एलिय्याह का परमेश्वर कहां है? कहां हैं परमेश्वर के भक्त एलिय्याह जैसे लोग? (Where Are The Elijahs Of God?) क्या परमेश्वर बदल गया है? या उसके लोग बदल गए हैं? यह लेख आत्म जागृति में देरी क्यों? (Why Revival Tarries?) से लिया गया है। जिसे इंग्लैंड के मसीही भाई लियोनार्ड रेवनहिल द्वारा लिखा गया है। वो एक जागृति विशेषज्ञ थे। उनकी डांट भरे संदेश, उन सभी सेवकों को उत्साहित करते हैं जो सच में गंभीरता के साथ प्रभु की सेवकाई को कर रहे हैं। ये संदेश जरूर इनके पढ़ने वालों को प्रार्थनाशील व्यक्ति बना कर रख देंगे! जब ऐसा होगा तो कोई भी आत्म जागृति को रोक नहीं पाएगा। आइए साथ में उनके लिखे हुए संदेश को पढ़ते हैं… अपना हृदय कठोर मत कीजिएगा, बल्कि प्रार्थना की कोठरी में जाकर परमेश्वर के पास गिड़गिड़ाईएगा।
क्या हम दिन में अपने शरीर के बाजू पर बहुत अधिक आराम नहीं करते हैं? क्या अब वही चमत्कार नहीं हो सकते जो पुराने थे? जो लोग उस पर भरोसा रखते हैं, उनकी ओर से अपने आप को बलवन्त दिखाने के लिये क्या यहोवा की आंखें अब भी सारी पृथ्वी पर इधर-उधर नहीं दौड़ती हैं? ओह, कि परमेश्वर मुझे उस पर और अधिक व्यावहारिक विश्वास देगा! अब एलिय्याह का परमेश्वर यहोवा कहाँ है? वह इंतजार कर रहा है कि एलिय्याह उसे बुलाएगा। -James Gilmour of Mongolia
“एलिय्याह का परमेश्वर कहां है?” इस प्रश्न का उत्तर है, “जहां वह हमेशा से विराजमान है अर्थात सिंहासन पर!” परंतु आज परमेश्वर के एलिय्याह कहां है? हम जानते हैं कि एलिय्याह भी तो हमारे समान दुःख-सुख भोगी मनुष्य था। (याकूब 5:17) लेकिन बड़े दुःख के साथ कहना पड़ता है कि हम लोग उसके समान प्रार्थनाशील व्यक्ति नहीं हैं। एक प्रार्थनाशील व्यक्ति परमेश्वर के सामने, बहुमत के रूप में खड़ा होता है। आज परमेश्वर बहुत से मनुष्यों को अपने उपयोग में नहीं ला रहा है, इसलिए नहीं, कि वे सब अज्ञानी हैं बल्कि इसलिए क्योंकि वे सोचते हैं कि वे अपने आप में परिपूर्ण हैं। भाइयों, हमारी योग्यताएं ही हमारी बाधाएं बन गई हैं और हम को प्राप्त हुए वरदान ही हमारे ठोकर का कारण बन गए हैं।
गुप्त में रहने के पश्चात एलिय्याह पुराने नियम के मंच पर एक परिपक्व मनुष्य के रूप में आया। रानी इज़बेल, जो साक्षात नरक की पुत्री थी। उसने परमेश्वर के सेवकों को उखाड़ फेंका था और झूठे देवताओं को स्थापित किया था। सारे देश में अंधकार छा गया था। उस समय के लोग अंधकार में जी रहे थे तथा अधर्म व दुष्टता का पान कर रहे थे। प्रतिदिन देश अन्यजातियों के मंदिरों एवं मूर्तियों की पूजा विधियों से दूषित हो रहा था और एलिय्याह हजारों क्रूरता की वेदियों से उठते हुए धुएं को देखा करता था।
ये सब बातें उन लोगों के बीच में हो रही थी, जो अब्राहम को अपना पिता मानते थे और जिनके बापदादों ने कठिन से कठिन परिस्थितियों में परमेश्वर को जब भी पुकारा, परमेश्वर ने उनकी सहायता की। अब क्यों महिमा वाला परमेश्वर उनको छोड़कर चला गया? नमक ने अपना स्वाद खो दिया! स्वर्ण ने अपनी चमक खो दी! परंतु इतनी सारी अनगिनत गिरावटों के बावजूद परमेश्वर ने एक मनुष्य को खड़ा किया – किसी कमेटी, किसी संप्रदाय या स्वर्गदूत को नहीं – परंतु एक मनुष्य को, जो हमारे समान दुःख – सुख भोगी मनुष्य