बाइबल हमें संगति के बारे में क्या सिखाती है? एक मसीही के लिए संगति जरूरी क्यों है? (The Importance of Fellowship) परमेश्वर ने हमें पवित्रशास्त्र में अपने विचार दिए हैं और उन्हें सावधानीपूर्वक समझाया भी है पर बहुतों ने आज उन विचारों को बिगाड़ दिया है। ऐसी ही एक अवधारणा जिसे बाइबल के अर्थ में विशेष रूप से बिगाड़ दिया गया है वह है “मसीही संगति” की अवधारणा। आज हमारे कलीसिया भवन में Fellowship Hall, Fellowship Dinner और Fellowship Retreat इत्यादि तो हैं, लेकिन बहुत कम के पास वास्तविक संगति (Fellowship) है। फिर भी एक ऐसी कलीसिया के लिए जो वचन के सिद्धांत और व्यवहार में चलना चाहती है, संगति बहुत महत्वपूर्ण है।
इंटरनेट की वजह से आज बहुत से लोग संगति को महत्त्व नहीं दे रहे हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें कलीसिया में संगति की जरुरत नहीं है, वे तो ऑनलाइन ही संगति कर सकते हैं, विडिओ देखकर सीख सकते हैं, गूगल पर जानकारी ले सकते हैं। यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। क्योंकि जब हम कलीसिया में संगति करते हैं तो हमारे चरित्र का भी निर्माण होता है, हम एक दूसरे की सेवा कर सकते हैं, एक दूसरे की जरूरतों को जान सकते हैं और एक दूसरे का सुधार भी कर सकते हैं, जो कि ऑनलाइन संभव नहीं हैं।
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यदि आपसे पूछा जाए कि आपके लिए संगति महत्वपूर्ण क्यों है? तो आपका जवाब क्या होगा? क्योंकि मसीही संगति सिर्फ कलीसिया जाना नहीं है बल्कि इससे अधिक है। (प्रेरितों 2:42) क्योंकि यह प्रभु के साथ संगति है। (1 यूहन्ना 1:3-4) प्रभु के लोगों के साथ संगति है। यह प्रभु के साथ उसकी इच्छानुसार काम करना है। यह एक दूसरे की आत्मिक, भौतिक और मानसिक मदद करना है।
परमेश्वर का वचन हमें संगति के बारे में बहुत कुछ सिखाता है कि हमें बुद्धिमानों की संगति करनी है। (नीतिवचन 13:20) और हमें चेतावनी देते हुए कहता है, “धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” (1 कुरिन्थियों 15:33) संगति का अर्थ होता है: इकट्ठे होना, एक साथ आना। हम आज अपने परिवार के साथ, दोस्तों के साथ, विश्वासियों के साथ, प्रभु के साथ संगति का आनंद लेते हैं।
धर्मी व्यक्ति चुनाव करता है कि उसे कहाँ खड़े नहीं होना है, कहाँ बैठना नहीं है और कहाँ चलना नहीं है। (भजन संहिता 1:1) भजनकार का निर्णय है कि वह इस प्रकार के लोगों के साथ संगति नहीं करेगा। (भजन संहिता 26:4) निकम्मों की संगति करने वाला निर्बुद्धि ठहरता है। (नीतिवचन 12:11) जबकि संगति के बारे में वचन बहुत कुछ कहता है, परंतु यहां आज हम कलीसिया के रूप में संगति के महत्त्व के बारे में बात करेंगे।
आइए बात करें कि सच्ची संगति वास्तव में क्या है? कलीसिया में संगति क्यों महत्वपूर्ण है? हम में से प्रत्येक संगति का अभ्यास कैसे कर सकते हैं? मसीही संगति के लाभ क्या हैं? सच्ची बाइबल आधारित संगति आज कैसी दिखाई देती है? इत्यादि।
बाइबल संगति के बारे में क्या कहती है?
