और उनका उद्धार करे। (लूका 19:10) 

पौलुस अपने मन की अभिलाषा को बताता है जो उसे इजराइलियों के लिए थी जिन्होंने मसीह पर अर्थात परमेश्वर के उपाय पर विश्वास नहीं किया था। वे तो ऐसे लोग थे जिनको परमेश्वर के लिए धुन रहती है। प्रेरित पौलुस उनके लिए परमेश्वर से यही प्रार्थना करता है कि वे उद्धार पाएं। (रोमियों 10:1)

परमेश्वर का प्रेम हर एक जन के लिए प्रकट है। क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई भी उस पर विश्वास करे वह नाश न हो, बल्कि अनंत जीवन पाए। (यूहन्ना 3:16)

मेरे प्रिय, क्या आपके मन की भी अभिलाषा और प्रार्थना है कि जिन्होंने अभी तक मसीह पर विश्वास नहीं किया है वे भी उद्धार प्राप्त करे? यदि ऐसा है तो आपको सुसमाचार सुनाने से कोई भी नहीं रोक सकता। आरंभिक कलीसिया से कुछ सीखिए; जिनको रोकने के लिए कई नाकाम कोशिशें की गईं पर “जो कुछ उन्होंने देखा था उसे बताने से उन्हें कोई भी रोक ना पाया।”

क्या आप भी उसके विरोधियों से ये कहने का साहस रखते हैं कि “ये तो हमसे हो नहीं सकता है” क्या आप कह सकते हैं कि “मनुष्य की आज्ञा से बढ़कर हम परमेश्वर का ही आज्ञापालन करेंगे।” (पढ़ें – प्रेरितों 4:19-20, 5:29) स्मरण रखें, परमेश्वर ने हर एक आत्मा को बचाने के लिए कीमत चुकाई है, उसकी दृष्टि में हर एक आत्मा कीमती है। 

प्रेरित इस बात को जानते थे इसलिए उन्हें कोई भी रोक ना पाया। सुसमाचार (Gospel) से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि….

चिल्लाहट की वजह से।

मेरे प्रिय, जो भी समय है वो अभी ही है। बाद में आपको मौका नहीं मिलेगा। बहुत से लोग जो इस दुनियां से चले गए हैं वो चाहकर भी अपने लोगों को बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते हैं। आपको धनवान और लाजर के बारे में तो मालूम ही है कि किस प्रकार वो धनवान व्यक्ति उस आग में चिल्ला रहा था? और यह निवेदन कर रहा था कि कोई उसके भाइयों के पास जाए और उन्हें चिताए ताकि वे भी उस आग में न जाएं, जहां वो एक बूंद पानी के लिए भी तरस रहा था। (लूका 16:19-31)

क्या आप नहीं चाहते हैं कि आपके चाहने वाले भी आपके साथ स्वर्ग में प्रभु के साथ रहें? यदि हां, तो प्रिय, अभी वो समय है कि आप उन तक सुसमाचार को ले जाएं, जिससे वे भी प्रभु पर विश्वास करे और अनंत जीवन प्राप्त करें। आपके पास वो जीवन जल है। मेरे प्रिय! वो सिर्फ आपके लिए नहीं है, दूसरों को भी उसकी आवश्यकता है। प्रभु का वचन कहता है कि जो भी उस पर विश्वास करता है वह दूसरों के लिए भी उमड़ने वाला सोता बन जायेगा। (यूहन्ना 7:37-38)

आज भी कई लोग इंतजार में है कि कोई उनकी मदद करने उनके पास जाए। (प्रेरितों 16:9) क्या आपको स्मरण है कि जब प्रभु के लोग पीड़ा से कराह रहे थे तो प्रभु ने उन्हें स्मरण किया और उनको बचाने के लिए उपाय किया। (निर्गमन 2:24) आज कई लोग या यूं कहूं तो कई आत्माएं आपका इंतजार कर रही हैं और पुकार रही हैं कि आप उनकी मदद करें। आपको यह जानकर चुप नहीं रहना चाहिए। जाइए उनकी मदद करिए। सुसमाचार (Gospel) से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि….

