आपको किस पर भरोसा करना चाहिए? (Whom Should You Trust?) मनुष्य के पास स्वतंत्र इच्छाशक्ति होने पर हमें प्रतिदिन यह चुनाव करना होता है कि हम किस पर भरोसा करें। मनुष्य पर?, अपनी सामर्थ्य पर?, अपने ज्ञान पर?, धन पर? अथवा अपने बैंक बैलेंस पर?, इस संसार या समाज पर?, अपनी पृष्ठभूमि पर या फिर परमेश्वर पर?
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ये सवाल इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
क्योंकि इसका जवाब आपके जीवन की प्राथमिकताओं को तय करते या दर्शाते हैं, आपकी जीवन शैली को निर्धारित करती हैं। ये आपके प्रतिदिन के जीवन को प्रभावित करते हैं, और न सिर्फ इस जीवन को पर आने वाले जीवन को भी प्रभावित करती है। इससे यह भी मालूम कर सकते हैं कि आप किस पर केन्द्रित हैं, और आप अपने जीवन के प्रति कितने गंभीर हैं। इसलिए अब सवाल ये उठता है कि हमें किस पर भरोसा रखना चाहिए?
मनुष्य पर?
जैसा कि आपको मालूम है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, समाज में रहते हुए वो कई चीजों के लिए एक दूसरे पर निर्भर होते हैं पर इसका मतलब यह नहीं है कि आप परमेश्वर से ज्यादा मनुष्य पर पूरी तरह से निर्भर हो जाएं और अपनी हर एक आवश्यकता के लिए मनुष्य की ओर निहारें।
क्या आपको मालूम है कि यदि हम मनुष्य पर भरोसा रखते हैं तो क्या होता है? वचन इसके बारे में क्या कहता है? शापित है वह जो मनुष्य पर अपना भरोसा रखता है। (यिर्मयाह 17:5) क्योंकि धरती पर मनुष्य का जीवन घास के तुल्य है, वे स्वप्न से ठहरते हैं। (भजन 90:5-6) हम तो अपना जीवन यहाँ शब्द के समान बिताते हैं। (भजन 90:9) और हमारा जीवन भाप के समान थोड़ी देर दिखाई देता है, फिर लोप हो जाता है। (याकूब 4:14) तो किस पर भरोसा रखें?
अपनी सामर्थ्य पर?
हमें अपनी सामर्थ्य पर भरोसा नहीं रखना चाहिए? क्योंकि हमारी सामर्थ्य भी प्रतिदिन कम होती जाती है। हमारा जीवन है ही क्या? ये तो भाप के समान थोड़ी देर दिखाई देता है फिर लोप हो जाता है, ये तो घास के समान है जो धूप लगते ही मुरझा जाता है। भजनकार कहता है “किसी को घोड़ों पर किसी को रथों पर भरोसा है पर मैं तो अपने परमेश्वर यहोवा का ही नाम लूंगा।” (भजन 20:7) भजनकार को मालूम है कि परमेश्वर का नाम धन्य है, सर्वोच्च है और उसके नाम में सामर्थ है।
गोलियत और पलिश्ती सेना को भी अपनी सामर्थ पर भरोसा था जबकि दूसरी ओर दाऊद को अपने परमेश्वर पर भरोसा था क्योंकि दाऊद जानता था कि परमेश्वर को विजय के लिए किसी तलवार और भाले की आवश्यकता नहीं है। (1 शमूएल 17:45-47) तो किस पर भरोसा रखें?
अपने ज्ञान पर?
हमें अपने ज्ञान पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए क्योकि इस संसार का ज्ञान मिट जाएगा। क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है। (1 कुरिन्थियों 13:8-10) वचन हमें बताता है कि हमें अपनी समझ पर भरोसा नहीं रखना चाहिए। “अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना; यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना। ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा, और तेरी हड्डियाँ पुष्ट रहेंगी।” (नीतिवचन 3:7-8 HINDI-BSI) आज ज्ञान बहुत बढ़ गया है, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि ज्ञान घमंड उत्पन्न करता है। तो किस पर भरोसा रखें?
