सामरी स्त्री के जीवन से हम क्या सीख सकते हैं? (Go And Make Disciples) ये प्रभु यीशु द्वारा दिया गया महान आदेश था। प्रभु यीशु जब इस दुनियां में मानव रूप में थे उन्होंने अपने जीवन को एक उद्देश्य के साथ जीया क्योंकि वो जानते थे कि वो कहां से आए और कहां को उन्हें जाना है। (यूहन्ना 8:14, मरकुस 1:38)
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जैसा कि आपको विदित होगा कि प्रभु यीशु यूहन्ना से ज्यादा शिष्यों को बनाते थे। (यूहन्ना 4:1) ऐसे ही जब एक बार यीशु गलील की ओर जा रहे थे तो उन्हें सामरिया होकर जाना जरूरी था। क्योंकि उन्हें मालूम था कि उन्हें वहां भी शिष्य बनाना है, और परमेश्वर के राज्य का प्रचार करना है। (मरकुस 1:38)
जब यीशु सामरिया के सूखार नामक नगर में पहुंचे और मार्ग में थके हुए उन्होंने एक कुएं के पास विश्राम किया। उनके चेले उस समय नगर में भोजन मोल लेने गए हुए थे। इतने में एक सामरी औरत उस कुएं के पास पानी भरने आती है। और यीशु ने उससे कहा कि “मुझे पानी पिला।” (यूहन्ना 4:7)
ये सुनकर वो औरत हैरान होकर यीशु से सवाल करती है कि वो यहूदी होकर क्यों सामरी स्त्री से पानी मांग रहे हैं। वास्तव में काफी समय से यहूदी और सामरी लोगों में आपसी व्यवहार नहीं होता था। तभी सामरी स्त्री ने भी यीशु से कहा कि आप यहूदी होकर मुझसे पानी क्यों मांगते हैं? यीशु ने कहा कि यदि तुम परमेश्वर का वरदान को जानती तो यह भी जानती कि जो तुझ से बात कर रहा है वो कौन है? और तू उससे पानी मांगती वह तुझे जीवन का जल देता।
फिर क्या था वह औरत थोड़ा हैरान होकर और भौतिक रीति से सोचती हुई यीशु से पूछती है कि तेरे पास पानी भरने को कोई बर्तन भी नहीं है और कुंआ भी काफी गहरा है और तू कहता है कि तू मुझे जीवन का जल देगा, तेरे पास वह जीवन का जल कहां से आया?
यीशु ने उससे कहा कि जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा पर जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं दूंगा, वह अनंतकाल तक प्यासा ना होगा। वरन वह स्वयं एक सोता बन जाएगा और अनंतकाल तक उमड़ता रहेगा।
यहां सामरी स्त्री फिर भौतिक दृष्टि से सोचती है और कहती है कि प्रभु वो जल आप मुझे दे दें ताकि मुझे जल भरने इतने दूर ना आना पड़े, और न मैं फिर प्यासी होऊं। प्रभु यीशु ने उससे कहा कि पहले अपने पति को यहां बुला ला।
सामरी स्त्री फट जवाब देती है कि मेरे तो कोई पति नहीं है। तुरंत यीशु ने उसको कहा तू सच कहती है कि तेरे कोई पति नहीं हैं क्योंकि तू पांच पति कर चुकी है और अभी जो पति तेरा है वो भी तेरा नहीं है। इस बात को सुनकर औरत अचरज में यीशु की ओर देखती है और कहती है, लगता है आप कोई भविष्यवक्ता है। हमारे पूर्वजों ने तो इसी पहाड़ पर आराधना की और आप लोग कहते हैं कि वह जगह यरूशलेम में है जहां आराधना करनी चाहिए।
यीशु ने उससे कहा कि ऐसा समय भी आ रहा है वरन अभी भी है कि जब सच्चे भक्त आत्मा और सच्चाई से पिता परमेश्वर की आराधना करेंगे क्योंकि परमेश्वर ऐसे ही आराधकों को खोजता है। परमेश्वर तो आत्मा है और ये जरुरी है की उसके आराधक भी आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करें।
तब सामरी औरत कहती है कि जब मसीहा आएगा तो ये सब बातें हमें बताएगा। यीशु उसको उतर देते हुए कहते हैं कि जिसका तुम इंतजार कर रहे हो, मैं वही हूँ।
