बाइबल के अनुसार सफलता क्या है?

सफलता के बारे में बाइबल क्या कहती है? (What does the Bible say about Success?)

बाइबल के अनुसार सफलता क्या है? सफलता के बारे में बाइबल क्या कहती है? (What does the Bible say about Success?) आज हर कोई सफलता के पीछे भाग रहा है। सफलता के लिए प्रयास कर रहा है, मेहनत कर रहा है, पसीना बहा रहा है। सबने सफलता को अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है। इसलिए लोग अपने-अपने तरीकों से सफलता हासिल करना चाहते हैं। लोग सफल जीवन जीना चाहते हैं, सफल दिखना चाहते हैं। 

बाइबल के अनुसार सफलता क्या है? (What does the Bible say about Success?)
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आप जरा सोचिए, क्या वो परमेश्वर आपकी सफलता नहीं चाहता है जिसने आपको रचा है? क्या उसको आपकी सफलता से कुछ तकलीफ़ होती है? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, कदापि नहीं! बल्कि आपको बनाने वाला परमेश्वर भी चाहता है कि आप अपने जीवन में सफल व्यक्ति बनें और उस उद्देश्य को पूरा करें जिसके लिए उसने आपको रचा है।

सफलता क्या है?

परिभाषा के अनुसार, सफलता उस लक्ष्य या उद्देश्य को पूरा करना है जिसे पाने के लिए आपने अपने मन में संकल्प लिया है। बहुत से लोग सफल होने का सपना देखते हैं हर व्यक्ति के लिए सफलता के अपने-अपने मायने हैं। लोग सोचते हैं कि मेरे तो जीवनसाथी के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं, बिलों का भुगतान समय पर किया जाता है, समाज में मेरी बेहतर स्थिति है और हम कर्ज-मुक्त रहते हैं। इसलिए मैं तो एक सफल व्यक्ति हूँ।

समृद्धि क्या है?

समृद्धि, सफलता और संपन्नता की स्थिति में होना है। खासकर जब बात आर्थिक संपन्नता की हो। जब हम समृद्धि के बारे में सोचते हैं, तो हम धनवान लोगों के बारे में सोचते हैं। ये लोग अपनी आर्थिक स्थिति की चिंता किए बिना किसी भी समय लगभग कुछ भी खरीद सकते हैं। इंडोनेशिया में एक बार मैंने अपने मित्र से कहा, यहाँ तो सब कुछ काफी महंगा है! तो उन्होंने उसके जवाब में कहा, कि जिसके पास पैसा है उसके लिए कुछ भी महंगा नहीं है।

आप समृद्ध लोगों को किसी महंगे रेस्तरां में खाने का ऑर्डर देने से पहले अपने खाते की शेष राशि की जाँच करते हुए नहीं पाएंगे। वास्तव में समृद्धि धन से कहीं अधिक है। इसमें आत्मिक, मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ होना भी शामिल है। इनमें से किसी भी चीज का अभाव, समृद्धि का अभाव है। 

बाइबल के अनुसार सफलता क्या है? (What does the Bible say about Success?)
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आपने देखा होगा बहुत से लोगों के पास धन-सम्पति की कोई कमी नहीं है, पर आप पाएंगे कि इनमें से बहुतों के पास जीवन में कोई शांति और आराम नहीं है। ये एक वक्त का खाना भी शांति और आराम के साथ नहीं खा पाते हैं। इनका ज्यादातर जीवन चिंताओं में रहता है, धन सम्पति को बढ़ाने में लगा रहता है और उसके बाद उसको सुरक्षित रखने में भी। क्या आपको लगता है कि समृद्ध होना सफलता है? आप अपने जीवन में पायेंगे कि आपका पैसा आपकी समस्याओं का समाधान करने विफल हो रहा है।

कोई व्यक्ति वास्तव में तब समृद्ध होता है जब वह उसके पास मौजूद हर चीज के लिए आभारी होता है, चाहे वह कितनी भी बड़ी या छोटी क्यों न हो।

लोग सफलता के बारे में क्या समझते हैं?

