क्या फर्क पड़ता है? (What Difference Does It Make?) बहुत बार यह नज़रिया बताता है कि किसी व्यक्ति के लिए क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है और क्या कम महत्वपूर्ण है। ये अभिव्यक्ति उस व्यक्ति की पसंद या नापसंद भी प्रकट करती है। पर ये जरुरी नहीं है कि वह बात जरुरी न हो या वह चीज जो उस व्यक्ति को पसंद नहीं तो वह सबके लिए ख़राब ही हो या उसका कोई मूल्य न हो। बाइबल के अनुसार इस दुनियां में रहने वाले हर व्यक्ति के पास भले-बुरे में भेद करने की क्षमता है। फिर चाहे वो किसी भी देश का हो, किसी भी रंग का हो, किसी भी प्रवृति का हो, शिक्षित हो या अशिक्षित हो, उसके पास कोई कानून हो या न हो। हर व्यक्ति भले-बुरे के बीच में अन्तर कर सकता है
पर फिर भी कई बार हम मसीही लोग बहुत महत्वपूर्ण चीज को भी कम मूल्य का आंकते हैं। आप जानते हैं कि प्रभु यीशु इस दुनियां में इसलिए आए ताकि वो लोगों को उनके पापों से छुड़ाए और उन्हें स्वर्गीय नागरिकता प्रदान करे क्योंकि वो चाहते हैं कि कोई भी नाश न हो, एक भी नहीं। परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना इकलौता बेटा दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वो नाश न हो पर हमेशा की ज़िन्दगी प्राप्त करे। (यूहन्ना 3:16)
ध्यान दें कि उसने किससे प्रेम किया? जगत से न! तो मेरे प्रिय, इस जगत में हर एक प्राणी उसके लिए कीमती है, हर एक आत्मा कीमती है और वो परमेश्वर चाहता है कि कोई भी आत्मा नाश न हो। क्या आप परमेश्वर का निस्वार्थ प्रेम देख सकते हैं? और अनन्त जीवन पाने वाले के लिए भी एक ही शर्त है कि जो कोई (प्रत्येक जन) उस पर विश्वास करे, उसी का उद्धार होगा होगा।
यीशु मसीह ने जो उद्धार का कार्य किया, उसके लिए लोगों के साथ रहना जरुरी था। ताकि लोग परमेश्वर के व्यक्तित्व के बारे में जान सके। (मरकुस 3:13-15) उसके साथ उस सम्बन्ध को अनुभव कर सके, जो इन्सान के लिए परमेश्वर की इच्छा थी। उन्होंने अपनी शिक्षाओं के द्वारा बताया कि एक-एक भेड़ उनके लिए कीमती है, एक-एक सिक्का उनके लिए कीमती है, उड़ाऊ पुत्र उसके लिए कीमती है और वह परमेश्वर उस उड़ाऊ पुत्र का इंतजार करता है कि कब वो पुत्र लौट आए।
तो फिर प्रिय सेवक जन, आप किसी आत्मा के प्रति लापरवाह कैसे हो सकते हैं? आप किसी को कैसे तुच्छ जान सकते हैं? क्या आप भूल गए कि आपका कितना माफ़ किया गया है? (लूका 7:36-40) तो फिर आज जितने लोग परमेश्वर ने आपको सौंपे हैं उनके प्रति आप इतने लापरवाह क्यों हैं? क्या आप भूल गए हैं कि आपके पास सौंपे गए तोड़ों के बारे में एक दिन आपको हिसाब देना होगा? (मती 25:14-30) क्या आप हमारे सृष्टिकर्ता, प्रेमी प्रभु से यह नहीं सुनना चाहेंगे कि धन्य, हे विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा! (मती 25:21, 23) आज ही विचार करें कि आप कितने गंभीर हैं इस जीवन के प्रति, जो परमेश्वर ने आपको दिया है। आप उन लोगों के प्रति कितने गंभीर हैं, जो परमेश्वर ने आपको सौंपे हैं।
मेरे जीवन में सेवकाई की शुरुआत में मैंने इस बात को देखा कि हम प्रचारक लोग इतनी मेहनत करते हैं, एक सन्देश को तैयार करने के लिए; फिर भी लोग निरंतर संगति में कम ही पहुँच रहे हैं। हम संदेश को समस्या का आंकलन करने के बाद तैयार करते हैं और वो लोग वहां है ही नहीं जिनकी समस्या को हम सुलझाना चाहते हैं। (हालाँकि ये हमारा अपना ही मूल्यांकन होता है पर फिर भी सन्देश उन लोगों तक जरुर पहुंचता है जिनको भी इसकी जरुरत होती है।)
क्या समस्या हो सकती है? देखिये समस्या दोनों तरफ हो सकती है, उस भूमि में भी समस्या हो सकती है या फिर बोनेवाले को उपजाऊ भूमि का ज्ञान ही नहीं है। (मरकुस 4:1-9, 13-20) और मैंने इस बात को भी अनुभव किया है कि इस बात का पता हम में से बहुतों को बाद में पता चलता है कि कौन सी भूमि उपजाऊ है, कौन सी नहीं। पर इसके लिए पहले बोना तो पड़ेगा ही न! बिना खेत को तैयार किए, बिना बीज को बोये, हमें मालूम नहीं होगा कि हमारी मेहनत रंग लाएगी या नहीं। पर हमें तो अपना कार्य करते रहना चाहिए जैसा कि उपदेशक कहता है कि भोर को अपना बीज बो, और साँझ को भी अपना हाथ न रोक; क्योंकि तू नहीं जानता कि कौन सफल होगा, यह या वह, या दोनों के दोनों अच्छे निकलेंगे। (सभोपदेशक 11:6) हम फिर कहते हैं कि क्या फर्क पड़ता है? है न?
