मसीही जीवन क्या है?
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मसीही जीवन क्या है? (What Is The Christian Life?) Christian Life कैसे जीयें? आज हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जो परमपिता परमेश्वर से दूर होता जा रहा है और अधिक भ्रष्ट होता जा रहा है। आज तो लोग परमेश्वर पर भी सवाल उठाने से कतराते नहीं हैं। तब हमें यह जानना जरूरी हो जाता है कि हम जो प्रभु यीशु के अनुयायी हैं, हमें उस सच्चे परमेश्वर को दुनियां पर प्रकट करने की जिम्मेदारी दी गई है। (1 पतरस 2:9) एक मसीही होने के नाते हम ऐसे जीवन बिताएं जैसा कि हमारा रचनेवाला चाहता है जिसे हम जीएं। ऐसे जीवन को ही मसीही जीवन कहते हैं अर्थात प्रभु यीशु के पदचिन्हों पर चलते हुए जीना।
मसीही जीवन है क्या? क्या यह कोई धर्म है? या कुछ और? आज हम इसी विषय में अध्ययन करेंगे। मेरे प्रियो, Christianity कोई धर्म नहीं है बल्कि यह जीवते परमेश्वर के साथ एक प्रगतिशील सम्बन्ध है। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मसीही जीवन, चलचित्रों और फिल्मों में दिखाई देने वाला जीवन भी नहीं है।
कई लोगों के मन में आज भी यह सवाल उठता है कि आखिर क्रिश्चियनिटी या मसीहत क्या है? कई लोगों का मानना है कि क्रिश्चियनिटी एक अब्राहमिक (Abrahamic) धर्म है। हमारे यहां भारतीय लोगों का मानना है कि यह पश्चिमी सभ्यता है, यह अंग्रेजों का धर्म है या यह विदेशी धर्म है।
मसीही जीवन यीशु का अनुसरण करने वाला जीवन है।
हां, Christianity प्रभु यीशु मसीह के जीवन और उनकी शिक्षाओं से संबंधित जरूर है। लेकिन इस लेख के द्वारा आज आप जान पाएंगे कि मसीही जीवन वास्तव में क्या है। मसीहत (Christianity) कोई पश्चिमी सभ्यता नहीं है, कोई विदेशी धर्म भी नहीं है। बल्कि इस दुनियां को रचने वाले परमेश्वर के ऊपर विश्वास करने वाला एक जीवन है।
जैसा कि मसीहत शब्द ही बयां करता है कि Christianity प्रभु यीशु मसीह का जीवन और उनकी शिक्षाओं पर आधारित जीवन है। जो भी प्रभु यीशु की इन शिक्षाओं को अनुसरण करता है उन्हें मसीही कहा जाता है। (प्रेरितों 11:26)
मसीही जीवन एक विश्वास का जीवन है।
मसीही जीवन का विशिष्ट चिह्न विश्वास से जीना है। एक व्यक्ति यीशु मसीह में विश्वास के माध्यम से अनुग्रह से मसीही बन जाता है। इफिसियों 2: 8-9 सिखाता है, “विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से हमारा उद्धार हुआ है। यह परमेश्वर का वरदान है, हमारे कार्यों का परिणाम नहीं है, ताकि कोई अभिमान न करे।” यीशु मसीह में यह विश्वास, किसी के भी जीवन को बदल देता है। विश्वास, मसीही जीवन की प्रक्रिया की शुरुआत करता है। मसीही जीवन, विश्वास से जीवित रहने वाला जीवन है। (गलातियों 3:11)
