मसीही जीवन में मसीह में कैसे चलें? (Walking In Christ) हम सबने एक यात्रा शुरू की है, एक अनंत यात्रा। ये यात्रा उस दिन शुरू हुई जब हमने यीशु को अपना मुक्तिदाता के रूप में स्वीकार किया और उस पर विश्वास किया।
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मसीह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप, सारी सृष्टि में पहिलौठा है। उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई स्वर्ग की हों अथवा पृथ्वी की सारी वस्तुएं उसी के द्वारा उसी के लिए सृजी गई। वही सब वस्तुओं में प्रथम है सब वस्तुएं उसी में स्थिर रहती हैं। (Colossians 1:15-18) मार्ग, सत्य, जीवन, जिसके बिना परमेश्वर के पास जाना संभव नहीं है। (John 14:6) वही आदि और अंत, अल्फा और ओमेगा, शांति का राजकुमार, राजाओं का राजा, प्रभुओं का प्रभु, जिसके राज्य का कोई अंत नहीं, जिसके प्यार की कोई सीमा नहीं, जीवन दाता, जो हमारे लिए बलिदान हुआ।
पर यह भी याद रखना है कि यीशु के पीछे चलना मानो सकरे मार्ग में चलना है। कभी कभी यह बहुत मुश्किल हो जाता है कि हम इस यात्रा को जारी रखें। पर उस वक्त भी गवाहों का बादल हमें घेरे रहता है जो विश्वास के हीरो हुए और जिन्होंने अपनी यात्रा को पूरा किया।
चलना।
चलना एक क्रिया है, यह जीवन में एक निश्चित पाठ्यक्रम का पालन करना है। इस यात्रा में थकान हो सकती है, इसमें कई मोड़ या परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, इसमें ऊर्जा लगती है और निरन्तर आगे की ओर बढ़ना होता है। तभी तो हम इस यात्रा को पूरा कर पाएंगे।
प्रेरित पतरस का आग्रह है कि हमें अपने आप को परदेसी यात्री जानकर उन सांसारिक अभिलाषाओं से बचे रहना है जो आत्मा से युद्ध करती है। (1 Peter 2:11-12) और इस यात्रा को पूरा करने के लिए चलते रहना ही प्रभु की आज्ञा है कि जैसे हमने मसीह को ग्रहण किया है, वैसे ही चलते रहो… (Colossians 2:6-7) हमें उस विश्वास के लिए पूरा यत्न करना है, जिसे पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया है। (Jude 1:3)
मसीही लोग अंधेरे में चलना जारी नहीं रख सकते क्योंकि उनकी सहभागिता सत्य के साथ है, ज्योति के स्त्रोत के साथ है। (1 John 1:6-7, 2:11) वो ऐसा मार्ग है जो स्वयं ज्योति है।
नए जीवन में चलना।
मसीह में आपका जीवन परमेश्वर से एक उपहार है, क्योंकि आपको पाप की मजदूरी से बचाया गया है और आपने मसीह में एक नई शुरूआत की है। याद रखिए कि चलना एक क्रिया है, निरन्तर मसीह में चलना। मसीहियत में रास्ते में परमेश्वर आपकी मदद करेगा, आपको उस पर भरोसा करने की जरूरत है।
वचन हमें प्रोत्साहित करता है कि हम नए जीवन की सी चाल चलें क्योंकि उसकी मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम भी उसके साथ गाड़े गए ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया वैसे हम भी नए जीवन की सी चाल चलें। (Romans 6:4, 2 Corinthians 5:17)
