हमारे पास कुछ मुख्य सवाल हैं, मसीही जीवन में दुःख क्यों आते हैं? मसीही जीवन में दुःख के मुख्य कारण क्या हैं? (The Causes of Suffering) Why Christians Experience Suffering? दुःख मानव जीवन का एक जटिल और चुनौतीपूर्ण पहलू है, और बाइबल में इसे विभिन्न तरीकों से दर्शाया गया है। हम में से बहुत से लोगों ने मसीही जीवन की यात्रा इस वजह से शुरू की होगी क्योंकि यही एकमात्र सच्चा रास्ता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इसके अलावा कोई और सच्चा मार्ग है। (यूहन्ना 14:6) बहुत लोगों ने इस यात्रा को इसलिए शुरू किया क्योंकि उन्होंने ऐसी शांति, ऐसा कार्य कहीं और नहीं देखा।
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पर जैसे-जैसे हम मसीही जीवन को समझने लगते हैं तो हमें मालूम होता है कि यहां तो हमारे संघर्ष और भी तेज हो गए हैं। भक्तिमय जीवन जीना तो काफी मुश्किल है। ईमानदारी, खराई, धार्मिकता, पवित्रता में जीवन जीना तो बहुत मुश्किल है। यहां तो हमारे दुःख और कष्ट और ज्यादा ही बढ़ रहे हैं।
अगर आपको भी ऐसा लगता है तो आपके प्रोत्साहन के लिए बता दूं कि ये दुःख और संघर्ष हमें कभी भी परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर संप्रभु है और दुःख सहित हर चीज के लिए उसका एक उद्देश्य है। रोमियों 8:28 में कहा गया है, “और हम जानते हैं कि सभी चीजों में परमेश्वर उन लोगों की भलाई के लिए काम करता है जो उससे प्यार करते हैं, जिन्हें उसके उद्देश्य के अनुसार बुलाया गया है।” हम मसीही यह विश्वास कर सकते हैं कि कष्ट में भी, परमेश्वर हमारी भलाई के लिए ही काम कर रहे हैं।
हमें समझना होगा कि दुःख हमारे जीवन में क्यों आते हैं? मसीही जीवन में दुःख के क्या मुख्य कारण हैं? दुःख हमारे जीवन में क्या खतरे पैदा कर सकते हैं? परमेश्वर कैसे इन दुःखों उपयोग करता है ताकि हम दुःख उठाने वालों की सेवा भी कर सकें? प्रभु ने चाहा तो आने वाले समय में इस विषय में हम और भी बात करेंगे।
हम में से किसी को भी दुःख अच्छे नहीं लगते हैं, लेकिन ये इस भौतिक जीवन की अटल सच्चाई है। कभी भी परमेश्वर ने यह वादा नहीं किया है कि मसीही लोग इस जीवन में दुःखों से मुक्त होंगे। हां, पर उसने जरूर यह वादा किया है कि वह हर आंख से आंसू पोंछ डालेगा। परंतु यह वादा पूर्ण रूप से तब तक पूरा नहीं होगा, जब तक वह मृत्यु को सदा के लिए नाश न कर दे। तब तक वह निरंतर हमारे दुःखों में हमारे आंसू पोंछता रहेगा। (यशायाह 25:8)
परमेश्वर का वचन हमसे कहता है कि हम अपने विश्वास के कारण सताए जाने के लिए तैयार रहें। यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि यदि उन्होंने मुझे सताया है तो वे तुम्हें भी सताएंगे। (यूहन्ना 15:20) लेकिन एक मसीही होने के नाते हमें यह समझना जरूरी है कि हमारा दुःख सहना व्यर्थ नहीं है।
एक मसीही जिस संसार में रहता है, अक्सर उसकी मान्यताएं इस संसार के साथ मेल नहीं खाती हैं। इसलिए यहां मसीही के रूप में जीना हमारे लिए एक चुनौती हो सकती है। जब हम देखते हैं कि यीशु को भी अपने व्यवहार के कारण दुःखों का सामना करना पड़ा, तो हमें दिलासा मिलता है। क्योंकि उसके परिवार ने भी उसे यहां तक कह दिया था कि इसका चित ठिकाने नहीं है। (मरकुस 3:21) यीशु ने अपने शिष्यों को सिखाया कि जैसे उसे सताव झेलना पड़ा, वे भी इसके लिए तैयार रहें।
जब हम पौलुस के जीवन को देखते हैं जिसने मसीह के लिए बहुत कुछ सहा तो वह अपने कष्टों को महिमा की छाप तथा अपनी प्रेरिताई के प्रमाणों के रूप में देखता है। यह बात तो निश्चित है कि जो दृष्टिकोण संसार मसीहियों के लिए रखता है, उसे स्वीकार करना आसान नहीं है। हम मसीहियों को दुःखों के लिए तैयार रहना चाहिए। दुःख हमारे लिए कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। प्रभु यीशु मसीह ने पहले ही हमें बता दिया था कि हमें उसकी खातिर दुःख झेलने होंगे। (यूहन्ना 15:20) संसार हमसे इसलिए घृणा करता है क्योंकि हम संसार के नहीं हैं। (यूहन्ना 15:18-19)