मेरे प्रियो, ये जीवन यात्रा तब शुरू होती है जब कोई व्यक्ति प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करता है। उस वक्त वो व्यक्ति एक ऐसी यात्रा शुरू करता है जो कि अनंतकाल के लिए है। हालांकि बाहर से देखने में एक मसीही और एक गैर मसीही व्यक्ति में कोई फर्क नजर नहीं आता है। पर फिर भी एक मसीही व्यक्ति जो जीवन जीता है, वह गैर मसीही व्यक्ति से बिल्कुल अलग होता है। इस भिन्नता का मुख्य बिंदु है, प्रभु यीशु मसीह के साथ एक संबंध जो कि मसीहत (Christianity) का केंद्र है।
मसीही जीवन परमेश्वर के साथ एक सम्बन्ध है।
मसीही जीवन, मसीह के साथ एक निरंतर बढ़ता हुआ एक संबंध है जिसे प्रतिदिन जीया जाता है। जब आप एक मसीही बने तो आपने एक ऐसा गतिशील संबंध शुरू किया जिसमें आपके जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित करने की शक्ति है। एक बात जो मसीहत को संसार की बाकी धार्मिक प्रणाली से अलग करती है वो यह है कि मसीही जीवन, धर्म की अपेक्षा एक संबंध है। जी हां, जीवते परमेश्वर के साथ संबंध।
परमेश्वर ने जब इंसान की रचना की थी तो परमेश्वर प्रतिदिन उनसे बात करते थे। पर जैसे ही पाप ने मनुष्य के जीवन में दस्तक दी तो परमेश्वर के साथ मनुष्य का रिश्ता टूट गया। (उत्पति 3:1-24, रोमियों 3:23) प्रेमी परमेश्वर होने के नाते और हमारा सृष्टिकर्ता होने के नाते परमेश्वर कभी नहीं चाहता था कि हम उससे दूर रहें। (रोमियों 5:8) इसलिए आज से लगभग 2000 साल पहले प्रभु यीशु मसीह को मानव जाति को बचाने के लिए इस दुनियां में आना पड़ा था ताकि जो कोई भी उनके ऊपर विश्वास करें वह नाश न हो बल्कि वह अनंत जीवन प्राप्त करें। (यूहन्ना 3:16)
Christianity is not a religion but it is a relationship with living God.
यीशु मसीह जब इस दुनियां में आए तो उनका उद्देश्य ये नहीं था कि किसी नए धर्म की स्थापना करें उनका उद्देश्य था जो सम्बन्ध, पाप और विद्रोह के द्वारा तोड़ दिया गया था उसे पुनः स्थापित करना। (उत्पति 3:1-13) जब परमेश्वर ने इन्सान को बनाया था तो उनसे इन्सान को अपनी समानता व स्वरुप में बनाया था, और प्रभु प्रतिदिन उनसे बातचीत करते थे। उनका उद्देश्य तो यही था कि हम जो परमेश्वर से दूर हो गए थे फिर से परमेश्वर के पास आ जाएं। वचन बताता है कि जितनों ने उसे ग्रहण किया अर्थात जो यीशु पर विश्वास करते हैं वे परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं और अब वे परमेश्वर की संतान हैं। (यूहन्ना 1:12-13)
मसीही जीवन के स्वरूप को समझने के लिए हमें इस संबंधात्मक विशेषता को समझना बहुत जरूरी है।
मसीही जीवन नए जन्म में परमेश्वर के कार्य, उद्देश्य, आत्मा का उपहार, पापों की क्षमा, और मसीह के हमारे सम्बन्ध पर आधारित जीवन है। मसीही जीवन का लक्ष्य मसीह की छवि के अनुरूप होना है। (फिलिप्पियों 2:5) इसके परिणामस्वरूप, हमारे जीवन में फलवन्तता के द्वारा परमेश्वर की महिमा करना है। (यूहन्ना 15:8) अनुग्रह के विभिन्न साधनों, जैसे कि पवित्रशास्त्र, प्रार्थना, कलीसिया की संगती का उपयोग करते हुए, परमेश्वर हमें अपने पवित्र आत्मा के द्वारा मसीह की छवि में ढालता है।