संपूर्ण बाइबल में, संगति को एक आवश्यक आत्मिक अभ्यास के रूप में किया जाता है। परमेश्वर के अनुग्रह के माध्यम से, हमें परमेश्वर के परिवार में अपनाया गया है, हमें एक स्वर्गीय बंधन के तहत एकजुट किया गया है।
बाइबल में संगति, शुरू से ही मसीही जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है, लेकिन आज कई कलीसियाओं ने संगति के वास्तविक अर्थ को खो दिया है। आज यह अक्सर एक घटना या गतिविधि की तरह महसूस होता है जहां विश्वासी एक साथ आते हैं और एक-दूसरे के जीवन में गहराई तक पहुंचे बिना बोझ साझा करने और एक-दूसरे को मसीह में विकसित किए बिना फिर से घर लौट जाते हैं। मैंने कई लोगों को देखा है कि जैसे ही कलीसिया में अंतिम प्रार्थना समाप्त होती है तो लोग बिना किसी का हाल-चाल पूछे, बिना अभिवादन के निकल जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि कलीसिया में संगति ऐसे लोगों के लिए सिर्फ औपचारिकता बन के रह गई है। ऐसा लगता है कि उनका किसी और से कोई मतलब नहीं हैं, संगति से ज्यादा उनके लिए कुछ और ही चीज महत्वपूर्ण है।
यह समझने के लिए कि परमेश्वर का “संगति” से क्या मतलब है, मूल बाइबल भाषाओं पर विचार करना आवश्यक है। इतिहास की गहराई में जाने से संगति के बारे में कुच्छ महत्वपूर्ण तथ्य हमारे सामने आते हैं और इसके वास्तविक अर्थ को हम और गहराई से समझ पाते हैं।
हमारा अंग्रेजी शब्द, “Fellowship” यूनानी शब्द, “कोइनोनिया” (Koinonia) का अनुवाद है। कोइनोनिया को “कुछ समान रखना”, “एक जैसा होना”, “साझा होना” के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। (उदाहरण के लिए फिलिप्पियों 2:1-2, प्रेरितों 2:42, 1 यूहन्ना 1: 6-7) कोइनोनिया आत्मा की एकता का वर्णन करता है जो मसीहियों की साझा मान्यताओं, विश्वासों और व्यवहारों से आती है। जब वे साझा मूल्य लागू होते हैं, तो वास्तविक संगति उत्पन्न होती है। यह संगति परमेश्वर की आराधना, परमेश्वर के कार्य और संसार में परमेश्वर की इच्छा पूरी होने में हमारे आपसी सहयोग को उत्पन्न करती है।
प्राचीन यूनानियों ने विवाह, सामूहिक साझेदारी और श्रमिक संघों जैसे गहरे संबंधों का वर्णन करने के लिए “कोइनोनिया” का उपयोग किया था; स्पष्ट रूप से, यह एक ऐसी चीज़ थी जिसे सिर्फ एक व्यक्ति हासिल नहीं कर सकता था। हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि संगति एक ऐसे रिश्ते को दर्शाने वाला शब्द है जो एक से अधिक व्यक्तियों पर निर्भर है। यह एक संपूरक (कमी को पूरा करने वाला) संबंध है।
कलीसिया में पवित्र आत्मा के आने से पहले परमेश्वर के साथ मनुष्य के रिश्ते का वर्णन करने के लिए “Fellowship” का उपयोग कभी नहीं किया गया था। यह विशेष रूप से पिन्तेकुस्त के बाद का संबंध है। नए नियम में कोइनोनिया के चार पर्यायवाची शब्द हैं; फिलोस (Philos), जिसका अर्थ है “बाहरी विशेषताओं के लिए प्रेम से संबंधित” (दोस्त, मित्र); हेटैरोस (Hetairos), जिसका अर्थ है किसी सामान्य व्यवसाय में हिस्सेदार; सुनर्गोस (Sunergos), जिसका अर्थ है एक साथी-कार्यकर्ता; और मेटोकोस (Metochos), एक प्रतिभागी। इनमें से प्रत्येक शब्द एक एकता को दर्शाता है जो बाहरी रूप से व्यक्त होती है।
