मेरा आदर कहाँ? (Where Is My Honor?) मलाकी 1:6-14

मेरा आदर कहाँ? (Where Is My Honor?)

Posted by Anand Vishwas

September 13, 2020

मेरा आदर कहाँ? (Where Is My Honor?) कहीं आप भी परमेश्वर का निरादर तो नहीं कर रहे? क्या परमेश्वर ये सवाल उदासी में नहीं पूछ रहे? आकाशमण्डल उस परमेश्वर की महिमा का वर्णन करता है। इंसान को छोड़कर आज हर चीज परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा कर रही है। परमेश्वर ने इन्सान को अपनी महिमा के लिए बनाया है पर अफ़सोस, आज बहुत से लोग उकता गये हैं।

आरंभ से ही मनुष्य ने अपनी स्वतंत्र इच्छा का नाजायज फायदा ही उठाया है। क्या आप जानते हैं कि इससे परमेश्वर का दिल कितना दुखता होगा? आज तक मनुष्य ने अपनी अनाज्ञाकारिता से परमेश्वर को बहुत अप्रसन्न किया है। शायद आपको ये बात तब समझ आएगी जब आपके बच्चे भी आपके आज्ञाकारी नहीं होंगे। 

आज भी जो लोग परमेश्वर के पास आते हैं उनमें से ज्यादातर लोग सिर्फ दिखावा के लिए ही संगति आते हैं, अपनी भेंट चढ़ाते हैं। क्या आपने कभी गौर किया कि परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह शास्त्रियों और फरीसियों का विरोध क्यों करते थे? उनके कपट के कारण। क्योंकि वे लोग बाहरी तौर पर अपने आप को परमेश्वर का भक्त दिखाते थे। वास्तव में भक्ति तो उनसे कोसों दूर थी। 

होठों से आदर, मन से दूर।

कब तक दिखावटी जीवन जीना चाहते हैं आप? इसलिए प्रभु यीशु ने उनसे कहा कि, तुम लोग होठों से तो मेरा आदर करते हो पर तुम्हारा मन मुझसे दूर रहता है। यीशु आगे कहते है कि ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं। (मती 15:7-9) ध्यान दें क्यों यीशु ने उन्हें डांटा? उनके दिखावे की वजह से। 

जब हम मलाकी 1:6-14 में पढ़ते हैं तो परमेश्वर वहां कुछ सवाल पूछ रहे हैं। पुत्र पिता का आदर करता है और दास अपने स्वामी का। यदि मैं पिता हूं तो मेरा आदर कहां है? और यदि मैं स्वामी हूं तो मेरा भय कहां?

क्या आपको कुछ समझ आया कि, हम परमेश्वर को पिता तो कहते हैं पर आज्ञाकारिता है ही नहीं। और लोग परमेश्वर को मालिक तो कहते हैं पर उसका भय ही नहीं, उसका आदर ही नहीं। तभी तो प्रभु यीशु कहते हैं कि जब तुम मेरा कहना नहीं मानते हो तो क्यों प्रभु, प्रभु कहते हो। क्योंकि आज्ञाकारिता तो है ही नहीं। (लूका 6:46) 

आज भी कुछ लोग जिनके पास सप्ताह में एक दिन भी संगती के लिए समय नहीं है, क्या लगता है वे परमेश्वर का आदर कर रहे हैं? लोग जो धन कमाने के लिए परमेश्वर के समय अर्थात परमेश्वर की प्राथमिकता को खा रहे हैं क्या लगता है, क्या परमेश्वर का भय है उनके जीवन में? क्या आदर दिखता है उनके जीवन से, जिन्होंने परमेश्वर का मजाक बनाया है?

क्योंकि जो लोग परमेश्वर के दिए हुए समय के लिए भी शुक्रगुजार नहीं है अर्थात परमेश्वर के दिए हुए समय में से भी परमेश्वर को समय नहीं दे रहे हैं उनसे कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि वे अपना जीवन प्रभु के लिए देंगे? जो लोग दशवांश और भेंट देने से भी कतराते हैं वे कैसे अपना जीवन प्रभु के हाथों में सौंप सकते हैं?

