क्यों खुद को दूसरों के सामने साबित करने की जरूरत नहीं है? खुद को साबित करना बंद क्यों कर देना चाहिए? (Why Should You Stop Proving Yourself To Others?) क्या अपने आपको साबित करना जरूरी है?
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एक बार की बात है, पाँच क्रूर ग्रेहाउंड (Greyhound) और एक चीते के बीच में एक दौड़ निर्धारित की गई कि कौन सबसे तेज़ दौड़ सकता है। जब रेस शुरू करने के लिए सीटी बजाई गई तो सभी ग्रेहाउंड दूसरों को हराने के लिए दौड़ने लगे। लेकिन चीता एक इंच भी नहीं बढ़ा।
भ्रमित होकर सहायक ने रेफरी से पूछा कि चीता बिल्कुल क्यों नहीं हिलता?
रेफरी ने कहा, “कभी-कभी यह साबित करने की कोशिश करना कि आप सबसे अच्छे हैं, अपमान है!”
यह समझना महत्वपूर्ण है कि कहाँ आगे बढ़ना है और कहाँ पीछे रहना है।
हो सकता है कि कुछ लोग कहें कि नहीं जी, बहुत जगह तो हमें अपने आपको साबित करना ही होगा! अगर हम अपने आपको साबित नहीं करेंगे तो लोग हमें गलत समझेंगे, लोग हमारा नाम खराब करेंगे, हमारी बेइज्जती करेंगे।
आज हम उन बातों पर विचार करेंगे कि क्यों हमें अपने आपको हर जगह साबित करने से बचना चाहिए? बेशक हम सही क्यों न हों!
यूसुफ के साथ जो घटना घटी उसने कभी प्रयास नहीं किया कि वह सबको बताता फिरे कि मैंने तो कुछ नहीं किया, मैं तो निर्दोष हूं इत्यादि। शायद उसने ये स्वीकार कर लिया था कि जो भी परिस्थिति जीवन में आएगी उसमें वो प्रभु को प्रसन्न करेगा। (उत्पति 37, 39-50 अध्याय)
दानियेल ने भी प्रयास नहीं किया कि साबित करे कि वो निर्दोष है। बस वो तो पहले की ही तरह, इतना व्यस्त होने के बावजूद भी दिन में तीन बार प्रभु से प्रार्थना करने से चूकता नहीं था। आपको मालूम ही है कि किस प्रकार प्रभु ने उसको छुड़ाया, उसको ऊंचा किया। प्रभु को प्रसन्न करने वाली जीवन शैली के कारण अधिकारी लोग भी सच्चे परमेश्वर को जान पाए। (दानिय्येल 6:1-28)
दाऊद को भी अपने आपको साबित करने की जरूरत नहीं पड़ी। हालांकि एक बार उसको साबित करने का अवसर मिला भी। जरा देखिए कि कैसे राजा शाऊल उसका बैरी हो गया। मैं अगर संक्षेप में बताना चाहूं कि क्यों शाऊल उससे बैर करने लगा था यहां तक कि उसको जान से भी मारना चाहता था। इसके पीछे का कारण शायद आपको याद होगा जब दाऊद गोलियत को मारकर आ रहा था जिसके सामने जाने को किसी की हिम्मत भी नहीं पड़ रही थी, तब लोगों ने एक गीत गाया। वो गीत क्या था? शाऊल ने हजारों को मारा और दाऊद ने लाखों को मारा। (1 शमूएल 18:7)
इसी वजह से शाऊल अब दाऊद से बैर रखने लगा था। पर मुख्य कारण तो ये था कि दाऊद ने गोलियत के मामले में परमेश्वर के ऊपर अपना भरोसा दिखाया जबकि शाऊल शायद उस वक्त परमेश्वर को भूल गया था। आपको इसलिए हर जगह अपने आपको साबित करने की जरुरत नहीं है क्योंकि…
- आपको परमेश्वर ने सबसे अलग बनाया है।
- क्योंकि आप सबको प्रसन्न नहीं कर सकते।
- लोग अक्सर बदलते रहते हैं।
- आप नहीं जानते हैं कि दूसरे क्या सोचते हैं।
- जो समाधान या सूत्र दूसरों के लिए काम करता है जरूरी नहीं कि वही समाधान या फॉर्मूला आपके लिए भी काम करे।
- असफलता, सफलता का एक हिस्सा है।
- सामाजिक मानदंडों को आपके जीवन को निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि मूल्य के बहुत सारे विचार भौतिकवादी हैं।
