मंच पर अभिषेक और सभा में प्रभाव। आत्म जागृति में देरी क्यों? By Leonard Ravenhill. यह सन्देश आत्म जागृति में देरी क्यों? नामक पुस्तक से लिया गया है। यदि आप सच में परमेश्वर की सेवा के प्रति गंभीर हैं और चाहते हैं कि आप अपने पास परमेश्वर के द्वारा सौंपे गए कार्यभार को पूरा कर सकें तो आप अपने आपको उत्साहित करने के लिए इस लेख को पढ़ सकते हैं। मेरी प्रार्थना है कि प्रभु आपको स्वर्गीय दृष्टि, आंतरिक दृष्टि और बाह्य दृष्टि दे, ताकि आप समझ पाएं कि आज के समय की जरुरत क्या है।
केवल भावना और सनसनी का धर्म सभी शापों में सबसे भयानक है जो किसी भी व्यक्ति पर आ सकता है। वास्तविकता का अभाव काफी दुखद है, लेकिन ढोंग का बढ़ना एक घातक पाप है। -S. Chadwick
जब कोई मनुष्य, कई वर्षों की मसीही रूढ़िवादिता में चलने के बाद अचानक आत्मिक बातों के लिए जागृत हो जाए, प्रभु के युद्ध के लिए तैयार हो जाए और साथ ही साथ उसे खोये हुए व्यक्तियों को बचाने के लिए अत्याधिक उत्साह हो जाए तो इसका एक निश्चित करण होगा। (परन्तु हमारा आजकल का आत्मिक स्तर इतना निम्न हो गया है कि नए नियम के साधारण अनुभव भी हमें असाधारण मालूम पड़ते हैं।) इस उत्साही व्यक्ति का, जिसका हमने वर्णन किया रहस्य यह है कि उसने याकूब की तरह परमेश्वर से मल्लयुद्ध किया है और “पवित्र आत्मा के द्वारा मज़बूत किया गया है।”
सफल मसीही जीवन के लिए दो महत्वपूर्ण बातें अनिवार्य हैं और वे हैं दर्शन और बोझ। इन लोगों को आलोचनाओं के पर्वतों से और शैतानी विरोधों से लड़ते हुए भी मसीह की सलीब को, क्रूरता के निवास स्थान के बीच रखना पड़ता है। ऐसा क्यों? क्योंकि उन्होंने एक दर्शन और बोझ प्राप्त किया है।
अब कुछ लोग हम लोगों को यह चेतावनी दे सकते हैं कि हम लोग इतनी स्वर्गीय चिंता से भरे हुए हैं कि अब पृथ्वी के किसी योग्य नहीं रहे। भाइयों, विश्वासियों की यह पीढ़ी इस मनोग्रंथि से पीड़ित नहीं है, किन्तु यह एक कटु व अंतरात्मा को हिला देने वाला सत्य है कि हम इतने सांसारिक हो गए हैं कि अब स्वर्ग के काम के योग्य नहीं ही रहे।
मित्रों, यदि आप आत्माओं को जीतने में उतने ही निपुण होते जितने कि अपने व्यवसाय को विकसित करने में हैं, तो आप अवश्य ही शैतान के लिए संकट खड़ा कर देते होते। किंतु इसके विपरित, यदि आप अपने व्यवसाय में उतने ही कमजोर होते जितने आत्माओं को जीतने में, तो आप खाने के लिए भीख मांग रहे होते।
जार्ज डीकन ने अनेक वर्षों पूर्व एक उत्तम आत्मिक तर्क मेरे मन में गढ़ दिया था, वह यह था – “यदि दर्शन बिना कार्य है तो वह काल्पनिक है, यदि कार्य बिना दर्शन के है तो वह मात्र नीरस श्रम है पर यदि दर्शन कार्य के साथ है तो इसका करने वाला सच्चा मसीही सेवक है।” उज्जियाह की मृत्यु पश्चात यशायाह को दर्शन प्राप्त हुआ। संभवतः आपके रास्ते में कोई व्यक्ति है जो आपको प्रभु का पूर्ण दर्शन प्राप्त करने में रुकावट डाल रहा हो। आत्मिक उन्नति की एक कीमत अदा करनी पड़ती है और कभी – कभी तो यह यंत्रणा देने वाली भी हो सकती है। क्या आप ऐसे कीमती दर्शन को पाने के लिए तैयार हैं – जिसमें शायद अपने दोस्त को खोना पड़े या अपने व्यवसाय को? आत्म क्रांति की कीमत में कोई छूट नहीं हो सकती। यदि आप मात्र उद्धार, पवित्रता व संतुष्टि प्राप्त करना चाहते हैं, तो परमेश्वर के युद्ध में आपका कोई स्थान नहीं है।
