Jesus And Nicodemus. नीकुदेमुस कौन था? वह प्रभु यीशु से मिलने रात को ही क्यों आया? प्रभु यीशु से मिलने के बाद उसके जीवन में क्या बदलाव आया?
जैसा कि हमने पहले भी इस विषय में बात कर दी कि मसीही जीवन परमेश्वर के साथ निरन्तर बढ़ने वाला एक संबंध है। प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को क्यों बुलाया? इसके बारे में हाल ही में हमने सीखा था, कि प्रभु शिष्यों ने अपने शिष्यों को अपने साथ एक संबंध में रहने के लिए बुलाया था।
जैसा कि हमने मरकुस 3:13-15 में पढ़ा था, इससे पहले कि उन्हें सेवा के लिए भेजा जाता, इससे पहले कि वे अपने अधिकार का इस्तेमाल करते, उन्हें उसके साथ रहने और समय बिताने के लिए बुलाया गया था।

तो अब सवाल यह भी उठता है क्या सिर्फ प्रभु यीशु मसीह ने उन 12 शिष्यों के साथ ही समय बिताया? और उनका जीवन प्रभावित हुआ? या उन लोगों का क्या जिनके साथ प्रभु यीशु मसीह ने थोड़ा सा भी समय बिताया। क्या उनके जीवन में कुछ बदलाव हुआ? आइए आज इसी विषय में बात करते हैं।
नीकुदेमुस (Nicodemus) कौन था?
नीकुदेमुस यहूदी समाज का एक प्रतिष्ठित सदस्य था। नीकुदेमुस एक फरीसी और यहूदी महासभा का सदस्य था जो कि उस वक्त की सबसे बड़ी अधिकारिक यहूदी महासभा थी। उसके पास फरिसियों से बात करने के लिए कई अवसर थे जो कि प्रभु यीशु से चिढ़े हुए थे।
वह प्रभु यीशु से मिलने रात को ही क्यों आया?
वह प्रभु यीशु से मिलने रात को इसलिए आया क्योकि नीकुदेमुस के पास कुछ सच्चे प्रश्न थे, इसी वजह से उसने एक रात यीशु से अकेले में बात करने के लिए एक सही मौका ढूंढ लिया। वचन हमें यह नहीं बताता कि नीकुदेमुस प्रभु यीशु मसीह से रात को ही क्यों मिला?
हो सकता है कि नीकुदेमुस (Nicodemus) को प्रभु यीशु मसीह के साथ देख लिए जाने का डर था (क्योंकि वह यहूदी महासभा का सदस्य और एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व था) या शायद वह सही मौके की तलाश में था। कारण चाहे जो भी हो, उनकी बातचीत यूहन्ना 3 अध्याय में दर्ज है।
क्या आपको मालूम है कि नीकुदेमुस ने प्रभु यीशु मसीह से क्या प्रश्न पूछे? आपको मालूम ही होगा कि जब प्रभु यीशु मसीह ने नए जन्म के बारे में नीकुदेमुस को बताया तो उसका सवाल यही था कि जब एक व्यक्ति बूढ़ा हो जाए तो वह दोबारा जन्म कैसे ले सकता है?
ये नीकुदेमुस (Nicodemus) का सवाल था प्रभु यीशु के लिए। नीकुदेमुस के इस सवाल से लगता है कि वो प्रभु यीशु की परीक्षा करने तो बिल्कल भी नहीं आया था जैसे कि दूसरे फरीसी और शास्त्री आया करते थे।