आइए बात करें कि हमारे जीवन में दुःखों के मुख्य कारण क्या हैं? बाइबल के अनुसार हमारे जीवन में दुःख के तीन मुख्य कारण हैं, संसार, शैतान और हमारा शरीर। हमारे जीवन में दुःख इसलिए आते हैं क्योंकि हम संसार के नहीं हैं।
हम संसार के नहीं हैं।
हमारे जीवन में दुःखों का पहला कारण यह है कि हम संसार के नहीं हैं। (यूहन्ना 15:19) जब हम मसीही बने तो हमारी निष्ठा संसार तथा इसकी मान्यताओं से टूटकर, मसीह की निष्ठा में बदल गई। अब इस संसार का राजा शैतान हर उस चीज के प्रति घृणा और विद्रोह करता है जो परमेश्वर से संबंध रखती है। (यूहन्ना 12:31, इफिसियों 2:2) क्योंकि एक मसीही व्यक्ति अब इस संसार का नहीं है, वह तो अब मसीह का है। जिसके कारण मसीही भी, परमेश्वर की हर एक चीज के प्रति किए जाने वाले प्रतिरोध का निशाना बनता है।
अक्सर छुटकारा नहीं पाए हुए लोग, बिना सोचे समझे इस संसार में स्वाभाविक ही दूसरों की भेड़ चाल के पीछे चल पड़ते हैं। (1 कुरिंथियों 2:6) वे सोचते हैं कि हर व्यक्ति उनकी मान्यताओं और लक्ष्यों को अपनाए और उनके अनुसार जीवन व्यतीत करे। यहां मसीही लोग उनकी इस इच्छा को पूरा नहीं करते हैं तो इस वजह से वे उनका निशाना बनते हैं, जो हमारे जीवन में दुःख या सताव के रूप में आता है। हमारे जीवन में दुःखों का दूसरा कारण शैतान भी है।
शैतान की वजह से।
परमेश्वर के प्रति शैतान की नफरत ही मसीहियों पर अत्याचार की जड़ है। जब मानवजाति ने शैतान के बहकावे में आकर परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया तो उन्होंने अपने शरीर की इच्छाओं का पालन किया, जो कि बुरी थीं। (इफिसियों 2:2-3)
शैतान की समस्या यह है कि वह सीधे परमेश्वर पर हमला करके कभी भी सफल नहीं हो सकता है। जिसकी वजह से वह परमेश्वर के लोगों में कोई न कोई कमज़ोरी ढूंढने के लिए मजबूर है। इसे समझने के लिए हम यीशु की परीक्षा देख सकते हैं, जब शैतान ने उसे परखा। (मती 4:1-11) और जब यीशु शैतान के प्रलोभनों में नहीं फंसा तो शैतान ने उन्हें निशाना बनाया जो यीशु के सबसे करीबी थे। शैतान की इस नीति का उदाहरण हम मती 16:21-23 में देख सकते हैं जब पतरस ने यीशु को क्रूस पर जाने से रोकने की कोशिश की। अब शैतान का सारा ध्यान आम मसीहियों की और है, विशेषकर उनकी ओर जो प्रभु यीशु मसीह में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं। ( 2 तीमुथियुस 3:12)
हालांकि शैतान की पराजय निश्चित है, वह प्रभु के विश्वासयोग्य लोगों को निरंतर निशाना बनाने में लगा हुआ है। (प्रकाशितवाक्य 12:17) एक मसीही के रूप में हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि यीशु विजयी हुआ है और हम भी उसके साथ विजयी हैं, जब तक हम इस संसार में रहते हैं हमें निरंतर उसकी चालाकियों पर भी विजयी होना है। हमारे जीवन में दुःखों के एक और कारण भी है वह है हमारा अपना पाप।
हमारे पाप के कारण।
बाइबल के अनुसार, हमारे अपने पाप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न तरीकों से दुःख का कारण बन सकते हैं। वचन हमें बताता है कि हमारे जीवन में दुःख या कष्ट का कारण हमारी अपनी पापपूर्ण देह तथा इसके परिणामस्वरूप किए जाने वाले अधर्म के काम भी हैं। (1 पतरस 3:17) इस प्रकार का दुःख या कष्ट उस कष्ट से बिल्कुल अलग है जो हमें भक्तिपूर्ण जीवन जीने के कारण सहना पड़ता है।
पतरस लिखता है कि यदि परमेश्वर की इच्छा यही है तो भलाई करने के कारण दुःख उठाना, बुराई करने के कारण दुःख उठाने से भला है। इस संसार का कानून उन्हें नहीं सताता जो उनका मानते हैं। (रोमियों 13:1-7) पर ध्यान दें कि मसीही होने के नाते हमारे दुःख और कष्ट हमारे बुरे कामों के परिणाम कभी नहीं होने चाहिए। यदि हम बुरे काम करके दुःख या कष्ट सहते हैं तो हमारा दुःख हमारे कामों तथा चुनावों का बिल्कुल उचित परिणाम है।