हम भी मसीह के जैसे चलें, हमें अपने पुराने चालचलन को छोड़कर और अंधकार के कामों को छोड़कर नए जीवन की चाल चलना है। (Ephesians 4:17-24) जैसा यीशु का स्वभाव था हमारा भी होने पाए। हमने नया जीवन पाया है तो आओ हम अपने पुराने मनुष्यत्व को छोड़कर नये जीवन की सी चाल चलें।
वचन में चलना।
परमेश्वर का वचन कभी न टलने वाला, हमेशा स्थिर रहने वाला, कभी न बदलने वाला है। परमेश्वर का वचन हमारे जीवन के लिए एक मार्गदर्शिका है। जब आप कुछ प्रोडक्ट खरीदते हैं तो आपने गौर किया होगा कि इस प्रोडक्ट के साथ एक निर्देशिका भी आती है। जो हमें यह समझने में काम आती है कि उस प्रोडक्ट को कैसे इस्तेमाल करना है और उसमें कुछ चेतावनियां भी लिखी हुई होती है, ताकि हम उस प्रोडक्ट का अच्छे से इस्तेमाल कर सकें।
परमेश्वर का वचन हमारे जीवन के लिए भी एक निर्देशिका है। उसमें बताया गया है कि हमें किन-किन चीजों या बातों को अपने जीवन में लागू करना चाहिए, उनको लागू करने से हमें क्या फायदा होगा और उनको न मानने से हमें क्या नुकसान हो सकता है।
मसीह चाहता है कि हम उसके साथ चलें उसका वचन निर्देशों से सुसज्जित वचन है। उसका वचन आपको ज्ञान, समझ में बढ़ने के साथ-साथ उसके उद्देश्य, इच्छा और योजना को समझने के लिए निर्देश देता है। यह एक रोड-मैप की तरह है। मैप आपकी अनजान राहों में सहायता करता है कि आप अपनी मंजिल पर पहुंच सकें जिसे परमेश्वर ने आपके लिए तय किया है।
परमेश्वर आपसे प्यार करता है इसलिए उसने आपको अपनी निर्देशिका अर्थात बाइबल दी है कि आपको कैसे रहना है और उसके साथ चलना है। यदि आप मसीह में चलना चाहते हैं तो आपको उसके वचन को नियमित अध्ययन करने वाला व्यक्ति होना चाहिए। आप ज्ञान में बढ़ेंगे और वह आपको रास्ते में नेविगेट करने में मदद करेगा।
आप परमेश्वर के वचन में दिए गए निर्देशों के बिना मसीह के साथ चलने में नहीं बढ़ सकते। यदि आप परमेश्वर के वचन में बने रहेंगे तो सचमुच आप प्रभु यीशु के शिष्य ठहरेंगे। (John 8:31-32) परमेश्वर का वचन हमारे पांवों के लिए दीपक और मार्ग के लिए उजाला है। (Psalms 119:105) हमारा विश्वास भी वचन को सुनने से अर्थात मसीह के वचन के सुनने से बढ़ता है। (Romans 10:17)
परमेश्वर के वचन को न सिर्फ सुनना जरूरी है पर उसका लागूकरण अत्यधिक जरूरी है। बिना लागूकरण के जीवन बर्बादी की तरफ ही जाएगा। यीशु ने स्पष्ट किया कि यदि हम उस अपना प्रभु पुकारते हैं तो उसकी प्रभुता को स्वीकारना भी होगा। अन्यथा जब जीवन में मुश्किल समय आएगा तो हमारा घर तबाह हो जाएगा। (Luke 6:46-49) इसलिए यदि हम मसीह में चलना चाहते हैं तो आओ हम उसके वचनों में भी चलें, उसकी बातों को और उसकी आज्ञाओं का पालन भी करें।
विश्वास में चलना।
विश्वास में चलना जरूरी है। विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है। (Hebrew 11:1) यदि हमें परमेश्वर के साथ चलना है तो हमें विश्वास हमें चलना होगा। वचन बताता है परमेश्वर को विश्वास के बिना प्रसन्न करना अनहोना है और जो भी परमेश्वर के पास आता है उसे यह विश्वास करना है कि परमेश्वर है और अपने खोजने वालों को प्रतिफल देता है। (Hebrew 11:6)
