कानों की खुजली के बारे में बाइबल क्या कहती है? (What Does The Bible Say About Itching Ears?) Itching Ears (कानों की खुजली) एक शब्द है जिसका उपयोग बाइबल में उन लोगों का वर्णन करने के लिए किया गया है, जो नये नये संदेश की तलाश करते रहते हैं।
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खुजली वाले कानों (Itching Ears) के लोग आज भी हमारे आसपास हैं वे उन संदेशों को सुनना पसंद करते हैं जो उन्हें बदलने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं क्योंकि वे पश्चाताप नहीं करना चाहते हैं। ऐसे लोग हैं जो एक दिखावटी जीवन जीते हैं कि वे परमेश्वर के वचन को सुन रहे हैं।
यूनानी शब्द का अनुवाद “खुजली” का शाब्दिक अर्थ है खुजली, रगड़, खरोंच या गुदगुदी। यह ऐसे उपदेशों को सुनाना या सुनना है जिसकी लोग इच्छा करते हैं जो लोगों को अच्छा लगता है। कानों की खुजली लोगों की इच्छाओं और महसूस की गई जरूरतों को संदर्भित करता है। ये ऐसी इच्छाएं हैं जो एक व्यक्ति को वास्तविक सत्य के बजाय, जो कुछ भी विश्वास करवाना चाहते हैं उस पर विश्वास करने के लिए प्रेरित करती हैं।
जब लोगों के पास ये खुजली वाले कान (Itching Ears) होते हैं तो वे खुद ही निर्णय लेते हैं कि क्या सही है या क्या गलत है। वे अपनी धारणाओं का समर्थन करने के लिए दूसरों की भी तलाश करते हैं। खुजली वाले कान का संबंध उस बात से है जो अच्छी और आरामदायक लगती है, सच्चाई के साथ नहीं, क्योंकि सच्चाई अक्सर असहज होती है। इसलिए सच्चाई को स्वीकार करना सभों के लिए आसान नहीं है।
इस बीमारी को कैसे पहचाने?
असल में ये सिर्फ उन्हीं बातों को सुनते हैं जो उन्हें अच्छी लगती है और जहां परमेश्वर का वचन बदलाव के लिए या परमेश्वर के अगुवे बदलाव के लिए उनसे आहवाहन करते हैं वहां पर वे अपने कानों की खुजली के कारण किसी और उपदेशक की ओर जाना पसंद करते है।
क्योंकि इन्होंने सच्चाई के लिए अपने कानों को बंद कर दिया है वे अपने हृदय को बदलना नहीं चाहते हैं, वे अपनी गलतियों को स्वीकार करना नहीं चाहते हैं। ये ऐसे लोग हैं जिन्हें अपनी गलतियां दिखती ही नहीं, अगर दिखती भी है तो वे स्वीकार नहीं करना चाहेंगे कि उनसे गलती भी हुई है।
खुजली वाले कान (Itching Ears) केवल ऐसे शिक्षक चाहते हैं जो उन्हें आश्वासन दें कि सब ठीक है और शिक्षक ऐसे शिक्षक जो कहते हैं कि शांति शांति। जबकि कोई शांति ना हो, जिस प्रकार यिर्मयाह 6:13-14 में लिखा हुआ है।
यह ऐसे शिक्षकों के बारे में भी है जो कि लोगों को खरी शिक्षा से दूर रखने का काम करते हैं। क्योंकि ऐसे सेवक लोग लालची हैं और छल से काम करते हैं जिस प्रकार यिर्मयाह नबी की पुस्तक में हमने पढ़ा। इसको पढ़ने से ऐसा लगता है कि परमेश्वर ऐसे सेवकों से काफी दुखित हैं। क्योंकि ऐसे लोग परमेश्वर की प्रजा को भटकाने का प्रयास करते हैं।