बाइबल सिखाती है कि पाप के परिणाम होते हैं। जब हम पापपूर्ण कार्यों में लिप्त होते हैं, तो परिणामस्वरूप हम अक्सर नकारात्मक परिणामों का अनुभव करते हैं। नीतिवचन 13:15 में कहा गया है, “विश्वासघातियों का मार्ग कड़ा होता है।” इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता से जीवन कठिनाइयों और दुःख का कारण बन सकता है।
जब हम पापपूर्ण कार्य करते हैं, तो हम अक्सर अपराधबोध और शर्म की भावनाओं का अनुभव करते हैं। ये भावनात्मक बोझ आंतरिक दुःख और अशांति का कारण बन सकते हैं। भजन संहिता 38:4 इस भावना को इस प्रकार व्यक्त करता है: “क्योंकि मेरे अधर्म के कामों में मेरा सिर डूब गया, और वे भारी बोझ के समान मेरे सहने से बाहर हो गए हैं।”
कुछ पापों के परिणामस्वरूप शारीरिक कष्ट या हानि हो सकती है। उदाहरण के लिए, मादक पदार्थों के सेवन या जोखिम भरे व्यवहार जैसे आत्म-विनाशकारी व्यवहार में लिप्त होने से स्वास्थ्य समस्याओं और दुर्घटनाओं सहित शारीरिक दुःख हो सकता है।
अदन के बगीचे में आदम और हव्वा की अनाज्ञाकारिता के परिणामस्वरूप दुनियां में दुःख आया। उनके पाप ने परमेश्वर के साथ संबंध को तोड़ दिया और सब कुछ शाप के अधीन कर दिया। (उत्पत्ति 3:16-19) बाइबल स्वीकार करती है कि मानवीय विकल्प, कार्य और पाप, दुःख का कारण बन सकते हैं। दुनियां में दुःख के कई उदाहरण मानवीय नैतिक बुराई का परिणाम हैं, जैसे हिंसा, अन्याय, लालच और उत्पीड़न इत्यादि।
प्रेरित पौलुस रोमियों 8:20-22 में लिखता है कि “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।” यह वचन बताता है कि सृष्टि की गिरी हुई अवस्था दुःख में योगदान करती है।
सारांश
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां कष्ट जीवन का एक हिस्सा है, वहीं परमेश्वर का जीवित वचन, यीशु मसीह में विश्वास के माध्यम से मुक्ति और अनंत जीवन की आशा भी सिखाता है। दुःख हमें यीशु मसीह के दुःख के साथ पहचान करने में मदद कर सकते हैं। फिलिप्पियों 3:10 कहता है, “ताकि मैं उसको और उसके मृत्युञ्जय की सामर्थ्य को, और उसके साथ दु:खों में सहभागी होने के मर्म को जानूँ, और उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्त करूँ।”
एक मसीही होने के नाते हमें ये भी याद रखना है कि इस समय के दुःख और कष्ट उस महिमा के सामने कुछ भी नहीं है जो प्रकट होने वाली है। पौलुस इन्हें पल भर का और हल्का कहता है। (2 कुरिन्थियों 4:17) हमारा परमेश्वर शांति का परमेश्वर है, वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है; ताकि हम उस शान्ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति दे सकें जो किसी प्रकार के क्लेश में हों। (2 कुरिन्थियों 1:3-4)
वह कुछ भी हमारे जीवन में व्यर्थ नहीं होने देगा। प्रभु से प्रेम करने वालों के लिए सब कुछ भलाई के लिए ही होगा। (रोमियों 8:28-30) इसलिए मेरे प्रिय भाइयों और बहनों कभी निराश न हों बल्कि हर परिस्थिति में धन्यवादी बने रहने का अभ्यास करें। इस बात को भी स्मरण रखें कि कोई भी ताकत हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकती है। (रोमियों 8:31-39)
हम परमेश्वर से सम्बन्ध रखने वाले लोग हैं, क्योंकि जो हम में है वह उस से जो संसार में है, बड़ा है। (1यूहन्ना 4:4) “धर्मी पर विपत्ति पड़ती तो है परंतु परमेश्वर उसको मुक्त करता है।” संसार और संसार की अभिलाषाएं मिट जाएँगी पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है वह सर्वदा बना रहेगा। (2:15-17) परमेश्वर चाहता है कि हम जीवन के दुःखों में उस पर भरोसा रखना सीखें और दुःखों के उद्देश्य को समझें।
शालोम