इतने में प्रभु यीशु के चेले जो भोजन मोल लेने गए थे आ गए। वे आश्चर्यचकित हुए पर किसी ने भी उससे नहीं पूछा कि आप क्यों इस औरत से बात कर रहे हैं? पर जैसे ही उस सामरी औरत को मालूम हुआ कि जिस मसीह का हम इंतजार कर रहे हैं, वह मुझसे मिला और मेरे जीवन के बारे में बताया तो वह स्त्री अपना घड़ा वहीं छोड़कर वापिस अपने गांव वालों के पास पहुंची।
और उनको भी उस मसीहा को देखने के लिए निमंत्रण देने लग गई। उस सामरी औरत ने कहा कि आओ आप लोग भी ऐसे व्यक्ति से मिलो जिसने मेरे बारे में मुझे सब कुछ बता दिया। कहीं यही तो मसीह नहीं? तब वे लोग भी उसका सुनकर यीशु के पास आने लगे। (यूहन्ना 4:30)
इस बीच में प्रभु यीशु के चेलों ने यीशु को भोजन करने के लिए कहा। पर यीशु ने उनसे कहा कि मेरे पास ऐसा भोजन है जिसे तुम नहीं जानते। चेले आपस में कहने लगे कि किसने यीशु को भोजन दिया होगा? तब यीशु ने उनको कह दिया कि मेरा भोजन तो यही है कि मैं अपने भेजने वाले की इच्छानुसार चलूं और उसका दिया हुआ कार्य पूर्ण करूं।
वास्तव में प्रभु यीशु अपने चेलों को धरती पर आने के उद्देश्य को बताते हैं कि वो इसलिए दुनियां में आया ताकि सबको परमेश्वर की इच्छा मालूम हो जाए। तब वे चेलों से कहते हैं कि जरा खेतों की ओर दृष्टि डालो, वे कटनी के लिए पक चुके हैं। क्योंकि यहां काटने वाला मजदूरी को पाता है और अनंत जीवन के लिए फल बटोरता है। ताकि बोने वाला और काटने वाला दोनों आंनद करे। प्रभु यीशु आगे कहते हैं कि मैंने तुम्हें वह खेत काटने को भेजा है।
चेले इस बार शायद इस उदाहरण को समझ गए थे तभी उनमें से किसी ने भी यीशु को नहीं पूछा कि आपका तात्पर्य क्या है?
इस बीच में कई सामरी यीशु के पास आए जिनको उस सामरी स्त्री ने अपनी गवाही देकर निमंत्रण दिया था। उन लोगों ने यीशु पर विश्वास किया, उनके कहने से यीशु वहां दो दिन और रुका। उसके वचन के कारण बहुत से लोगों विश्वास किया और उस औरत से कहने लगे कि अब हम सिर्फ तेरे कहने से ही यीशु पर विश्वास नहीं करते है पर हम ने खुद ही सुन लिया और जानते हैं कि सचमुच यही जगत का उद्धारक है।
क्या आपने गौर किया कि किस प्रकार हम अपनी बातचीत में ही लोगों को परमेश्वर के बारे में बता सकते हैं, उनके पास जा सकते हैं, उन्हें अपनी गवाही बता सकते हैं, उन्हें सुसमाचार सुना सकते हैं और उन्हें यीशु के पास निमंत्रित कर सकते हैं जैसा कि हम इस सामरी औरत से भी सीख सकते हैं। और प्रभु यीशु ने तो हमें खुद यह व्यावहारिक तौर पर करके भी दिखाया। आइए इस लेखांश को हम तलवार विधि से भी देखें।
1) इस लेखांश में हम परमेश्वर के बारे में क्या सीखते हैं?
- उसके पास हर एक व्यक्ति के पास पहुंचने की योजना है। (4:4)
- वह पक्षपात नहीं करता है। (4:7-9)
- वह जीवन जल का दाता है। (4:10)
- वह हमारे बारे में सब बातों को जानता है चाहे हम उन्हें छिपाने की कोशिश भी क्यों ना करें। (4:18)
- परमेश्वर आत्मा और सत्य है। (4:23-24)
- परमेश्वर आत्मा और सत्य से आराधना करने वाले आराधक को ढूंढता है। (4:23)
- वही मसीहा है। (4:25-26)
- उसका मकसद है कि हर व्यक्ति उसके बारे में जानें। (4:4)
- उसने लोगों के हृदयों को तैयार किया हुआ है। (4:35)
- वह लोगों को भेजता है। (4:38)
- वही जगत का उद्धारकर्ता है। (4:42)
2) इस लेखांश में हम मनुष्य के बारे में क्या सीखते हैं?
- मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूर दूर तक भी पहुंच जाता है। (4:7, 15)
- मनुष्य वह जल पा सकता है जो कि उसे एक उमड़ने वाला सोता बना देता है। (4:14)
- मनुष्य झूठ भी बोलता है, सच्चाई को छुपाने का प्रयास करता है। (4:17-18)
- मनुष्य आत्मा और सच्चाई से परमेश्वर की आराधना कर सकता है। (4:23-24)
- मनुष्य सच्चाई जानने के बाद दूसरों को भी सच्चाई बताना चाहता है। (4:28-30)
- मनुष्य अपनी गवाही बता सकता है। (4:29, 39)
- यीशु के बारे में दूसरों को बता सकता है। (4:28-29, 39)
- मनुष्य दूसरों को यीशु के पास निमंत्रित कर सकता है। (4:28-29)
- मनुष्य को भी प्रभु ने कटनी का काम सौंपा है। (4:35-38)
- मनुष्य यीशु से व्यक्तिगत मुलाकात के बाद जान लेता है कि वही उद्धारक है, और उस पर विश्वास करता है। (4:42)
3) क्या इस लेखांश में किसी पाप का जिक्र है जिसे हमें छोड़ने की आवश्यकता है?
- सच्चाई को छुपाना पाप है, झूठ बोलना पाप है। (ये इसमें हम अदृश्य रूप से देख सकते हैं) (4:17-18)
4) क्या इस लेखांश में कोई आज्ञा या उदाहरण है जिसे हमें अपने जीवन में लागू करना चाहिए?
- इसमें स्पष्ट नजर आता है कि हम भी जाएं और चेले बनाएं। (मती 28:19-20)
- परमेश्वर के राज्य के बारे में हम लोगों को साधारण बातचीत के माध्यम से बता सकते हैं। (4:4-42)
- सामरी स्त्री के उदाहरण से हम सीख सकते हैं, – वह तुरंत गई। उसने अपनी गवाही बताई। उसने लोगों को मसीह के बारे में बताया। उसने लोगों को मसीह के पास आने का निमंत्रण भी दिया। (4:28-29, 39)
- हमें भेजा गया है। (4:38)
- वह जीवन जल का दाता है। (4:14)
- परमेश्वर आत्मा और सत्य है। हमें उसकी आराधना आत्मा और सच्चाई से करनी चाहिए। (4:22-24)
सामरी महिला से एक जीवंत सीख।
वास्तव में इस लेखांश (यूहन्ना 4:4-42) में एक शिष्य बनाने का एक उदाहरण दिया गया है। इसमें प्रभु यीशु ने एक सामरी औरत को साधारण बातचीत में एक शिष्य और सुसमाचार वाहक बनाया। शिष्यों को निर्माण करने के लिए इन चार बातों को हमें भी ध्यान में रखना है जिन्हें हम इस सामरी स्त्री से सीख सकते हैं।
1) वह तुरंत गई।
वह तुरंत गई। ये बात उसकी आज्ञाकारिता को दर्शाती है क्योंकि जैसे उसे ये बात पता चली कि यीशु ही मसीहा है, उसने तुरंत अपना घड़ा छोड़कर गांव में सबको यीशु के बारे में बताने चली गई। जबकि वो तो पानी भरने के लिए इतनी दूर आई थी। सच में उसने जीवन जल देने वाले पर विश्वास कर लिया था। यीशु ने यही कहा कि जाओ और सब लोगों को चेला बनाओ।
2) उसने अपनी गवाही बताई।
अपनी गवाही बताना। जैसे ही वो अपने गांव पहुंची उसने लोगों को अपनी गवाही बताई। जो भी घटना उसके साथ घटी थी उसने वही बताया। इसी प्रकार हमें भी दूसरों को वही बताना है जो घटना हमारे साथ हुई। जब भी आप अपनी गवाही बताते हैं तो आपकी गवाही में ये तीन चीजें अवश्य होनी चाहिए।
अपनी गवाही कैसे बताएं? (पौलुस का उदाहरण देखें)
- मसीह में आने से पहले का जीवन। (प्रेरित 22:1-5)
- आपने मसीह को कैसे जाना? (प्रेरित 22:6-14)
- मसीह में आने के बाद आपका जीवन। (प्रेरित 22:15-21)
3)उसने परमेश्वर की कहानी बताई।
यीशु के बारे में बताएं। अधिकांश लोग जब अपनी गवाही को दूसरे को बताते हैं वे सोचते हैं कि हमने सुसमाचार सुना दिया। वास्तव में उन्होंने तो अपने साथ घटी घटना को बताया था। पर सुसमाचार तो प्रभु यीशु के बारे में बताना है कि उसने हमारे लिए क्या किया। सुसमाचार सुनाने के कई तरीके हैं। नीचे दिए गए चार आयतों को कंठस्थ करें और इन्हें साझा करें। (रोमियों 3:23, रोमियों 6:23, रोमियों 5:8, रोमियों 10:9)
कैसे सुसमाचार सुनाएं?