यदि आप किसी व्यक्ति से पूछें, कि सफलता क्या है? तो वह सफलता को कैसे परिभाषित करेगा? लोग शायद बहुत सारे अलग-अलग उत्तर देंगे। कोई कह सकता है कि धनवान होना ही सफलता है। कोई अन्य व्यक्ति सफलता को एक अच्छा परिवार और बच्चे होने के रूप में परिभाषित कर सकता है। फिर कोई कह सकता है कि स्वस्थ रहना और लंबे जीवन का आनंद लेना ही सफलता है। 

किसी के लिए सफलता सिर्फ यही है कि उनके पास आर्थिक आज़ादी हो, किसी के लिए सफलता ये है कि उनके बच्चे किसी नौकरी को हासिल कर लें, किसी के लिए सफलता एक भव्य घर बनाना है, किसी के लिए सफलता समाज में अच्छा सम्मानित व्यक्ति बनना है, किसी के लिए सफलता देश-दुनियां का सबसे धनवान व्यक्ति बनना है। किसी के लिए सफलता मनचाहा विवाह होना है। किसी के लिए सफलता सरकारी नौकरी हो सकती है। किसी के लिए सफलता राजनीतिक दल में शामिल होना हो सकता है। हर दस लोगों से पूछे जाने पर, आपको सफलता के बीस अलग-अलग विचार मिल सकते हैं!

सफलता के बारे में लोगों के विचार और राय उनके व्यक्तिगत अनुभवों, मूल्यों और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। सफलता पर कुछ सामान्य दृष्टिकोण यहां दिए गए हैं:

  • उपलब्धि: कई लोग सफलता को कुछ खास लक्ष्यों या उपलब्धियों को प्राप्त करने के रूप में देखते हैं, चाहे वे करियर, शिक्षा, रिश्तों या व्यक्तिगत विकास से संबंधित हों। यह दृष्टिकोण अक्सर कड़ी मेहनत, दृढ़ संकल्प और मील के पत्थर तक पहुंचने पर जोर देता है।
  • भौतिक धन-संपत्ति: समाज में सफलता अक्सर भौतिक धन-संपत्ति से जुड़ी होती है। संपत्ति जमा करना, महंगी वस्तुओं का मालिक होना और शानदार जीवनशैली का आनंद लेने को लोग सफलता समझते हैं।
  • खुशी और संतुष्टि: कुछ व्यक्तियों का मानना है कि जीवन में खुशी और संतुष्टि प्राप्त करना ही सच्ची सफलता है। यह दृष्टिकोण भावनात्मक स्वास्थ्य पर जोर देता है।
  • मान्यता और स्थिति: सफलता को किसी के चुने हुए क्षेत्र या समुदाय में मान्यता, सम्मान और स्थिति प्राप्त करने के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह दृष्टिकोण अक्सर व्यावसायिक उपलब्धियों और किसी के दूसरों पर पड़ने वाले प्रभाव से जुड़ा होता है।
  • व्यक्तिगत विकास: कुछ लोगों के लिए, सफलता निरंतर व्यक्तिगत विकास, आत्म-सुधार और आत्म-खोज के बारे में है। इसमें चुनौतियों पर विजय पाना, नए कौशल सीखना और खुद का बेहतर बनाना शामिल हो सकता है।
  • योगदान और प्रभाव: कई लोगों का मानना है कि सफलता का मतलब दुनियांं पर सकारात्मक प्रभाव डालना, दूसरों की भलाई में योगदान देना और एक स्थायी विरासत छोड़ना है। 
  • संतुलित जीवनशैली: सफलता को जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे अपने काम, परिवार, स्वास्थ्य और अवकाश के बीच संतुलन हासिल करने के रूप में भी देखा जाता है। लोग इस संतुलन को कायम रखने को सफलता मानते हैं।
  • व्यक्तिगत लक्ष्य: सफलता को अक्सर किसी व्यक्ति के अद्वितीय लक्ष्यों और आकांक्षाओं के आधार पर व्यक्तिगत स्तर पर परिभाषित किया जाता है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि जो चीज़ एक व्यक्ति के लिए सफलता लाती है, हो सकता है कि वह दूसरे के लिए महत्व ही न रखे।
  • दृढ़ता और लचीलापन: कुछ लोग सफलता को चुनौतियों और असफलताओं के सामने दृढ़ता और लचीलेपन के परिणाम के रूप में देखते हैं। बाधाओं पर काबू पाना और लचीलापन प्रदर्शित करना अपने आप में सफलता का एक पैमाना माना जाता है।
  • तुलना और सामाजिक अपेक्षाएँ: बाहरी कारक, जैसे कि सामाजिक मानदंड, सांस्कृतिक मूल्य और दूसरों के साथ तुलना, व्यक्तियों की सफलता को प्रभावित कर सकते हैं। लोग तब सफल महसूस कर सकते हैं जब वे कुछ सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा करते हैं या जब वे अपने साथियों या सहकर्मियों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