प्रतिस्पर्धा के कारण।

जैसा कि आप जानते ही हैं अंधकार की ताकतें आरंभ से ही परमेश्वर के वचन के साथ मिलावट करने का प्रयास करती रही है। उनका यही प्रयास रहता है लोग सत्य को न जाने। इसी कारण आज उद्धार के लिए भी कई रास्ते नजर आते हैं, जिस वजह से कई लोग असमंजस में हैं क्योंकि वे अपने तरीकों में ही उलझे हुए हैं। 

आरंभिक कलीसियाओं में भी धीरे धीरे गलत शिक्षाएं जुड़ती जा रही थी। व्यवस्थापालक यहूदी मसीही इस बात का प्रचार करने लग गये थे कि जो लोग अन्यजातियों में से मसीह पर विश्वास करते हैं उन्हें उद्धार के लिए व्यवस्था का पालन भी करना होगा, जो कि खुलेआम सुसमाचार के साथ मिलावट थी। सुसमाचार का रक्षक होने के नाते पौलुस ने ये स्पष्ट कर दिया कि कोई दूसरा सुसमाचार है ही नहीं। (गलातियों 1:6-7)

आज हमारे आस पास कई ऐसे सत्संग नज़र आते है, जिन्हें देखकर लगता है कि वे भी सत्य का प्रचार कर रहे हैं जबकि वास्तव में सत्य का नहीं बल्कि असत्य का प्रचार कर रहे हैं। क्योंकि न उनके शिक्षकों के जीवन बदलते हैं न उनके अनुयाइयों के। यीशु ने स्पष्ट कर दिया कि कोई दूसरा मार्ग है ही नहीं। (यूहन्ना 14:6)

आप हर कहीं इस प्रतिस्पर्धा (Competition) को देख सकते हैं। आज अगर आप टीवी में भी देखेंगे तो हर कोई इस प्रतिस्पर्धा में जुटा हुआ है। वे मनुष्यों के ज्ञान को ईश्वरीय उपदेश करके बताने से भी नहीं चूकते। इस प्रकार वे भी उद्धार की योजना जो कि परमेश्वर ने मनुष्य के लिए तैयार की है उसमें मिलावट कर रहे हैं और लोगों को गुमराह कर रहे हैं।

आज जबकि मसीहियों में भी गलत शिक्षाएं और कुपंथ पाए जाते हैं तो मेरे प्रिय, आज हमें सत्य के सुसमाचार को सभों तक पहुंचाने में अपना योगदान देना चाहिए। आज जबकि बुराई अपने चरम पर है तो हमें उस शुभ संदेश को लोगों तक पहुंचाना होगा, जो हर आत्मा को उस नरक की ज्वाला से बचा सकता है। हमें सुसमाचार से लज्जाने की आवश्यकता बिल्कुल भी नहीं है। सुसमाचार से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि….

चुनौती के कारण।

आज हमारे सामने यह भी एक चुनौती है कि गुटबाजी बढ़ती जा रही है। कई मसीही लोग दूसरे मसीहियों से मिलते तक नहीं हैं। ये संभव है कि हमारे कई विचार आपस में मिलते न हों पर हमें ये भी तो याद रखना चाहिए कि हम सभी एक ही देह के अंग हैं, तो फिर हम क्यों भूल जाते हैं कि हमें एक दूसरे की आवश्यकता है। एक देह के अंग होने के नाते हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम अपने दानों-वरदानों से मिलकर परमेश्वर के राज्य में अपना-अपना योगदान दें। हम सभी को परमेश्वर ने विशिष्ट बनाया है। 

हमारे पास जो भी दान-वरदान परमेश्वर ने दिए हैं वे अलग किसी समूह बनाने के लिए नहीं दिए गए हैं बल्कि वे परमेश्वर के राज्य में अपना योगदान देने के लिए दिए गए हैं। 