था। परमेश्वर ने इस मनुष्य को उपदेश देने के लिए नहीं परंतु अपने और मनुष्यों के बीच प्रार्थना में खड़े होने के लिए खोजा। अब्राहम के समान अब एलिय्याह भी परमेश्वर के सामने खड़ा हुआ। (उत्पत्ति 18:16-33) इसलिए धन्य पवित्र आत्मा ने एलिय्याह के विषय में महत्वपूर्ण शब्द लिखे: “उसने गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की” (याकूब 5:17) कोई मनुष्य, मनुष्यों के लिए या परमेश्वर के लिए इससे ज्यादा नहीं कर सकता है। यदि आज की कलीसिया में जितने सलाह देने वाले हैं उतने संताप करने वाले होते, तो एक वर्ष के अंदर जागृति आ जाती।
हम ईश्वरीय कार्यालय के दौरान हमें विचलित करने के लिए दुष्ट आत्माओं के प्रयासों से प्रार्थना की उपयोगिता जानते हैं; और हम अपने शत्रुओं की हार में प्रार्थना के फल का अनुभव करते हैं। -John Climacus
ऐसी प्रार्थना करने वाले लोग हमारे राष्ट्र के हितकारी हैं। एलिय्याह भी ऐसा ही था। उसने एक आवाज सुनी, एक दर्शन प्राप्त किया, परमेश्वर की शक्ति का रसास्वादन किया, अपने दुश्मन को नापा और परमेश्वर के सहयोग से विजय प्राप्त की। (पढ़ें 1 राजा 17-19, 2 राजा 1-2 अध्य्याय) इस संबंध में उसे कितने आंसू बहाने पड़े, कैसी-कैसी यातनाएं उसकी आत्मा को सहनी पड़ी, कितनी आँहें उसने भरी, यह सब बातें परमेश्वर की इतिहास की पुस्तक में लिखी गई हैं। इन सब बातों से गुजरने के बाद एलिय्याह परमेश्वर के अकाट्य (Divine Infallibility) भविष्यद्वक्ता के रूप में प्रकट हुआ। वह परमेश्वर के मन को जानता था। इसलिए एक मनुष्य होकर भी उसने उस राष्ट्र को हिला दिया और प्रकृति के स्वभाविक नियम को भी बदल दिया। (1 राजा 17:1)
आकाश को केवल एक शब्द से बंद करके, यह गंभीर व्यक्ति गिलाद के पहाड़ के समान अडिग खड़ा रहा। (1 राजा 17:1) विश्वास की कुंजी के द्वारा जो हर ताले में लग जाती है, एलिय्याह ने आकाश को बंद कर दिया और कुंजी को अपनी जेब में रख लिया और अहाब राजा को थरथरा दिया। यह वास्तव में अद्भुत है; जब परमेश्वर एक मनुष्य को पकड़ता है लेकिन यह और भी अद्भुत बात है जब एक मनुष्य, परमेश्वर को पकड़ता है। जब एक परमेश्वर का भक्त आत्मा में दुःख से कराहता है तो परमेश्वर कहता है, “मुझे छोड़ दे।” हम एलिय्याह जैसे कठिन कार्यों को तो करना चाहते हैं परंतु उसकी तरह कठिन स्थितियों से गुजरना नहीं चाहते।
भाइयों, यदि हम परमेश्वर के कार्य को परमेश्वर के तरीके से, परमेश्वर के समय से और परमेश्वर की सामर्थ से करें तो हमें परमेश्वर की आशीष प्राप्ति होगी और शैतान का श्राप। जब परमेश्वर स्वर्ग की खिड़कियों को हम लोगों को आशिषित करने के लिए खोलता है उसी समय शैतान भी नर्क के द्वार हम लोगों को नष्ट करने के लिए खोलता है। परमेश्वर की मुस्कुराहट का अर्थ है शैतान का क्रोध।
जब हम प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर के पास जाते हैं, तो शैतान जानता है कि हम उसके खिलाफ ताकत लाने के लिए जाते हैं, और इसलिए वह हमारा विरोध करता है जो वह कर सकता है। -R. Sibbes
