विश्वास न करने वाले विश्वासी

Unbelieving Believers By Leonard Ravenhill

विश्वास न करने वाले विश्वासी। (Unbelieving Believers) यह लेख लियोनार्ड रेवनहिल द्वारा लिखित, “आत्म जागृति में देरी क्यों?” नामक पुस्तक से लिया गया है। रेवनहिल आज विश्वासियों में विश्वास के कंगालपन से दुखी हैं। क्योंकि ऐसे लोग विश्वासी तो कहलाते हैं पर उनमें विश्वास है ही नहीं।

जैसा कि मैंने आपको बताया था कि “आत्म जागृति में देरी क्यों?” नामक पुस्तक ने मुझे गंभीरता से सेवा करने में बहुत योगदान दिया है इसलिए मेरी हार्दिक इच्छा है कि हर एक सेवक जो अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग हैं या सजग नहीं भी हैं, वे इस पुस्तक को पढ़े ताकि अपने जीवन में फलवन्त रीति से सेवा कर सके।

हालाँकि इस पुस्तक में आलसी सेवकों और विश्वासियों के लिए ताड़ना भी हैं जो जीवित परमेश्वर की सेवा करने का ढोंग कर रहे हैं; जिन्होंने परमेश्वर की सेवा को मजाक बनाया हुआ है। ये पुस्तक दुर्लभ पुस्तकों में से एक है इसलिए इसे जैसे लिखा गया है वैसे ही आपके सामने इसके लेखों को पेश कर रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक के लेख आपको प्रार्थना करने, पश्चाताप करने और गंभीरता से सेवा करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।


कलीसिया कलवरी और पिन्तेकुस्त के बीच कहीं रुक गई है।

-J. I. BRICE

इन दिनों में जब कुछ साधारण व्यक्ति परमेश्वर की पुस्तक (बाइबल) को उठाकर पढ़ लेते हैं, और उस पर विश्वास कर लेते हैं इसे देखकर हम में से कई लोग व्याकुल हो जाते हैं। हमने एक सुविधाजनक रीति बना ली है कि बाइबल दूसरों को समझाने की पुस्तक है, जबकि सबसे पहले इस पुस्तक पर विश्वास किया जाना है इसके बाद इसके अनुसार चलना है।

यह सच्चाई लगातार मेरे मस्तिष्क पर इन दिनों प्रहार करती है कि परमेश्वर के वचन को जानने में और वचन के परमेश्वर को जानने में, जमीन-आसमान का अंतर है। क्या यह सत्य नहीं है कि लगातार बाइबल सभाओं में हम केवल पुरानी बातों को दोहराया जाना ही सुनते हैं, और हमारे विश्वास में किसी प्रकार की उन्नति के बगैर हम वहां से चले आते हैं? शायद परमेश्वर के पास ऐसे विश्वास ना करने वाले विश्वासियों का झुंड कभी नहीं रहा जैसा कि आज के मसीही लोग हैं। कितनी शर्म की बात है!

ओ जीवित सोते! हे कृपा वर्षा! कोई भी तेरी प्रतीक्षा नहीं करता, और व्यर्थ प्रतीक्षा करता है।

-TERSTEEGEN

क्या आत्मिक धन के द्वारा हम वशीभूत (Mesmerized) हो गए हैं? हो सकता है एक गरीब नाविक अटलांटिक महासागर में सफर करने का जोखिम उठाने को तैयार हो जाए यह जानते हुए कि सागर के नीचे लुसीटानिया नामक एक जहाज डूबा पड़ा है जिसके अंदर एक करोड़ डॉलर का खजाना रखा हुआ है और यह खजाना वह ले सकता है! और वहां तक पहुंचने में केवल मील दो मील की दूरी है! इसी प्रकार बाइबल जो महिमायुक्त परमेश्वर की ओर से एक मसीही के लिए चेकबुक है, कहती है: “सब कुछ तुम्हारा है… और तुम मसीह के हो और मसीह परमेश्वर का है।” (1 कुरिन्थियों 3 :21-23) इन दिनों विश्वासियों में विश्वास के कंगालपन को देखकर मैं बड़ा दुखी हूं। 