यह संगति के बारे में सच है लेकिन इसके विपरीत, संगति एक आंतरिक एकता भी है। संगति के इस आंतरिक पहलू को 1 कुरिन्थियों 1:9 जैसे पदों में देखा जा सकता है: “परमेश्वर विश्वासयोग्य है, जिसके द्वारा तुम उसके पुत्र, हमारे प्रभु यीशु मसीह की संगति में बुलाए गए हो।” यहां, संगति मुख्य रूप से मसीह के साथ हमारे आंतरिक संबंध पर केंद्रित है। (फिलेमोन 1:6, 2 कुरिन्थियों 13:14 और फिलिप्पियों 2:1)
संगति मुख्य रूप से एक क्रियात्मक शब्द है। नए नियम में कोइनोनिया का प्रयोग लगभग 20 बार किया गया है और “Fellowship” के रूप में अनुवादित होने के अलावा इसका अनुवाद “योगदान,” “साझाकरण” और “भागीदारी” शब्दों से भी किया गया है। इस शब्द के प्रयोग का सूक्ष्म अध्ययन करने से पता चलता है कि इसके अर्थ में क्रिया सदैव सम्मिलित रहती है। संगति का मतलब सिर्फ साथ रहना नहीं है, बल्कि साथ मिलकर काम करना है! यह एक ऐसा बिंदु है जिसे आज मसीही समूहों द्वारा लगभग सार्वभौमिक रूप से अनदेखा किया जाता है।
“संगति” के अर्थ के संबंध में यह मसीह के साथ एक अनोखा संबंध है। हमारा “मसीह में” होने का रिश्ता है। संगति परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में मसीह के साथ हमारी साझेदारी है। संगति का मतलब सिर्फ एक साथ कुछ भी करना नहीं है। यह केवल परमेश्वर की इच्छा को एक साथ पूरा करना है। बिल्कुल स्पष्ट रूप से, दूसरों के साथ हमारी संगति उतनी ही अच्छी होगी, जितनी कि मसीह के साथ हमारी संगति होगी। संगति में सक्रिय रूप से परमेश्वर की इच्छा पूरी करना शामिल है।
संगति की बाइबल आधारित परिभाषा।
“संगति विश्वासियों के बीच आंतरिक एकता का एक रिश्ता है जो पृथ्वी पर परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में मसीह और एक दूसरे के साथ बाहरी सह-भागीदारी में व्यक्त होता है।”
नए नियम के अर्थ में “संगति” बाहरी रूप से व्यक्त, एक आंतरिक एकता है। यह सिर्फ एक साथ रहना नहीं है बल्कि साथ मिलकर काम करना है। यह सिर्फ एक साथ मिलकर कुछ करना नहीं है बल्कि यह परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए मिलकर काम करना है।
संगति कलीसिया के लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?
संगति, मसीह की महिमा को पूरा करने के लिए परमेश्वर का तरीका है।
संगति कलीसिया की स्थापना के परिणामस्वरूप स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हुई। पिन्तेकुस्त के दिन किसी को भी शिष्यों या अन्य नए विश्वासियों के पास आकर यह नहीं कहना था, “आपको संगति का अभ्यास करने की आवश्यकता है।” पवित्र आत्मा इन लोगों पर उतर आया था और एक आंतरिक एकता बनाई थी और उनका स्वाभाविक झुकाव इसे बाहरी रूप से प्रयोग करना था। प्रेरितों 2:44-47 यह कहता है…
“सब विश्वास करनेवाले इकट्ठे रहते थे, और उनकी सब वस्तुएँ साझे में थीं। वे अपनी–अपनी सम्पत्ति और सामान बेच–बेचकर जैसी जिसकी आवश्यकता होती थी बाँट दिया करते थे। वे प्रतिदिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे, और घर–घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सीधाई से भोजन किया करते थे, और परमेश्वर की स्तुति करते थे, और सब लोग उनसे प्रसन्न थे: और जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रतिदिन उनमें मिला देता था।”