हम अब अकेले नहीं हैं, पवित्र आत्मा सदैव हमारे साथ है। जो हमारी अगुवाई करता है, सहायता करता है, हर एक गलत कार्य करने से रोकता है। स्वस्थ मसीही जीवन में विश्वास और आज्ञाकारिता (लूका 6:46-49), मसीह के साथ सम्बन्ध, अच्छे कार्य, बलिदान और दूसरों के लिए जीने और कलीसिया के विश्वव्यापी मिशन में भाग लेना होना चाहिए। मसीही जीवन से बेहतर कोई जीवन नहीं है।
लोग मसीहत (Christianity) के बारे में जो भी बोलें, उसका एक मसीही व्यक्ति पर कोई असर नहीं होता है। क्योंकि एक मसीही व्यक्ति जानता है कि मसीहत, जीवित परमेश्वर के साथ एक जीवित संबंध है। मसीहत, परमेश्वर की योजनाओं पर विश्वास करने वाला एक जीवन है।
बहुत सारे लोग जिन्हें मसीहत (Christianity) के बारे में मालूम नहीं है, चलचित्रों और मूवीज में दिखाए जाने वाले किरदारों को देखकर वे भी मसीहत या मसीही जीवन का अंदाजा लगाने लग जाते हैं। और कल्पना करने लग जाते हैं कि शायद मसीही जीवन ऐसा ही होता है। आज मसीहत का जो प्रारूप, चलचित्रों या मूवीज में दिखाया जा रहा है, उसका हकीकत से कोई लेना-देना है ही नहीं। सच्ची मसीहत या सच्ची Christianity तो उन सब से बिल्कुल अलग है।
मसीहत (Christianity) मनुष्य जाति के छुटकारे के लिए परमेश्वर की योजना को बताती है। कोई भी व्यक्ति जब अपने गुनाहों को स्वीकार कर प्रभु यीशु मसीह के ऊपर विश्वास करता है। (रोमियों 10:9-10) उसकी मसीही जीवन की साहसिक यात्रा शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे उसके जीवन में बदलाव आना शुरू हो जाता है। उसका स्वभाव बदलने लग जाता है। अब वह पहले की तरह बर्ताव नहीं करेगा क्योंकि अब प्रभु यीशु मसीह की शिक्षाएं उसकी जीवन शैली को प्रभावित करेंगी। जिस वजह से कई लोग उसका विरोध करना शुरू कर देते हैं क्योंकि अब एक मसीही व्यक्ति न तो उसके दोस्तों के साथ गलत कामों में साथ देगा और न ही समाज में बुराई को बढ़ावा देगा।
एक मसीही व्यक्ति के लिए परमेश्वर की यही इच्छा है कि वह प्रतिदिन उस रिश्ते की घनिष्ठता में बढ़े (यूहन्ना 15:4, 5), उसमें बना रहे, प्रभु से प्रार्थना के द्वारा बातचीत करे, प्रभु की आराधना करे और प्रभु के वचन के द्वारा परमेश्वर के साथ संगति करें। जैसा कि हमने पहले ही बात किया था कि मसीहत, कोई धर्म नहीं बल्कि परमेश्वर के साथ एक संबंध है। स्मरण रखें कि कोई भी रिश्ता, बिना प्रेम के, बिना बातचीत के, बिना भरोसा के और बिना संगति के बेकार होगा। मसीही जीवन का आनंद लें और प्रतिदिन उस घनिष्ठता में बढ़ते जाएँ जिसके लिए आपको बनाया गया है। मसीही जीवन सप्ताह में एक दिन जीने वाला दिखावटी जीवन भी नहीं है।
