परमेश्वर को प्रसन्न करना।
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परमेश्वर को प्रसन्न करना आराधना है। (To Please God Is To Worship God) आमतौर पर आराधना को कई बार कुछ मसीही भी लोग सिर्फ गीत गाने, संगीत बजाने या फिर रविवारीय संगति तक ही सीमित कर देते हैं। जबकि आराधना इससे कहीं बढ़कर है। वचन के अनुसार हमारी पूरी जीवन शैली परमेश्वर को भावता हुआ एक जीवित और पवित्र बलिदान होना चाहिए, जो कि एक सच्ची आराधना है। (रोमियों 12:1)
पौलुस कुरिंथ की कलीसिया को कहता है कि हमें परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन जीते रहना है। बेशक अभी हम जिस घर (देह) में रहते हैं वो हमारा स्थायी घर नहीं है, इसमें तो हम पीड़ा में कराहते रहते हैं फिर भी ज्यादा अच्छा तो प्रभु के साथ रहने में है। इसलिए जहाँ भी हों, परमेश्वर को प्रसन्न करना हम अपने जीवन का लक्ष्य बनाएं। (2 कुरिन्थियों 5:9)
हमें परमेश्वर को प्रसन्न करने की कोशिश इसलिए नहीं करनी चाहिए कि हम अपने कार्यों के द्वारा उसे प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन हमें जरूर ऐसा जीवन जीने की जरूरत है कि वह स्वतः ही परमेश्वर की महिमा करे। 1 कुरिंथियों 10:31 भी हमसे कुछ ऐसा ही कहता है।
हमें परमेश्वर को प्रसन्न क्यों करना चाहिए?
अपने जीवन के द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करना हमारे जीवन का प्राथमिक उद्देश्य है। परमेश्वर को प्रसन्न करना आराधना कहलाती है। (रोमियों 12:1) दूसरे शब्दों में कहें तो हम जो कुछ भी उसे प्रसन्न करने के लिए करते हैं वो आराधना का एक कार्य है। परमेश्वर ने जब सृष्टि का निर्माण किया तो परमेश्वर ने देखा कि “अच्छा है” लेकिन छठे दिन मनुष्य को अपनी समानता और स्वरूप में बनाने के बाद परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था सब को देखा, तो क्या देखा कि वह तो “बहुत अच्छा है।” (उत्पति 1:31)
जो हमें साफ तौर पर संकेत देता है कि परमेश्वर मानवजाति में सबसे प्रसन्न होते हैं। इसलिए मानवजाति को इसी उद्देश्य के लिए बनाया गया है। भजन संहिता 149:4 में लिखा है कि परमेश्वर अपने लोगों से प्रसन्न होता है। यूहन्ना 8:29 कहता है कि परमेश्वर को प्रसन्न करना प्रभु यीशु की प्राथमिकता थी। इफिसियों 5:10 आज्ञा देता है कि हर मसीही को परमेश्वर को प्रसन्न करना है।
बातें जो परमेश्वर को प्रसन्न नहीं करती हैं।
परमेश्वर के वचन के अध्ययन से हम ये जान सकते हैं कि परमेश्वर को क्या क्या नहीं भाता है या कौन सी बातें परमेश्वर को अप्रसन्न करती हैं। आइए उनमें से कुछ बातों को देखें जो परमेश्वर को अप्रसन्न करती हैं। परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन ना जीना, परमेश्वर को अप्रसन्न करता है। (मती 7:21-23) बुरी चीजों के प्रति लालसा, मूर्तिपूजा, बहुत ज्यादा खाने पीने में ध्यान, परमेश्वर को भूलना, व्यभिचार, परमेश्वर को परखना और कुड़कुड़ाना इत्यादि भी परमेश्वर को अप्रसन्न करता है। (1 कुरिंथियों 10:1-12) किसी को धोखा देना भी परमेश्वर को अप्रसन्न करता है। जिसे वचन में छल का तराजू भी कहा गया है। (नीतिवचन 20:23, 11:1) जब हम परमेश्वर की इच्छा या आज्ञा के अनुसार जीवन नहीं बिताते तो हमारे बलिदान भी परमेश्वर को प्रसन्न नहीं करते हैं। (यिर्मयाह 6:20, मलाकी 1:6-10, यशायाह 66:1, भजन संहिता 51:17)