“संगति विश्वासियों के बीच आंतरिक एकता का एक रिश्ता है जो पृथ्वी पर परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में मसीह और एक दूसरे के साथ बाहरी सह-भागीदारी में व्यक्त होता है।”
परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए कलीसिया में नेतृत्व की बहुतायत, गतिविधियों में विविधता, जरूरतमंदों को देना, अलग-अलग वरदानों का अभ्यास, भेजे हुओं का समर्थन, विभिन्न क्षेत्रों में बुलाहट, सामूहिक प्रार्थना, सामूहिक आराधना के अभ्यास के साथ मिलकर काम करना जारी रहा। लेकिन कलीसिया के लिए संगति का महत्व केवल इस तथ्य पर निर्भर नहीं है कि यह पवित्र आत्मा के आने का स्वाभाविक परिणाम था। बल्कि, इसका प्राथमिक महत्व इस तथ्य से उत्पन्न होता है कि:
संगति, परमेश्वर द्वारा दिए उद्देश्य को पूरा करने का अति आवश्यक साधन है।
संगति, कलीसिया को परमेश्वर द्वारा दिए उद्देश्य को पूरा करने का अति आवश्यक साधन है। आइए इफिसियों 3:8-11 को एक साथ पढ़ें। “मुझ पर जो सब पवित्र लोगों में से छोटे से भी छोटा हूँ, यह अनुग्रह हुआ कि मैं अन्यजातियों को मसीह के अगम्य धन का सुसमाचार सुनाऊँ, और सब पर यह बात प्रकाशित करूँ कि उस भेद का प्रबन्ध क्या है, जो सब के सृजनहार परमेश्वर में आदि से गुप्त था। ताकि अब कलीसिया के द्वारा, परमेश्वर का विभिन्न प्रकार का ज्ञान उन प्रधानों और अधिकारियों पर जो स्वर्गीय स्थानों में हैं, प्रगट किया जाए। उस सनातन मनसा के अनुसार जो उसने हमारे प्रभु मसीह यीशु में की थी।”
इस लेखांश में हम देखते हैं कि परमेश्वर की एक अनंत योजना है। उस योजना को पूरा करने में कलीसिया की भूमिका है। पद 10 में “कलीसिया के द्वारा” वाक्यांश से पता चलता है कि कलीसिया को उसकी योजना को पूरा करने में परमेश्वर का साधन बनना है। जैसा कि पद 10 में कहा गया है, कलीसिया का उद्देश्य दुनियांं को परमेश्वर का बहुआयामी ज्ञान दिखाना है। कलीसिया का उद्देश्य परमेश्वर को दुनियांं के सामने रखना और उसके अस्तित्व के हर शानदार पहलू को सबके सामने प्रदर्शित करना है।
यहां यह देखना महत्वपूर्ण है कि अकेले काम करने वाला कोई भी व्यक्ति, कभी भी परमेश्वर की हर पूर्णता को दिखाने की इस योजना को पूरा नहीं कर सकता है। संसार में परमेश्वर की योजना की पूर्णता दिखाने के लिए, कई व्यक्तियों की परमेश्वरीय क्षमताओं को एक साथ जोड़ने की आवश्यकता होती है। किसी ने इस प्रकार कहा है कि कलीसिया परमेश्वर का ऑर्केस्ट्रा है! परमेश्वर को पूर्ण रूप से प्रकट करने के लिए, प्रत्येक व्यक्ति को न केवल अपनी भूमिका निभानी चाहिए, बल्कि इसे एक साथ निभाना चाहिए। केवल जब हम इस तरह से मिलकर काम करते हैं तभी परमेश्वर की योजना को पूरा करना संभव है।
1 कुरिन्थियों 12 यह स्पष्ट करता है कि देह का प्रत्येक सदस्य इसके समुचित कार्य के लिए आवश्यक है। संगति के महत्व के कारण, किसी को भी मसीह की देह, स्थानीय कलीसिया से खुद को अलग करने का अधिकार नहीं है। संगति का अभ्यास, परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में हमारी आंतरिक एकता का बाहरी अभ्यास, कलीसिया के लिए परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा करने में न केवल स्वाभाविक है बल्कि अतिआवश्यक है। आइए देखें कि हम संगति का अभ्यास कैसे कर सकते हैं?