ज्वार-भाटा के दौरान अक्सर समुद्र कुछ चीज़ों को बाहर फेंकता है और कुछ को अपने में समेटकर ले जाता है। ऐसी ही कहानी ने मुझे प्रेरणा दी, जो मैं आज आपके साथ साझा करना चाहता हूँ ताकि जो प्रेरणा मुझे मिली वही आपको भी उत्साहित करे।
एक बार समुद्र में ज्वार-भाटा के दौरान बहुत सी मछलियाँ भी किनारे पर आकर तड़पने लगी। वहां किनारे पर एक लड़के से ये देखा नहीं गया और फटाफट एक-एक मछली को उठाकर समुद्र में फेंकने लगा। हालाँकि मछलियाँ इतनी ज्यादा थी कि उसके लिए सबको बचाना मुमकिन नहीं था, पर फिर भी वो मछली उठा-उठाकर पानी में फेंक देता था।
उसका ये कारनामा, थोड़ी दूर में खड़ा एक बुद्धिजीवी व्यक्ति देख रहा था और मन ही मन हंस रहा था। उससे रहा नहीं गया, वो उस लड़के के पास आया और उससे कहने लगा कि बेटा आप क्या कर रहे हो? बेटा तो एक-एक मछली को बचाना चाहता था इसलिए उसने उस बुद्धिजीवी व्यक्ति की बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपना काम करता रहा और वो व्यक्ति बार-बार उससे पूछता, बेटा आप कर क्या रहे हो? इससे क्या फर्क पड़ेगा? (What Difference Does It Make?) लड़का मछली को पानी में फेंकते हुए बोला, … इस को तो फर्क पड़ता है न?
मुझे लगता है कि आप समझ गए होंगे कि उस लड़के के लिए सभी मछलियों को बचाना संभव तो नहीं था पर फिर भी वो जितना कर सकता था उसमें उसने कोई ढिलाई नहीं दिखाई और अपना मछली बचाने के मिशन को पूरा करने का प्रयास करता रहा। ठीक इसी प्रकार आपका ध्यान भी आपके मिशन पर होना चाहिए। (मती 28:18-20) इसके लिए आपको स्वयं को केन्द्रित करना होगा। भले ही जो कार्य आप कर रहे हैं कोई उसे समझें या नहीं, आपको समझें या नहीं फिर भी जो कार्य प्रभु ने आपको सौंपा है, आपको उसमें विश्वासयोग्यता के साथ लगे रहना चाहिए। क्योंकि स्वामी के आने में अब देर नहीं है। (पढ़ें लूका 12:35-48)
मैंने इस कहानी के द्वारा प्रोत्साहन पाया। मुझे नहीं मालूम ये ज्वार-भाटा वाली कहानी सत्य है या नहीं, पर मेरे लिए तो इसने सीख दे ही दी। सेवकाई के शुरुआत में मैं सोचता था कि कलीसिया में समस्या को सुलझाने के लिए, मुझे सन्देश तैयार करना है और मैं उसको तैयार करता भी था। पर जब देखता कि संगति में तो सभी लोग नहीं पहुंचे जिन तक मैं ये सन्देश पहुँचाना चाहता, मुझे बहुत दुःख होता था कि क्या फायदा मेरी इतनी मेहनत का? क्या फर्क पड़ता है?