धन पर? अथवा अपने बैंक बैलेंस पर?
धन पर भरोसा रखना उचित क्यों नहीं है? क्योंकि धन भी नश्वर है, जिसमें कीड़े और काई लगती है या जिसको चोर, चोरी कर लेता है? जो खुद को कीड़े, काई और चोर से नहीं बचा सकता वो आपको क्या बचाएगा? कुछ लोग सुरक्षा के लिए पैसे पर भरोसा करते हैं। किंतु, परमेश्वर कहते हैं कि “उनका सोना चाँदी उनको बचा न सकेगा।” (यहेजकेल 7:19) उनकी संपत्ति “उनकी भूख को तृप्त नहीं करेगी।”
संपत्ति, संतुष्टि और आनंद को न लाकर, अकसर हमारे पास घमंड, पाप और मूर्तिपूजा को ला सकती है। (यहेजकेल 7:1-11) इसके अतिरिक्त, संपत्ति कभी भी पूर्ण सुरक्षा नहीं प्रदान करेगी। बाजार में मंदी और बढ़ती हुई महँगाई पूरे देश को दिवालिया बना सकती है। (यहेजकेल 7:12-20)
याद रखें कि प्रभु यीशु ने क्या कहा था, कि हर प्रकार के लोभ से अपने आपको बचाए रखो; क्योंकि किसी का भी जीवन उसकी सम्पति की बहुतायत से नहीं होता। (लूका 12:15) तो किस पर भरोसा रखें?
इस संसार या समाज पर?
वचन स्पष्टता से बताता है कि संसार और उसकी अभिलाषाएं मिटती जाती हैं। पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है वो सर्वदा बना रहेगा। (1 यूहन्ना 2:17) अभी जो कुछ भी हमें दिखता है ये सब नष्ट किया जाएगा। वैसे भी हम तो इस संसार के हैं ही नहीं तो फिर हम क्यों इस संसार पर भरोसा रखें और अपना कीमती समय बर्बाद करें? इसका मतलब ये नहीं है कि हमें यहाँ किसी से कोई व्यवहार नहीं करना है पर इसका अर्थ यह है कि इसे परमेश्वर के साथ आपके रिश्ते को ख़राब नहीं करने देना है। आपको इसके साथ समझौता नहीं करना है।
किसी भी जहाज़ को यात्रा करने के लिए पानी की आवश्यकता होती है पर यदि यही पानी इस जहाज़ के अन्दर चला जाए तो जहाज़ डूब जाएगा। हम अपने आपको परदेसी यात्री जाने क्योंकि वचन कहता है कि पृथ्वी पर का डेरा सरीखा घर नष्ट हो जाएगा। (2 कुरिन्थियों 5:1) हालाँकि वचन यहाँ हमारी देह के विषय में बात कर रहा है लेकिन वचन में यह भी स्पष्ट बताया गया है कि यह जगत भी नाश हो जाएगा।
हमें याद रखना चाहिए कि हम अपने देश सिय्योन की ओर अपनी यात्रा जारी रखनी है। (फिलिप्पियों 3:20) यह संसार आज पहले से भी अधिक अनैतिक और भ्रष्ट होता जा रहा है। इसलिए हमें अवश्य है कि हम इस पर भी अपना भरोसा नहीं रखें। तो फिर किस पर भरोसा रखें?
पृष्ठभूमि पर?
आज के समय में जिस प्रकार लोग अपनी पृष्ठभूमि पर भरोसा रखते हैं, एक समय पौलुस भी समझता था कि उसकी पृष्ठभूमि बहुत महत्वपूर्ण है। उसका इस्राएली होना, बिन्यामीन के गोत्र में पैदा होना, उसका फरीसी होना, उसकी रोमी नागरिकता होना इत्यादि उसके लिए बहुत महत्त्व रखता था। पर जब से उसने मसीह को जाना तब से पौलुस सारी चीज़ों सिर्फ कूड़ा समझता है। (पढ़ें फिलिप्पियों 3:1-11) तो फिर किस पर भरोसा रखें?
परमेश्वर पर?