संगति का अभ्यास करना।
लोगों को कलीसिया के लक्ष्य को पहचानना होगा। आज लोग अक्सर कलीसिया में इसलिए भी भाग नहीं लेते क्योंकि उन्हें कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं दिखता, जैसा कि हम पहली कलीसिया में देखते हैं। हमारा उद्देश्य उन सभी तरीकों से दुनियांं को परमेश्वर की महिमा दिखाना है जो उसने हमें बाइबल में निर्देश दिए हैं। हम परमेश्वर की महिमा करने, उसके तरीके से करने और इसे एक साथ करने के लिए सप्ताह के सातों दिन एक साथ भाग लेते हैं।
आप सक्रिय भाग लेकर संगति का अभ्यास कर सकते हैं। आप अपने आत्मिक वरदानों और प्राकृतिक क्षमताओं को पहचानकर और कलीसिया की जरूरतों को जानकर पता लगा सकते हैं कि आप कहां सबसे अच्छी मदद कर सकते हैं। फिर वहां मदद करें जहां आप न केवल खुद को, बल्कि पूरी कलीसिया को सबसे अधिक उपयोगी बना सकें। यदि आप अपने आत्मिक वरदान को नहीं जानते हैं, तो आपको अपनी पहले से दी गई क्षमताओं के साथ शुरू करना चाहिए। जैसे-जैसे आप दूसरों के साथ काम करते हैं, आपके वरदान सामने आएंगे और आपको अपने वरदानों और क्षमताओं के अनुसार कलीसिया में काम करने के लिए स्थान मिलेंगे।
संगति में रहना हमारे लिए एक प्रशिक्षण की तरह होता है। जो कुछ भी परमेश्वर के वचन से हम सीखते हैं उसे सबसे पहले अपने जीवन में, परिवार में लागू करते हैं, अभ्यास करते हैं और उसके बाद समाज में हमारे आसपास के लोगों के साथ वैसा व्यवहार करते हैं जैसा परमेश्वर चाहता है। पवित्र आत्मा की एकता और परमेश्वरीय उद्देश्य के साथ, हम सभी को अपने कंधों पर तब तक हल को रखना चाहिए जब तक कि परमेश्वर की योजना पूरी न हो जाए।
मसीही संगति के क्या लाभ होते हैं?
संगति वह रिश्ता है जो हम मसीहीयों के रूप में एक दूसरे के साथ रखते हैं। यह यीशु मसीह के साथ हमारे रिश्ते पर आधारित है। जब हम मसीही बने तो हमारे तीन रिश्ते बदल गए: यीशु हमारे उद्धारकर्ता बन गया; परमेश्वर हमारा पिता बन गया; और कलीसिया हमारा परिवार बन गई। दूसरे शब्दों में, विश्वासी अब मसीह में मेरे भाई-बहन हैं और उन्हें परमेश्वर के परिवार में स्वीकार कर लिया गया है।
आप जानते हैं कि जब पतरस ने उपदेश देना समाप्त किया, तो वहां क्या हुआ? वचन हमें बताता है कि उन्होंने वचन को आनंद के साथ ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया, उसी दिन तीन हज़ार से ज्यादा लोग उनके साथ जुड़ गए। वे प्रेरितों के उपदेश, और संगति, रोटी तोड़ने, और प्रार्थना करने में दृढ़ता से लगे रहे। (प्रेरितों 2:41-47)
प्रेरितों के काम 2:42 हमें बताता है, “वे संगति के प्रति समर्पित थे।” संगति के प्रति उनकी भक्ति का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम मिशन की भावना और लोगों को यीशु के पास आते देखने की खुशी थी। जब हम सभी संगति के प्रति समर्पित होते हैं, तो हमारे पास इस बात के लिए एक मजबूत आधार होता है कि परमेश्वर न केवल हम में, बल्कि हमारे माध्यम से क्या करना चाहता है। आइए संगति के कुछ लाभों के बारे में बात करें…
संगति में हम आत्मिक वरदानों के इस्तेमाल द्वारा परमेश्वर की महिमा दर्शाते हैं।
हममें से प्रत्येक एक साथ मिलकर दुनियां को परमेश्वर का अनुग्रह बताते हैं। पृथ्वी पर हममें से प्रत्येक का एक उद्देश्य है कि हम अपने आस-पास के लोगों को परमेश्वर के पहलू दिखाएँ। हममें से प्रत्येक को विशिष्ट आध्यात्मिक उपहार दिए गए हैं। जब हम संगति में एक साथ आते हैं, तो ऐसा लगता है कि हम समग्र रूप से परमेश्वर का प्रदर्शन कर रहे हैं। हम सब मिलकर परमेश्वर की महिमा दर्शाते हैं।