मसीही जीवन परमेश्वर के अद्भुत गुणों को प्रकट करने वाला जीवन है। मसीही जीवन प्रभु यीशु की शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करने का जीवन है। मसीही जीवन भले कार्यों को करने का जीवन है जिसके लिए आपको सृजा गया है। (इफिसियों 2:10) याद रखिए हमें इसलिए सृजा गया है कि हम परमेश्वर के साथ संबंध का आनंद लें, जो कि हमसे बहुत प्रेम करते हैं।
मसीही जीवन सत्य की दावेदारी वाला जीवन है।
मसीहत के बारे में एक और बात कि मसीहत सत्य पर आधारित जीवन है क्योंकि यीशु स्वयं सत्य है। उन्होंने कहा कि मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ (यूहन्ना 14:6) उन्होंने ये भी कहा कि यदि तुम सत्य को जानोगे तो सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा। (यूहन्ना 8:32) जब तक कोई सत्य को नहीं जानता, तब तक वह अंधकार का गुलाम होता है।
दुनियां की शिक्षाएं मनुष्य आधारित परिकल्पनाएं हैं, जिनमें से बहुत सारी तो मनगढ़ंत और झूठी हैं। जो कि हर गलत कार्य के लिए प्रेरित करती हैं। ये शिक्षाएं अपने आप में ज्ञानी तो लगती हैं पर वास्तव में इनमें कुछ भी ज्ञान नहीं हैं और न ही शारीरिक लालसाओं को रोकने में सक्षम हैं। (कुलुस्सियों 2:20-23) लेकिन दूसरी तरफ सत्य को जानने के बाद आपके जीवन में आंतरिक बदलाव आता है जो बाहर प्रभाव डालता है।
मसीहत सत्य की दावेदारी वाला जीवन है। हाँ, इस दुनियां में ये अलग इसलिए भी है क्योंकि मसीहत की शिक्षाएं इस दुनियां से अलग हैं। आज भी अन्धकार की ताकतें इस सत्य को रोकने के लिए प्रयासरत हैं, पर वे कभी भी इसमें कामयाब नहीं हो पाएंगी।
मसीही जीवन स्वैच्छिक चुनाव का जीवन है।
हालाँकि मसीहत पर आरोप लगते रहे हैं कि मसीही लोग जबरन किसी को मसीहत में जोड़ रहें हैं। पर ये सारे दावे झूठ हैं क्योंकि मैंने भी इस यात्रा को 23 दिसंबर 2003 से शुरू किया है। तो सब कुछ स्पष्ट है कि यहाँ कोई आपको यीशु के ऊपर जबरदस्ती विश्वास करने के लिए उकसाता नहीं है, बल्कि सत्य को जानकर व्यक्ति स्वयं ये निर्णय लेता है कि अब से वह यीशु के पीछे चलेगा।
जिस प्रकार आप दैनिक जीवन में स्वयं चुनाव करते हैं कि क्या खाना है? क्या पीना है? क्या पहनना है? इत्यादि। उसकी प्रकार आपको प्रभु के पीछे चलने का निर्णय भी स्वयं करना है।
जी हाँ, यहाँ आपको कोई प्रलोभन नहीं देता। बल्कि जब आप सच्चे परमेश्वर को जान लेते हैं और उसके साथ अपने रिश्ते को मजबूत करना चाहते हैं। अब आप स्वयं की इच्छानुसार नहीं, बल्कि प्रभु की इच्छा के अनुसार जीने का निर्णय लेंगे।
मसीही जीवन परिवर्तनकारी है।
ये भी एक ऐसा सत्य है कि जो व्यक्ति यीशु के साथ चलने का निर्णय ले लेता है वह अब पहले की तरह जीवनयापन नहीं कर सकता है। क्योंकि जिस सम्बन्ध में अब वो व्यक्ति है वह सम्बन्ध उसे प्रेरित करता है कि मनुष्य को नहीं, बल्कि प्रभु को प्रसन्न करे। अब व्यक्ति झूठ नहीं बोलेगा, अब वह किसी को गलत दृष्टि से नहीं देखेगा, अब मसीही व्यक्ति घूस नहीं लेगा, अब वह अपने दुश्मन को भी माफ़ करेगा क्योंकि उसे मालूम है कि उसका भी माफ़ किया गया है। मसीहत अन्दर से बदलाव लाती है जो कि बाहर फर्क डालता है।