हम बहुत ही कम कोई प्रार्थना सभा में प्रवेश करते हैं जहां यह खास मुहावरा हमें सुनाई ना देता हो, “प्रभु, तू यह कर सकता है” (किसी खास आवश्यकता को कहते हुए) लेकिन क्या यह विश्वास है? नहीं! यह तो सिर्फ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सर्वसामर्थी गुण को मान्यता देना है। मैं विश्वास करता हूं कि जीवित, न बदलने वाला महिमायुक्त प्रभु इस टेबल को जिस पर मैं टाइप कर रहा हूं, सोने में बदल सकता है। पानी को दाखरस बना देना और लकड़ी को सोना बना देना, यह सब उसकी सामर्थ की परिधि के अंदर है।

लेकिन उसने आवश्यकता के कारण ही पानी को दाखरस बनाया। मेरी चारों ओर की आवश्यकताओं को देखते हुए मैं उन आवश्यकताओं पर इसी समय दस लाख डॉलर खर्च कर सकता हूं (लेकिन एक भी डॉलर उसमें से अपने ऊपर खर्च किए बिना) और यह रकम इस प्रकार खर्च कर सकता हूं कि मुझे उस “महान अंतिम दिन में न तो कांपना पड़ेगा, न डरना, इसलिए कि मैं विश्वास करता हूं कि इसकी एक विशेष आवश्यकता है। लेकिन यह कह देना कि वह यह कर सकता है इससे लकड़ी सोना नहीं बन जाती और समस्या वहीं की वहीं रहती है। लेकिन जब मैं आगे बढ़कर कहता हूं “वह इस टेबल को सोने में बदल देगा” मेरी समस्या का समाधान हो जाता है। 

हम सब जानते हैं कि विश्वास, आशा और प्रेम में सबसे बड़ा विश्वास नहीं है। लेकिन छोटे को अनदेखा क्यों करते हैं? (1 कुरिन्थियों 13:13) आज इन दिनों में शुद्ध विश्वास कहां है? आजकल शुद्ध और सही विश्वास की व्याख्या कितनी हास्यजनक है! एक बड़ी जानी पहचानी पुकार है: “हम विश्वास करते हैं कि प्रभु हम से दस और रेडियो स्टेशनों से प्रचार करवाएगा; हम उसकी और अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए देख रहे हैं; आप अपने पत्र हमें अगले हफ्ते से पहले भेज दीजिए!” यह विश्वास और संकेत हो सकते हैं, लेकिन इस प्रकार का विश्वास केवल परमेश्वर तक ही सीमित नहीं है। हम मसीही लोग बड़ी सरलता से कहते हैं, “मेरा परमेश्वर तुम्हारी… हर एक घटी को पूरी करेगा।” (फिलिप्पियों 4:19) (महान शब्द) लेकिन क्या वास्तव में हम इस पर विश्वास करते हैं?

इब्रानियों 11 के महत्व को कम किए बिना, उसमें हडसन टेलर (चाइना इंग्लैंड मिशन के संस्थापक) जॉर्ज मूलर, रीस होवेल्स और दूसरों के नाम जोड़े जा सकते हैं जिन्होंने “विश्वास के द्वारा” महान कार्य किए। इस कठिन समय में, मैं हमारे जी उठे हुए, धनवान प्रभु के विषय में बड़ी-बड़ी बातें सुनते थक गया हूं, क्योंकि इन बातों के बाद भी हम विश्वासियों में कैसा आत्मिक कंगालपन है! परमेश्वर ज्ञान और व्यक्तित्व का आदर नहीं करता है वह केवल विश्वास का आदर करता है। विश्वास परमेश्वर का आदर करता है। विश्वास परमेश्वर को जहां ले जाना चाहता है परमेश्वर वहां जाता है। विश्वास, जैसा मैं मानता हूं आप समझ गए होंगे, परमेश्वर को थाम लेता है। विश्वास हमारी अयोग्यता को परमेश्वर के सर्वसामर्थी गुण से जोड़ देता है।