क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूँ कि जैसा समझना चाहिए उससे बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे; पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को विश्वास परिमाण के अनुसार बाँट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे। क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही सा काम नहीं; वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं। जबकि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न–भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिसको भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे; यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे; यदि कोई सिखानेवाला हो, तो सिखाने में लगा रहे; जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे; जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे; जो दया करे, वह हर्ष से करे। (रोमियों 12:3-8)
संगति हमें मजबूत बनाती है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम अपने विश्वास के स्तर में कहां हैं, संगति हमें शक्ति प्रदान करती है। अन्य विश्वासियों के आसपास रहने से हमें सीखने और अपने विश्वास में बढ़ने का मौका मिलता है। यह हमें दर्शाता है कि हम क्यों विश्वास करते हैं और कभी-कभी यह हमारी आत्माओं के लिए उत्कृष्ट भोजन है। जब हम एक कठोर हृदय वाली दुनियां से निपटते हैं, तो उस कठोर हृदय में पड़ना और हमारी मान्यताओं पर सवाल उठाना आसान हो जाता है। संगति में कुछ समय बिताना हमेशा अच्छा होता है ताकि हमें याद रहे कि परमेश्वर हमें मजबूत बनाता है।
“फिर मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि यदि तुम में से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिये एक मन होकर मांगें, तो वह मेरे स्वर्गीय पिता की ओर से उनके लिये पूरी हो जाएगी। क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहां मैं उनके साथ होता हूँ।” (मत्ती 18:19-20)
संगति प्रोत्साहन प्रदान करती है।
हम सभी के जीवन में बुरे पल भी आते हैं। चाहे वह किसी प्रियजन को खोना हो, परीक्षा में असफल होना हो, आर्थिक समस्या हो या यहां तक कि विश्वास का संकट हो, हम निराश महसूस कर सकते हैं। हम अन्य विश्वासियों के साथ समय बिताने से अक्सर थोड़ा ऊपर उठ सकते हैं। वे हमें परमेश्वर पर अपनी नज़र केन्द्रित करने में मदद करते हैं। परमेश्वर भी उनके माध्यम से हमें वह प्रदान करने के लिए कार्य करता है जिसकी हमें कठिन समय में आवश्यकता होती है। दूसरों के साथ मिलकर हमारी उपचार प्रक्रिया में सहायता मिल सकती है और हमें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिल सकता है।
जब हम एक दूसरे के साथ उन कार्यों को गवाही के रूप में साझा करते हैं, तो हमारे जीवन में किए गए परमेश्वर के कार्य हमें उत्साहित करते हैं। (इब्रानियों 10:24-25)
संगति हमें याद दिलाती है कि हम अकेले नहीं हैं।
संगति में अन्य विश्वासियों के साथ आने से हमें यह याद दिलाने में मदद मिलती है कि हम इस दुनियां में अकेले नहीं हैं। हर जगह विश्वासी हैं, यह आश्चर्यजनक है कि चाहे आप दुनियां में कहीं भी हों, जब आप किसी अन्य विश्वासी से मिलते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे आप अपने घर में हैं। इसलिए परमेश्वर ने संगति को इतना महत्वपूर्ण बनाया है। वह चाहता था कि हम एक साथ आएं ताकि हमें हमेशा पता चले कि हम अकेले नहीं हैं। संगति हमें उन स्थायी रिश्तों को बनाने की अनुमति देती है ताकि हम कभी भी दुनियां में अकेले न रहें।
हम सभी को एक दूसरे की आवश्यकता है। “आँख हाथ से कभी नहीं कह सकती, ‘मुझे तेरी ज़रूरत नहीं।’ सिर पैरों से यह नहीं कह सकता, “मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं है।” (1 कुरिन्थियों 12:21-27)
संगति हमें आगे बढ़ने में मदद करती है।
