क्रूस की कथा क्या है? (The Message Of The Cross)

The Message Of The Cross. क्रूस की कथा में मानवजाति के लिए क्या संदेश है?

क्रूस की कथा क्या है? (The Message Of The Cross) क्रूस की कथा में मानवजाति के लिए क्या संदेश है? प्रेरित पौलुस मसीह के सुसमाचार के अगम्य धन को सुनाने के लिए इतने उत्साहित हैं कि आप उन्हें बार-बार ये कहते हुए पाएंगे कि मसीह ने मुझे सुसमाचार सुनाने के लिए भेजा है और यह भी शब्दों का ज्ञान के अनुसार नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस व्यर्थ ठहरे। (1कुरिन्थियों 1:17)

उन्होंने यह ठान लिया था कि यीशु मसीह वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को वह कलीसिया में ना जाने। ऐसा वे इसलिए करते थे ताकि कलीसिया का विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो। (1कुरिन्थियों 2:1-5)

प्रेरित पौलुस ने यीशु मसीह के साथ मुलाकात के तुरंत बाद, मसीह के सुसमाचार के अगम्य धन पर अपना पूरा जीवन केंद्रित किया। क्योंकि पौलुस उस क्रूस की कथा (The Message Of The Cross) की सामर्थ्य को जानते थे कि वह सामर्थ, हर एक उद्धार पाने वालों के लिए परमेश्वर की सामर्थ है।

क्रूस की कथा बताती है कि बचाव सिर्फ परमेश्वर की शर्तों पर ही होगा। क्रूस की कथा हमें बताती है कि परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति से प्रेम करता है। क्रूस की कथा हमें बताती है कि मनुष्य खोया हुआ है। क्रूस की कथा हमें बताती है कि परमेश्वर ने मनुष्य को बचाने के लिए एक रास्ता तैयार किया है। क्रूस की कथा बताती है कि हर एक मनुष्य को अनंत जीवन पाने के लिए यीशु मसीह को ग्रहण करने की आवश्यकता है।

आज हम क्रूस के उस संदेश (The Message Of The Cross) की बात करने जा रहे हैं, जो कि मानव जाति को बचाने के लिए परमेश्वर की एक महान योजना को बताता है। ये सन्देश कुछ लोगों के लिए मूर्खता हो सकता है, परंतु पौलुस बड़े उत्साह के साथ कहता है कि “ये संदेश हम उद्धार पाने वालों के लिए परमेश्वर का सामर्थ है।” (1कुरिन्थियों 1:18) इसलिए वे चाहते थे कि कलीसिया, यीशु मसीह को पहचाने। (1कुरिन्थियों 2:2) और वे मसीह के क्रूस पर गर्व करते थे।  (गलातियों 6:14) 

आखिर वो क्रूस का संदेश (The Message Of The Cross) है क्या? जिसके लिए पौलुस अपना पूरा जीवन न्योछावर कर देता है, जिसके लिए वह अपमानित होने के लिए, बार बार कोड़े खाने के लिए, सताव सहने के लिए तैयार हो गया? चलिए आज इस विषय में थोड़ी चर्चा करें। मुझे आशा है कि इन बातों को जानने के बाद आप भी पौलुस की तरह सिर्फ यीशु को ही कलीसिया में देखना चाहेंगे और उसके लिए अपना जीवन समर्पित कर देंगे। मुझे ये भी विश्वास है कि आप Kingdom Mindset के साथ प्रभु की सेवा करेंगे।

क्रूस का संदेश हमें क्या सिखाता है?