हमारे पूरे जीवन में कई मौसम आते हैं। कुछ मौसम परीक्षणों के कठिन समय हो सकते हैं। यह सभी मौसम आपके विश्वास को बढ़ाने और परमेश्वर की महिमा के लिए है। परमेश्वर का वचन आपके जीवन की नींव है। आपको विश्वास में आगे बढ़ने की जरूरत है। प्रतिदिन आपको प्रभु यीशु के जैसे बनना है। ईश्वरीय स्वभाव में बढ़ने के लिए हमारी नीव विश्वास ही है। ये सब बातें हमें मसीह की पहचान में निकम्मे और निष्फल नहीं होने देगी। हम कभी ठोकर न खाएंगे और अनंत राज्य में बड़े आदर के साथ प्रवेश करने पाएंगे। (2 Peter 1:3-11)
कभी-कभी ऐसा समय भी आता है कि हम भी मसीह पर केंद्रित नहीं हो पाते हैं और उस वक्त हम भी पतरस की तरह व्यवहार करने लग जाते हैं और मसीह पर से अपनी दृष्टि हटाकर आसपास की हवाओं की ओर लगाते हैं। जिस वजह से हम डूबने लग जाते हैं और फिर प्रभु को पुकारते हैं, प्रभु प्रश्न पूछते हैं कि तुम्हारा विश्वास कहां है? (Matthew 14:22-33)
हमें विश्वास में चलने की आवश्यकता है और परिणाम के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखने की आवश्यकता है। विश्वास में चलने के लिए आपको अपनी आंखें यीशु पर केंद्रित करना जरूरी है। (Matthew 14:29) हमें रूप देखकर नहीं पर विश्वास से चलना है। (2 Corinthians 5:6-7) परमेश्वर हमें वो सामर्थ्य देते हैं जिससे हम सब कुछ कर सकते हैं। (Phillipians 4:13) हम सब विश्वास ही से धर्मी ठहराए गए हैं ताकि हम परमेश्वर से मेल रखें। (Romans 5:1-5)
प्रार्थना में प्रतिबद्ध रहते हुए चलना।
मैंने अपने बाइबल कॉलेज में सुना है कि प्रार्थना एक फ्री कॉल है, हर समय, कभी भी, कहीं से भी और हमेशा फुल सिग्नल रहता है। प्रार्थना परमेश्वर के साथ बातचीत है, संचार का एक माध्यम है। संचार किसी भी रिश्ते का एक अनिवार्य हिस्सा है। यदि आप कभी दूसरों से बात नहीं करते और वो भी आपसे बात नहीं करते तो आप कभी भी एक दूसरे को जान नहीं पाएंगे। यीशु के साथ चलने में प्रार्थना वह तरीका है जिसके द्वारा आप जितनी बार चाहे परमेश्वर से बात कर सकते हैं। यह परमेश्वर से बात करने का अवसर है। दूसरों के लिए हस्तक्षेप (Moses) करने के लिए रोना (Nehemiah) भी है।
जिसने आपको जीवन की सांस दी, वो आपको सुनना चाहता है। प्रार्थना सिर्फ आपको ही लाभ नहीं देती है बल्कि यह दूसरों को भी लाभ देती है। प्रार्थना और वचन की सेवा प्राथमिकता की सेवा है। (Acts 6:1-4) यीशु ने अपने शिष्यों, आने वाले विश्वासियों के लिए भी प्रार्थना की। (John 17:6-25) यीशु ने शिष्यों को प्रार्थना सिखाई कि वे कैसे प्रार्थना करे। (Matthew 6:9-15) यीशु खुद प्रार्थना के लिए अलग समय निकालते थे। (Mark 1:35, Luke 5:16) उन्होंने वास्तव में प्रार्थना के लिए प्राथमिकता दी और आपको भी उदाहरण और निर्देश देते हैं।
अच्छे या मुश्किल समय में प्रार्थना आपकी पहली प्रतिक्रिया होनी चाहिए। क्योंकि उसका घर प्रार्थना का घर होगा। (Matthew 21:13) सोचो क्या हम हैं उसका घर? चलने फिरने वाला जिंदा घर?