लोगों ने जिन तरीकों को अपने अनुभव से सीखा उसको एक सूत्र समझकर दूसरों को भी सफलता के सूत्र सिखाने में डटे हैं। पर यदि आप भी सच्ची सफलता के बारे में जानना चाहते हैं तो परमेश्वर के वचन बाइबल आपकी मदद करने के लिए तैयार है। क्या कोई ऐसे माता पिता हैं जो अपने बच्चों के संघर्षों को देखकर खुश होते हों? आपको क्या लगता है कि क्या परमेश्वर नहीं चाहता है कि आप अपने जीवन में एक सफल व्यक्ति बनें? परमेश्वर चाहता है कि आप अपने जीवन में एक सफल व्यक्ति भी बनें और एक प्रभावशाली व्यक्ति भी। आइए सफलता के बारे में देखें कि बाइबल क्या कहती है।

बाइबल सफलता के बारे में क्या सिखाती है?

बाइबल के अनुसार सफलता क्या है? बाइबल में सफलता और समृद्धि के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। एक मसीही होने के नाते हमें अपने दृष्टिकोण को बाइबल आधारित रखना सीखना होगा। याद रखें कि हमारे विचारों और परमेश्वर के विचारों में ज़मीन और आसमान जैसा अंतर है। (यशायाह 55:8-9) जब आप सफलता के बारे में बाइबल की आयतों को देखेंगे, तो आप पाएंगे कि इसके बारे में परमेश्वर का दृष्टिकोण उस दृष्टिकोण से भिन्न है जो हम अपने समाज में प्रतिदिन देखते हैं।

बाइबल के अनुसार सफलता क्या है? (What does the Bible say about Success?)
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जो सफलता और समृद्धि हम परमेश्वर में पाते हैं वही “सच्ची” सफलता है। याकूब 1:17 कहता है, “हर एक अच्छी वस्तु, और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से दिया जाता है…” पवित्र बाइबल में, सफलता पहले परमेश्वर पर ध्यान केंद्रित करने पर आधारित है और जिन चीज़ों को हम प्राप्त करना चाहते हैं वे तो द्वितीय हैं। 

जब यह समझने की बात आती है कि बाइबल सफलता के बारे में क्या कहती है, तो यह देखना सहायक होता है कि बाइबल हमारी दुनियांं में लोगों की सफलता की कुछ परिभाषाओं को कैसे संबोधित करती है। जब बहुत सारा पैसा रखने की बात आती है, तो बाइबल कहती है कि परमेश्वर ही है जो किसी को धनी बनाता है। (नीतिवचन 22:2) बढ़ती न पूर्व से आती है न पश्चिम से, बल्कि परमेश्वर से आती है। (भजन संहिता 75:6-7) यहां घोषणा यह है कि परमेश्वर सभी लोगों को, सब चीज़ें देने वाला है। 

जब विभिन्न क्षेत्रों में सफलता की ओर ले जाने वाले कौशल और क्षमताओं की बात आती है, तो हम बाइबल में देखते हैं कि परमेश्वर सभी वस्तुओं का स्वामी है। 1 कुरिन्थियों 4:7 पर विचार करें, “क्योंकि तुझ में और दूसरे में कौन भेद करता है? और तेरे पास क्या है जो तू ने (दूसरे से) नहीं पाया? और जब कि तू ने (दूसरे से) पाया है, तो ऐसा घमण्ड क्यों करता है कि मानो नहीं पाया?” इन प्रश्नों में भाव यह है कि हमारी योग्यताएँ और कौशल परमेश्वर से आते हैं।