आप भी इस तरह सुसमाचार सुना सकते हैं :-
आरम्भ में परमेश्वर ने सब कुछ बनाया। उसने मनुष्य और हर एक अच्छी वस्तु को बनाया। मनुष्य और परमेश्वर आपस में बातचीत करते थे क्योंकि उनका सम्बन्ध अच्छा था। पर मनुष्य ने परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं किया और इस कारण उन्होंने पाप किया। पाप क्या है? हर एक ऐसा विचार, व्यवहार और कार्य जो परमेश्वर के विरोध में है वो पाप कहलाता है। परमेश्वर का वचन कहता है कि “सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हो गये हैं” (रोमियों 3:23) इसी कारण परमेश्वर के साथ हमारा सम्बन्ध टूटा हुआ है।
पाप के कारण सब मनुष्यों का न्याय होगा और नरक जायेंगे। परमेश्वर का वचन यह भी कहता है कि “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे लिए यीशु मसीह में अनंत जीवन है।” (रोमियों 6:23) पापों की माफ़ी के लिए एक बलिदान आवश्यक था। परमेश्वर हमसे प्रेम करता है, इसलिए हमारी पापों की माफ़ी के लिए वह मानव रूप में, पुत्र रूप में इस दुनियां में आया स्वयं ही हमारे पापों की माफ़ी के लिए बलिदान हो गया।
उसका कीमती लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है। प्रभु यीशु ने हमारे पापों की माफ़ी के लिए सूली पर अपनी जान दी। वह एक सिद्ध बलिदान था जिसने हमारे पापों की पूरी पूरी सजा सह ली। उसने यह सजा अपने ऊपर उठा ली। रोमियों 5:8 में लिखा है कि “परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस प्रकार प्रकट करता है कि जब हम पापी ही थे तब मसीह हमारे लिए मरा।”
मसीह न सिर्फ मरा बल्कि तीसरे दिन मरे हुओं में से जी भी उठा और अपने चेलों से मिलने के बाद स्वर्ग चला गया। उसकी मृत्यु और जी उठने के द्वारा हमें पापों की माफ़ी मिलती है और परमेश्वर के साथ हमारा टूटा हुआ सम्बन्ध फिर से जुड़ जाता है। आगे रोमियों 10:9 में इस प्रकार लिखा है कि “यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे, और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जीवित किया, तो तू निश्चय उद्धार पायेगा।”
बाइबल कहती है कि यीशु प्रभु है इसलिए यीशु पर विश्वास करना है और उसकी आज्ञाओं का पालन करना है। एक दिन प्रभु यीशु इस धरती पर वापिस आएगा और न्याय करेगा। जो लोग अपने पापों को मानकर उन्हें छोड़ देंगे और यीशु पर विश्वास करेंगे, वे स्वर्ग जायेंगे। जो लोग उस पर विश्वास नहीं करेंगे, उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी। क्या आप भी उस प्रेमी परमेश्वर पर विश्वास करना चाहते हैं?
4) उसने लोगों को यीशु के पास आने का निमंत्रण दिया।
लोगों को यीशु के पास निमंत्रण दें। यहाँ स्मरण रखने वाली बात ये भी है कि सामरी औरत ने अपने गाँव वालों को जबरदस्ती नहीं ले गया और न ही कोई लालच दिया पर उसने अपने साथ घटी घटना को बताया। हमें भी इस तरीके का पालन करना चाहिए। फिर चाहे कोई विश्वास करे या न करे।
इस लेखांश में प्रमुख रूप से हम प्रभु यीशु द्वारा दिया गया महान आदेश को पाते हैं। (मती 28:18-20)
कुछ जरुरी बातें।
हम किसे बता सकते हैं? – हम अपने परिवार के सदस्यों, मित्रों, पड़ोसियों अथवा अपने गाँव वालों को बता सकते हैं। (यूहन्ना 4:16)
हमें उनसे क्या कहना चाहिए? – हम भी सामरी स्त्री की तरह अपनी कहानी और परमेश्वर के प्रेम की कहानी बता सकते हैं।
इस काम के लिए कौन जा सकता है? – यदि यह सामरी औरत जा सकती है तो हर एक विश्वासी भी जा सकता है। (यूहन्ना 4)
ये सामरी महिला कौन थी? क्या वह पढ़ी-लिखी थी? क्या उसकी नेकनामी थी? क्या उसका बपतिस्मा हो गया था? क्या वह एक लीडर थी? नहीं! फिर भी परमेश्वर ने उसके गाँव के कई लोगों को मसीह के पास लाने के लिए उसे इस्तेमाल किया। यह सामरी महिला प्रभावशाली क्यों रही? यह सामरी महिला इसलिए प्रभावशाली रही क्योंकि उसने ये चार काम किये: 1. वह तुरंत गई। 2. उसने अपनी कहानी बताई। 3. उसने परमेश्वर की कहानी बताई। 4. उसने लोगों को यीशु के पास आने का निमंत्रण दिया।