परमेश्वर आपसे प्यार करता है।

क्रूस की कथा (The Message Of The Cross) हमें बताती है कि परमेश्वर मुझसे और हर एक व्यक्ति से व्यक्तिगत रीति से प्यार करता है। उसका प्यार सभी के लिए एक जैसा है। क्योंकि परमेश्वर चाहते हैं कि कोई भी जन नाश न हो बल्कि हर एक जन मोक्ष प्राप्त करें। यीशु मसीह इसलिए दुनियां में आए, कि पूरा जगत उद्धार को प्राप्त करे। (यूहन्ना 3:16-17) 

इस कार्य के द्वारा परमेश्वर ने अपने प्रेम को पूरी मानवजाति पर प्रकट किया। हमने तो प्रेम को भी इसी से जाना कि उसने हमारे लिए अपने प्राण दे दिए और यह प्रेम हमें भी दूसरों के लिए जीने को प्रेरित करता है। बिना दूसरों से प्रेम किए हमारे जीवन में परमेश्वर का प्रेम बना नहीं रह सकता है। (1यूहन्ना 3:16-17) और क्रूस की कथा हमें बताती है कि…

मनुष्य खोया हुआ है।

क्रूस की कथा (The Message Of The Cross) हमें बताती है कि मनुष्य पापी है और परमेश्वर की महिमा से रहित है। (रोमियों 3:23) आज मनुष्य के जीवन में यदि समस्या है तो उसका केवल यही कारण है कि मनुष्य पाप के कारण परमेश्वर से दूर है। इसलिए वो आज कई बातों से अपने जीवन में जूझ रहा है, निराश है, आशाहीन है, भटका हुआ है, शांति रहित है और अपने प्रयासों से परमेश्वर की खोज में लगा हुआ है।

“हम अपने धार्मिक कामों से परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते हैं क्योंकि वे तो मैले चिथड़ों के समान हैं।”

जब से मनुष्य पाप में खो गया है तब से उसने परमेश्वर के साथ अपना रिश्ता भी खोया है, उसने सच्चाई और अनंत जीवन को भी खोया है। खोया हुआ व्यक्ति आज इस पृथ्वी पर सृष्टिकर्ता की नहीं बल्कि सृष्टि में हर चीज की उपासना कर रहा है। पाप के कारण इंसान आज इतना अधिक दूषित हो गया है कि वह चाहे धार्मिकता के कामों को करके परमेश्वर को प्रसन्न करना भी चाहे तो भी उसका यह प्रयास व्यर्थ ही होगा।

क्योंकि पवित्रशास्त्र यह बात स्पष्ट कर देता है कि “हम अपने धार्मिक कामों से परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते हैं क्योंकि वे तो मैले चिथड़ों के समान हैं।” जिस कारण से जीवन, पत्ते के समान मुर्झा जाता है और हमारे अधर्म के कामों ने हमें हवा के समान उड़ा दिया है। (यशायाह 64:6) 

और परमेश्वर ने जब हमें इस पाप के दलदल से छुड़ाने के लिए प्रभु यीशु को भेजा तो भी कई लोगों ने इस छुटकारे के कार्य पर विश्वास नहीं किया। जिस वजह वे परमेश्वर के सामने दोषी ठहर चुके हैं। इस दंड के पीछे यही कारण है कि ज्योति इस अंधकार को दूर करने के लिए जगत में आई, पर मनुष्यों ने अपने बुरे कामों की वजह से, अंधकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना। क्योंकि जो कोई भी बुराई करता है, वह ज्योति से नफरत करता है और ज्योति के निकट नहीं आना चाहता; ताकि उसके कामों पर दोष न लगाया जाए। (यूहन्ना 3:19-20) 

मनुष्य पाप की मजदूरी स्वरूप मृत्यु को पाता है, जो कि मनुष्य के लिए एक बहुत बड़ी त्रासदी है, क्योंकि मनुष्य हमेशा-हमेशा के लिए परमेश्वर के साथ उस संबंध से अलग हो जाता है, जिसके लिए परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की थी। (रोमियों 6:23) आज के मनुष्य के बारे में पवित्रशास्त्र पहले से ही बयाँ करता है कि मनुष्य तो सब के सब पाप के वश में है, क्योंकि पवित्रशास्त्र बताता है कि कोई भी धर्मी नहीं है, एक भी नहीं। कोई समझदार नहीं है, कोई परमेश्वर को खोजनेवाला नहीं है, सब भटक गए हैं। सब के सब निकम्मे बन गए हैं, कोई भलाई करने वाला नहीं, एक भी नहीं।

