Inductive Bible Study Method से अध्ययन कैसे करें? विवेचनात्मक विधि से बाइबल अध्ययन कैसे करें? हमने पहले ही बात कर दिया है कि हमें परमेश्वर के वचन के एक अच्छे विद्यार्थी बनना है ताकि हम प्रभु के साथ घनिष्ठता का भी आनंद लें और दूसरे मसीही भाई-बहनों की भी सहायता करे सकें। और आप प्रभु के उद्देश्य को अपने जीवन में पूरा कर सकें।
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आज बहुत से सेवक या विश्वासी जब वचन के बारे में जानकारी चाहते हैं या तो गूगल पर सर्च करते हैं या फिर यूट्यूब पर। ये बातें संकेत देती हैं कि हमारे लोग वचन अध्ययन के प्रति कितना अधिक लापरवाह हो गए हैं। अधिकतर मसीही लोग या सेवक भी आज संदेश के तैयार करने के लिए या साप्ताहिक संगति के लिए गीत भजनों को ढूंढने के लिए शुक्रवार, शनिवार और रविवार को ही सक्रिय मिलेंगे। और वो भी ज्यादातर गूगल और यूट्यूब पर। मेरे पास इसका आंकड़ा है समय आने पर आपके साथ साझा किया जाएगा।
आज हम बाइबल अध्ययन के लिए विवेचनात्मक विधि के बारे में बात करेंगे, जिसे Inductive Bible Study Method कहा जाता है। ये बाइबल अध्ययन की ऐसी विधि है जिसका उपयोग करके, आप जहां तक मेरा मानना है कभी भी परमेश्वर के वचन का गलत अर्थ नहीं निकालेंगे। इस प्रकार आप गलत शिक्षाओं को रोकने में भी अपनी भूमिका अदा करेंगे।
बाइबल अध्ययन की और भी कई विधियां हैं, जैसे कि हम पहले तलवार विधि (Sword Method) के बारे में बात कर चुके हैं। पर Inductive Bible Study Method में एक लेखांश को पढ़ने के लिए, उसका अवलोकन करने के लिए, उसकी व्याख्या करने के लिए और उसका लागूकरण ढूंढने के लिए काफी समय आपको अलग करना होगा। हमारा सुझाव है कि इस विधि का इस्तेमाल करते समय आप धीरे-धीरे हर एक कदम को इस्तेमाल करके आगे बढ़ते रहें।
Bible Study की कोई भी विधि हो सकती है पर अगर हम उसमें से लागूकरण के लिए कुछ भी न निकालें तो हमारे अध्ययन से किसी को भी कोई फायदा नहीं होने वाला।
विवेचनात्मक बाइबल अध्ययन (Inductive Bible Study) के लिए आपको तीन चरणों से होकर जाना होगा: अवलोकन, व्याख्या और लागूकरण। विवेचनात्मक रीति से बाइबल अध्ययन करने का अर्थ होता है, अधिक जानकारियां खोजना ताकि आपका लागूकरण बिल्कुल सटीक हो।
- अवलोकन (Observation) – लेखांश क्या कहता है?
- व्याख्या (Interpretation) – लेखांश का अर्थ क्या है?
- लागूकरण (Application) – मैं इसका प्रत्युत्तर कैसे दूं?
Inductive Bible Study में हम बारीकी से अध्ययन करना सीखेंगे ताकि हमारे संदेश में से कुछ भी महत्वपूर्ण जानकारी हमसे न छूटे। उसके बाद जब हम इन जानकारियों के आधार पर एक संदेश तैयार कर देंगे तो उसमें भी हम ध्यान देंगे कि कैसे हम उसको प्रस्तुत करेंगे।
इसके लिए हम कुलुस्सियों 3:1-4 के साथ अभ्यास करेंगे।
अत: जब तुम मसीह के साथ जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहाँ मसीह विद्यमान है और परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठा है। पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ, क्योंकि तुम तो मर गए और तुम्हारा जीवन मसीह के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है। जब मसीह जो हमारा जीवन है, प्रगट होगा, तब तुम भी उसके साथ महिमा सहित प्रगट किए जाओगे (कुलुस्सियों 3:1-4 HINOVBSI)
अवलोकन (Observation) – लेखांश क्या कहता है?
अवलोकन का अर्थ है ध्यानपूर्वक लेखांश या पाठ्यांश का निरीक्षण करना। इसमें हम लेखांश (Passage) का दो प्रकार से अवलोकन करेंगे। हम विषयवस्तु (Content) का और संदर्भ (Context) का भी अवलोकन करेंगे।
विषयवस्तु (Content) का अवलोकन।
विषयवस्तु का अवलोकन इस प्रकार से हो सकता है कि मान लो आप अपनी बालकनी में खड़े हैं और आप अपने सामने एक पहाड़ को देखते हैं फिर ज्यादा जानकारी के लिए आप उसमें से विवरण को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। जैसे कि उसमें ऊंचाई पर बर्फ गिरी हुई है, सामने पहाड़ पर कई पेड़ दिखाई दे रहे हैं, कुछ देवदार के, कुछ चीड़ के और भी बहुत से प्रकार के।
फिर आप देखते हैं कि इसमें दो तीन सड़कें भी हैं और कुछ लोग हैं जो उन पर चल रहे हैं। आप उनके ड्रेस का रंग आदि भी देख सकते हैं, कुछ गाड़ियां भी चल रही हैं, बस, ट्रक, ऑटो इत्यादि। आगे आप इसमें और भी बहुत सी जानकारियां जुटा सकते हैं। मुझे लगता है कि आप अवलोकन के बारे में समझ गए होंगे। इसी सूत्र को हमें परमेश्वर के वचन को पढ़ते समय भी इस्तेमाल करना है और वचन में से जानकारियों को निकाल कर उन्हें लिखते जाना है।
सबसे पहले हमें अच्छे से (कम से कम दो या तीन बार) पढ़कर लेखांश (Passage) का सारांश लिखना है। प्रभु से सहायता मांगें कि प्रभु इस लेखांश को समझने में आपकी सहायता करे।
लेखांश का सारांश। (कुलुस्सियों 3:1-4)
सारांश: यह लेखांश एक विश्वासी के लिए निर्देश तथा प्रेरणा देता है कि वे अपने मन को अनंत काल की वस्तुओं की ओर लगाएं न कि सांसारिक वस्तुओं की ओर।
विवरण को देखना : लेखांश को दो या तीन बार पढ़ लेने के बाद अब आपके पास उस लेखांश के बारे में एक बड़ी तस्वीर मालूम हो जाती है। उसके बाद हमें कुछ विवरणों पर अपना ध्यान केंद्रित करना होता है, जैसे कि – इसमें कौन-कौन लोग हैं? इसमें क्रिया क्या हो रही है? कौन सी जगह में यह सब कुछ हो रहा है? या किस जगह के बारे में बात हो रही है? समय क्या है? क्या घट रहा है? विभिन्न विवरणों को देखने के लिए हमें छः कक्कार से जानकारियां जुटाना शुरू कर देना है। इस तरह से अवलोकन करने में आपको बाद में इसकी सही व्याख्या और लागूकरण करने में मदद मिलेगी। (छः कक्कार) जैसे कि – कौन? क्या? कब? कहां? क्यों? और कैसे?