इस विचार से छुटकारा पाने में ही भलाई है कि विश्वास केवल कुछ चुनिंदा आत्माओं के लिए आध्यात्मिक वीरता का विषय है। विश्वास के नायक होते हैं, लेकिन विश्वास केवल नायकों के लिए नहीं होता। यह आध्यात्मिक मर्दानगी की बात है। यह परिपक्वता की बात है। – P. T. Forsyth
यशायाह का दर्शन तीन आयाम में था। यशायाह के छठवें अध्याय की एक से नौ आयतें ध्यान से पढ़ें। (यशायाह 6:1-9) पांचवी आयत में “हाय” शब्द पाप अंगीकार को दर्शाता है, सातवी आयत में “देख” शब्द शुद्ध करने को दर्शाता है, व नौवीं आयत में “जा” शब्द कार्य सौंपने को दर्शाता है।
यह एक ऊपर का स्वर्गीय दर्शन था – इसमें उसने प्रभु को देखा; यह एक आंतरिक दर्शन था – इसमें उसने अन्दर देखा, यह एक बाहरी दर्शन था, इसमें उसने संसार को देखा।
यह एक ऊंचाई का दर्शन था क्योंकि उसने परमेश्वर को ऊंचा उठा हुआ देखा। यह एक गहराई का दर्शन था क्योंकि उसने अपने हृदय के गुप्त स्थानों को देखा तथा यह एक चौड़ाई का दर्शन था क्योंकि उसने संसार को देखा।
यह पवित्रता का दर्शन था। मेरे प्रिय मित्रों, विश्वासियों की इस पीढ़ी को परमेश्वर की पूर्ण पवित्रता का दर्शन कितना आवश्यक है! नारकीयता का दर्शन – “मैं अभागा हूं, अशुद्ध हूं।” निराशावादिता का दर्शन इन शब्दों में निहित है, “हमारी ओर से कौन जाएगा?”
इस समय में – जब आम कलीसिया के लोग प्रार्थना से अधिक, पदोन्नति के विषय में जानते हैं, तथा वे स्पर्धा को बढ़ाने के कारण, समर्पण को भूल गए हैं। साथ ही धार्मिकता को बढ़ाने के स्थान पर अपनी ही वृद्धि देखते हैं, उन्हें इस त्रिआयामी दर्शन की सख्त आवश्यकता है।
“जहां दर्शन नहीं, वहां आत्माएं नाश होती हैं। जहां लोगों के लिए करुणा नहीं, वहां कलीसिया भी नष्ट हो जाती है फिर चाहे उस कलीसिया में कितने ही लोग क्यों न हों।”
जब परमेश्वर अपने लोगों के लिए बड़ी दया करना चाहता है, तो सबसे पहले वह उन्हें प्रार्थना करने के लिए तैयार करता है। -Matthew Henry
एक विश्व प्रसिद्ध प्रचारक जो परमेश्वर द्वारा पिछले कई वर्षों से सही आत्मिक जागृति हेतु कार्य में लाया जा रहा है, ने लेखक को बताया कि उसे भी इसी प्रकार एक त्रिआयामी दर्शन का आभास हुआ था। जब वह यह बता रहा था, मुझे उसके चेहरे पर छाया हुआ अत्यंत गंभीर, आत्मिक भय अभी भी याद है। क्योंकि उस समय वह जान नहीं पाया था कि जो कुछ वह देख रहा है, वह एक स्वप्न है या परमेश्वर के द्वारा दी गई ज्ञानदृष्टि तथा वह यह भी जान नहीं पाया था, कि वह उस समय देह में था या आत्मिक तौर से किसी दूसरी जगह ले जाया गया था। लेकिन उसने यह स्पष्ट देखा कि जैसे एक विशाल भीड़ है जिसमें अनगिनत मनुष्य हैं तथा वह भीड़ एक अथाह कुंड में आग से घिरी हुई है और इस ब्रम्हांड के पागलखाने में जिसे नरक कहते हैं उसमें कैद है। इस दर्शन के बाद वह प्रचारक वैसा नहीं रहा, जैसा वह पहले था और वह वैसा रह भी कैसे सकता था?