मनुष्य का गला भी खुली हुई कब्र के जैसा है, उन्होंने अपनी जीभ से धोखा किया है, उनके होंठों में तो सांपों का विष भरा रहता है। उनके मुख श्राप और कड़वाहट से भरे हुए हैं। उनके पांव भी किसी का खून करने के लिए बड़े फुर्तीले हैं, उनके रास्तों में नाश और क्लेश है, उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना, उनकी आंखों के सामने परमेश्वर का भय नहीं। (रोमियों 3:9-18) पवित्रशास्त्र की ये सभी बातें स्पष्ट कर देती हैं कि मनुष्य खोया हुआ है। क्रूस की कथा हमें बताती है कि…

परमेश्वर ने एक रास्ता तैयार किया है।

क्रूस की कथा (The Message Of The Cross) हमें बताती है कि परमेश्वर ने एक रास्ता तैयार किया है। परमेश्वर तो हमसे बहुत प्यार करते हैं जिस वजह से वो चाहते हैं कि हम इस पाप के दलदल से बाहर निकलें और परमेश्वर के ऊपर विश्वास करें। जैसा कि आप जानते ही हैं आप भी अपने बच्चों से कितना प्यार करते हैं। आपके बच्चे भी जब गलत राह में जाते हैं, और आपके अनाज्ञाकारी होते हैं तो आपका भी मन कितना व्यथित हो जाता है।

“परमेश्वर पाप से नफरत लेकिन पापी से प्यार करते हैं।”

ये दशा तो मानो ऐसी है जैसे कि आपके बच्चे को कैंसर हो गया हो। पर उस स्थिति में भी आप अपने बच्चे से प्यार करते हैं। चूंकि आप अपने बच्चे से प्यार करते हैं पर आप फिर भी कैंसर से नफरत ही करेंगे। पाप भी मनुष्य के जीवन में कैंसर जैसा है, जिसे परमेश्वर भी नफरत करते हैं लेकिन वो मनुष्य से प्यार करते हैं। परमेश्वर पाप से नफरत लेकिन पापी से प्यार करते हैं। ये संदेश हमें बयां करता है कि प्रभु यीशु इस दुनियां में पापियों को बचाने के लिए आया, खोए हुओं को ढूंढने और उनका उद्धार करने आया। (लूका 19:10)

यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला कहता है, “देखो परमेश्वर का मैमना पूरे जगत के पापों को उठा ले जाता है।” यीशु मसीह ही वो रास्ता है जो परमेश्वर के पास को जाता है।

और यूहन्ना 14:6 यह बताता है कि यीशु मसीह ही एकमात्र रास्ता है, सच्चाई है और जीवन है, जिसके बिना कोई भी परमेश्वर के पास नहीं पहुंच सकता। स्वर्ग के नीचे इस पृथ्वी पर केवल एक ही नाम दिया गया है, जिसके द्वारा हम उद्धार पाते हैं। (प्रेरितों 4:12) परमेश्वर नहीं चाहते थे कि हम पाप की दशा में हमेशा-हमेशा के लिए अपने स्वर्गीय पिता से अलग रहें, इसी कारण से उन्होंने एक रास्ता तैयार किया है ताकि मनुष्य का विनाश न हो बल्कि वो हमेशा की जिंदगी को पाए। 