इस तरह से लेखांश का अवलोकन करने में आपको समय तो लगेगा पर आपको मालूम होगा कि कुछ सोना प्राप्त करने के लिए लाखों टन मिट्टी भी हटाना पड़ता है। ये काम खुदाई जैसा ही है। याद रखें परिश्रमी को ही अनमोल वस्तुएं मिलती हैं। (नीतिवचन 12:27) आलसी तो बेगार में पकड़े जाते हैं। (नीतिवचन 12:24) हमें परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना जरूरी है तभी हम दूसरों तक सही संदेश पहुंचा सकते हैं। प्रयत्न करने में आलसी न हो, आत्मिक उन्माद में भरे रहो। (रोमियों 12:11) आपको याद होगा कि पौलुस क्या कहता है “मैंने सबसे अधिक परिश्रम किया”। (1 कुरिन्थियों 15:10)
कुलुस्सियों 3:1-4 का विवरण।
कौन?
- वे कौन लोग हैं जिनका पौलुस मरे हुए में से जी उठने के बारे में उल्लेख करता है।
- (आप) इसलिए हम दूसरी जगहों में भी ये शब्द पाते हैं… आप या आपका।
- कौन आपका जीवन है?
- मसीह
- परमेश्वर
- मसीह
क्या?
- पौलुस ने उन्हें क्या बताया?
- उसने उनको बताया कि स्वर्गीय वस्तुओं को ढूंढें।
- उसने उनसे कहा कि अपने मन को स्वर्गीय वस्तुओं में लगाएं पृथ्वी पर की वस्तुओं पर नहीं।
- उनके साथ क्या घटित हुआ था?
- वे मर चुके थे।
- वे मसीह में जी उठे हैं।
- अभी क्या हो रहा है?
- उनके जीवन अभी मसीह में छुपे हुए हैं।
- क्या घटित होगा?
- जब मसीह दिखाई देगा तो वे भी उसके साथ दिखाई देंगे।
कब?
- आप मसीह के साथ जी उठे हैं इसमें कुछ संकेत है जो पहले से ही घटित हो रहा है। जो हमें भूतकाल के बारे में बताता है।
- मसीह कहां है? संकेत करता है कि मसीह अभी परमेश्वर के दाहिने बैठा है। जो कि वर्तमान समय के बारे में बात कर रहा है।
- “आप मर चुके हैं” ये संकेत भी बताता है कि ये भी भूतकाल में हो चुका है।
- “आपका जीवन मसीह में छुपा हुआ है” यह हमें संकेत देता है कि अभी कुछ हो रहा है अर्थात वर्तमान समय में।
- “आप दिखाई देंगे जब मसीह दिखाई देगा” ये संकेत भी हमें बताता है कि भविष्य में कुछ होगा।
कहां?
- हमें अपने मन को कहां लगाना चाहिए?
- स्वर्गीय वस्तुओं में।
- मसीह कहां है?
- मसीह स्वर्गीय स्थानों में परमेश्वर के दाहिने जा बैठा है।
- हमें अपने मन को कहां नहीं लगाना चाहिए?
- सांसारिक वस्तुओं पर नहीं लगाना चाहिए।
- उनका जीवन कहां छिपा हुआ है?
- जीवन मसीह के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है।
- वे कहां दिखाई देंगे?
- जब मसीह प्रकट होगा, तब उसके साथ महिमा में प्रकट किए जाएंगे।
क्यों?
- मन को स्वर्गीय वस्तुओं में लगाने के कारण:
- वे मसीह के साथ जी उठे हैं।
- क्योंकि वे मरे और उनके जीवन मसीह में छिपे हुए हैं।
कैसे?
- वे कैसे जिलाए गए हैं?
- वे मसीह के साथ जिलाए गए हैं।
- वे कैसे दिखाई देंगे?
- वे मसीह के साथ महिमा में दिखाई देंगे।
संकेतों का अवलोकन।
अब हमें कुछ संकेतों (Clue) का भी अवलोकन करना है। ये ऐसे शब्द या वाक्य होते हैं जो लेखांश के अर्थ की ओर हमारी अगुवाई करते हैं। पवित्रशास्त्र में अनेक प्रकार के संकेतों का इस्तेमाल हुआ है। इन्हें आप सुराग भी कह सकते हैं। जैसे कि: मुख्य शब्द या वाक्य, दुहराए गए शब्द या वाक्य, तुलना किए गए, विरोधाभास अर्थात जो एक दूसरे के विपरीत होते हैं, उदाहरण, कोई सूची, कोई वर्णन या आज्ञाएं, वादे और चेतावनियां इत्यादि। इन बातों की खोज करने पर हम अच्छे से लेखांश का व्याख्या कर सकते हैं।
जैसे हम अपने लेखांश में देखते हैं तो हम इसमें कुछ संकेत पाते हैं:
मुख्य वाक्य या शब्द
- मसीह के साथ जी उठे।
- खोज करना।
- अपने मन को लगाएं।
- आप मर चुके हैं।
- आपका जीवन मसीह के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है।
- परमेश्वर में।
- मसीह जो आपका जीवन है।
- उसके साथ महिमा में दिखाई देंगे।
दोहराए गए
- वस्तुएं जो स्वर्ग में हैं।
- वस्तुओं पर।
- चार तरह से आपका जीवन मसीह के साथ संबंध के दर्शाता है।
- मसीह के साथ जी उठने में।
- मसीह में छुपा हुआ है।
- मसीह आपका जीवन है।
- आप उसके साथ दिखाई देंगे।
तुलनात्मक
- दो विभिन्न वस्तुएं।
- वस्तुएं जो स्वर्गीय हैं।
- वस्तुएं जो पृथ्वी पर की हैं।
वर्णन
- ऊपर शब्द का वर्णन ऐसे हुआ है जहां मसीह वर्तमान में है और परमेश्वर के दाहिने जा बैठा है।
आज्ञाएं, वादे और चेतावनियां
- स्वर्गीय वस्तुओं की खोज करें।
- स्वर्गीय वस्तुओं पर अपने मन को लगाएं ना कि पृथ्वी की वस्तुओं पर।
- वादा है कि जब मसीह दिखाई देगा तो आप भी उसके साथ महिमा में दिखाई देंगे।
संदर्भ (Context) का अवलोकन।
अब जबकि हमें विषयवस्तु का अवलोकन कर दिया है तो अब हमें इसके संदर्भ का भी अवलोकन करना होगा। हमें देखना होगा कि लेखक क्या कह रहा है? उसकी पृष्ठभूमि क्या है? उसके लिखने की शैली क्या है? उसके असली सुनने वाले कौन हैं? आसपास के लेखांश इसके बारे में क्या बताते हैं? इत्यादि। ऐसा करने के पीछे हमारा मकसद है, उस परिस्थिति की वास्तविकता का पता करना। यदि हम सिर्फ विषयवस्तु का ही अवलोकन के साथ आगे बढ़ते हैं और इसके संदर्भ का अवलोकन नहीं करते हैं तो यह हमें एक गंभीर गलत समझ की ओर अगुवाई कर सकता है। इसलिए इसकी पृष्ठभूमि की छानबीन करना जरूरी हो जाता है।
पृष्ठभूमि का अवलोकन।