हमारे लिए यह आज्ञा है कि हम सदा आनंदित रहें, निरंतर प्रार्थना में लगे रहें और हर बात में धन्यवाद करते रहें। (1 Thess. 5:16-18) हमें दीन होकर उसके दर्शन के खोजी होना है ताकि हमारी भूमि ज्यों की त्यों हो जाए। (2 Chronicles 7:14) बस हम अनुग्रह के सिंहासन के सामने हियाव से आएं। (Hebrew 4:16)
मसीह में जड़ पकड़ते हुए चलना।
परमेश्वर ने आपको उसमें घनिष्ठ, जुड़ा हुआ स्थापित करने के लिए बनाया है। जैसे ही आप मसीह में चलते हैं, वह आपको गहराई में बढ़ने में मदद करेगा और आपको मसीह की देह में अन्य बढ़ते हुए अनुयायियों से जुड़ने में भी मदद करेगा। (Colossians 2:6-7) हमें याद रखने की आवश्यकता है कि “जैसे मसीह को प्रभु करके स्वीकार किया है, उसी में चलते रहना, उसी में जड़ पकड़ते जाना और बढ़ते जाना है। जैसे सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाना है और अधिक से अधिक धन्यवाद करते जाना है।” आपने गौर किया होगा और पौलूस की प्रार्थनाएं हमेशा आत्मिक उन्नति की प्रार्थनाएं होती थी। क्योंकि उसे मालूम था कि हमें प्रभु में जड़ पकड़ते जाना है।
“मैं इसी कारण उस पिता के सामने घुटने टेकता हूँ, जिस से स्वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है, कि वह अपनी महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दे कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्व में सामर्थ्य पाकर बलवन्त होते जाओ; और विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे हृदय में बसे कि तुम प्रेम में जड़ पकड़कर और नेव डाल कर, सब पवित्र लोगों के साथ भली-भाँति समझने की शक्ति पाओ कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊँचाई, और गहराई कितनी है, और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है कि तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ। अब जो ऐसा सामर्थी है कि हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ्य के अनुसार जो हम में कार्य करता है, कलीसिया में और मसीह यीशु में उसकी महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन।” (इफिसियों 3:14-21 HINDI-BSI)
भजन संहिता का लेखक स्पष्ट करता है कि जो व्यक्ति प्रभु की संगति में रहता है वह मानों ऐसे वृक्ष के समान है जो नदी के किनारे में लगा हो। उसकी पत्ते कभी मुरझाते नहीं, उसको निरंतर पोषण मिलता रहता है। वह तो बहुतों के लिए आशीष का कारण होता है। (Psalms 1:1-3)
उसकी आवाज को सुनते हुए और उसका अनुसरण करते हुए चलना।
यीशु हमारा मार्गदर्शक, पोषक और रक्षक है। वह हमारा अच्छा चरवाहा है और हम उस की भेड़ें हैं। यीशु कहते हैं कि मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं। (John 10:27-30) प्रभु यीशु वायदा करते हैं कि वह हमें अनाथ नहीं छोड़ेगा। (John 14:18) और यदि हम भी प्रभु में चलना चाहते हैं तो हमारा भी फर्ज बन जाता है कि हम उसकी इच्छा को अनुभव से मालूम करते रहें। (Romans 12:2) उसकी आवाज को सुनें और अनुसरण करते रहें।
उसके योग्य जीवन जीते हुए चलना।
अगर हम मसीह में चलना चाहते हैं तो हमें प्रतिदिन उसके योग्य जीवन जीना होगा। हमें परमेश्वर के मानकों के अनुसार हर दिन फैसला लेना और चलना होगा। वचन हमें यही प्रोत्साहित करता है कि जिस बुलाहट से हमें बुलाया गया है हम उसके योग्य चाल चलते रहें। (Ephesians 4:1)