उपदेशक कई व्यक्तियों की सहायता करेगा और नुकसान किसी को नहीं पहुंचाएगा परंतु एक भविष्यवक्ता अपनी बातों से तमाम व्यक्तियों के हृदयों को झिंझोड़ डालता है और कुछ व्यक्तियों को क्रोधित बना देता है। उपदेशक एक भीड़ के साथ चलता है, भविष्यवक्ता उसके विपरीत चलता है। एक ऐसा व्यक्ति जो स्वच्छंद है और परमेश्वर के द्वारा सामर्थ से पूरित है वह एक देशद्रोही मान लिया जाता है क्योंकि वह राष्ट्र के पाप के विरुद्ध बोलता है ऐसा इसलिए है क्योंकि उसकी जीभ एक दोधारी तलवार के समान होती है। वह व्यक्ति असंतुलित कहा जाता है क्योंकि उसके विचार जनमत के विरुद्ध होते हैं। एक उपदेशक का हर जगह स्वागत होता है परंतु भविष्यवक्ता लोगों के क्रोध का शिकार हो जाता है।
ओ मेरे उपदेशक भाइयों, हम अपने पुराने विश्वासी भाइयों, मिशनरियों, शहीदों, सुधारकों जैसे लूथर, बनयन, वेस्ली, ऑक्सबरी इत्यादि को प्यार करते हैं। हम उनकी जीवन गाथाओं को लिखते हैं, उनकी यादों को सम्मानित करते हैं, उनकी कब्रों पर समृति स्तंभ खड़ा करते हैं तथा उनके वाक्यों को मढ़वाकर रखते हैं। हम उनको अपने जीवनों में ढालने के अलावा सब कुछ करते हैं। हम उनके खून की आखिरी बूंद तक को अर्थात उनके द्वारा किए गए सारे त्याग को याद करते हैं परंतु अपने खून की एक बूंद के लिए भी सतर्क रहते हैं।
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने ठीक ही किया कि 6 महीने तक जेल जाने से अपने आप को बचाए रखा। वह और एलिय्याह आज की इन आधुनिक सड़कों पर प्रचार करने निकलें तो 6 सप्ताह भी नहीं कर सकते। उन्हें या तो जेल या पागलखाने भेज दिया जाएगा क्योंकि उन्होंने लोगों को पाप के विरुद्ध सावधान किया और अपने संदेश में कोई मिलावट नहीं की।
आज के प्रचारक साम्यवाद की बढ़ती हुई शक्तियों से चिंतित हैं परंतु रोमनवाद की भयंकरता के विषय में चुप्पी साधे हैं। यदि कोई प्रचारक पवित्र आत्मा से अभिषिक्त होकर रोमन कैथोलिक चर्च में फैली गलतियों को उजागर करे, तो पूरा अमेरिका एक छोर से दूसरे छोर तक 24 घंटों में हिल जाएगा। इंग्लैंड की हालत और भी खराब है। हम अफ्रीका के निर्दयी तथा असभ्य आदिवासी माऊ – माऊ जाति के विरुद्ध राष्ट्र को उकसाते हैं परंतु रोमन कैथोलिक चर्च के अत्याचारों से सहमत होते हैं। यह पुरोहित लोग जो मनुष्यों की आत्माओं को नशे में सुलाते हैं। यह मूर्ति उपासक “मास” यह मरियम की प्रार्थनाएं, जो कलवरी को अंधकार में रखती हैं; यह लूसीफर की आज तक की बनाई हुई सबसे बड़ी जालसाजी जिसमें लाखों अभागे लोग जीवन और मृत्यु में ठगे जा रहे हैं।
ऐसी ही मिलती हुई परिस्थितियों ने एलिय्याह को उत्तेजित किया, लेकिन यह बातें हमें उत्तेजित नहीं करती? कि हम आंसुओं से विनती करते और परमेश्वर की सी जलन रखते! शत्रु बाढ़ की तरह अंदर घुस आया है। क्या ऐसा आत्मा से भरा हुआ कोई संदेशवाहक नहीं है जो परमेश्वर के द्वारा दिए गए हथियार एवं कवच से सुसज्जित होकर इन शैतानी शक्तियों के विरुद्ध आवाज उठाए? केवल प्रार्थना का स्थान ही एकमात्र वह स्थान है जो हृदय में जूनून को और आंखों में दर्शन को रखेगा। यह एलिय्याह भूकंपमय हृदय और गरजती आवाज के साथ ऐसे ही समय में देश के लिए आया।
सारे विश्व में सुसमाचार प्रचार के लिए आज तमाम प्रकार की कठिनाइयां हैं। परंतु एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति इन कठिनाइयों के मध्य से रास्ता निकाल लेता है।
“क्या ऐसी कोई नदी है जिसे आप पार नहीं कर सकते?”