पृष्ठभूमि का पता करने के लिए आपको पहले उस पत्री या किताब को पढ़ना होगा जिसमें से आप लेखांश का अध्ययन कर रहे हैं। इस पत्री, सुसमाचार या किताब के शुरू में, आखिर में, या फिर बीच में भी लेखक और असली सुननेवालों का जिक्र हो सकता है। जैसे कि ये पत्री पौलुस के द्वारा कुलुस्से के लोगों के लिए लिखी गई है। हम कुलुस्सियों 1:1-2 में ये देख सकते हैं। कुलुस्सियों के साथ पौलुस के रिश्ते को समझने के लिए आप प्रेरितों के काम अध्याय 9, 13, 14 को भी पढ़ सकते हैं। इसको पढ़ने के बाद आपको निम्नलिखित जानकारियां प्राप्त होंगी।
लेखक के बारे में जानकारी।
- कुलुस्सियों 1:1 मैं पौलुस यीशु मसीह का एक प्रेरित के रूप में अपने आप को प्रस्तुत करता है जो परमेश्वर की इच्छा के द्वारा प्रेरित नियुक्त किया गया था।
- प्रेरितों के काम 9:15 को पढ़ने के बाद हमें मालूम होता है कि पौलुस प्रभु का एक चुना हुआ पात्र था जो प्रभु के नाम को अन्यजातियों के सामने ले जाने वाला था।
- कुलुस्सियों 1:25, 28, 29 में पौलुस के लिखने का कारण मालूम होता है कि वह कुलुस्सियों पर वचन को पूरी रीति से प्रकट करना चाहता था ताकि वे मसीह में परिपक्व हो सकें।
- पौलुस के लिखने का दूसरा कारण जो कुलुस्सियों 2:4, 8, 18 में बताया गया है। जिसकी वजह से वह उन्हें चेतावनी देना चाहता है कि कोई भी उनको बहकाने न पाए या गलत शिक्षा देकर अपने वश में कर ले।
- कुलुस्सियों 4:3, 10, 18 में से हमें मालूम होता है कि पौलुस उस समय जेल में था जब उसने इस पत्री को लिखा।
असली सुननेवाले
- कुलुस्सियों 1:1, 2 के अनुसार पौलुस ने ये पत्री उन पवित्र लोगों और विश्वासी भाइयों के नाम लिखी जो कुलुस्से में थे।
लेखक और सुननेवालों के बीच संबंध।
- पौलुस ने इप्रफास के द्वारा उनके प्रेम और विश्वास के बारे में सुना था जो कि एक विश्वासयोग्य सेवक था। (कुलुस्सियों 1:4, 7-10)
- जब पौलुस ने इस पत्री को लिखा तब तक कुलुस्से वासियों ने उसे आमने सामने नहीं देखा था। (कुलुस्सियों 2:1-5)
- पौलुस उनके लिए प्रार्थना करता है, धन्यवाद देता है, ताकि वे परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन जीने वाले हो जाएं। (कुलुस्सियों 1:7-10, 2:1-5)
- पौलुस ने उनके साथ आत्मा में एक होने का अनुभव किया। (कुलुस्सियों 2:1-5)
लिखने की शैली का अवलोकन।
हमारी पृष्ठभूमि के अवलोकन में यह भी महत्वपूर्ण है कि हम लिखने की शैली का भी अवलोकन करें। बाइबल के लेखकों ने, बाइबल को लिखने में विभिन्न शैलियों का इस्तेमाल किया है।
पुराने नियम को पांच प्रकार की लिखावटों में विभाजित किया जा सकता है:
- वर्णनात्मक या इतिहास।
- व्यवस्था या विधि।
- काव्यात्मक।
- भविष्यवाणी
- बुद्धि।
नए नियम को चार प्रकार की लिखावटों में विभाजित किया जा सकता है:
- सुसमाचार।
- इतिहास।
- पत्रियां।
- प्रकाशन या भविष्यवाणी।
कई बार एक पुस्तक में एक से अधिक लेखन शैली भी हो सकती है। उदाहरण के लिए, योना की पुस्तक एक भविष्यवाणी की पुस्तक है और यह पुस्तक इतिहास से भी संबंधित है। कई बार लेखांश में दो या उससे अधिक साहित्यिक शैलियों का भी इस्तेमाल किया हो सकता है। जैसे कि निर्गमन 15 अध्याय। जहां पर हम एक गीत को पाते हैं। हालांकि यह एक ऐतिहासिक घटना है जो यह बताती है कि मूसा और इस्राएलियों ने क्या किया। इस अध्याय में हम ऐतिहासिक और काव्यात्मक लेखन शैली को पाते हैं।
हमारे कुलुस्सियों का लेखांश या कुलुस्सियों की पुस्तक एक पत्री है। जिसे प्रेरित पौलुस के द्वारा जेल से लिखा गया है।
आसपास के लेखांशों का अवलोकन।
जब आप बाइबल में किसी लेखांश का अध्ययन करते हैं तो यह भी जरूरी हो जाता है कि आप उसके आसपास के अध्ययायों या लेखांशो का अध्ययन करें। बहुत बार कई लोग बिना आसपास के लेखांशों का अध्ययन किए किसी एक लेखांश पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। यदि हम भी ऐसा करते हैं तो ये संभव है कि कुछ जरूरी अवलोकन हमसे छूट जाए। आसपास के लेखांश जो हमारे लेखांश को घेरते हैं वे भी हमारे लेखांश के अर्थ पर बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं। हमारा आसपास के लेखांशों का ये अवलोकन हमारी व्याख्या करने में भी काफी मददगार होगा। इसलिए इस कदम को भी हमें सावधानी पूर्वक करना चाहिए।
कुलुस्सियों का 3:1-4 अवलोकन।
जब हम इस लेखांश का अवलोकन कर ही रहे हैं तो हमें कुलुस्सियों के लेखांश के लिए कुलुस्सियों 2:16-23 और कुलुस्सियों 3:5-17 को देखना काफी मददगार होगा। हालांकि आप और भी वचनों को देख सकते हैं।
- पौलुस बताता है कि मसीह के साथ इस संसार की शिक्षाओं के लिए हम मर चुके हैं। (कुलुस्सियों 2:16-23)
- पौलुस ने हमें बताया है कि पृथ्वी पर के बर्ताव और पुराने जीवन की विशेषताओं को मार डालना है। और मसीह के साथ हमारे नए जीवन के स्वभाव को पहन लेना है। इसलिए वह फिर से स्वर्गीय बातों और सांसारिक बातों के बीच में भिन्नता प्रस्तुत करता है। (कुलुस्सियों 3:5-17)
व्याख्या (Interpretation) – लेखांश के अर्थ को समझना।