- आप अपने जीवन के प्रति जिम्मेवार हैं।
आपको परमेश्वर ने सबसे अलग बनाया है।
आपको हमेशा याद रखने की आवश्यकता है कि आप परमेश्वर की अनमोल रचना हैं। इस कारण आपका रंग रूप, आपकी शारीरिक बनावट, आपकी मानसिकता, आपकी क्षमता इत्यादि दूसरों से अलग हो सकते हैं। इस दुनियां में आपका लक्ष्य किसी दूसरे के जैसा बनना नहीं है बल्कि यीशु के जैसा बनना है। (फिलिप्पियों 2:5) तो आपका मकसद भी उसे प्रसन्न करना होना चाहिए जिसने आपको बनाया है न कि किसी व्यक्ति को जो कि हो सकता है कि आपको कभी समझे ही न! दूसरी बात आपको ये भी याद रखनी है कि आप सबको प्रसन्न नहीं कर सकते हैं।
आप सबको प्रसन्न नहीं कर सकते हैं।
जब परमेश्वर ने आपको सबसे अलग बनाया है, तो हो सकता है कि कोई न कोई आपसे किसी कारणवश अप्रसन्न रहे। आज दुनियां में कई लोग हमेशा दूसरों को खुश करने के चक्कर में रहते हैं। इस चक्कर में वे कई बार अपने नैतिक मूल्यों से भी समझौता करते हैं जिसका परिणाम बाद में ये होता है कि उनका हृदय बार-बार, कई बार टूटता रहता है, जिस वजह से उनका जीवन निराशामय हो जाता है।
पौलुस के उन शब्दों पर ध्यान करिए जो उसने कहे थे: कि यदि मैं अब तक दूसरों को प्रसन्न करता रहता तो मैं अब तक मसीह का दास नहीं होता। (गलातियों 1:10)
हर व्यक्ति को परमेश्वर ने अलग बनाया है।
हर व्यक्ति को परमेश्वर ने अलग बनाया है जिस वजह से उसका व्यक्तित्व, उसका नज़रिया दूसरों से अलग होता है। इस कारण प्रभु हमें अलग-अलग परिस्थितियों से प्रशिक्षित भी करता है। खाने पीने के मामले में, यात्राओं में भी सबकी अपनी-अपनी पसंद है। इसलिए जरूरी नहीं है कि सब वैसे हों जैसा आप चाहते हैं। इसका विपरीत भी उतना ही सत्य है कि जरूरी नहीं कि आप जैसा चाहते हैं दूसरे भी वैसा ही चाहें। सबका अलग-अलग तरीके से प्रशिक्षण होने के फलस्वरूप सबका नज़रिया भी अलग होगा। ये भी कारण है कि हम अपनी सत्यता को साबित करते हुए नहीं फिरते रहें।
लोग अक्सर बदलते रहते हैं।
बहुत सारे लोगों को अत्याधुनिक होना पसंद है जिस कारण कई बार वे नैतिक मूल्यों से भी समझौता कर बैठते हैं। इसलिए कई लोगों के निर्णयों में स्थिरता भी नहीं हैं। इसलिए भी आपको हर जगह अपने आपको सही साबित करने की आवश्यकता नहीं है।
आप नहीं जानते हैं कि दूसरे क्या सोचते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि आपकी परिस्थिति अलग होने के फलस्वरूप आप अपनी ही दुनियां में खोए हुए हैं ठीक उसी प्रकार दूसरे भी उनकी अपनी परिस्थितियों में खोए हुए हैं। हम एक दूसरे एक मन में क्या चल रहा है नहीं जान सकते हैं। अगर आप सही भी हों तो भी आपको अपने आपको साबित करते रहने से बचना चाहिए।
सबके लिए एक जैसे समाधान काम नहीं करते हैं।
जो समाधान या सूत्र दूसरों के लिए काम करता है जरूरी नहीं कि वही समाधान या फॉर्मूला आपके लिए भी काम करे। आज हो सकता है कि आपके लिए सबके पास कुछ न कुछ हो कहने के लिए या सुझाव देने के लिए; पर जरूरी नहीं है कि ये सूत्र आपके लिए भी काम करे। इसलिए दूसरों को प्रसन्न करने के लिए अपने नैतिक मूल्यों से कभी भी समझौता न करें। मैं फिर से इस बात को दोहरा रहा हूं, कृपया अपनी सत्यता को साबित करना छोड़ दें। प्रभु को प्रसन्न करने वाला जीवन जीएं। अगर आप ऐसा करेंगे तो एक दिन समय आने पर प्रभु सबके सामने सच्चाई लाएगा और आपको ऊंचा भी करेगा।