वो मसीही लोग ही हैं जिनके अन्दर परमेश्वर का प्रेम उन्हें सेवा करने के लिए उकसाता है। इतिहास इस बात का गवाह है कि मसीहत ने कहीं भी शून्य से काम किया है। मसीहियों ने वहां शिक्षा पहुंचाई, जहाँ कोई शिक्षा नहीं थी। मसीही जनों ने वहां मेडिकल सुविधाएं पहुंचाई, जहाँ कोई सुविधा नहीं थी। मसीहियों ने वहां आशा पहुँचाई, जहाँ कोई आशा नहीं थी।
आज भी एक मसीही व्यक्ति उस प्रेम से प्रेरित होकर सेवा करता है जो परमेश्वर उनके मन में उपजाता है।
अंत में आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मसीही जीवन को एक आर्टिकल में समझा पाना मुश्किल है क्योंकि ये एक जीवन शैली है जिसे प्रतिदिन जीया जाता है, ये एक व्यावहारिक जीवन शैली है। इसमें आपको घनिष्ठता में बढ़ते जाना है, घनिष्ठता में बढ़ने के लिए प्रतिदिन प्रार्थना, आराधना और वचन के द्वारा परमेश्वर के साथ संगति बेहद जरुरी है। क्योंकि कोई भी सम्बन्ध, प्रेम, बातचीत, भरोसा और संगति की मांग करता है।
आशा करता हूँ कि आप समझ गए होंगे कि परमेश्वर ने हमें क्यों बुलाया है? जी हां, परमेश्वर के साथ एक संबंध के लिए, इस संबंध का आनंद लेते रहिए, विश्वास में बढ़ते रहिए।
शालोम
Truly, Christian life is a relationship with God.
Yes, Amen
क्या मसीही जीवन जीने का मतलब ईसाई धर्म को स्वीकार करना है? और क्या हम बपतिस्मा लेते है तो ईसाई धर्म के अनुयायी माने जाएंगे?
प्रिय भाई राकेश, जैसा कि आपने इस लेख में पढ़ा होगा कि मसीही जीवन जीना किसी धर्म को स्वीकार करना नहीं है। मसीही जीवन इस दुनियां की धार्मिक प्रणाली से अलग जीवन है। मसीही जीवन कोई धर्म नहीं है बल्कि जीवते परमेश्वर के साथ एक रिश्ता है जिसमें एक मसीही व्यक्ति को प्रतिदिन बढ़ना है।
आपके दूसरे प्रश्न का भी कुछ ऐसा ही जवाब है कि कोई भी व्यक्ति मात्र बपतिस्मा लेने से यीशु का अनुयायी नहीं होता है। यीशु का अनुयायी होने के लिए सबसे पहले हमें यीशु को प्रभु जानकर स्वीकार करना है और अपने पापों को अंगीकार करना है और विश्वास करना है कि यीशु ही प्रभु है। उसके बाद आपको यीशु की शिक्षा के अनुसार जीना है। बपतिस्मा तो सिर्फ आपके मन में हुए भीतरी परिवर्तन का बाहरी प्रकटीकरण है। बपतिस्मा के बारे में अधिक जानने के लिए नीचे लिए गए लिंक पर क्लिक करें। धन्यवाद। प्रभु आपको आशीष दे। पढ़ें बपतिस्मा क्या होता है?/
You are right sir, Agar bible ki Reference Aur bhi hota achha hota… Iss se main bahut kuch Sikha sir. Thanks
Jarur Brother, main pura prayas karunga aur references add karne ka. thanks
इसको पढ़कर मुझे अच्छा लगा। प्रभु आपको आशीष दे। यीशु के नाम से आमीन।
प्रभु आपको भी आशीष दे बिरेंद्र भाई कि आपने भी पढ़ने के लिए समय निकाला।