मेरा आदर कहाँ? (Where Is My Honor?)

एक बार जब मैं एक पुल पार कर रहा था तो पानी के तेज बहाव को देखकर एक विचार मेरे मन में आया। कि पानी से हमें कितना डर लगता है, पर जिस परमेश्वर ने पानी को बनाया है उससे कोई डरता ही नहीं, आंधी तूफान से हमें बड़ा डर लगता है पर जिसने इसको बनाया उससे कोई डरता ही नहीं, आग से डर लगता है पर जिसने उसको बनाया उससे लोग डरते ही नहीं। – Anand Vishwas

कितना अनादर आज इंसान परमेश्वर का करता है! आज इंसान बुरे कामों को करते हुए भी ये सोचता है कि मुझे तो कोई भी नहीं देख रहा है। पर एक दिन हर एक काम का हिसाब लिया जाएगा। 

फिर से मलाकी में जाएं और पढ़ें कि परमेश्वर कितना अप्रसन्न है हमारे व्यवहार के कारण। आज लोग परमेश्वर के पास भेंट लाते हैं जो कि ग्रहण योग्य भी नहीं होती। मेरे पास ऐसे कुछ रूपयों के नोट है जिन्हें लोगों ने परमेश्वर के लिए भेंट में डाला था। पर वो नोट किसी काम के भी नहीं हैं। उस वक़्त भी कुछ लोग और याजक भी परमेश्वर के पास ऐसी ही भेंट लाया करते थे, जो कि किसी काम की नहीं होती थीं। (मलाकी 1:6-14)

समझौता न करें। 

कभी भी समझौता न करें, जो परमेश्वर का है उसे परमेश्वर को दें। (लूका 20:25) बहुत सारे लोग इस बात का अर्थ सिर्फ यही निकालते हैं कि यीशु यहां सिर्फ धन के बारे में कह रहे हैं। पर मेरे प्रियों, परमेश्वर हमारे जीवन के हर क्षेत्र के बारे में कह रहे हैं। क्या परमेश्वर को हमारे धन की आवश्यकता है? वो तो स्वर्ग और पृथ्वी का कर्ता है, और जो कुछ भी इसमें है वह सब परमेश्वर का है। आप भी परमेश्वर के हैं। यदि उसको कुछ चीज की आवश्यकता हो तो उसे मनुष्य से कहने की आवश्यकता नहीं है। 

क्या आप जानते हैं कि आज तक हमने परमेश्वर का दिल कितना दुखाया है? बैल अपने मालिक को पहचानता है, गधा अपने मालिक की चरनी को पहचानता है पर मेरी प्रजा इस बात पर विचार ही नहीं करती है, मेरी प्रजा मुझे नहीं पहचानती हैं, मेरे लोग मुझे नहीं जानते हैं। (यशायाह 1:3)

याद रखें जो परमेश्वर ने एली के परिवार के विरुद्ध कहा था। कि जो मेरा आदर करे, मैं उनका आदर करूँगा। (1 शमूएल 2:30)

मेरे प्रियो, बताइए कि आज आप किसको प्रसन्न करने में लगे हुए हैं? इस संसार को या फिर परमेश्वर को। अपने शरीर को या फिर आत्मा को? क्या आपको नहीं मालूम कि अपने शरीरों को जीवित, पवित्र और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करना हमारी आत्मिक आराधना है? (रोमियों 12:1) जो परमेश्वर को प्रसन्नता देती है।

हमें सलाह दी गई है कि हम इस दुनियां के जैसे न बनें, पर हमारे मन के नए हो जाने का प्रभाव के द्वारा हमारा चालचलन बदलता जाए। हमें परमेश्वर की भली, मनभाऊ और सिद्ध इच्छा को अनुभव से मालूम करते रहना है। (रोमियों 12:2)

आज जो हम गीत भजन गाते हैं क्या सिर्फ प्रभु को प्रसन्न करने के लिए गाते हैं? या फिर संगती में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं क्या सिर्फ प्रभु को प्रसन्न करने के लिए?