“क्या ऐसा कोई पर्वत है जिसके आरपार आप सुरंग नहीं खोद सकते?”
“परमेश्वर असंभव को भी संभव बना सकता है और वह उन सारे कार्यों को कर सकता है जिसे अन्य कोई भी शक्ति नहीं कर सकती।” इन सारी चीजों के लिए आपको एक भारी कीमत चुकानी पड़ेगी क्योंकि परमेश्वर हमारे साथ साझेदारी में काम नहीं करना चाहता है बल्कि वह अपना अधिपत्य चाहता है।
एलिय्याह परमेश्वर के साथ रहता था। उसने राष्ट्र में व्याप्त पाप को परमेश्वर के नजरिए से देखा। वह परमेश्वर के समान ही पाप से दुखी हुआ तथा परमेश्वर के समान ही पाप के विरुद्ध आवाज उठाई। वह अपनी प्रार्थना में भाव – विह्ल था तथा इस पृथ्वी से बुराई को दूर करने के लिए इच्छुक था। (1 राजा 19:10, 14) उसके उपदेश चिकनी चुपड़ी बातों से युक्त नहीं थे। उसकी भावयुक्त प्रार्थना एवं उपदेश से लोग प्रभावित थे तथा उसके शब्द मनुष्य के हृदय को बेध देते थे ठीक उसी प्रकार जैसे पिघला हुआ धातु उनकी देह को बेधता।
लेकिन “मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है।” (भजन संहिता 37:23) परमेश्वर ने एलिय्याह से कहा, “छिप जा” और फिर कहा, “अपने आपको… दिखा” (1 राजा 17:4-7, 18:1-2) यह गलत होगा कि हम अपने आपको छिपाएं जब हमें परमेश्वर के लिए राजाओं को डांटना पड़े। यह गलत होगा कि हम प्रचार करें, जब आत्मा हमें बुला रहा हो, कि हम परमेश्वर के सम्मुख ठहरें। हमें दाऊद से यह सीखना चाहिए “हे मेरे मन, परमेश्वर के सामने चुप रह।” (भजन संहिता 62:5) हममें से ऐसा कौन दुस्साहस कर सकता है कि वह परमेश्वर से कहे, मेरे सारे आश्रय समाप्त कर दे! परमेश्वर के मार्ग हमारे मार्ग से भिन्न हैं यद्यपि उसके मार्ग हमारी समझ से परे होते हैं परंतु वह उसे पवित्र आत्मा के द्वारा हम पर प्रकट करता है। परमेश्वर ने एलिय्याह को पहले करीत जाने की आज्ञा दी और उसके बाद सारपत भेजा। (1 राजा 17:5-9) क्या इन जगहों में परमेश्वर ने उसे किसी बड़े पांच सितारा होटल में रुकने के लिए कहा? नहीं! नहीं! परमेश्वर ने अपने भक्त भविष्यवक्ता तथा धार्मिक उपदेशक को एक गरीब विधवा के घर में रुकने की आज्ञा दी।
बाद में कर्मेल पर्वत पर एलिय्याह की प्रार्थना एक सर्वोत्तम संक्षिप्त प्रार्थना थी। “हे यहोवा! मेरी सुन, मेरी सुन, कि ये लोग जान लें कि हे यहोवा, तू ही परमेश्वर है, और तू ही उनका मन लौटा लेता है।” (1 राजा 18:37) ई. एम. बाउंडस ने ठीक ही कहा है कि “जनसाधारण के बीच की गई संक्षिप्त सामर्थी प्रार्थना लंबी तथा गुप्त मध्यस्थी प्रार्थना का प्रतिफल है।” एलिय्याह ने मूर्तिपूजक याजकों को नष्ट करने के लिए या इस्राएल के बलवाइयों को भस्म करने हेतू, आकाश से बिजली गिराने के लिए प्रार्थना नहीं की, परंतु यह की… परमेश्वर की महिमा और सामर्थ प्रकट हो।
हम अपनी कठिनाइयों में परमेश्वर की सहायता करने का प्रयत्न करते हैं। हम याद करें कि किस प्रकार अब्राहम ने इस प्रकार का प्रयत्न किया था और गलती के परिणामस्वरूप आज तक पृथ्वी इशमाएल के कारण श्रापित हैं। (उत्पत्ति 16:1-16) इसके विपरीत एलिय्याह ने परमेश्वर के लिए कार्य कठिन कर दिया। उसने आग मांगी परंतु उसने वेदी के बलिदान को पानी से भिगो दिया। (1 राजा 18:30-35) हमारी प्रार्थना में ऐसे पवित्र साहस को परमेश्वर चाहता है। “मुझसे मांग, और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी संपत्ति होने के लिए और दूर-दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिए दे दूंगा।” (भजन संहिता 2:8)