परमेश्वर के वचन की सच्चाई हर युग हर पीढ़ी के लिए है। ये एक कालातीत सच्चाई है। यह सच्चाई सभी संस्कृतियों के लिए है और सभी लोगों के लिए है। परमेश्वर का वचन जीवित है। इसका अर्थ है कि जो संदेश एक विशेष सुननेवालों को दिया गया था, उस संदेश की सच्चाई या सिद्धांत आज के लोगों के लिए भी लागू होता है। इसलिए जब हम लेखांश की व्याख्या की ओर बढ़ रहे हैं तो इसमें हमारा लक्ष्य होगा: असली संदेश को समझना और कालातीत संदेश को समझना।
- असली या मूल संदेश को समझना।
- कालातीत संदेश को समझना।
इस व्याख्या चरण में हम उन अवलोकनों से निष्कर्ष निकालने की शुरुआत करेंगे, अर्थात हम उसका अर्थ ढूंढने का प्रयास करेंगे। फिर अंतिम चरण में हम उस सच्चाई को लागू करना भी सीखेंगे।
असली संदेश को समझना।
व्याख्या चरण में हमारा पहला लक्ष्य यह है, लेखक के मकसद को समझना। लेखक असली सुननेवालों से क्या कहना चाहता था। ये शब्द उनके लिए क्या महत्व रखते थे? इस सन्देश ने उन्हें कैसे प्रभावित किया? इस संदेश को सुनने के बाद उन्होंने इसका प्रत्युत्तर कैसे दिया? अगर हमें लेखांश की सही व्याख्या करनी है तो अच्छे व्याख्या प्रश्न भी पूछने होंगे और उनके उत्तर भी लेखांश में से प्राप्त करने होंगे।
हम जबकि लेखांश की व्याख्या चरण में हैं तो सही से व्याख्या करने के लिए हमें प्रभु की सहायता की आवश्यकता भी है इसलिए प्रभु से प्रार्थना करें कि सही व्याख्या करने में वो हमारी सहायता करे।
अच्छे व्याख्या प्रश्नों को पूछना।
हमने जो अवलोकन किए हैं उसके बाद हम इस तरह से उस लेखांश की व्याख्या के लिए प्रश्न पूछ सकते हैं:
- यह महत्वपूर्ण कैसे है?
- इसका अर्थ क्या है?
- क्यों व्यक्ति के ऐसा किया?
- क्यों व्यक्ति ने ऐसा कहा?
- इस घटना का समय कैसे महत्वपूर्ण है?
- इस लेखांश के पहले और बाद के पाठ इससे कैसे संबंध रखते हैं?
- लेखक सुनने वालों को क्या समझाना चाहता था?
- ये आज्ञा, वादा, चेतावनी सुनने वालों के लिए कैसे महत्वपूर्ण थी?
- लेखक और सुनने वालों में आपस में संबंध कैसा था?
- क्यों इस बात को बार बार दोहराया गया है?
- इस संदेश ने उनके जीवनों को कैसे प्रभावित किया?
- क्यों लेखक ने इसे इस तरीके से व्यवस्थित किया है।
आइए अब हम अपने लेखांश कुलुस्सियों 3:1-4 में जाएं और उसमें से हम कुछ अच्छे प्रश्नों को पूछेंगे और उसका उत्तर प्राप्त करेंगे। हमने जो भी अवलोकन करते समय ढूंढ निकाला है, अर्थात मुख्य वाक्य या शब्द, दोहराए गए शब्द या वाक्य, तुलनात्मक शब्द, वर्णन, चेतावनी, आज्ञा इत्यादि। उसी में से हम प्रश्नों को पूछेंगे और उसका उत्तर ढूंढेंगे।
कुलुस्सियों 3:1-4 से व्याख्यात्मक प्रश्न
- खोज करने का क्या अर्थ है?
- अपने मन को स्वर्गीय वस्तुओं पर लगाने का मतलब क्या है?
- पौलुस ने इन शब्दों को क्यों दोहराया?
- हमारे मन को कहां लगाना महत्वपूर्ण है?
- प्रत्येक वाक्य का अर्थ कया है?
- जहां मसीह है, जो परमेश्वर के दाहिने बैठा है, इस वर्णन के बारे में महत्वपूर्ण क्या है?
- आप मर चुके हैं, पौलुस ने ऐसा क्यों कहा?
- हम भी मसीह के साथ जिलाये गए हैं? इसका क्या अर्थ है?
- जब मसीह दिखाई देगा तो आप भी उसके साथ दिखाई देंगे, इसका क्या अर्थ है?
उत्तर प्राप्त करना।
अब जबकि हमने व्याख्या प्रश्नों को निकाला है तो अब इसके उत्तर भी लिखना जरूरी है। व्याख्या करते समय ध्यान दें कि इसकी व्याख्या पवित्रशास्त्र को ही करने दें। बाइबल पहला और भरोसेमंद स्थान है जहां आप लेखांश का उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। इसके बाद हमारे पास एक सवाल आता है कि बाइबल में कहां देखें? सबसे पहले लेखांश में, उसके बाद आपको आसपास के लेखांशों में देखना है, फिर उस पूरी पुस्तक को पढ़ना है उसके बाद उस लेखक द्वारा लिखी कोई दूसरी पुस्तक को भी उस लेखक को जानने के लिए पढ़ सकते हैं।
उदाहरण के लिए आप भजन संहिता 51 पढ़ रहे हैं जो कि दाऊद का एक भजन है इसके अर्थ को समझने के लिए आपको इसके इतिहास में जाने की जरूरत है ताकि आप इसका सही अर्थ निकाल सकें। इब्रानियों 11:24-28 में लेखक मूसा का जिक्र करता है तो इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए हमें निर्गमन की पुस्तक का अध्ययन करना होगा ताकि हम सही व्याख्यान कर पाएं।
बाइबल में उत्तर ढूंढने के बाद आप बाइबल शब्दकोश, बाइबल टीका टिप्पणियों में जाकर भी मदद ले सकते हैं। पर याद रखें सबसे पहले आपको बाइबल में ही ढूंढना है। आजकल कुछ लोगों की आदत हो गई है सीधे गूगल या यूट्यूब पर अपने सवालों के जवाब ढूंढना जो कि आपको गलत अगुवाई कर सकते हैं। मैं ऐसे लोगों को आलसी मसीही कहना पसंद करूंगा क्योंकि इनको बाइबल को पढ़ने या ढूंढने में आलस लगता है। और ऐसे ही लोग जल्दी से गलत शिक्षाओं के शिकार भी हो जाते हैं। इंटरनेट में सभी जानकारियां सही नहीं होती हैं। आपको यह जानना होगा कि हमारा विरोधी इसका बहुत ही गलत तरीके से इंटरनेट का फायदा उठा रहा है।
उदाहरण के लिए आप गूगल से पूछते हैं कि यीशु कौन था? तो गूगल उन लेखों को आपको बताएगा जो लोगों ने यीशु के बारे में लिखे हुए हैं। याद रखिए इनमें ऐसे लेख भी होंगे जो कि किसी मसीही व्यक्ति ने नहीं लिखे होंगे। आप कल्पना ही करके देखें कि वो व्यक्ति जिसने कभी बाइबल को नहीं पढ़ा और कभी कलीसिया में नहीं गया, जिसका यीशु के साथ कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं है, वो आपको यीशु के बारे में क्या बताएगा?