“जहां दर्शन नहीं, वहां आत्माएं नाश होती हैं। जहां लोगों के लिए करुणा नहीं, वहां कलीसिया भी नष्ट हो जाती है फिर चाहे उस कलीसिया में कितने ही लोग क्यों न हों।” – लियोनार्ड रेवनहिल
क्या परमेश्वर ऐसे हृदय विदारक दृश्य हमको दिखा सकता है? क्या हम अपने गुप्त प्रार्थना कक्ष में या कष्टमय जीवन में अपने आप को इस हद तक तैयार कर चुके हैं कि हमारी आत्मा ऐसे भयंकर दृश्यों को सह सके? धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर इस प्रकार के दर्शन देने योग्य समझे।
कोई भी मनुष्य अपने दर्शन से ऊपर नहीं उठता। कई अत्यंत बुद्धिमान धर्मज्ञानी भी आज तक उस अंधविश्वास एवं अंधकार की लौह दीवार को नहीं तोड़ पाए जिसके पीछे युगों से कई लाख लोग अब तक नष्ट हो चुके हैं। केवल ऐसे व्यक्ति जिनको परमेश्वर का दर्शन प्राप्त हुआ, वही लोग इस दीवार को तोड़ सके हैं फिर चाहे उनका बौद्धिक स्तर अत्यधिक न रहा हो। इसे पढ़ें और विलाप करें:
जापान : जापान सरकार के अनुसार वहां की जनसंख्या 11 लाख प्रति वर्ष के हिसाब से बढ़ रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि जापान में गैर मसीही लोगों की संख्या 5 सालों में लगभग 50 लाख बढ़ी है इसे अपनी प्रार्थना में रखें।
कोरिया : यहां पर तकरीबन 90 लाख शरणार्थी आवास, भोजनहीन जीवन जी रहे हैं।
भारत : इस देश में कई करोड़ लोग अंधकार एवं मृत्यु की छाया में जी रहे हैं।
मध्य पूर्व : यहां पर कई लाख लोग अरब शरणार्थी हैं।
यूरोप : यहां पर 11 लाख लोग विस्थापित हैं जिनका कोई ठिकाना नहीं। कितनी दुखद बात है।
चीन : लगभग 3 लाख लोग चीन की साम्यवादी सरकार से भागकर हांगकांग में झुग्गी झोपड़ियों में रह रहे हैं।
आपके और मेरे बोझ को और बढ़ाने के लिए इन आंकड़ों को पढ़ें जो पुरानी जनगणना के अनुसार हैं। डेढ़ करोड़ यहूदी, 32 करोड़ मुसलमान, 17 करोड़ बौद्ध, 35 करोड़ कम्युनिस्ट और ताओस्त, करोड़ों हिंदू, 9 करोड़ सिंटोईस्ट और अन्य भी कई करोड़ हैं जिनके लिए मसीह यीशु ने अपना प्राण दिया और इन लोगों के पास आज भी सुसमाचार नहीं पहुंच पाया है। यहां तक कि अमेरिका जैसा देश भी, जो कि कलीसिया के विषय में काफी हद तक सचेत है वहां भी तकरीबन 2 करोड़ 70 लाख नौजवान, जिनकी उम्र 21 वर्ष से कम है मसीही शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं और दस हजार ऐसे गांव हैं जहां कलीसिया भवन का निर्माण नहीं हो सका है। लगभग 10 लाख लोग इस पृथ्वी पर प्रति सप्ताह बिना प्रभु को जाने, मृत्यु को प्राप्त होते हैं। क्या यह आपके लिए कुछ भी नहीं है?