पर परमेश्वर ने मुझे अपने वचन से सिखाया कि परमेश्वर सबसे प्रेम करता है और उसका सन्देश सबके लिए जरुरी है। उसने कहा कि किसी व्यक्ति के पास सौ भेड़ें थी, एक उसमें से खो गई तो वह उस एक भेड़ को ढूंढने के लिए गया और जब वह भेड़ मिल गई तो वह आनंद मनाता है। (लूका 15:1-7) फिर यीशु एक और कहानी पेश करते हैं कि किसी औरत के पास दस सिक्के थे और उनमें से एक खो जाता है और ये औरत उस सिक्के को तब तक ढूंढती रहती है, जब तक कि वो सिक्का उसको मिल नहीं जाता। जब सिक्का मिल जाता है तो वह अपने पड़ोसियों के साथ आनंद मनाती है। (लूका 15:8-10) इसी तरह जब खोया हुआ पुत्र भी लौट आता है तो पिता आनंद मनाता है। (लूका 15:11-32) परमेश्वर ने अपने वचन में प्रकट किया कि वह प्रत्येक व्यक्ति को बचाना चाहता है। वह प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम करता है। ठीक उसी प्रकार से जिस तरह आप अपने बच्चों से प्रेम करते हैं, और चाहते हैं कि उनका भला हो।
परमेश्वर एक-एक व्यक्ति से प्रेम करता है, जिसके कारण प्रभु यीशु को इस दुनियां में आना पड़ा। तो फिर आप और मैं हर एक व्यक्ति के प्रति लापरवाह कैसे हो सकते हैं? हम उस जिम्मेदारी के प्रति लापरवाह कैसे हो सकते हैं जो प्रभु ने हमें दी है? विश्वासयोग्यता के साथ अपनी जिम्मदारी को निभाते रहें। भले ही कोई आपको सराहे या ना सराहे। पर एक दिन प्रभु जरुर आप को कहेंगे कि धन्य, हे विश्वासयोग्य दास… (मती 25:21, 23)
ज़रा सोचिए, यदि चरवाहा ये सोचने लगे कि सौ में से एक ही भेड़ तो गई है, इससे क्या फर्क पड़ेगा? तो क्या इससे सच में कोई फर्क नहीं पड़ता है? यदि वह औरत सोचती कि मेरे पास नौ सिक्के तो हैं यदि एक खो गया तो इससे क्या फर्क पड़ेगा? तो आपको क्या लगता है, क्या ये बात फर्क नहीं डालती है? और यदि पिता ये सोचने लगे कि एक ही बेटा तो खोया है, क्या फर्क पड़ेगा? तो क्या सच में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है?
हर एक छोटी सी छोटी बात फर्क डालती है, सेवक होने के नाते आपकी एक छोटी से छोटी हरकत भी बहुत फर्क डालती है, आपके निर्णय बहुत फर्क डालते हैं, आपका चालचलन बहुत फर्क डालता है, आपका केन्द्रित जीवन बहुत फर्क डालता है, आपका समय का उचित प्रबंधन फर्क डालता है, आपके धन का उचित प्रबंधन फर्क डालता है, आपके विश्वास के छोटे-छोटे कदम फर्क डालते हैं, छोटी से छोटी जिम्मेदारी को वफ़ादारी के साथ निभाना फर्क डालता है।
हालाँकि कई परिस्थितियों में एक सेवक को निराशा का सामना करना पड़ता है तो भी हमें अपनी सेवकाई के दौरान निराश होने की जरुरत नहीं है। आपको याद रखना चाहिए कि प्रभु आपके साथ है। (मती 28:20) भले ही आप बहुत लोगों तक पहुँच नहीं सकते, या बहुत लोगों को बचा नहीं सकते, फिर भी जो लोग आपके आसपास हैं उनके लिए प्रभु ने आपको ज्योति ठहराया हुआ है, आप पृथ्वी के नमक हैं।
इसलिए प्रभु के प्रिय सेवक जन! जो प्रभु का कार्य आप कर रहे हैं, उससे बहुत फर्क पड़ता है, उससे आत्माएँ नाश होने से बचती हैं, लोग आत्मिक रीति से परिपक्व होते जाते हैं और उससे स्वर्ग में आनंद होता है। आपके भले कामों को देखकर लोग परमेश्वर की महिमा करने पाएं।
शालोम
Jai Masih Ki. Sahi baat hai…