हां हो सकता है कि उसके पास आपका उत्तर हो, पर ये उत्तर मनगढ़ंत भी हो सकता है या दूसरे से सुना हुआ जो यीशु के बारे में जानता ही नहीं हो। जब किसी व्यक्ति ने यीशु को जाना ही नहीं है, उसको चखा ही नहीं है, उसके साथ व्यक्तिगत अनुभव नहीं है, तो वो व्यक्ति यीशु के बारे में क्या बता पाएगा? प्रश्नों को पूछते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि इन प्रश्नों को उत्तर सर्वप्रथम लेखांश में हो या आसपास के लेखांश में हो।
अच्छी व्याख्या के लिए इस क्रम को ध्यान दें।
- सर्वप्रथम हमारे लेखांश का अवलोकन देखें।
- उसके बाद लेखांश के पहले या बाद के चारों तरफ के लेखांश देखें।
- अन्य लेखांश या पुस्तकें देखें जो उसी लेखक के द्वारा लिखी गई हों।
- अन्य संबंधित लेखांश या पुस्तकों में ढूंढें जैसे कि हमने भजन सहिता 51 और इब्रानियों 11 के बारे में बात की थी।
- अंत में आप शब्दकोश, बाइबल टीका इत्यादि से भी मदद ले सकते हैं।
हमारे अवलोकन से प्रश्न और उसके उत्तर:
- खोज करने का क्या अर्थ है?
- खोज करने का अर्थ होता है किसी चीज को प्राप्त करने की कोशिश करना।
- अपने मन को स्वर्गीय वस्तुओं पर लगाने का मतलब क्या है?
- स्वर्गीय बातें जो परमेश्वर और यीशु से संबंध रखती हैं।
- पौलुस ने इन शब्दों को क्यों दोहराया?
- पौलुस इन वाक्यों दो चीजों को महत्व देने के लिए दोहराया है: 1) ताकि हम सावधान हो जाएं। 2) अपने मन को जांचें कि वो कहां है।
- हमारे मन को कहां लगाना महत्वपूर्ण है?
- जहां हमारा मन होगा इसका प्रभाव हमारे जीवन में दिखेगा।
- प्रत्येक वाक्य का अर्थ क्या है?
- जहां मसीह है, जो परमेश्वर के दाहिने बैठा है, इस वर्णन के बारे में महत्वपूर्ण क्या है?
- प्रभु यीशु मसीह परमेश्वर के दाहिने हाथ की तरफ बैठा है। जो जी उठे महिमा के सामर्थ, अधिकार और महिमा को संकेत करता है। और उसने ऐसा इसलिए कहा है ताकि वे अपने मन को परमेश्वर के राज्य, अधिकार, पवित्रता, मसीह आधारित और अनंतकाल की वस्तुओं पर लगाएं।
- आप मर चुके हैं, पौलुस ने ऐसा क्यों कहा?
- इसके द्वारा पौलुस कहता है कि कुलुस्से के विश्वासी मसीह के साथ उसके मारे जाने, गाड़े जाने और जी उठने में मिल गए हैं।
- हम भी मसीह के साथ जिलाये गए हैं? इसका क्या अर्थ है?
- इसका अर्थ है कि जब मसीह मर चुका, तो पुराना, उद्दंड और अविश्वासी स्वभाव मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया। जैसे मसीह नए जीवन के साथ जिलाया गया है वैसे ही उनको भी मसीह में नया जीवन दिया जाएगा। उनका पुराना जीवन चला गया तथा नया जीवन आ चुका है।
- जब मसीह दिखाई देगा तो आप भी उसके साथ दिखाई देंगे, इसका क्या अर्थ है?
- आपका जीवन मसीह में छुपा हुआ है का अर्थ है कि विश्वासी सुरक्षित या परमेश्वर के साथ संबंध में सकुशल हैं क्योंकि यह मसीह के साथ उसकी मिलाप की वजह से संभव हुआ है।
पौलुस ने कुलुस्सियों के विश्वासियों को यह आज्ञा दिया है कि उनको अपने मन को प्रभु यीशु मसीह तथा उसके राज्य और उद्देश्यों पर लगाना है, ना कि उन वस्तुओं पर जो पृथ्वी पर तथा मनुष्य आधारित हैं। पौलुस उनको याद दिलाने के द्वारा प्रेरणा देता है कि उनका मसीह के साथ एक होना भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्य काल की सच्चाई है जो उनके विचार तथा लगाव को निश्चित करता है।
कालातीत संदेश को समझना।
कालातीत संदेश का अर्थ है जो आज के लोगों, संस्कृतियों के लिए भी लागू होता है। संपूर्ण पवित्रशास्त्र हमें उपदेश, समझाने, सुधारने और धार्मिकता की शिक्षा के लिए लाभदायक है ताकि परमेश्वर का जन किसी भी संस्कृति में या किसी भी पीढ़ी में भले काम करने के लिए तैयार हो जाए। (2 तिमुथियुस 3:16-17) इसलिए जब भी हम किसी लेखांश को पढ़ रहे हैं तो ये पूछना काफी मददगार होगा, कौन-कौन सी महत्वपूर्ण सच्चाईयां हैं जिसे परमेश्वर चाहता है कि आज के लोग भी इसमें से प्राप्त करें?