इस पाप के दलदल की जो हालत है वह मांग करती है कि “मंच पर अभिषेक हो और सभा में असर!” कृत्रिम रीति रिवाज के धर्म को खत्म होना है। टी माडल फोर्ड कार के साथ आमीन बोलना भी अब पुराना होकर जा चुका है। परमेश्वर की महिमा के लिए आयोजित विशेष सभा शिविर लगभग लुप्त हो चुके हैं व सड़क पर प्रचार करने वालों का उत्साह समाप्त हो चुका है।
बिना उत्साह के सत्य, भावना के बिना नैतिकता, आत्मा के बिना कर्मकांड, ये ऐसी चीजें हैं जिनकी मसीह ने बहुत ही निंदनीय निंदा की है। आग के निराधार, वे एक ईश्वरविहीन दर्शन, एक नैतिक व्यवस्था और एक अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं हैं। -S. Chadwick
कौन जानता है कि परमेश्वर रूस की तुलना में अमेरिका व इंग्लैंड से ज्यादा क्रुद्ध हो? जरा विचार कीजिए, रूस में ऐसे कई लाख लोग हैं, जिन्होंने न ही सुसमाचार सुना है, न ही बाइबल देखी है और न ही आकाशवाणी से प्रसारित परमेश्वर का शुभ संदेश सुना है। यदि ये सुने होते तो वे भी कलीसिया जा सकते थे।
हमारी बार-बार की गई प्रार्थना कि पापी को नर्क का दर्शन प्राप्त हो, यह शायद गलत होगा। उसके विपरीत उसे कलवरी के क्रूस के दर्शन प्राप्त हो तथा अपने तड़पते हुए मुक्तिदाता को देख सके जो उससे विनती कर रहा हो, कि पश्चाताप करो। क्योंकि कलवरी के बाद मृत्यु क्यों? सालवेशन आर्मी के विलियम बूथ ने कहा, यदि वे ऐसा कर पाते तो अपने सैनिकों को चौबीस घंटे नर्क के ऊपर लटका कर उनका प्रशिक्षण पूर्ण कराते ताकि वह लोग उसके अनंत काल के क्लेश को देख सकें। मूल सिद्धांतवादी लोगों को इस प्रकार के भयावह दर्शन देखने की फिर से आवश्यकता है। आवेगी और शब्दाडंबर वाले प्रचारक को इसकी अति आवश्यकता है!
चार्ली पीस नामक एक अपराधी था। उसे न ही परमेश्वर और न ही मनुष्य का कोई कानून अपने वश में कर सका। अंत में वह कानून की पकड़ में आ गया और उसे सज़ा-ए-मौत दी गई। उस दिन जब इंग्लैंड में स्थित आरमले की जेल में उसे मृत्यु दण्ड दिया जाने वाला था, तब मृत्यु के पूर्व उसे कुछ दूर तक चलने के लिए बोला गया। उसके आगे आगे जेल का उपदेशक अपनी दिनचर्या के अनुसार कुछ कुछ नींद के झोंके में बाइबल की आयतें पढ़ रहा था। अपराधी ने उपदेशक को छुआ और पूछा कि वे क्या पढ़ रहे थे। उन्होंने बताया कि वे धार्मिक सांत्वना के विषय में पढ़ रहे थे।
चार्ली पीस यह सुनकर स्तब्ध रह गया कि वह नर्क के विषय में एक व्यवसायिक रीति से वचन को पढ़ रहा था। क्या कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य को फांसी के तख्ते की तरफ ले जाते हुए, उस अथाह कुंड के विषय में जिसका कोई तल ना हो, और उसके द्वारा ले जाया गया मनुष्य फांसी के बाद उस कुंड में गिरने वाला हो, बिना कोई दुःख प्रकट किए, भावहीन होकर परमेश्वर के वचन को पढ़ सकता है? क्या यह उपदेशक उस अनंत अग्नि में विश्वास करता है जो पाप से उत्पीड़ित लोगों को जलाती तो रहती है लेकिन कभी भस्म नहीं करती है। और ऐसी अग्नि के विषय में बताते हुए उसकी रूह भी नहीं कांपती? क्या उस मनुष्य में कोई मानवता है जो बिना आंसू बहाए यह कहता है कि तुम अनंत काल के लिए मरने जा रहे हो। चार्ली पीस के लिए यह सब असहनीय था इसलिए उसने यह उपदेश दिया। आप उसके द्वारा दिए गए उस उपदेश को सुनिए जो उसने मृत्यु की पूर्व संध्या के समय दिया था।