पवित्र शास्त्र बाइबल में परमेश्वर ने हमें पहले से ही अवगत करा दिया था कि ऐसा समय आएगा जब लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली (Itching Ears) के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिए बहुत से उपदेशक बटोर लेंगे और अपने कान सत्य से फिर कर कथा कहानियों पर लगाएंगे। (2 तीमुथियुस 4:3-4)
ध्यान दीजिए यहां ऐसे लोगों का जिक्र है जो अपनी अभिलाषाओं के अनुसार जीवन जीते हैं जिन्हें सच्चाई से कोई मतलब नहीं है, उन्हें उपदेशकों को बदलना पसंद है, कई उपदेशकों से सुनना पसंद है और उन्हें कथा कहानियों पर अपने कानों को लगाना पसंद है, या यूं कहें कि ऐसे लोग मनगढ़ंत बातों पर ज्यादा विश्वास करते हैं, क्योंकि वे सत्य से फिर गए हैं।
परमेश्वर के वचन पवित्र शास्त्र बाइबल में गलत शिक्षा देने के खिलाफ भरपूर चेतावनी दी गई है। बार-बार परमेश्वर का वचन हमें पहले ही चेतावनी देता है कि ऐसा समय आएगा कि लोग झूठी शिक्षाओं पर आसानी से विश्वास कर लेंगे और झूठे शिक्षकों को अनुसरण करेंगे। आपको मालूम ही है कि खुजली अपने आप में एक बीमारी है, इसका समय रहते उपचार जरूरी है, क्योंकि ये संक्रमण का शुरुआत ही है।
हर चिकित्सक आपको बताएगा कि आपको कान के अंदर खरोच नहीं करनी है वे जानते हैं यह खतरनाक है और हमें भी मालूम है कि यह खतरनाक है। फिर भी हम खुजली होने पर अपने कानों को खुजलाते हैं।
यहां प्रेरित पौलुस झूठे सिद्धांतों की तुलना कानों की खुजली से करते हैं। तभी प्रेरित पौलुस हमें बताते हैं कि हमें झूठे सिद्धांतों का अनुसरण नहीं करना है, ये बहुत खतरनाक है।
झूठे सिद्धांत भी खुजली की तरह शुरू शुरू में अच्छे लगते हैं पर यदि हम लगातार खुजलाते रहते हैं तो ये खुजली हमारा बहुत नुकसान कर सकती है, और हमे संक्रमित कर सकती है। और जितना ज्यादा हम खुजली पर ध्यान देते हैं उतना ही यह हमें नियंत्रित करता है।
इसीलिए किसी ने कहा है कि जब कोई व्यक्ति आपको भटकाने वाले सिद्धांतों से आपके कानों में खुजली करने की कोशिश करे, तो अपने कानों को मत खुजलाओ।
ये इस बात पर विश्वास करने वाले लोग हैं जो कहते हैं कि परमेश्वर के बच्चे दुनियां में स्वस्थ, धनवान और संतुष्ट रहें। जब लोग अपने पापों से पश्चाताप करते हैं तो ये लोग उस वक्त भी पश्चाताप और क्षमा की आवश्यकता की अवहेलना करते हैं। यहां परमेश्वर के वचन के अलावा लोगों की पसंद पर जोर दिया जाता है।
कानों की खुजली वाले संदेश आज कलीसियाएं भर सकते हैं, बहुत सी किताबें बेच सकते हैं और बहुत सारा समय केबल टीवी पर खरीद सकते हैं, पर जीवन परिवर्तन नहीं कर सकते हैं।
प्रभु यीशु के शुरुआती अनुयायियों ने भी प्रभु के कुछ शब्दों के बारे में शिकायत की। उनके कई शिष्यों ने कहा कि “यह कठिन शिक्षा है कौन इसे स्वीकार कर सकता है? और उस समय उनके कई शिष्य पीछे हट गए और उनके पीछे नहीं चले।” कठिन सत्य से दूर चलना बहुत आसान होता है। (यूहन्ना 6:60-66) किसी ने कहा है कि सत्य हमेशा कड़वा होता है।