इस वैज्ञानिक युग ने ध्वनि की सीमा को तोड़ दिया है। यह दुराचारी संसार जो हमारे चारों ओर है हम से चिल्लाकर कह रहा है हमने पाप की सीमा को तोड़ दिया है; अब हे परमेश्वर, हम आगे बढ़ें और साधारण और एकाग्र विश्वास के द्वारा संदेह की सीमा को तोड़ दें। संदेह अक्सर विश्वास को नष्ट कर देता है और विश्वास, संदेह को नष्ट कर देता है। पवित्र पुस्तक यह नहीं कहती है कि “अगर तू पवित्र शास्त्र को समझा सकता है तो सब तेरे लिए हो सकता है।” परमेश्वर “जो है सो है” उसको समयों या कालों में नहीं समझाया जा सकता और न ही, हम सोचते हैं, कि वह अनंत काल में स्वयं को या अपने तरीकों को समझाने का प्रयास करेगा। इस अपरिवर्तनीय पुस्तक में जैसा कि उसका लेखक कहता है; “विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ हो सकता है।” (मरकुस 9:23)

हमने अक्सर लोगों को दुःख के भाव में कहते सुना है, (जब उन्हें उस काम के लिए जिसके लिए वह योग्य थे अयोग्य बता दिया गया), “आज के समय में आप क्या जानते हैं इसका महत्व नहीं है परंतु किसको आप जानते हैं इसका महत्व है।” मैं इस बात को नहीं जानता कि यह विचार नौकरी-पेशा वाले जगत में कितना सही है; परंतु मुझे पूर्ण रूप से यकीन है कि यह विचार आत्मिक जगत में बिल्कुल सही है। इन दिनों में परमेश्वर के विषय में क्या जानते हैं इस विचार की उथली पुस्तकों की लंबी कतारें लगी हुई हैं और हमारे ग्रंथालयों में भरती जा रही है। (हम यहां सही शिक्षा को तुच्छ नहीं समझ रहे हैं और वास्तव में उस ईश्वरीय ज्ञान को भी नहीं जो ऊपर से आता है।) लेकिन हम क्या जानते हैं यह एक बात है; और हम किसको जानते हैं यह दूसरी बात है।

विश्वास न करने वाले विश्वासी। (Unbelieving Believers) By Leonard Ravenhill
Contributed by Sweet Publishing

पौलुस के पास कुछ नहीं था, लेकिन फिर भी “सब कुछ उसके पास था।” कितना बड़ा विरोधाभास है! धन्य कंगालपन! यह धन्य व्यक्ति आत्मिक रूप से भरपूर था। मसीह के राज्य को बनाते हुए और उसके वचनों को लिखते हुए उसमें कभी असंतुलन नहीं आया, लेकिन पौलुस की अतुलनीय उत्कृष्टता के बावजूद भी हम देखते हैं कि अपने जीवन की अंतिम दौड़ में भी उसमें और कुछ पा लेने की ऐसी जिज्ञासा थी: “और मैं उसको और उसके मृत्युंजय सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी होने के मर्म को जानूं और उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं।” (फिलिप्पियों 3:7-11)

परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को मनुष्य के सामने यथार्थ रूप में रखने के लिए विश्वासियों के सामने जो सबसे बड़ी रुकावट है, वह अभागी वस्तु अहम (Self) है लेकिन पौलुस को मालूम था कि कब उसका वह प्राचीन राजा अहम उसके हृदय के सिंहासन से उतार दिया गया था – और फिर – क्रूस पर लटका दिया था। (गलातियों 2:20) फिर मसीह उस सिंहासन पर विराजमान हुआ। और इसके पहले कि हम साफ और तैयार हो सकें वह हमें अपने अधिकार में ले, स्वयं की लालसा, स्वयं की महिमा, स्वयं की इच्छा, स्वयं की सहानुभूति, स्वयं की धार्मिकता, स्वयं की प्रतिष्ठा, स्वयं की उन्नति, स्वयं की संतुष्टि और जो कुछ भी स्वयं का हो उसे मर जाना है।