नीतिवचन बताता है कि हमें अपने सम्पूर्ण मन से परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। (नीतिवचन 3:5-6) जो आपसे बेहद प्यार करता है। धन्य है वह जो परमेश्वर पर भरोसा रखता है। जिसने उसको अपना आधार माना है। (यिर्मयाह 17:7-8) वचन बताता है कि जो भी व्यक्ति ऐसा है वो एक ऐसे पेड़ के समान है जो नदी के किनारे लगाया हुआ है। सूखे वर्ष में भी उसको चिंता करने की जरूरत नहीं है, उसके पत्ते सदा हरे भरे रहते हैं।
वह अपने समय में फलता है। स्मरण रखें, यदि हम अपने कमीज़ का पहला बटन सही लगा दें तो स्वतः सारे सही लगेंगे। परमेश्वर हमारी चट्टान है, हमारा दृढ़ गढ़ है। संकट के समय अति सहज से मिलने वाला सहायक। (भजन 46:1)
भजनकार भी पूरी तरह से परमेश्वर पर भरोसा रखता था इसलिए वो कहता है; परमेश्वर की शरण लेनी मनुष्य पर भरोसा रखने से उत्तम है। (भजन 118:9,10) तेरी व्यवस्था से प्रीति रखने वालों को बड़ी शान्ति मिलती है; और उनको ठोकर नहीं लगती। (भजन 119:165) जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है, वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूँ। (119:162) मैं प्रतिदिन सात बार तेरी स्तुति करता हूँ। (भजन 119:164)
हमें निरंतर परमेश्वर की सामर्थ की खोज करनी चाहिए। (1 इतिहास 16:11) यहोवा के नाम का भरोसा रखे, और अपने परमेश्वर पर आशा लगाए रहे। (यशायाह 50:10)
आपको परमेश्वर पर ही भरोसा करना चाहिए क्योकि वह मनुष्य नहीं कि झूठ बोले, और न वह आदमी है कि अपनी इच्छा बदले। क्या जो कुछ उसने कहा उसे न करे? क्या वह वचन देकर उसे पूरा न करे? (गिनती 23:19) यदि आप परमेश्वर पर अपना भरोसा बनाए रखें तो परमेश्वर का आनंद आपकी सामर्थ होगी। (नहेम्याह 8:10)
क्या तुम नहीं जानते? क्या तुमने नहीं सुना? यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृथ्वी भर का सिरजनहार है, वह न थकता, न श्रमित होता है, उसकी बुद्धि अगम है। वह थके हुए को बल देता है और शक्तिहीन को बहुत सामर्थ देता है। तरुण तो थकते और श्रमित हो जाते हैं, और जवान ठोकर खाकर गिरते हैं; परन्तु जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएँगे, वे उकाबों के समान उड़ेंगे , वे दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे, चलेंगे और थकित न होंगे। यशायाह 40:28-31 HINDI-BSI
इसलिए यह बात साफ हो जाती है कि हमें न तो मनुष्य पर?, न अपनी सामर्थ्य पर?, न अपने ज्ञान पर?, न धन पर? अथवा अपने बैंक बैलेंस पर?, न इस संसार या समाज पर?, न अपने रंग रूप पर, न अपनी पृष्ठभूमि पर बल्कि परमेश्वर पर अपने भरोसे को रखना चाहिए। हमें हमारे सृजनहार परमेश्वर पर ही भरोसा रखना चाहिए, जो सदा धन्य है, जो कल, आज और युगानुयुग एक सा है। वो कभी बदलता नहीं और न धोखा देता है, वो विश्वासयोग्य परमेश्वर है।
शालोम
Greeting in Jesus name. I am really blessed by reading the message. thank you so much and God bless you.
Thanks dear for taking your precious time to read this… God bless u.
👍 सच में हमें संसार की किसी भी वस्तु पर भरोसा नहीं रखना चाहिए, क्योंकि संसार की सब वस्तुएं नश्वर हैं। हमें परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह पर भरोसा रखना चाहिए, जो सनातन है।
I am so blessed for his massage really I want to thankyou for the Good sermon