संगति हम में से प्रत्येक के लिए अपने विश्वास को बढ़ाने का एक शानदार तरीका है। बाइबल पढ़ना और प्रार्थना करना परमेश्वर के करीब आने के बेहतरीन तरीके हैं, लेकिन हममें से प्रत्येक के पास एक-दूसरे को देने के लिए महत्वपूर्ण सबक हैं। जब हम संगति में एक साथ आते हैं, तो हम एक-दूसरे को चीजें सिखाते हैं। परमेश्वर हमें सीखने और बढ़ने का उपहार देते हैं, जब हम संगति में एक साथ आते हैं तो हम एक-दूसरे को दिखाते हैं कि परमेश्वर की इच्छानुसार कैसे जीना है, और कैसे मसीह के पद्चिन्हों पर चलना है।
“इसलिये हे भाइयो, क्या करना चाहिए? जब तुम इकट्ठे होते हो, तो हर एक के हृदय में भजन या उपदेश या अन्य भाषा या प्रकाश या अन्य भाषा का अर्थ बताना रहता है। सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिये होना चाहिए।” (1 कुरिन्थियों 14:26)
संगति एकता का निर्माण करती है।
संगति एकता का निर्माण करती है। कलीसिया को एकजुट होने के लिए कहा जाता है। सब कुछ समान होना और एक मन होना ही एकता है। पौलुस ने इफिसियों 4 में लिखा, “और मेल के बन्धन में आत्मा की एकता रखने का यत्न करो।” (इफिसियों 4:3) यदि प्रभु को कलीसिया की एकता में इतनी रुचि है, तो हमें भी इसमें रुचि होनी चाहिए। हमें कलीसिया की एकता को “रखने” या “बनाए रखने” के लिए बुलाया गया है।
“यत्न करो” का अर्थ है “उत्साही होना”, यह बताता है कि हम कलीसिया की एकता को सुरक्षित करने के प्रयास में किसी भी चीज़ को बाधा नहीं बनने देते हैं। यह एक पवित्र उत्साह की बात करता है जो निरंतर ध्यान देने की मांग करता है। “रखना” का अर्थ है “रक्षा करना।” ध्यान दें कि यह “बनाए” नहीं कहता है। हम कलीसिया के भीतर एकता का निर्माण नहीं कर सकते। हम एकता का दिखावा नहीं कर सकते। हम केवल उस एकता की रक्षा कर सकते हैं जो हमारे पास पहले से मौजूद है। पौलुस इसे “आत्मा की एकता” कहते हैं।
संगति से घनिष्ठता बनती है।
संगति से घनिष्ठता बनती है। आरंभिक कलीसिया वास्तव में एक घनिष्ठ समूह था। वे सभी एक साथ थे और उनमें सब कुछ समान था। मेरा मानना है कि प्रारंभिक कलीसिया में इतने अच्छे रिश्ते होने का कारण यीशु और एक-दूसरे के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी। (यूहन्ना 15:15)
यदि आप कलीसिया में अपना रिश्ता गहरा बनाना चाहते हैं तो आपको कलीसिया में शामिल होना होगा। यदि आप अन्य मसीहियों के साथ “संगति” नहीं कर रहे हैं तो आप अच्छे रिश्ते बनने की उम्मीद नहीं कर सकते। संगति रिश्ते को मज़बूत बनाती है, लेकिन इसमें समय, ऊर्जा और प्रयास लगता है।
संगति परमेश्वर के राज्य का निर्माण करती है।
संगति परमेश्वर के राज्य का निर्माण करती है। प्रेरितों के काम अध्याय 2 के अंतिम वाक्यांश पर ध्यान दें: “और जो उद्धार पाते थे उनको प्रभु प्रतिदिन कलीसिया में मिला देता था।” (प्रेरितों 2:47) प्रारंभिक कलीसिया यीशु और एक दूसरे के प्रति समर्पित थी और दुनियांं ने इसे देखा। जब मसीही नियमित रूप से परमेश्वर की आराधना करने और एक-दूसरे के साथ संगति करने के लिए एक साथ मिलते हैं, तो हम दुनियांं के गवाह होते हैं। यीशु ने कहा: “यदि तुम एक दूसरे से प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना 13:35) हमें परमेश्वर से प्रेम करना है और लोगों से प्रेम करना है।
संगति हमें सुरक्षा प्रदान करती है।
जब दुश्मन फाड़ खाने के लिए तैयार, घात लगाए बैठा है तो उस वक्त संगति हमें सुरक्षा प्रदान करती है। आपको मालूम होगा कि जब जानवर इकट्ठे चलते हैं तो शिकारी के लिए उनका शिकार करना मुश्किल होता है पर जैसे ही कोई झुंड से अलग होता है तो वह शिकारी का आसान शिकार बन जाता है। हमें याद रखना होगा कि हम मसीह की देह के अंग हैं हमें एक साथ कार्य करने के लिए बनाया गया है। साथ में रहना हमें सुरक्षित महसूस कराता है।
सच्ची बाइबल आधारित संगति आज कैसी दिखती है?