उदाहरण के लिए हम कुछ आयतों को देखेंगे। मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप बाइबल में से इन आयतों को पढ़ लें।
इफिसियों 5:18 में पौलुस इफिसियों की कलीसिया से कहता है कि वे मदिरापान न करें। पौलुस इस बात को जानता था कि मदिरा का सेवन विश्वासी के जीवन में आत्मा के नियंत्रण पर बाधा पहुंचाएगा। इसके सामान्य लक्षण हैं: आत्म संयम खोना, व्यर्थ का न्याय करना, मौखिक गालियां इत्यादि। ये सच्चाई इफिसियों के विश्वासी के लिए भी महत्वपूर्ण थी और आज हम सबके लिए भी महत्वपूर्ण है। इसलिए आज विश्वासियों को ऐसी नशीली चीजों के सेवन से बचना चाहिए जो व्यक्ति को अभक्ति की ओर ले जाती हैं।
यूहन्ना 14:26 में यीशु अपने शिष्यों से वादा करता है कि पवित्रात्मा आ रहा है जो उनका सहायक और शिक्षक होगा। यही सच्चाई हम सबके लिए भी मान्य है कि पवित्र आत्मा आज हमारा भी शिक्षक और सहायक है। वह आज भी हमें परमेश्वर की बातों में से सिखाता है।
भजन संहिता 56:3 में राजा दाऊद प्रार्थना करता है कि जिस समय मुझे डर लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा रखूंगा। दाऊद इस बात को जानता था कि परमेश्वर पर भरोसा करना, डर का प्रत्युत्तर है। और आज या कालातीत सच्चाई हमारे लिए भी लागू होती है। जब ऐसी परिस्थिति में भी हम परमेश्वर पर भरोसा रखें।
विलापगीत 3:23-24 में यिर्मयाह ने इज्राएलियों को परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को स्मरण कराया कि उसकी करुणा हमारे लिए हर दिन नई होती जाती है। आज हमारे लिए भी यही सच्चाई है जो हम अपने जीवनों में महसूस कर सकते हैं।
पवित्रशास्त्र में कुछ ऐसे भी लेखांश या पाठ हैं जिनका आज के लोगों के साथ सीधे तौर पर तो कोई संबंध नहीं है पर सिद्धांत आज के लोगों के लिए भी वैसे ही हैं जैसे उन लोगों को दिए गए थे।
उदाहरण के लिए रोमियों 16:16 में पौलुस ने मसीहियों को आज्ञा दी कि आपस में पवित्र चुम्बन से नमस्कार करें। हममें से कई इन आज्ञाओं से बचना चाहेंगे क्योंकि ये हमारी संस्कृति में लागू नहीं होती हैं। परंतु इस आज्ञा में एक सच्चाई जरूर है जो आज की कलीसिया से भी संबंध रखती है। वो है परमेश्वर के एक परिवार के समान आपस में स्नेह प्रकट करना।
अय्यूब 1:5, 8 में अय्यूब का लेखक बताता है कि अय्यूब अपने बच्चों के पापों के लिए बलिदान चढ़ाया करता था। परमेश्वर आज के माता पिता से यह नहीं चाहता है कि वे इस प्रकार का कार्य करें परंतु ये जरूर चाहता है कि मसीही माता पिता विश्वासयोग्यता के साथ प्रतिदिन अपने बच्चों के लिए परमेश्वर के सामने मध्यस्था करें।
लैव्यव्यवस्था 11 का सम्पूर्ण अध्याय बताता है कि उनको क्या खाना है क्या नहीं खाना है। पर इसमें से भी आज ले लिए जो कालातीत संदेश है वह है पवित्रता। परमेश्वर स्वयं पवित्र है वो चाहता है कि उसके लोग भी पवित्र बने रहें।
हमने कुछ उदाहरणों को यह समझने के लिए देखा कि किस प्रकार हर एक संदेश में एक कालातीत सच्चाई है जो आज के लोगों के लिए भी लागू होती है। इसलिए जब भी आप कोई लेखांश पढ़ें तो वहां कालातीत सच्चाई को भी अवश्य ढूंढें जिसे आप लागू कर सकते हैं। कालातीत सच्चाई परमेश्वर, उसका चरित्र, उसका उद्देश्य, मार्ग, वह क्या चाहता है, क्या नहीं चाहता है इसके बारे में है और लोगों के बारे में भी कि लोग/विश्वासियों/गैर – विश्वासियों के बारे में भी है कि हमारा स्वभाव या हम कैसे परमेश्वर से संबंधित हैं।
कुलुस्सियों 3:1-4 में से कालातीत संदेश
विश्वासियों को विचारों तथा उनके लगाव को मसीह तथा उसके राज्य तथा उद्देश्यों पर लगाना है, ना कि उन वस्तुओं पर जो पृथ्वी पर की हैं या मनुष्य आधारित हैं। विश्वासियों का मसीह के साथ एक होना भूतकाल वर्तमान और भविष्य काल की सच्चाई है जो उनके विचारों और लगाव को निश्चित करता है।
मसीह के साथ एक होने का मतलब है कि एक व्यक्ति मसीह के साथ मर चुका है, मसीह के साथ जी उठा है, मसीह के साथ छुपा हुआ है तथा मसीह के साथ महिमा में दिखाई देगा। एक विश्वासी की पहचान मसीह में भूतकाल, वर्तमान और भविष्य काल की सच्चाई पर आधारित है। मसीह एक दिन महिमा में दिखाई देगा। एक दिन जब मसीह महिमा में दिखाई देगा तो विश्वासी भी उसके साथ महिमा में दिखाई देंगे।
लागूकरण (Application) – सत्य के प्रति प्रतिक्रिया करना।
यह चरण हमारे Inductive Bible Study Method का आखरी चरण है। हमें लेखांश का अवलोकन किया, उसके बाद हमें उसका अर्थ खोज निकाला, अब इसके बाद इन सच्चाइयों को अपने जीवन में लागू करना बहुत जरूरी है। अन्यथा हमारे अध्ययन करने का कोई लाभ नहीं होगा। हमारे बाइबल अध्य्यन का उद्देश्य सिर्फ ज्ञान प्राप्त करना नहीं है बल्कि इस ज्ञान या सत्य को जानने के बाद परिवर्तित होना है। परमेश्वर की इच्छा है कि हम प्रतिदिन अंश-अंश करके यीशु जैसा हो जाएं। (फिलिप्पियों 2:5, 2 कुरिंथियों 3:18)
हालांकि हमारे जीवन में परिवर्तन, पवित्र आत्मा द्वारा लाया जाता है, फिर भी इसमें हमारे सहयोग की आवश्यकता भी होती है। जैसे ही हम वचन को लागू करते हैं और परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं वैसे ही पवित्र आत्मा हमारे जीवन में बदलाव लाता है।
सत्य पर मनन करना।
लागूकरण लेखांश पर मनन करने से शुरू होता है। इसमें हम लेखांश में उपलब्ध कालातीत सच्चाइयों के बारे में सोचेंगे और मनन करेंगे कि इस लेखांश से हमने क्या सीखा है। लागूकरण बाइबल अध्ययन का सबसे व्यक्तिगत चरण है।
प्रार्थनापूर्वक उस सत्य को चुने जो आपसे बातें करता है।
लेखांश का अवलोकन करने पर जो सत्य परमेश्वर ने हमारे सामने लाया है अब उस सत्य को अपने जीवन में लागू करने का समय आ गया है। इसलिए प्रभु से मांगें कि वह आपका मार्गदर्शन करे कि कौन सा सत्य वह चाहता है कि आप अपने जीवन में लागू करें। प्रार्थनापूर्वक सोचें कि यदि कोई ऐसी विशेष सच्चाई है जिसका इस्तेमाल परमेश्वर आपके हृदय से बातें करने के लिए कर रहा है तो उस सत्य को चुने जो आप महसूस करते हैं कि प्रभु ने आपको उस तक मार्गदर्शन किया है।
प्रार्थनापूर्वक अपने जीवन को सत्य की रोशनी में जांचें।
लेखांश की सच्चाईयों पर मनन करने के बाद एक विशेष सच्चाई पर केंद्रित होकर आप अपना कुछ समय सत्य की रोशनी में जांचने लगेंगे क्योंकि परमेश्वर का वचन जो कहता है कि वह जीवित, प्रबल, हर एक दोधारी तलवार से भी चोखा है; और प्राण, आत्मा को, गांठ गांठ और गूदे गूदे को अलग करके आए पार छेदता है और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है। (इब्रानियों 4:12) परमेश्वर से प्रार्थना में मांगें कि जैसे परमेश्वर ने आप पर सत्य को प्रकट किया है, उसमें आप आज्ञाकारी हो जाएं। कुछ प्रश्नों को अपने आप से पूछें:
- क्या आपकी सोच सच्चाई को प्रकट करती है?