मेरे प्रियो, हमें इस्राएल के इतिहास से कुछ सीख लेने की जरुरत है। आपको मालूम ही है कि प्रभु उनमें से बहुतों से प्रसन्न न हुआ और वे जंगल में ही ढेर हो गये। जब जब इस्राएलियों ने अपने कुकृत्यों के द्वारा अर्थात मूर्तिपूजा, व्यभिचार, लालच, कुड़कुड़ाना, प्रभु को परखने और अनाज्ञाकारिता के द्वारा प्रभु का अपमान किया है, तब तब उन्होंने अपने आपको जोखिम में ही डाला है, दासत्व में डाला है। (1 कुरिन्थियों 10:1-11)

और ये बातें हमारी चेतावनी के लिए ही लिखी गई हैं। यहाँ तक की जब इस्राएलियों ने अपने लिए एक राजा की भी मांग कर दी, तब भी उन्होंने परमेश्वर का अनादर ही किया। क्योंकि उन्होंने राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु को ठुकरा दिया था। (1 शमूएल 8:7)

कृपया थोड़ा सा समय इन प्रश्नों को अपने आप से पूछें और प्रार्थना करें:-

  • क्या मैं अपना प्रतिदिन का जीवन प्रभु को प्रसन्न करते हुए जीता हूँ?
  • क्या मैं अभी तक एक्टिंग तो नहीं कर रहा हूँ?
  • क्या मैं मन से परमेश्वर का आदर करता हूँ?
  • मेरा पिता कौन है? शैतान कि परमेश्वर? (1 यूहन्ना 3:1-10)
  • मेरा मालिक कौन है? धन या फिर परमेश्वर? (मती 6:24)
  • क्या सच में मेरा मन के नए होने से मेरा चालचलन भी बदल रहा है?
  • क्या मुझे मालूम है कि मेरे गलत व्यव्हार से परमेश्वर कितना दुखी है?
  • क्या मैं अभी भी मूर्तिपूजा, व्यभिचार, लालच, कुड़कुड़ाना, प्रभु को परखने और अनाज्ञाकारिता के द्वारा प्रभु का अपमान या निरादर कर रहा हूँ?

आज भी परमेश्वर का सवाल आपके लिए यही है कि “मेरा आदर कहाँ?

3 Comments

  1. Vinod Kumar

    सच में इंसान बहुत दिखावा करते हैं। धन्यवाद आपका इस मैसेज के लिए, इस मैसेज ने दिल को छू लिया।

    Reply
  2. Ranjeet Singh

    सत्य वचन! हम लापरवाह हो गए हैं। हमें पूरे हृदय से आभारी होना चाहिए प्रभु यीशु का, हर बात के लिए।
    प्रभु यीशु ही मालिक है इस कायनात के, इस शरीर के, मन के, आत्मा के जो हमें मिला है।

    हमें धन्यवाद करना है क्योंकि उसने हमें बचाया है, हर बुराई से, हर खतरे से, हर बुरी बला से, शैतान से, बीमारी से, डर से, श्राप से, दुविधा से, दुश्मन से, हर मुश्किल से।

    हमें आदर देना है क्योंकि प्रभु यीशु मसीह हमारा सहायक है, हमारा पिता है, पालक है, प्रेमी है, सच्चा दोस्त है, दाता है, मार्गदर्शक है, अगुआ है, सच्चा गुरु है।

    प्रभु यीशु मसीह हमारी हिम्मत नहीं कि आप के समक्ष टिक भी सके, प्रभु हमारी सभी भूलों को माफ़ कर देना जी।
    प्रभु यीशु मसीह के मीठे और पवित्र नाम से ये विननी और प्रार्थना मांगते हैं। आमीन और आमीन

    Reply
  3. Ajeet

    Need to repent and start obeying and have fear of God

    Reply

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

anandvishwas

Anand Vishwas

आशा है कि यहाँ पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हमें बुलाया है।