उस वक्त प्रभु यीशु ने उन 12 शिष्यों से भी कहा कि क्या तुम भी चले जाना चाहते हो? तब शमौन पतरस ने उस को उत्तर दिया, “हे प्रभु हम किसके पास जाएं अनंत जीवन की बातें तो तेरे ही पास है” हमने विश्वास किया और जान गए हैं कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।”
कानों की खुजली (Itching Ears) वाले लोग उपदेशकों को बदलने में माहिर होते हैं, मैने अपने जीवन के अनुभव में इस बात को महसूस किया है कि आज लोग डांट को सुनना भी पसंद नहीं करते हैं बस वही सुनना पसंद करते हैं जो उनकी कानों की खुजली को मिटाए। (शायद लोग उस बात को भूल गए हैं कि खुली हुई डांट गुप्त प्रेम से उत्तम है) अर्थात जो उनकी चापलूसी करें या उनकी प्रशंसा की ही बातें करते रहें। क्योंकि ऐसे लोगों को सच्चाई से कोई मतलब नहीं है बस उनकी कानों की खुजली मिटनी चाहिए। इसके लिए वे लगातार उपदेशकों को बदलते रहते हैं।
कानों की खुजली वाले लोग खरी शिक्षा (Sound Doctrine) सुनना ही नहीं चाहते हैं, इस कारण वे अपने जीवन में भटकते रहते हैं। इसके लिए नीतिवचन में साफ कहा गया है कि “हे मेरे पुत्र, यदि तू भटकना चाहता है तो शिक्षा को सुनना छोड़ दे।” (नीतिवचन 19:27)
इस बीमारी से कैसे निपटें?
परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन जीयें न कि लोगों को। खरी शिक्षा (Sound Doctrine) का प्रचार करना आसान काम नहीं है, इसमें काफी बार आपका मजाक उड़ाया जा सकता है, आप का तिरस्कार किया जा सकता है, बदनाम किया जा सकता है पर यदि आप प्रभु का भय मानते हैं तो आप प्रभु को प्रसन्न करने वाला जीवन जीएंगे न कि लोगों को प्रसन्न करने का जीवन।
प्रेरित पौलुस ने भी एक उत्तम जीवन जीया जिसमें उन्होंने प्रभु को अपने जीवन के द्वारा अपनी शिक्षाओं के द्वारा प्रसन्न किया। (गलातियों 1:10) बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि आज की कलीसिया में कुछ Prosperity Preacher सिर्फ लोगों को खुश करने में लगे हुए हैं न कि प्रभु को।
याद रखिए कलीसिया ही समाज को बदल सकती है क्योंकि परमेश्वर ने उसको यह उत्तरदायित्व दिया है। एक प्रसिद्ध लेखक ने अपनी पुस्तक के शीर्षक में कहा, “जैसी कलीसिया की दिशा वैसे संसार की दिशा।” आरंभिक कलीसिया में लोग परमेश्वर का भय मानते थे और परमेश्वर उनके द्वारा चिन्ह और चमत्कार भी करते थे।
सभी लोग उनसे प्रसन्न होते थे, प्रतिदिन उनकी गिनती बढ़ती थी, क्योंकि वे संपूर्ण हृदय से परमेश्वर की सेवा कर रहे थे। इसका समाज पर भी असर पड़ा। वैसे ही यदि आज हम या कलीसिया परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन जीते हैं तो हमें अपने निन्दकों की परवाह नहीं करनी चाहिए। हमेशा सत्य का प्रचार करना चाहिए।
क्योंकि परमेश्वर का वचन 2 तिमुथियुस 4:1-2 में हमें हर समय तैयार रहने के लिए कहा गया है, डांटने और समझाने के लिए भी।
याद रखिए यह एक उपाय है क्योंकि उसके बाद पौलुस कहता है कि ऐसा समय आएगा जब लोग खरा उपदेश (Sound Doctrine) ना सह सकेंगे, क्योंकि उनको कानों की खुजली हो गई है।