उसने उपदेशक को संबोधित करते हुए कहा, “महाशय, यदि मैं इस बात पर विश्वास कर लेता, जिस बात पर आप कहते हैं और परमेश्वर की कलीसिया कहती है कि हम विश्वास करते हैं, तो यदि इंग्लैंड के एक छोर से दूसरे छोर तक टूटे हुए कांच के टुकड़ों से भी भरा होता तो भी अगर जरूरत होती तो मैं उस पर हाथों और घुटनों के बल चलता, केवल इसलिए कि मैं एक आत्मा को उस अनंत नर्क से बचा लूं।”
मेरे पाठको, कलीसिया ने पवित्रात्मा की अग्नि को दिया है। इसलिए मनुष्य नर्क की अग्नि में जा रहे हैं। हमें पवित्र परमेश्वर के दर्शन की आवश्यकता है। परमेश्वर अवश्य ही पवित्र है। करूबीम व सराफीम जो कि परमेश्वर के स्वर्गदूत है, वे परमेश्वर को सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी व सर्वशक्तिमान नहीं कह रहे थे बल्कि उसे “पवित्र! पवित्र! पवित्र!” कह रहे थे। यह आवश्यक है कि यह गंभीर इब्रानी मूल विचार फिर से हमारी आत्मा को बेध कर पर करे। चाहे मैं अधोलोक में अपना बिस्तर बिछाऊं या सुबह पंख लगाकर कहीं दूर उड़ जाऊं – फिर भी परमेश्वर वहां है। परमेश्वर हमें हर वक्त घेरे रहता है और वही परमेश्वर हमारा अंत तक इंतजार करता है। अच्छा है कि हम यहां पर उसके साथ शांति के साथ रहें और अभी से उसकी इच्छा में बने रहें।
अपने दैनिक कार्य पर जाने से पहले यदि हम इस अति पवित्र परमेश्वर के सामने कांपते हुए रुके रहें, तो हमारी आत्मा के लिए यह काफी उत्साहवर्धक रहेगा। वह जो परमेश्वर से डरता है व मनुष्य से नहीं डरता। वह जो परमेश्वर के सामने झुकता है, वह किसी भी स्थिति में खड़ा रहता है। उस पवित्र परमेश्वर की एक झलक लेने के बाद हम अपने आपको उसके सर्वव्यापीपन के कारण उसके अधीन कर देते हैं, उसके सर्वशक्तिमान होने के कारण कांप जाते हैं तथा उसके सर्वज्ञाता होने के कारण निरुत्तर हो जाते हैं और इस प्रकार उसकी पवित्रता से हम अत्यंत गंभीर हो जाते हैं। उसकी पवित्रता हमारी पवित्रता हो जाती है। पवित्रता की शिक्षा के साथ-साथ अपवित्र जीवन इस समय के विनाश का कारण है। राबर्ट मुरे मैकेशेन ने कहा है, “एक पवित्र सेवक, परमेश्वर के हाथ में एक विस्मयकारी हथियार है।”
छठवें अध्याय के अनुभवों के पहले यशायाह ने कई लोगों के लिए कई विपत्तियां सुनाई। अब वह अपने आप को देखकर दुःख से पुकारता है कि मुझ पर हाय, यह मैं ही हूं, मैं ही हूं परमेश्वर, जिसे प्रार्थना की आवश्यकता है, यह कितना सच है! क्या हमारे मस्तिष्क की कोठरी में अपवित्र तस्वीरें टंगी हुई हैं? क्या हमारे हृदय की अलमारी में नर कंकाल टंगे हुए हैं? क्या हम पवित्रात्मा को अपने मन में प्रवेश करने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं? क्या हमारे मनों में ऐसे गुप्त स्त्रोत और गुप्त इरादे नहीं हैं जो हमारे मनों के उस भाग पर शासन करते हैं, जहां पर तमाम गंदी चीजें हैं? हम लोगों में से प्रत्येक में तीन लोग निवास करते हैं – एक वह जो हम सोचते हैं, दूसरा वह जो दूसरे लोग सोचते हैं कि हम क्या हैं? और तीसरा वह जो परमेश्वर जानता है कि हम क्या हैं?