अविश्वास भी परमेश्वर को प्रसन्न नहीं करता है, क्योंकि वचन कहता है कि विश्वास के बिना परमेश्वर को प्रसन्न करना अनहोना है। (इब्रानियों 11:6) वो जो शरीर के कामों में ही अपना जीवन बिताते हैं, परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते हैं। (रोमियाें 8:8)
बातें जो परमेश्वर को प्रसन्नता देती हैं।
दूसरों की देखभाल करना परमेश्वर को प्रसन्नता देता है। (रोमियों 15:2, 3, फिलिप्पियों 2:4) प्रार्थना में दूसरों की भलाई चाहना भी परमेश्वर को प्रसन्नता देता है। (1 राजा 3:7-10) दयालू बनकर दूसरों की मदद करना परमेश्वर को प्रसन्नता देता है। (इब्रानियों 13:16) धर्मियों की प्रार्थना परमेश्वर को प्रसन्न करती है। (नीतिवचन 15:8) अभिभावकों का आज्ञापालन परमेश्वर को प्रसन्न करता है। (कुलुस्सियों 3:20) अपने अधिकारियों के लिए प्रार्थना करना परमेश्वर को प्रसन्न करता है। (1 तीमुथियुस 2:1-3) पवित्रता, परमेश्वर को प्रसन्न करता है। (नीतिवचन 15:26) अपने परिवार की देखभाल करना परमेश्वर को भाता है। (1 तीमुथियुस 5:4) पवित्र जीवन जीना परमेश्वर को प्रसन्नता देता है। (1 थिस्सलुनीकियों 4:1-7) सभी प्रकार की यौन अनैतिकता से दूर रहना परमेश्वर को प्रसन्न करता है। परमेश्वर के वचन का आज्ञापालन परमेश्वर को प्रसन्नता देता है क्योंकि यह किसी भी बलिदान चढ़ाने से बेहतर है। (1 शमूएल 15:22)
परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले व्यक्ति को क्या लाभ होता है?
जो व्यक्ति परमेश्वर को अपने जीवन के द्वारा प्रसन्नता देता है, ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर बुद्धि, ज्ञान और आनंद देता है। (सभोपदेशक 2:26) एक व्यक्ति जो अपने जीवन के द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करता है, परमेश्वर उसको व्यभिचार में फंसने से भी बचाता है। (सभोपदेशक 7:26) एक व्यक्ति जो परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन जीता है, परमेश्वर उसके दुश्मनों के साथ भी उसका मेल कराता है। (नीतिवचन 16:7)
सारांश।
प्रभु यीशु हमेशा अपने पिता को प्रसन्न करते थे। इसलिए पवित्रशास्त्र में इन बातों को लिखा गया है, “यह मेरा प्रिय पुत्र है जिससे मैं प्रसन्न हूं।” चाहे कई बार उन्होंने कोई प्रचार या चमत्कार भी नहीं किया, फिर भी उनके जीवन में कुछ महान था जिसने पिता परमेश्वर को प्रसन्न किया। (पढ़ें मती 3:16, 17, 17:5, मरकुस 1:11, लूका 3:22; 2 पतरस 1:17)
क्या परमेश्वर आज आपके लिए यह कह सकता है? क्या आप अपने प्रतिदिन के जीवन में चलने के द्वारा, बात करने के द्वारा, आपका नजरिया, आपके हर काम आज परमेश्वर को प्रसन्नता देता है? इस विषय पर सोचिए और प्रभु से प्रार्थना करें कि हम अपनी पूरी जीवन शैली के द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करें।
शालोम!