प्रभाव और शक्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं? यूहन्ना 19:11 में, जब पीलातुस ने यीशु से कहा कि उसके पास उसे मुक्त करने या क्रूस पर चढ़ाने की शक्ति है, तो यीशु ने उत्तर दिया, “यदि यह तुम्हें ऊपर से नहीं दिया गया होता तो तुम्हारा मुझ पर कोई अधिकार नहीं होता।” इसलिए सांसारिक अधिकार भी, जिसके द्वारा कुछ हद तक सफलता मापी जाती है, परमेश्वर का एक उपहार है।

ये केवल कुछ पद हैं जो घोषणा करते हैं कि हर चीज, हर क्षमता और हर स्थिति परमेश्वर का उपहार है। यदि कोई भी व्यक्ति “सफल” के रूप में परिभाषित कुछ भी कर सकता है, तो यह केवल इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने उसे वह क्षमता दी है।

इससे भी अधिक, जिन चीज़ों को हम सफलता के चिह्न मानते हैं, हो सकता है कि वे परमेश्वर की दृष्टि में कुछ भी मूल्य न रखती हों। 1 यूहन्ना 2:15-17 में, इस संसार की चीज़ों को दृष्टिकोण में रखा गया है:

“तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो। यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा और आँखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं परन्तु संसार ही की ओर से है। संसार और उसकी अभिलाषाएँ दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है वह सर्वदा बना रहेगा।”

ये लेखांश इस दुनियांं की हर उस चीज़ को शामिल करता है जिसके बारे में हम यह सोचकर प्रलोभित हो सकते हैं कि इससे सफलता मिलती है। यदि हम इन चीज़ों से प्रेम कर रहे हैं और उनका अनुसरण कर रहे हैं, यह सोचकर कि उनमें आनंद और संतुष्टि पाई जाती है, तो हम पाएंगे कि वे खोखली हैं। इस संसार की प्राप्ति सफलता का सच्चा चिह्न नहीं है।

परमेश्वर सफलता को बहुत सरलता से परिभाषित करता है। यीशु की यही प्रार्थना थी, “और अनन्त जीवन यह है कि वे तुझ एकमात्र सच्‍चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्ना 17:3) वचन कहता है, “तू मुझे जीवन का रास्ता दिखाएगा; तेरे निकट आनन्द की भरपूरी है, तेरे दाहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है।” (भजन संहिता 16:11) यीशु कहते हैं, “इससे आनन्दित मत हो कि आत्माएँ तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इस से आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हैं।” (लूका 10:20)

इन आयतों से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि अंतिम सफलता बचाया जाना और सच्चे परमेश्वर को जानना है। हमें इस संसार में अपनी योग्यताओं, विजयों और सम्पत्तियों के कारण आनन्दित नहीं होना चाहिए। सच्ची सफलता जिसमें हम आनन्दित होते हैं वह है इस दुनियांं पर विजय पाना, बचाया जाना और स्वर्ग में यीशु के साथ रहना है।

परमेश्वर सफलता को दुनियांं की तुलना में अलग ढंग से मापता है। यीशु ने कहा, “जो तुम सब में सबसे छोटा है वही सबसे बड़ा है।” (लूका 9:46-48) सच्ची और अनंत सफलता के लिए धन, कौशल और प्रभाव अप्रासंगिक हैं। बाइबल की सफलता जो परमेश्वर को प्रसन्न करती है और उसकी महिमा करती है, यीशु मसीह और उसके सुसमाचार में विश्वास के माध्यम से उसे जानना और उसकी सेवा करना है। इस प्रक्रिया में पहला कदम यीशु मसीह के द्वारा प्रस्तावित अनन्त जीवन के मुफ्त उपहार को स्वीकार करना है। (यूहन्ना 3:16) यह बाइबल आधारित सच्ची सफलता का आरम्भ है। 