यदि हम वास्तविक विजय प्राप्त करने के लिए साहस नहीं जुटा पाते हैं तो हम स्वयं के लिए काफी उदार और दूसरों के लिए कठोर हो जाते हैं। हम अपने आप से ही प्रेम करते हैं। परंतु जेराड मजेला के विषय कहा गया है कि परमेश्वर के अनुग्रह से वह अपने आपको छोड़कर सब मनुष्यों से अत्याधिक प्रेम करता है। ऐसी महानता भी संभव है। लेकिन कई बार हम अपने आप से, अपने आप को छिपाते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि हम वास्तविकता जानकर अपने आप से घृणा करने लगें। आइए, हम परमेश्वर को अपने अंदर आमंत्रित करें, कि वह अपनी खोजने वाली दृष्टि से हमारे अंदर निहित भ्रष्ट, घृणित, कलंकित एवम् बदबूदार अहम् को खोजकर, हम पर प्रकट करे। हम इस अहम् को चीरकर अपने आप से अलग कर लें और उसे क्रूस पर इस तरह से चढ़ाएं कि हम भविष्य में कभी पाप के दासत्व में न रह सकें। (रोमियों 6:6)
हम अपने अंदर के पापों को कुछ कम कर उचित नहीं ठहरा सकते हैं जैसे कि हम दूसरों के लिए कह देते हैं, कि उसका गुस्सा काफी तेज है और उसी समय हम अपने गुस्से को न्यायसंगत ठहराते हैं या वह तो तुनक मिजाज है, मेरा चिड़चिड़ापन मेरे उत्तेजित होने का कारण है या वह लालची है और मैं तो केवल अपने व्यवसाय को बढ़ा रहा हूं। वह हठी है लेकिन मैं अपनी धारणाओं का कायल हूं। वह घमंडी है, परंतु मेरी रुचि बहुत ऊंची चीजों में है। दरअसल हमारे पास हर एक चीज का ढक्कन और उसे हम जिस तरह ढकने के लिए उपयोग में लाना चाहते हैं उसी तरह उपयोग में लाते हैं।
परंतु आत्मा न तो हमें छोड़ेगा और ना ही धोखा देगा, यदि हम उसकी अचूक सूक्ष्म परीक्षा के सामने अपने आप को खोल दें। प्रभु यीशु ने एक अंधे से पूछा तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए क्या करूं? अंधे ने उस से कहा, हे रब्बी, यह कि मैं देखने लगूं। (मरकुस 10:51) आइए हम भी परमेश्वर से स्वर्गीय दृष्टि, आंतरिक दृष्टि व बाह्य दृष्टि के लिए प्रार्थना करें। तभी हम यशायाह की तरह जब ऊपर देखेंगे तो प्रभु का उसकी सारी पवित्रता में दर्शन करेंगे, यदि हम अंदर देखेंगे तो हम अपने स्वयं को देख पाएंगे तथा पवित्रता एवं शक्ति पाने की आवश्यकता को महसूस करेंगे और तत्पश्चात जब हम बाहर देखेंगे तो हम उस संसार को देख पाएंगे जो नाश हो रहा है जिसे एक मुक्तिदाता की आवश्यकता है। “हे ईश्वर मुझे जांच कर जान ले! मुझे परखकर मेरी चिंताओं को जान ले! और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनंत के मार्ग में मेरी अगुवाई कर।” (भजन संहिता 139:23-24) केवल तब ही मंच पर अभिषेक और सभा में प्रभाव होगा!
(Taken from the book, Why Revival Tarries? By Leonard Ravenhill)
इस संदेश के द्वारा लियोनार्ड कहते हैं कि हमारे जीवन में पवित्रता बहुत आवश्यक है क्योंकि हमारा परमेश्वर भी पवित्र है। यदि हम सभा ने प्रभाव देखना चाहते हैं तो अपने जीवन को प्रभु के साथ सही करने की आवश्यकता है। जब हम ऐसा जीवन जीएंगे तो खोए हुए लोगों के प्रति भी हम संवेदनशील होंगे। हम आज की जरुरत को देख पाएंगे और आवश्यक कदम उठा पाएंगे। आत्म जागृति में देरी क्यों? पुस्तक अंग्रेजी में 1958 में प्रकाशित की गई थी। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आज के आंकड़ें इससे कितने अधिक होंगे जो उन्होंने इस पुस्तक में बताये हैं।
आज हमें भी वैसे ही स्वर्गीय दर्शन की जरुरत है जो यशायाह ने देखा था। तभी हम उस संसार को देख पाएंगे जो नाश हो रहा है और जिसे एक मुक्तिदाता की आवश्यकता है। क्योंकि जिसके पास पुत्र नहीं, उसके पास जीवन भी नहीं है। (1 यूहन्ना 5:12)