ओह! सेवकाई करने वाले मेरे भाइयों! हम अपनी अधिकांश प्रार्थनाओं में केवल परमेश्वर को सलाह देते हैं! हमारी प्रार्थना का रंग महत्वाकांक्षा के कारण उड़ जाता है। यह महत्वकांक्षा या तो हमारे लिए होती है या हमारी कलीसिया के लिए। ऐसे विचारों को नाश कर दो। हमारा निशाना केवल परमेश्वर होना चाहिए। यह उसकी प्रतिष्ठा है जो कलंकित हो रही है। उसके प्रिय पुत्र की अवहेलना हो रही है। उसकी व्यवस्था तोड़ी जा रही है, उसका नाम अशुद्ध किया जा रहा है। उसकी पुस्तक त्यागी जा रही है। उसका भवन सामाजिक कार्यों का सर्कस बना दिया गया है।
क्या परमेश्वर अपने लोगों के साथ अत्याधिक धैर्य नहीं रखता, जब वे प्रार्थना कर रहे होते हैं? हम उसको बताते हैं कि क्या करना और कैसे करना है। हम न्याय निर्धारित करते हैं और अपनी प्रार्थनाओं को प्रशंसायुक्त बनाते हैं। सारांश में यह कि हम प्रार्थना के करने के अलावा सब कुछ करते हैं। कोई भी बाइबल स्कूल हमको प्रार्थना करने की कला नहीं सिखाता। किस बाइबल स्कूल में प्रार्थना का पाठ्यक्रम है? धर्मशास्त्र का अति महत्वपूर्ण भाग जिसे कोई भी व्यक्ति अध्ययन कर सकता है, वह है प्रार्थना का भाग। परंतु इसे कहां पढ़ाया जाता है? आइए हम मिलकर अंतिम बंधन को खोलकर इस वास्तविकता को स्वीकार करें कि हमारे बहुत से अगुवे और शिक्षक न तो प्रार्थना करते हैं न ही आंसू बहाते हैं और न ही दुःख उठाते हैं। आखिर जिस विषय को वे जानते ही नहीं, क्या उसको वे पढ़ा सकते हैं?
वह मनुष्य जो परमेश्वर के निर्देश में विश्वासियों को प्रार्थनाशील बना सकें, वही इस संसार में पुर्नजागृति ला सकता है। ऐसी जागृति जिसे आज तक संसार ने नहीं जाना! “परमेश्वर, हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है।” (इफिसियों 3:20) आज परमेश्वर की समस्या साम्यवाद नहीं है, न रोमनवाद है, न ही उदारवाद, न ही आधुनिकतावाद बल्कि उसकी समस्या – मृत मूल सिद्धांतवाद है।
(Taken from the book, Why Revival Tarries? By Leonard Ravenhill)
आज हममें से कई लोग सैद्धांतिक होने का दावा करते हैं पर यदि हमारे सीखे हुए सिद्धांत कार्य में नहीं हैं तो वे सिर्फ और सिर्फ खोखले सिद्धांत ही बनके रह जायेंगे। यदि ये सिद्धांत हमें आज की विकट परिस्थिति में परमेश्वर के सामने जाने के लिए, गिड़गिड़ाने के लिए प्रेरित नहीं करेंगे तो इससे अच्छा होता कि हम ये सिद्धांत सीखे ही न होते!
मेरे प्रियों, परमेश्वर आज भी वही कार्य कर सकता है। परमेश्वर कल, आज, युगानुयुग एक सा है। वो कभी नहीं बदलता। आज हमें भी ऐसे विश्वास और प्रार्थना जीवन की आवश्यकता है, जैसे एलिय्याह परमेश्वर के सामने खड़ा होता था। परमेश्वर आज भी इंतजार कर रहा है कि एलिय्याह जैसे लोग उसे बुलाएँगे, तब सब जान लेंगे कि सच्चा परमेश्वर कौन है।