यीशु ने कहा था कि यदि आपको कोई भोज पर बुलाए तो मुख्य आसन पर नहीं बैठना। क्यों? क्योंकि आपको साबित करने की आवश्यकता नहीं है कि आप उसके खास हैं या आप ही मुख्य अतिथि हैं। अगर आप होंगे तो आपको स्वयं ही आगे बुलाया जाएगा और आपकी इज्जत भी बढ़ेगी और आपकी विनम्रता भी दिखेगी।
असफलता सफलता का एक हिस्सा है।
आप कभी-कभी अपने जीवन में असफलता का भी सामना कर सकते हैं। वास्तव में असफलता भी सफलता का एक हिस्सा है। हम सभी से गलतियां होती हैं, इसलिए किसी न किसी को हम ये सुनते हुए पाते हैं कि हम तो गलतियों के पुतले हैं। आपको याद रखना होगा कि परमेश्वर ने हमें गलतियों का पुतला नहीं बनाया था और न ही हमें गलतियों का पुतला बने रहना हैं। क्योंकि परमेश्वर चाहता है कि हम अंश अंश करके यीशु के जैसे बनते जाएं।
पहली बार अक्सर हमसे गलतियां होती हैं पर जरूरी नहीं है कि हम उन गलतियों से सबक लिए बिना हम उन गलतियों को दोहराते रहें। आपको याद होगा कि राजा दाऊद से भी गलती हुई थी पर मेरे प्रियों, उसने फिर कभी उस गलती को दोहराया नहीं। हम असफल हो सकते हैं पर हमें हर असफलता से सबक लेने की आवश्यकता है।
सामाजिक मानदंडों को आपके जीवन को निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है।
सामाजिक मानदंडों को आपके जीवन को निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि मूल्य के बहुत सारे विचार भौतिकवादी हैं। इस संसार के मूल्य आपके जीवन को निर्धारित करने वाले नहीं बनें। क्योंकि संसार और संसार की सब वस्तुएं एक समय आने पर समाप्त हो जाएंगी। आपको परमेश्वर के वचन के अनुसार अपने मूल्य निर्धारित करने हैं क्योंकि परमेश्वर के वचन टलने वाले नहीं हैं। (यशायाह 40:8, मती 5:18) अपने जीवन का लक्ष्य प्रभु को प्रसन्न करने वाला बनाएं न कि इस दुनियां को।
आप अपने जीवन के प्रति जिम्मेवार हैं।
आपका जो जीवन आपके पास है ये आपको परमेश्वर ने दिया है। इस जीवन में हर एक वस्तु, धन संपत्ति, आपका परिवार इत्यादि भी आपको परमेश्वर ने सौंपा है। जबकि आपको किसी ने कुछ सौंपा है तो आप उसके प्रति जवाबदेह भी हैं। ये भी एक कारण बनता है कि हम दूसरों को नहीं बल्कि प्रभु को प्रसन्न करने वाला जीवन जीयें और अपने आपको साबित करते ना फिरें। बस जो जिम्मेदारियां आपको दी गई हैं उनको पूरी विश्वासयोग्यता से निभाएं। अपने आपको साबित ना करते फिरें।
किसी को भी आपको न्याय करने या यह तय करने का अधिकार नहीं है कि आप क्या हैं। खुद को परिभाषित करना आपका विशेषाधिकार और जिम्मेदारी हो सकता है। पर आपको अपने मूल्यों और अपने लक्ष्यों पर विचार करना चाहिए और सोचना चाहिए कि आप कौन बनना चाहते हैं। यदि आप ऐसा सोचते है तो इसे आपसे कोई छीन नहीं सकता है।
पर साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखें कि आप समय समय पर अपने आप का मूल्यांकन भी कर रहे हैं। अगर आपको लगता है कि कहीं न कहीं गलती आपकी ओर से भी है तो आपको अपने आपको सुधारने के लिए भी समय निकालना चाहिए। जरूरी नहीं है कि आप हर वक्त सही हों।
आपको अपने आप को साबित करने के पीछे अपना कीमती समय बर्बाद नहीं करना चाहिए क्योंकि कुछ कारण हैं जो हमें उत्साहित करते हैं कि मुझको, आपको परमेश्वर ने सबसे यूनिक बनाया है। एक समय आएगा कि आपसे विरोध करने वाले भी एक संग बैठेंगे। (भजन सहिंता 23:5)