जिसकी वजह से वे अपने लिए बहुत से उपदेशकों को बटोरेंगे और सच्चाई से अपने कानों को दूर कर अपनी अभिलाषाओं के अनुसार कथा कहानियों पर कान लगाएंगे। पर हमें सावधान रहने के लिए, दुःख उठाने के लिए, सुसमाचार प्रचार का काम करने के लिए और अपनी सेवा को पूरी करने के लिए उत्साहित किया गया है। (2 तिमुथियुस 4:1-5)
यह हमारे लिए प्रोत्साहन है ताकि हम इन परिस्थितियों से निपट सकें। याद रखिए उपदेश की सामग्री को परमेश्वर का लिखित वचन होना चाहिए इसे सुविधाजनक और असुविधाजनक होने पर भी प्रचार किया जाना चाहिए। बहुत बार हम सोचते हैं कि अगर हम सत्य का प्रचार करेंगे तो लोगों की संवेदनाओं को ठेस लग सकती है, जो लोग इस प्रकार का सोच रहे हैं, उन्होंने बाइबल के परमेश्वर को कभी जाना ही नहीं है। क्योंकि जो सत्य पर चलता है वह ज्योति के निकट चलता है।
याद रखिए परमेश्वर ने आपको जगत की ज्योति और पृथ्वी का नमक कहा है। अगर परमेश्वर ने आपको ज्योति कहा है तो आपका कार्य है अंधकार को दूर करना। और यदि नमक तो अपने जीवन में पवित्रता और शुद्धता बनाए रखना। हमें आज प्रेरितों के उदाहरण को पालन करना चाहिए। जिन्होंने लज्जा के गुप्त कामों को छोड़ दिया था, जो न चतुराई से चलते थे और न परमेश्वर के वचन में मिलावट करते थे। परन्तु सत्य को प्रकट करते थे। (2 कुरिन्थियों 4:2)
उन प्रेरितों के जैसे हम भी कह सकें कि “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना है हमारा कर्तव्य है।” (प्रेरितों 5:29) चाहे सत्य का प्रचार करने के लिए अपमानित होना पड़े। हमें इस बात को भी याद रखना है कि अगर हम सच में प्रभु यीशु के शिष्य हैं तो उन्होंने अपने शिष्यों के लिए जो बुलाहट दी थी वह यही थी कि यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे तो वह अपने आप का इनकार करें और अपना क्रूस उठाए और मेरे पीछे हो ले। (मती 16:24)
आज की कलीसिया को अपने शिक्षाओं को फिर से जांच करने की जरूरत है और अपने आप से कुछ सवालों को पूछने की जरूरत है:-
- क्या हम बाइबल के ठोस आधारों पर खड़े हैं या हमने भी दुनियां को अपनी सोच को प्रभावित करने की अनुमति दी है?
- क्या हमने शैतान की योजनाओं से खुद को बचाया है?
- क्या हमें मालूम है कि हमें क्यों बनाया गया है?
- क्या हम खुद को अपने प्रभु यीशु मसीह के आने तक निर्दोष रख रहे हैं?
- क्या हमें मालूम है कि हमारे मन के नए होने से हमारा चाल चलन भी बदलना चाहिए?
- क्या हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि परमेश्वर की इच्छा क्या है?
सच तो यह है हमें प्रतिदिन प्रभु यीशु मसीह के स्वभाव में बढ़ते जाना है। और ऐसा जीवन जीना है जो परमेश्वर को प्रसन्न करें।
शालोम
Really nice &Truthfully dear bro….
Nice work ..this is true brother
Sahi Baat Hai Log Katha kahaniyon per kan Lagate Hai Parmeshwar Ki Shiksha per Nahin
Very nice