हम नम्रता से चलें। (Micah 6:8) और अपने शरीरों को जीवित, पवित्र, परमेश्वर को भावता हुआ उसे समर्पित कर दें। (Romans 12:1-2) हमें यह याद रखना जरूरी है कि हम अपने आपको परदेसी, यात्री जाने ताकि…. और भले कार्यों में लगे रहें जिन्हें देखकर लोग परमेश्वर की महिमा करते रहें। (1 Peter 2:11-12)
पवित्र आत्मा पर निर्भर रहते हुए चलना।
एक प्रचलित विचार है कि आपको पूरी तरह से आत्मनिर्भर होना आवश्यक है और आपको किसी की जरूरत नहीं है। यह परमेश्वर के वचन के और व्यावहारिक स्तर पर विपरीत है यह विचार गलत और गर्वपूर्ण विचार है। परमेश्वर ने वादा किया है कि वह पवित्रआत्मा भेजेगा। यहां पर भी कई लोग सोचते हैं कि पवित्र आत्मा कोई वस्तु है, उनकी जानकारी के लिए बता दूं पवित्र आत्मा कोई वस्तु नहीं है; पवित्र आत्मा स्वयं ही परमेश्वर है।
पवित्र आत्मा आपका मददगार है। प्रभु यीशु ने प्यार से मदद भेजी ताकि आपको सशक्त बना सके, ज्ञान, दिशा और बहुत कुछ प्राप्त हो सके; और आप परमेश्वर के लिए पूरा जीवन जी सके। आपको जीवन के हर एक पहलू में पवित्र आत्मा की जरूरत है। अगर आप मसीह में चलना चाहते हैं तो हमेशा पवित्रआत्मा पर भरोसा रखना होगा। वही आपको शक्ति, ज्ञान, दिशा प्रदान करेगा, परमेश्वर की इच्छा प्रकट करेगा। पवित्रात्मा हमारी सहायता का सबसे बड़ा स्त्रोत है।
वह सब बातें सिखाएगा, स्मरण कराएगा, वह हमारा सहायक है। हमारा साथ रहने वाला है वह सत्य का आत्मा है। संसार उसे ग्रहण नहीं कर सकता क्योंकि वह सत्य का आत्मा है। वह आने वाली बातें हमें बताएगा, वह हमारी दुर्बलता में हमारे लिए विनती करता है। परमेश्वर का धन्यवाद हो उस अनुग्रह के लिए जो हमारे लिए बहुत है। (2 Corinthians 12:9-10, John 14:26, 16-18,13, Romans 8:26)
मसीह की देह का सक्रिय हिस्सा होते हुए चलना।
परमेश्वर ने आपको मसीह की देह का हिस्सा बनाया है। जिसमें आपको भी सक्रिय रहना है। आपको शरीर के भीतर दूसरों के साथ जुड़ने, समर्थन करने और काम करने की भी आवश्यकता है, ताकि दूसरों को मसीह में और पूर्ण होने में मदद मिल सके। आप मसीह की देह से अलग होकर कुछ भी नहीं कर सकते। हम एक साथ बेहतर हैं और शरीर के रूप में डिजाइन किए गए हैं।
सभी हिस्सों के बिना शरीर पूर्ण नहीं है। आप परमेश्वर की कारीगरी हैं। वह आपको उन आध्यात्मिक उपहारों से और प्यार से सुसज्जित करता है, जिन्हें आप को पृथ्वी पर प्रभावी रूप से उसकी सेवा और उसकी महिमा के लिए जरूरी है। आप यीशु के हाथों और पैरों का हिस्सा है। (Romans 12:5-8, Ephesians 4:25, 1 Corinthians 12:4-11)
चिंतन-मनन योग्य प्रश्न।
- क्या मेरे जीवन से यह प्रदर्शित होता है कि मैं नए जीवन के अनुसार चल रहा हूँ/रही हूँ?
- क्या मैं परमेश्वर के वचन को गंभीरता से लेता हूं? मैं उसके अध्ययन में, मनन में कितना समय बिताता/बिताती हूँ?
- क्या मैं हर परिस्थिति में उस पर विश्वास कर पा रहा/रही हूँ और अपना ध्यान उस पर केंद्रित कर पा रहा/रही हूँ?
- मेरा प्रार्थना का जीवन कैसा दिखता है? क्या मैं दूसरों के लिए भी प्रार्थना करता/करती हूँ?
- क्या मैं मसीह में जड़ पकड़ते जा रहा/रही हूँ?
- मुझे अपने जीवन में क्या बदलने की जरूरत है ताकि मैं योग्य तरीके से प्रभावी ढंग से चल सकूं?
- क्या मैं अपनी ताकत, ज्ञान और क्षमताओं पर भरोसा करता/करती हूँ? या पवित्र आत्मा पर निर्भर रहता/रहती हूँ, उससे मदद मांगता/मांगती हूँ और उसकी सुनता/सुनती हूँ?
- मुझे मसीह की देह का सक्रिय हिस्सा क्यों होना चाहिए?
Very nice 👍 All Glory to God
Really nice. how to walk with Christ. God bless you Brother. nice teaching
Thanks Sister