- क्या आपकी क्रियाएं सच्चाई में दर्शाए गए बर्ताव के साथ निरंतरता में हैं?
- क्या आपके चरित्र में ऐसा कोई हिस्सा है जो परमेश्वर के चरित्र को प्रकट नहीं करता है?
जब मैं इस भाग को पढ़ता हूं तो जो सच्चाई मुझसे बात करती है वह यह है कि विश्वासी का मसीह के साथ एक होना भूतकाल, वर्तमान तथा भविष्य की सच्चाई है। जो उसके विचारों तथा लगाव को निश्चित करता है।
जब मैंने अपने जीवन का मूल्यांकन किया तो मैंने महसूस किया कि मैं इस संसार की वस्तुओं पर बहुत ही केंद्रित हूं। मैं भूल गया कि मैं मसीह के साथ जी उठा हूं, महिमामय मसीह मुझमें अब भी जीवित हैं। मैं तो उन वस्तुओं की खोज में लगा हुआ था जिनका कुछ भी अनंत मूल्य नहीं है।
सत्य के प्रति प्रतिक्रिया करना।
जब हम परमेश्वर को अनुमति देते हैं कि सत्य के द्वारा हमसे बातचीत करे तो हमारा प्रत्युत्तर या तो तुरंत या फिर बाद में हो सकता है। जो कुछ भी परमेश्वर ने हमें दिखाया है अब तुरंत धन्यवाद करते हुए और उसके साथ सहमत होते हुए प्रत्युत्तर देना है। ध्यान रखें कि हमें सिर्फ सुनने वाले ही नहीं बनना है बल्कि चलने वाले भी बनना है क्योंकि सुनने वाले सिर्फ अपने आप को धोखा देते हैं। (याकूब 1:22)
परमेश्वर को उत्तर देना।
परमेश्वर के वचन के साथ सहमत होना।
अब जो भी सत्य को प्रभु ने आपके सामने लाया है और आपने उस पर मनन किया है अब आपको उस सत्य के साथ सहमत भी होना है। यदि आप उस सत्य के साथ संघर्ष कर रहे हैं तो हो सकता है कि यह आपके लिए कठिन हो कि आप इस सत्य को स्वीकार करें। इसमें आपको परमेश्वर के साथ ईमानदार होने की आवश्यकता है।
अपने हृदय से परमेश्वर को जवाब दें और उन कठिनाइयों को बांटें। परमेश्वर से मांगें कि वह आपके हृदय को नम्र बनाएं ताकि आप सच्चाई को स्वीकार कर सकें। अपने आपको समर्पित कर दें। परमेश्वर को अनुमति दें कि आपको दोष व अपराध से शुद्ध करें। (1यूहन्ना 1:9)
परमेश्वर का धन्यवाद करें।
दूसरा प्रत्युत्तर जो सच्चाई के लिए है वो है स्तुति और धन्यवाद देना। नहेम्याह में हम देखते हैं कि जब वे लोग बंधुवाई से वापस लौटे, तो एज्रा ने उनको वचन सुनाना शुरू कर दिया। जब उन्होंने वचन को सुना तो उन्होंने अंगीकार किया और आराधना करने लगे। (नहेम्याह 9:3)
परमेश्वर के निर्देश को ढूंढना।
अब उस सत्य में परमेश्वर के निर्देश को ढूंढें। परमेश्वर कैसे चाहता है कि आप उस सत्य के लिए प्रत्युत्तर दें? हो सकता है कि उस सत्य के द्वारा परमेश्वर आपके ज्ञान को बढ़ाना चाहता है, या दूसरों के लिए क्षमा करना, या फिर परमेश्वर का धन्यवाद और स्तुति करना। या हो सकता है इस सच्चाई के द्वारा परमेश्वर आपको उत्साहित करना चाहता हो, या पाप से बचने के लिए प्रेरणा दे रहा हो, या आज्ञापालन के लिए प्रोत्साहित कर रहा हो। या हो सकता है कि किसी उदाहरण का अनुसरण करने के लिए आपको प्रेरित करे, या अपनी गवाही बांटने के लिए।
परमेश्वर के वचन में जो आपने अध्ययन किया हो, जरूर उसमें कुछ न कुछ निर्देश तो होगा ही। इसलिए सावधानी से अपने लिए निर्देश ढूंढें और उसके प्रति आज्ञाकारी हो जाएं। देरी से आज्ञापालन भी अनाज्ञाकारिता ही कहलाती है।
कुलुस्सियों 3:1-4 जब मैं कुलुस्सियों का अध्ययन कर रहा था तो मैंने पाया कि मेरे विचारों तथा वस्तुओं को जिन्हें मैं ढूंढ रहा था वह मसीह के साथ मेरी बुलाहट में मेल नहीं खाता है। अब मैं इसे सही होता हुआ देखता हूं। पिता परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद देता हूं ये दिखाने के लिए कि मेरे विचार तेरे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। मसीह में मुझे जीवन देने के लिए और मसीह के साथ एक करने के लिए आपको कोटि कोटि धन्यवाद। कृप्या मुझे बताएं कि कैसे मुझे अपने विचारों को बदलना है और उन विचारों को कैसे मसीह का आदर करने के लिए मसीह पर केंद्रित बनाना है।
अपने लागूकरण की योजना बनाएं।
परमेश्वर के साथ सहमत होना और धन्यवाद करना ऐसी प्रतिक्रियाएं हैं जो परमेश्वर के वचन की सच्चाई के प्रति गंभीर प्रतिक्रियाएं हैं। नियमित तौर पर लागूकरण आपके जीवन में परिवर्तन को लाता है। इसमें आपको विश्वासयोग्य होने की जरूरत है।
जब भी आप अपने लिए लागूकरण की योजना बनाते हैं तो आपकी योजना को व्यक्तिगत, विशेष और वास्तविक होना चाहिए। इसमें मुझे, मैं, मेरा इत्यादि कथन शामिल होना चाहिए। जैसे कि हम कुलुस्सियों में से पढ़ रहे हैं कि हमारे मन को मसीह पर केंद्रित करना है। हम इसको व्यक्तिगत बनाने के लिए इस प्रकार कह सकते हैं: मुझे अपने मन को मसीह पर केंद्रित करना है न कि सांसारिक वस्तुओं पर।