एक विश्वासी के जीवन में सच्ची बाइबिल संगति कैसी दिखती है इसकी तस्वीर पाने के लिए हम बाइबल में बहुत सारे स्थानों पर जा सकते हैं। यहां कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं:
- संगति परमेश्वर के प्रेम से शुरू होती है, परमेश्वर के प्रेम से बहती है, परमेश्वर के प्रेम पर केंद्रित होती है और परमेश्वर के प्रेम को व्यक्त करती है। (1यूहन्ना 4:11-12)
- संगति में मसीह को हमारे ह्रदय और कार्यों का केंद्र बनाए रखने के लिए एक-दूसरे का प्रोत्साहन और लगातार मसीह की ओर देखना शामिल है। हम इसे अकेले नहीं कर सकते, न ही हम ऐसा करने वाले थे! (इब्रानियों 10:24-25, 1 थिस्सलुनीकियों 5:11)
- संगति में शिक्षण, जवाबदेही और एक स्वर में हमारे महान परमेश्वर की स्तुति के माध्यम से एक दूसरे के साथ परमेश्वर के वचन को साझा करना शामिल है। (कुलुस्सियों 3:16)
- संगति का मतलब है कि हम न केवल एक दूसरे के साथ सुसमाचार साझा करते हैं, बल्कि हम एक दूसरे के साथ अपना जीवन भी साझा करते हैं क्योंकि हम एक दूसरे से प्यार करते हैं। (1 थिस्सलुनिकियों 2:8)
- संगति में एक-दूसरे के दिलों की चोट और बोझ को समझना और शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से एक-दूसरे की मदद करना शामिल है। इसका मतलब है कि हम सुख दुःख में एक दूसरे का साथ देते हैं और एक-दूसरे की बात अच्छी तरह सुनते हैं। (गलातियों 6:2, रोमियों 12:15)
- संगति का अर्थ है कि हम उदारतापूर्वक एक-दूसरे को देते हैं, ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं। (2 कुरिन्थियों 8:13-15)
- संगति में मसीह की देह को शामिल किया जाता है, जिसमें सभी लोग एक आवाज के साथ एक व्यक्ति के रूप में एक साथ आते हैं, ताकि हम अपने व्यक्तिगत उपहारों के साथ एक-दूसरे की सेवा कर सकें। (1 कुरिन्थियों 12:24-27)
- संगति में एक-दूसरे के प्रति संवेदनशीलता शामिल होती है क्योंकि हम ईमानदारी से एक-दूसरे के सामने अपने पापों को स्वीकार करते हैं और लगन से प्रार्थना करते हैं और जिन पापों से हम जूझ रहे हैं उनसे निपटने के लिए एक-दूसरे के प्रति जवाबदेह रखते हैं। (याकूब 5:16)
- सच्ची संगति हमारे आस-पास के लोगों को यह देखने का कारण बनती है कि हम यीशु के शिष्य हैं क्योंकि मसीह का प्रेम हमारे दिलों से और एक-दूसरे के जीवन में बहता है। इस प्रकार का प्रेम दूसरों को प्रेम के उस महान परमेश्वर को जानने के लिए आकर्षित करता है जिसकी हम सेवा करते हैं! (यूहन्ना 13:34-35)
पौलुस कुरिन्थियों को याद दिलाता है कि उनके विश्वासयोग्य परमेश्वर ने उन सभी को यीशु के साथ संगति में बुलाया है। इसका मतलब यह है कि वे उसकी दया, कृपा, शक्ति और उद्देश्य में भाग लेते हैं। ऐसा होने पर, विभाजन और फूट का कोई मतलब नहीं रह जाता है। (1 कुरिन्थियों 1:9-10) वे यीशु के हैं – और एक दूसरे के हैं।
आज हमें संगति के महत्त्व को समझना है। एक स्वस्थ कलीसिया संगति को महत्त्व देती है। ज्यों ज्यों हम मसीह के दूसरे आगमन के नज़दीक हैं, हमें संगति को और भी अभ्यास करने की आवश्यकता है। संगति हमें एक-दूसरे के करीब लाने और मसीह की महिमा करने का परमेश्वर का तरीका है क्योंकि हम उसके उद्देश्य में एकजुट होते हैं। एक समुदाय के रूप में, यह हममें से प्रत्येक को खुद से कहीं अधिक हासिल करने का अधिकार देता है। यह मसीह के प्रेम का प्रतिबिंब है जो विश्वासियों के माध्यम से एक सहायक और देखभाल करने वाला समुदाय बनाने के लिए काम कर रहा है जो दुनियां में अपनी रोशनी चमकाता है।
शालोम
God bless you