नीकुदेमुस को उत्तर देते हुए प्रभु यीशु ने एक दिलचस्प उदाहरण का इस्तेमाल किया। उसने कहा कि व्यक्ति को नया जन्म लेना अनिवार्य है। जन्म की तस्वीर एक संबंध या रिश्ते को दर्शाती है आम प्रक्रिया में एक औरत बच्चे को जन्म देने के समय तक पहुंचते-पहुंचते उस बच्चे के साथ पहले ही एक संबंध को अनुभव करने लगती है।
नवजात शिशु अपनी सभी जरूरतों के लिए पूरी तरह से अपनी मां पर आश्रित होता है। माता पिता के द्वारा बच्चे से प्रेम करना स्वस्थ और एक आम प्रक्रिया है।
अगर जन्म के समय ही माता पिता और बच्चे को किसी वजह से अलग होना पड़े तो इस रिश्ते में बाधा पड़ जाती है। यह माता पिता और बच्चे दोनों के लिए ही बहुत कष्टदायक होता है इसलिए माता पिता और बच्चे के बीच इसी संबंध को दोबारा से स्थापित करने के लिए मनुष्य के द्वारा गोद लेने का विकल्प अपनाया जाता है ताकि इसी संबंध में रहते हुए बच्चे का पूर्ण विकास हो सके।
कृपया ध्यान दें परमेश्वर की इच्छा आत्मिक अनाथों का झुंड इकट्ठा करना नहीं है जब कोई व्यक्ति परमेश्वर के परिवार और परमेश्वर के राज्य में जन्म लेता है, तो उस नवजात शिशु की प्रत्येक आत्मिक जरूरत को प्रेम सहित पूरा करने की क्षमता एवं योग्यता स्वयं परमेश्वर के अतिरिक्त और किसी में नहीं है।
जो बातें एक सांसारिक संबंध में पैदा होने के लिए लागू होती है वही बातें आत्मिक जन्म में भी लागू होती हैं और परमेश्वर अपने नवजात शिशुओं को कभी भी नहीं त्यागता।
संबंध को अलग रखते हुए जन्म के विषय में सोचना या बात करना भी कठिन है हालांकि प्रभु यीशु ने मसीही जीवन के बीच जो संबंध है इसको समझाने के लिए और भी कई दृष्टांत इस्तेमाल किए। यहां नीकुदेमुस (Nicodemus) के साथ इस बातचीत में उसने एक ऐसे दृष्टांत का इस्तेमाल किया जो प्रेम और भरोसे के संबंध का अर्थ बताता है।
आप सोच रहे होंगे कि प्रभु यीशु के इस उदाहरण का नीकुदेमुस ने कैसे प्रत्युत्तर दिया होगा? हालांकि यीशु के साथ उसके प्रारंभिक बातचीत से यह स्पष्ट नहीं है पर आगे चलकर वचन में इसके बारे में बताया गया है जिससे हमें मालूम होता है कि उसने क्या प्रत्युत्तर दिया होगा।
प्रभु यीशु से मिलने के बाद उसके जीवन में क्या बदलाव आया?
यूहन्ना 7 अध्याय में यीशु की पहचान को लेकर एक विवाद दर्ज है। क्या प्रभु यीशु मसीह कोई नबी था? क्या वह मसीह था? क्या उसे हिरासत में ले लिया जाना चाहिए? नीकुदेमुस ने, जो कि उस अधिकारिक यहूदी महासभा का सदस्य था यह कहते हुए उन यहूदी अगुवों को सावधान किया कि वे तब तक यीशु मसीह के बारे में कोई न्याय नहीं कर सकते जब तक कि वे उसकी शिक्षाओं को सुन नहीं लेते।
और बाद में प्रभु यीशु के कृसित किए जाने के बाद जब अरिमतियाह के यूसुफ ने यीशु के मृतक शरीर को लिया और दफनाने के लिए तैयार किया और कब्र में रखा तो इन सब में नीकुदेमुस उसके साथ था।
नीकुदेमुस (Nicodemus) का ऐसा करना उसके लिए राजनैतिक और आर्थिक तौर पर महंगा भी साबित हो सकता था। उसे अपनी सदस्यता को भी खोना पड़ सकता था, या फिर समाज में तिरस्कृत होना पड़ सकता था। आप इन घटनाओं के बारे में यूहन्ना 7:40-52 और यूहन्ना 19:38-42 में पढ़ सकते हैं।

जबकि वचन के इन तीनों हिस्सों (यूहन्ना 3:1-21, यूहन्ना 7:40-52, यूहन्ना 19:38-42) को पढ़ने के बाद हम ये निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि उस रात को जो थोड़ा सा समय नीकुदेमुस ने प्रभु यीशु के साथ बिताया था उसने उसके जीवन को प्रभावित किया था। हालांकि उस समय शायद लोगों के डर से नीकुदेमुस प्रभु यीशु से मिलने रात को आया। पर उसके बाद नीकुदेमुस (Nicodemus) कीमत चुकाने के लिए भी तैयार था।
प्रभु यीशु ने ना सिर्फ अपने 12 चेलों के साथ समय बिताया और उनके जीवन को प्रभावित किया बल्कि जिसके साथ भी प्रभु यीशु ने थोड़ा सा समय भी बिताया उनका जीवन बदल गया।
आपकी और हम सभी मसीहियों की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। शुरुआत में जब आपने प्रभु यीशु मसीह को अपने जीवन में स्वीकार किया होगा उस वक़्त शायद आप भी लोगों को दिखाना नहीं चाहते थे कि आप भी प्रभु यीशु के अनुयाई हैं।
पर समय बीतने पर और उस संबंध को जानने और घनिष्ठता में बढ़ने पर आप का जीवन बदल गया। जो कि आज बहुतों के लिए आशीष का कारण हैं फिर चाहे हमारा समाज हमें कैसी भी दृष्टि से देखे अब आपके जीवन में नकारात्मक बातें हावी नहीं हो सकतीं। अब आप उसके साहसी गवाह हैं।
प्रभु आपको, मसीही जीवन में जो कि परमेश्वर के साथ एक संबंध है, घनिष्ठता में बढ़ाता जाए।
आमीन