आपके लागूकरण के लिए आपको अपनी योजना को SMART बनाना होगा। S – Specific, M – Measurable, A – Attainable, R – Realistic, T – Timebound. या आप PSR भी बना सकते हैं
- व्यक्तिगत (Personal)
- विशेष (Specific)
- वास्तविक (Realistic)
किसी ने इस प्रकार कहा है: यदि आप योजना बनाने में असफल हो रहे हैं तो आप असफल होने की योजना बना रहे हैं। इसलिए यदि आप परमेश्वर के जीवित वचन का महत्व समझते हैं तो आप नियमित तौर पर इसके अध्ययन के लिए समय भी निकलेंगे। अभी हम जिस उदाहरण लेखांश की बात कर रहे हैं वैसे ही आपको हर लेखांश जो आप पढ़ते हैं उस में से लागूकरण की योजना को बनाना है।
उदाहरण के लिए कुलुस्सियों में से लागूकरण:
मैं अपने मन को मसीह पर केंद्रित करने के लिए प्रतिदिन सुबह 6:00 बजे 20 मिनट बाइबल को पढ़ने और मनन करके के लिए निकलूंगा। इसके लिए मैं पहले कुलुस्सियों की पत्री से शुरू करूंगा और उसके बाद बाकी बाइबल को भी अलग अलग पुस्तकें पढ़ता रहूंगा ताकि मेरा ध्यान स्वर्गीय वस्तुओं पर लगा रहे जहां मसीह वर्तमान में उपस्थित हैं।
सत्य को जीना।
लागूकरण ही के द्वारा परमेश्वर के वचन की सच्चाई हमारे जीवन का मार्ग बन जाती है। परमेश्वर का वचन बहुत ही व्यक्तिगत (Personal) और व्यवहारिक (Practical) है। परमेश्वर उस सच्चाई के द्वारा हमारे जीवन में व्यवहारिक तौर पर परिवर्तन करना चाहता है। इसलिए जब हम उस सत्य को अपने जीवन में लागू करते हैं उसके बाद हमारे जीवन में उसके परिणाम भी दिखाई देंगे।
विश्वास में कदम बढ़ाएं।
विश्वास में कदम बढ़ाने के लिए आपको दो काम करने होंगे। आपको परमेश्वर पर निर्भर होना होगा और आज्ञापालन के कदम उठाने होंगे। (Trust and Obey)
परमेश्वर पर निर्भर रहना।
परमेश्वर का पवित्रआत्मा हममें परमेश्वर की इच्छा में आगे बढ़ने के लिए बल प्रदान करता है। पौलुस बताता है कि परमेश्वर ही है जो अपनी इच्छा के निमित तुम्हारे मन में इच्छा और काम दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है। (फिलिप्पियों 2:13) पौलुस यह भी बताता है कि परमेश्वर ने आपके जीवन में जो अच्छा काम शुरू किया है उसे पूरा भी करेगा। (फिलिप्पियों 1:6) इसलिए हमें परमेश्वर पर निर्भर होना है उस सत्य के द्वारा परिवर्तित होने के लिए जो लेखांश में परमेश्वर ने हमारे सामने लाया है। परमेश्वर विश्वासयोग्य है जो कुछ करने के लिए परमेश्वर हमें बुलाता है वह उसे पूरा भी करेगा। (1थिस्सलुनीकियों 5:24)
आज्ञापालन के लिए कदम उठाना।
अब जो सत्य आपके सामने है उसको लागू करने में आपको कदम उठाना है। आप उसके लिए कदम उठाने के लिए उतरदायी हैं। अपने आप से पूछें कि क्या मैं आज्ञाकारिता में विश्वास योग्यता के कदम उठा रहा हूं?
अपनी प्रगति की जांच करना।
प्रोत्साहन तथा जवाबदेही के द्वारा।
जैसे ही हम आज्ञाकारिता में चलकर जीने लगते हैं तो हमें हमारी प्रगति की जांच भी करना चाहिए। इसके लिए आप अपने किसी करीबी मसीही के साथ जवाबदेह हो सकते हैं। यदि आप सच में अपने जीवन और योजनाओं के प्रति गंभीर हैं तो आपके पास जवाबदेही के लिए कोई न कोई होना चाहिए जो आपको समय समय पर उत्साहित कर सके और परमेश्वर के वचन के अनुसार मार्गदर्शन कर सके।
व्यक्तिगत मूल्यांकन के द्वारा।
आपको स्वयं अपने साथ भी विश्वासयोग्य होना होगा, तभी आप सच्चाई से अपनी प्रगति का मूल्यांकन कर पाएंगे। आप अपने आप से पूछें कि क्या मैं अपनी योजनाओं में प्रगति कर रहा हूं। वो क्या है जो मुझे आगे बढ़ने से रोक रहे हैं?
सारांश
मसीह में प्रियों, मैं आशा करता हूं कि बाइबल अध्ययन की यह विवेचनात्मक विधि आपकी बाइबल अध्ययन में काफी उपयोगी साबित होगी। मेरा आपसे निवेदन है कि आप परिश्रम करते रहें। और अच्छी अध्ययन आदतों का अभ्यास करते रहें। जब आप किसी लेखांश का अवलोकन करते हैं, उसके बाद व्याख्या करते हैं और अंत में लागूकरण ढूंढते हैं तो उसके बाद उस लेखांश से आप मुख्य विचार को निकालें जो कि आपका विषय बन जाता है। उसके बाद उसके लिए प्रस्तावना लिखें, फिर संदेश को समझाने के लिए मुख्य भाग या बिंदु और अंत में उसका निष्कर्ष लिखें। इस प्रकार आप के पास अब नए-नए संदेश होंगे।
बाइबल आधारित संदेश तैयार करने के लिए मूल कदम।
- प्रार्थनापूर्वक एक लेखांश चुने।
- लेखांश पढ़ें और अध्ययन करें।
- संदेश की एक रूपरेखा तैयार करें।
- पूरे संदेश को लिखें।
- प्रस्तावना
- संदेश का मुख्य भाग
- निष्कर्ष।
इस प्रकार से अध्ययन (Inductive Bible Study Method.) करने से आप के जीवन में भी काफी बदलाव आएगा और मसीह के साथ निकटता महसूस करेंगे और आप अपने कार्यक्षेत्र में दूसरों के लिए भी आशीष का कारण होंगे। प्रभु आपको आशीष दे।
शालोम
Perfect… Sir..God bless you
God bless you