कभी कभी जब कोई मुझसे पूछता है कि आप कौन से denomination से हैं, सच कहूं तो मुझे इस प्रश्न का उत्तर देने में काफी संकोच होता है। इस बात से मैं इस नतीजे पर भी पहुंचता हूं कि लोग परमेश्वर के वचन को पढ़ते ही नहीं हैं इसलिए वे किसी एक ही हिस्से पर ज्यादा जोर देते हैं। 

क्योंकि जब एक कहता है, “मैं पौलुस का हूँ,” और दूसरा, “मैं अपुल्‍लोस का हूँ,” तो क्या तुम मनुष्य नहीं? अपुल्‍लोस क्या है? और पौलुस क्या है? केवल सेवक, जिनके द्वारा तुम ने विश्‍वास किया, जैसा हर एक को प्रभु ने दिया। (1 कुरिन्थियों 3:4-5)

मेरे प्रिय, आइए हम सभी सुसमाचार को पृथ्वी के छोर तक ले जाने में अपना योगदान दें जिसकी आज नाश हो रही मानवजाति को जरूरत भी है। सुसमाचार से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि….

बुलाहट के कारण।

हमें सुसमाचार (Gospel) से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि परमेश्वर ने हमको बुलाहट भी दी है। क्या आप भी तैयार हैं? क्या आप भी कह सकते हैं कि प्रभु मैं यहां हूं! मुझे भेज। (यशायाह 6:8) प्रभु ने हम सभी को इसलिए बुलाया भी है कि हम भी आत्माओं को परमेश्वर के राज्य के लिए जीतें। (मरकुस 1:16) उसने हमें इसलिए चुना है कि हम बहुत सा फल लाएं और वह फल बना भी रहे। (यूहन्ना 15:16) सुसमाचार से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि….

क्यों एक मसीही को सुसमाचार से लज्जाना नहीं चाहिए? (What Does It Mean To Not Be Ashamed Of The Gospel?)
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प्रतिबद्धता के कारण।

हम सभी को यह सेवा प्रभु यीशु ने दी है कि हम सुसमाचार की गवाही दें। हमें उस दौड़ को और उस सेवा के प्रति पूरा प्रतिबद्ध (Committed) होने की आवश्यकता है। प्रेरित पौलुस कहते हैं कि इसके लिए तो मैं अपने प्राण को भी कुछ नहीं समझता हूं। मैं तो बस अपनी दौड़ को और सेवा को पूरी करना चाहता हूं जो परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिए प्रभु यीशु से पाई है। (प्रेरितों 20:24) 

मेरे प्रिय, यदि हम सुसमाचार सुनाते भी हैं तो इसमें कोई घमंड की बात नहीं होनी चाहिए, हमें तो अवश्य ही सुसमाचार सुनाना चाहिए। हमें तो भंडारीपन सौंपा गया है। ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम सुसमाचार सुनाएं और इसके लिए प्रतिबद्ध भी हो जाएं। क्या आप भी पौलुस के समान कह सकते हैं कि यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊं तो मुझ पर हाय? (1 कुरिन्थियों 9:16‭-‬17) वो ऐसा इसलिए कह पा रहा है क्योंकि वह सुसमाचार सुनाने के लिए Committed है। स्मरण रखें कि जो भलाई करना जानता है और नहीं करता है वह पाप करता है। (याकूब 4:17)

यदि हम परमेश्वर के वचन को कार्य करने से रोकते हैं और उसे साझा नहीं करते हैं तो भी हम श्राप को आमंत्रित करते हैं। क्योंकि लिखा है “शापित है वह जो अपनी तलवार को लहू बहाने से रोकता है।” (यिर्मयाह 48:10) 

हम जानते हैं कि पहली सदी की कलीसिया की प्रतिबद्धता और बलिदान के कारण ही सुसमाचार पूरी दुनियां में फैला है और हमारे भारत में भी। सुसमाचार (Gospel) से लज्जाने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं है क्योंकि….