राजा दाऊद इस दुनियां से जाने से पहले अपने पुत्र सुलैमान को निर्देश देता है कि “जो कुछ तेरे परमेश्‍वर यहोवा ने तुझे सौंपा है, उसकी रक्षा करके उसके मार्गों पर चला करना और जैसा मूसा की व्यवस्था में लिखा है, वैसा ही उसकी विधियों तथा आज्ञाओं, और नियमों, और चितौनियों का पालन करते रहना; जिससे जो कुछ तू करे और जहाँ कहीं तू जाए, उसमें तू सफल होए। (1 राजा 2:3) ध्यान दें कि दाऊद ने अपने पुत्र को बड़ी सेनाओं के साथ अपना राज्य बनाने, या दूसरों की भूमि से धन इकट्ठा करने, या युद्ध में अपने शत्रुओं को पराजित करने के लिए नहीं कहा था। इसकी अपेक्षा, उसकी सफलता का सूत्र परमेश्‍वर का अनुसरण करना और उसकी आज्ञा को मानना था। 

जब सुलैमान राजा बना, तो उसने धन और सामर्थ्य के लिए परमेश्‍वर से मांग नहीं की, परन्तु परमेश्‍वर के लोगों की अगुवाई करने के लिए ज्ञान और विवेक की मांग की थी। उसके इस विनती से परमेश्‍वर प्रसन्न हुआ था और उसने सुलैमान को एक बुद्धिमान और समझदारी से भरा हुआ मन दिया। उसने सुलैमान को वह वस्तुएँ भी दीं जो उसने नहीं मांगी थीं – अर्थात् लोगों के बीच धन और सम्मान। (1 राजा 3:1-14) सुलैमान ने अपने पिता के निर्देश के ऊपर कम से कम अपने शासनकाल के शुरुआत में मन लगाया था।

इन बातों पर चिन्तन को नीतिवचन की पुस्तक में इस तरह से प्रतिबिम्बित किया है: “हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना; अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना; क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, और तू अधिक कुशल से रहेगा। कृपा और सच्‍चाई तुझ से अलग न होने पाएँ; वरन् उनको अपने गले का हार बनाना, और अपनी हृदयरूपी पटिया पर लिखना, तो तू परमेश्‍वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा।” (नीतिवचन 3:1-4)

जब हम परेशानी और कठिन समय में से होकर जाते हैं, जिसे बाइबल “परीक्षण” या जाँच कहती है, हम उसे बड़ी शान्ति और उसके मार्गदर्शन के साथ सहन करने में सक्षम होते हैं, और हम यह समझने लगते हैं कि परमेश्‍वर उन्हीं परीक्षणों को हमारे आन्तरिक व्यक्ति को सामर्थी बनाने के लिए उपयोग करता है। (यूहन्ना 16:33; याकूब 1:2) दूसरे शब्दों में कहें तो, जीवन में समस्यायें हमें असफल नहीं बनाती, बल्कि हम परमेश्‍वर के अनुग्रह और ज्ञान के कारण समस्याओं में से होकर निकलते हैं।

इसके अतिरिक्त, मसीहियों के पास परमेश्‍वर के आत्मा का फल है, जो उनके मनों में वास करते हैं। जो प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम रखते हैं। (गलतियों 5:22-23) हमारे पास वह ज्ञान है कि हमें क्या करना है और कहाँ मुड़ना है। (नीतिवचन 3:5-6), ज्ञान की बाधा रहित मात्रा है। (याकूब 1:5) और ऐसी शान्ति है, जो हमारी समझ से परे है। (फिलिप्पियों 4:7)

जैसे-जैसे हम मसीह में आगे की ओर बढ़ते और परिपक्व होते हैं, हम केवल अपने बारे में नहीं बल्कि दूसरों के बारे में भी सोचना शुरू करते हैं। हमारा सबसे बड़ा आनन्द वह बन जाता है, जो हम दूसरों के लिए कर सकते हैं और दूसरों को दे सकते हैं, और कैसे हम उन्हें आत्मिक रूप से विकसित होने और समृद्ध होने में सहायता कर सकते हैं। यही सच्ची सफलता है, क्योंकि एक व्यक्ति के पास संसार की सारी शक्ति, धन, लोकप्रियता और प्रतिष्ठा हो सकती है, परन्तु यदि उसका प्राण खाली और कड़वाहट से भरा हुआ है, तो सांसारिक सफलता वास्तव में विफलता है। “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?” (मत्ती 16:26)