रोमियों 8:1 हमें बताता है कि अब उन पर दंड की आज्ञा नहीं है जो यीशु मसीह में है, क्योंकि अब वे शारीरिक अभिलाषाओं के अनुसार नहीं चलते हैं; बल्कि वे तो आत्मा के अनुसार चलते हैं। उनके लिए तो परमेश्वर का उपहार अनंत काल का जीवन है, जो केवल प्रभु यीशु मसीह में ही पाया जाता है। (रोमियों 6:23b) और क्रूस की कथा (The Message Of The Cross) हमें यह भी बताती है कि…

हर एक मनुष्य को अनंत जीवन पाने के लिए यीशु मसीह को ग्रहण करने की आवश्यकता है। 

क्रूस की कथा (The Message Of The Cross) हमें यह भी बताती है कि हर एक मनुष्य को अनंत जीवन पाने के लिए यीशु मसीह को ग्रहण करने की आवश्यकता है। हममें से हर एक को प्रभु यीशु को व्यक्तिगत रीति से ग्रहण करना होगा। पवित्रशास्त्र यह बताता है कि जितनों ने भी प्रभु यीशु को ग्रहण किया, उन्हें परमेश्वर की संतान होने का अधिकार मिला अर्थात उन लोगों को जो यीशु के नाम में विश्वास रखते हैं। (यूहन्ना 1:12) 

कितनी अदभुत बात है न! कि अब हम परमेश्वर को “पिता” कहकर संबोधित कर सकते हैं। कितनी निकटता महसूस होती है न! ये ही बातें हैं जो मसीहियत को संसार की बाकी धार्मिक प्रणाली से अलग करती है। क्योंकि मसीहियत परमेश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध है। 

परमेश्वर ने हमें अनंत जीवन दिया है जो कि प्रभु यीशु मसीह में है। जिसके पास प्रभु यीशु है उनके पास जीवन है, और जिसके पास प्रभु यीशु नहीं है, उसके पास जीवन भी नहीं है। जो भी व्यक्ति यीशु मसीह पर विश्वास करता है, अनंत जीवन उसका है। (1यूहन्ना 5:11-13) आज प्रभु यीशु हर एक के जीवन में आना चाहते हैं पर जो कोई उनकी आवाज़ सुनकर अपने हृदय को खोलेगा और उनका स्वागत करेगा; प्रभु यीशु उनके ही जीवन में आएगा। (प्रकाशितवाक्य 3:20) 

“जिसके पास प्रभु यीशु है उनके पास जीवन है, और जिसके पास प्रभु यीशु नहीं है, उसके पास जीवन भी नहीं है।”

हर एक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से प्रभु यीशु मसीह को अपना व्यक्तिगत उद्धरकर्ता और प्रभु स्वीकार करना होगा, अन्यथा कोई भी स्वर्ग में दाखिल नहीं हो पाएगा। (रोमियों 10:9-10)

सारांश

एक मसीही होने के नाते हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस क्रूस के सन्देश को हर एक जन तक पहुंचाएं, ताकि वे भी परमेश्वर के उद्धार करने वाली सामर्थ को अपने जीवन में अनुभव करें। वे भी जीवन को पाएं, उद्धार, मुक्ति को पाएं; जिसके लिए परमेश्वर ने एक महान कीमत चुकाई है।

जरा कल्पना करें कि जो चीज बिना जीवन के है, उसका जीवन कैसा होगा? मेरे प्रियो, एक समय हमारी भी दशा कुछ ऐसी ही थी, लेकिन परमेश्वर ने उस क्रूस के सन्देश को किसी के द्वारा हम तक पहुँचाया और हमारा जीवन बदल गया। आज परमेश्वर चाह रहे हैं कि आप भी उस जीवन को दूसरों तक पहुंचाएं। क्योंकि ये उसका वादा है, जो भी उस पर विश्वास करता है वो भी एक उमड़ने वाला सोता बन जायेगा। क्रूस का सन्देश यही है कि बचाव सिर्फ परमेश्वर की शर्तों पर ही होगा।

शालोम

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Anand Vishwas
Anand Vishwas
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