न्याय के कारण।

हमें आने वाले न्याय (Condemnation) को ध्यान में रखकर भी सुसमाचार को सुनाना चाहिए। हम में से हर एक को परमेश्वर ने हमारी योग्यताओं के अनुसार जिम्मेदारियां दी गई हैं। एक समय आएगा जब हमें परमेश्वर के सामने हिसाब देना होगा। 

उस वक्त दो प्रकार के ब्यान (Statements) सुनने को मिलेंगे। एक तो ये कि ‘धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्‍वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’ (मत्ती 25:23 HINDI-BSI) और दूसरा ब्यान ये होगा ‘हे दुष्‍ट और आलसी दास। (मत्ती 25:26) आप कौन सा वाला ब्यान सुनना चाहेंगे? (मती 25:26-28)

हमें हमारी जिम्मेदारी को निभाना चाहिए जो हमें सौंपी गई है। अगर कोई आपके सामने दुष्टता करता जा रहा है और आप उसको नहीं चिताते हैं तो वचन स्पष्ट कहता है कि उसका लेखा आपसे भी लिया जाएगा। जब आप उसे चिताएंगे यदि वह फिर भी अपनी दुष्टता से बाज न आए तो वह अपने अधर्म में मर जायेगा पर आप अपने प्राण को इसलिए बचा पाएंगे क्योंकि आपने तो उसे समझाया या चिताया था। (यहेजकेल 3:18-20)

क्या ही सुहावने हैं वे पांव जो मेल का सुसमाचार को ले जाते हैं। परमेश्वर ने हमको मेलमिलाप की सेवा सौंपी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम राजदूत हैं। राजदूत होने के नाते हमें परमेश्वर के शुभसंदेश को प्रस्तुत करना है। (1 कुरिंथियों 5:18-20)

पापों के लिए एकमात्र दवा प्रभु यीशु मसीह ही है। इसलिए हम प्रभु यीशु मसीह को इस नाश होने वाले संसार से छुपा कर नहीं रख सकते। 

सारांश

इन बातों को जानने के बाद हमें भी यीशु के जैसा देखना होगा। (मत्ती 9:35-38) उन्होंने लोगों को देखा, उन्होंने उस भीड़ का आकार देखा, यीशु ने लोगों की पीड़ा को देखा, उन्होंने देखा कि वे खोये हुए हैं, यीशु ने देखा कि वे परमेश्वर से दूर हैं, यीशु ने महसूस किया कि उन्हें चरवाहे कि आवश्यकता है और यीशु ने देखा कि फसल पक चुकी है।

इतने सारे कारणों को जानने के बाद एक प्रभु का शिष्य, एक विश्वासी जन कैसे सुसमाचार को सुनाने से अपने आप को रोक सकता है? इसलिए मेरे प्रिय, सुसमाचार को बताने से न रुकें। आज कई आत्माएं बिना सुसमाचार को सुने ही विनाश की ओर जा रही हैं। परमेश्वर का वचन कहता है कि एक धन्य व्यक्ति को सूखे वर्ष में भी अर्थात मुश्किल समय में भी कुछ चिंता न होगी क्योंकि वह तब भी फलता रहेगा। (यिर्मयाह 17:7-8) अगर आप परमेश्वर के साथ नजदीकी में हैं जो हमारे पोषण का सोता (Source) है तो आपको कोई भी फल लाने से रोक नहीं सकता है। 

हे मेरे भाइयो, यदि तुम में कोई सत्य के मार्ग से भटक जाए और कोई उस को फेर लाए, तो वह यह जान ले कि जो कोई किसी भटके हुए पापी को फेर लाएगा, वह एक प्राण को मृत्यु से बचाएगा और अनेक पापों पर परदा डालेगा। – याकूब 5:19‭-‬20 HINDI-BSI

अब ढीले न हों, क्योंकि कटनी नजदीक है। भले काम में साहस न छोड़ें क्योंकि यदि हम ढीले न हों तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे। (गलातियों 6:9) प्रभु यीशु का दूसरा आगमन नजदीक है। प्रभु अपनी प्रतिज्ञाओं के विषय देर नहीं करता है। 

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Anand Vishwas
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आशा है कि यहां पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हम सबको बुलाया है। प्रभु का आनंद हमारी ताकत है।

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