हमारे आन्तरिक जीवन में परिवर्तन लाना हमारे लिए परमेश्‍वर का लक्ष्य है। यदि हम अपने जीवन में परमेश्वर का आदर करते हैं तो इसके परिमाणस्वरुप परमेश्वर हमें वो भी देता है जिसके लिए आज बहुत से लोग बड़ा परिश्रम कर रहे हैं। (नीतिवचन 22:4) मनुष्य अपने मन में योजनाएं तो बनाता है परंतु परमेश्वर ही सफलता देता है। (नीतिवचन 19:21, नहेम्याह) घर का असली बनानेवाला परमेश्वर ही है, हमारी सर्वोत्तम सुरक्षा परमेश्वर ही है। (भजन संहिता 127:1) युद्ध के लिए घोड़ा तैयार तो होता है पर विजय परमेश्वर ही देता है। (नीतिवचन 21:31, 1 शमूएल 17:45-49, 2 इतिहास 20) 

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बाइबल इस बात पर जोर देती है कि सच्ची सफलता अक्सर आज्ञाकारिता, विश्वासयोग्यता और परमेश्वर का मार्गदर्शन प्राप्त करने से जुड़ी होती है। यहोशू के लिए निर्देश स्पष्ट था कि व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित से कभी उतरने न पाए, तू रात दिन परमेश्वर के वचन पर ध्यान देना और उसके अनुसार करने की चौकसी करना तब तेरे सारे काम सफल होंगे और तू प्रभावशाली होगा। (यहोशू 1:8) परमेश्वर के वचन से प्रसन्न रहना और उस पर मनन करना, हमें जीवन में सफलता प्रदान करता है। (भजन संहिता 1:1-3) इससे पिता की महिमा भी होती है कि हम उद्देश्य को पूरा करें जिसके लिए हमें चुना गया है, बुलाया गया है, जोड़ा गया है। (यूहन्ना 15:1-8)

बाइबल सिखाती है कि सफलता को अनंतकाल के प्रकाश में देखा जाना चाहिए, अस्थायी सांसारिक लाभों के बजाय स्वर्ग में खजाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। (मती 6:19-21, कुलुस्सियों 3:1-4) सफलता पर बाइबल की शिक्षाएँ अक्सर आत्मिक उन्नति, चरित्र निर्माण और ऐसा जीवन जीने पर केन्द्रित हैं जो केवल सांसारिक उपलब्धियों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय परमेश्वर के मूल्यों पर ध्यान केन्द्रित करना है। (मती 6:33) परमेश्वर भी चाहता है कि हम सफल बनें। सच्ची सफलता परमेश्वर पर भरोसा करने से मिलती है। सच्ची सफलता परमेश्वर के अनुसार जीना है। इसलिए, सफलता का इस बात से बहुत संबंध है कि एक व्यक्ति अपने पास मौजूद धन-संपत्ति की तुलना में किस चीज़ को अधिक महत्व देता है।

इसलिए एक मसीही होने के नाते हमें परमेश्वर के उद्देश्य को ध्यान में रखकर जीना होगा जिसके लिए यीशु इस दुनियां में आए। परमेश्वर चाहता है कि कोई भी नाश न हो बल्कि उद्धार प्राप्त करे। हम यीशु जैसे बने, जैसे परमेश्वर का स्वभाव है, वैसा ही हमारा भी हो, जैसे वो पवित्र है वैसे ही हम भी बनते जाएँ।

अंत में मैं यही कहना चाहता हूँ कि सच्ची सफलता अपनी योजनाओं की पूर्ति में नहीं है बल्कि हमारे बनाने वाले एकमात्र परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीने से मिलती है जिसे आप बाइबल पढ़कर जान सकते हैं। सच्ची सफलता भौतिक समृद्धि से कभी भी प्राप्त नहीं की जा सकती है, बल्कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने में मिलती है।

इसलिए सफलता के पीछे मत भागो, बल्कि परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को घनिष्ठ बनाने का यत्न करते रहो! सफलता की खोज मत करो, परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता की खोज करो; आपको सफलता ज़रूर प्राप्त होगी।

शालोम

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Anand Vishwas
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