मनुष्य क्या है यह विशेष बात नहीं है; यह क्या जानता है इस बात का भी कोई महत्व नहीं है; लेकिन वह अवर्णनीय परमेश्वर के लिए क्या है इस बात का महत्व है। यदि हम परमेश्वर को अप्रसन्न करें तो फिर किसी और को प्रसन्न करने में क्या फर्क पड़ता है? और यदि हम परमेश्वर को प्रसन्न करें तो फिर किसी और को अप्रसन्न करने में क्या फर्क पड़ता है? हम मसीह के साथ संगति में क्या हो सकते हैं यह एक बात है; परंतु आज हमारी स्थिति क्या है या दूसरी बात है। मैं इस बात से बड़ा अप्रसन्न हूं कि मैं किस स्थिति में हूं। यदि आप की स्थिति में उन्नति हुई है तो अपने कमजोर भाई पर दया कीजिए और प्रार्थना कीजिए।

ऐसा भी विश्वास है जो स्वभाविक है, बौद्धिक है, और तर्कयुक्त है; परन्तु ऐसा भी विश्वास है जो आत्मिक है। इससे क्या लाभ कि हम वचन का प्रचार करें और जब हम उसे दूसरों के सामने रखें तो हमारे अंदर विश्वास ना हो कि यह लोगों में जीवन भर देगा? “शब्द तो मारता है” क्या हम मृत्यु को मृत्यु से जोड़ें? इस पीढ़ी का सबसे महान उपकारी व्यक्ति वह होगा जो इस गर्व से अकड़ कर चलने वाले रोगग्रस्त प्रोटेस्टेंटवाद पर परमेश्वर की अनुमानरहित सामर्थ को नीचे ला सके। यह प्रतिज्ञा हमारे लिए आज भी है: “जो लोग अपने परमेश्वर का ज्ञान रखेंगे, वे हियाव बांधकर बड़े काम करेंगे।” (दानिय्येल 11:32) यदि हममें से कोई परमेश्वर को जानता है, “तो हमारे विरोधी से सावधान रहे!”


(Taken from the book, Why Revival Tarries? By Leonard Ravenhill)


जैसा कि आप जानते हैं कि परमेश्वर ज्ञान और व्यक्तित्व का आदर नहीं करता है वह केवल विश्वास का आदर करता है। विश्वास परमेश्वर का आदर करता है। तो मेरे प्रिय लोगो अपने जीवन से संदेह को दूर कीजिये। आपके कार्यों से दिखे कि आप उस एकमात्र महान परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। विश्वास कर्म के बिना मृत है। आज लोगों को बार-बार सिखाने की जरुरत पड़ रही है।

बहुत बाइबल या बाइबल सम्बन्धी किताबों को पढ़ने के बावजूद भी विश्वासियों के जीवन में आज्ञाकारिता विकसित नहीं हो पाई है। उनके अन्दर परमेश्वर का भय ही नहीं है। शायद इसका कारण यही है कि वे अभी तक परमेश्वर को पहचान नहीं पाए हैं। यदि उस महान परमेश्वर को पहचानते तो ऐसे लापरवाही में कभी जीवन न बिताते जैसा आज बिता रहे हैं। यदि उस महान परमेश्वर पर विश्वास करते तो आज मनुष्य का भय उनमें न होता, और न अपनी समझ का सहारा लेते।

थोड़ी देर प्रार्थनापूर्वक अपने आपका मूल्यांकन करें कि क्या मेरे जीवन से दिखाई देता है कि मैं उस एकमात्र महान परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ जो सर्वदा धन्य है?

शालोम

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Anand Vishwas
Anand Vishwashttps://disciplecare.com
आशा है कि यहां पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हम सबको बुलाया है। प्रभु का आनंद हमारी ताकत है।

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