क्या तुम नहीं जानते कि…? (You Must Know These Things) (1 कुरिन्थियों 6:1-20) मसीही होने के नाते हमें बहुत सी बातें मालूम होना चाहिए क्योंकि परमेश्वर के वचन के अनुसार यह बात स्पष्ट है कि बिना ज्ञान के परमेश्वर की प्रजा विनाश की ओर अग्रसर है। (होशे 4:6) परंतु यह भी ध्यान में रखें कि ये ज्ञान संसार का और इस संसार के नाश होने वाले हाकिमों का ज्ञान नहीं है। (1 कुरिन्थियों 2:6)
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परमेश्वर की दृष्टि में इस संसार का ज्ञान मूर्खता ही है चाहे यह संसार कितनी भी उन्नति न कर दे। पर परमेश्वर का धन्यवाद हो कि हम जो बुलाए हुए हैं उनके लिए मसीह ही परमेश्वर की सामर्थ्य और परमेश्वर का ज्ञान है। (1 कुरिन्थियों 2:20, 24) आज हम कुरिन्थियों को लिखी बातों पर चर्चा करेंगे जिन्हें पौलुस कहता है कि ये बातें हमें मालूम होनी चाहिए, अर्थात् हमें इन बातों को अपने जहन में रखना जरूरी है। आइए 1 कुरिन्थियों 6:1-20 पढ़ें।
जब हम इस पत्री को अध्य्यन करते हैं तो हमें मालूम होता है कि कुरिन्थि की कलीसिया में मसीही जीवन और विश्वास संबंधी अनेक समस्याएं थीं। उन समस्याओं के समाधान के लिए पौलुस ने उनको पत्री लिखी थी। उस समय कुरिंथ यूनान का एक अंतरराष्ट्रीय नगर था जो रोमी साम्राज्य के अखाया प्रांत की राजधानी थी। वह व्यापार संपन्नता वैभवशाली संस्कृति और अनेक धर्मों के लिए विख्यात था, पर यह अपनी व्यापक अनैतिकता के लिए बदनाम भी था।
वहां कलीसिया में विभाजन और अनैतिकता, यौन और विवाह तथा विवेक संबंधी प्रश्न, पवित्रात्मा के दान, पुनरुत्थान और कलीसियाई प्रबंध इत्यादि प्रेरित पौलुस की चिंता के मुख्य विषय थे। इसका छठा अध्याय भी यही जिक्र करता है कि मसीहियों में आपसी मुकदमेबाजी, अन्याय इत्यादि हुआ करते थे तभी प्रेरित पौलुस उन्हें नीचे दिए गए प्रश्न पूछकर याद दिलाता है कि क्या तुम नहीं जानते हो कि?
पवित्र लोग जगत का न्याय करेंगे।
आज जब हम इक्कीसवीं सदी में है आज भी हम कलिसिया में आपसी झगड़े को पाते हैं। एक जैसा मन ही नहीं है। जो बातें आपस में समाधान होनी चाहिए उन बातों का समाधान करने के लिए मसीही लोग इस संसार के हाकिमों के पास जा रहे हैं। पौलुस ने हमें पहले ही याद दिला दिया था कि परमेश्वर ने इस संसार के ज्ञान को मूर्खता ठहरा दिया है। संसार का ज्ञान लोगों की सुविधाओं के अनुसार बदलता रहता है। तभी पौलुस कहता है कि तुम्हें बड़ा हियाव होता है जब दूसरे से झगड़ा हो तो फैसले के लिए अधर्मियों के पास जाए, पवित्र लोगों के पास नहीं? (1 कुरिन्थियों 6:1-3)
परमेश्वर हम विश्वासियों को पवित्र लोगों का दर्जा देता है। एक समय आएगा जब पवित्र लोग भी न्याय करेंगे। (दानियेल 7:22, मती 19:28, प्रकाशितवाक्य 20:4) इन्हीं बातों को मध्यनजर रख कर पौलुस हम मसीहियों अर्थात् परमेश्वर के पवित्र लोगों को स्मरण दिलाता है कि पवित्र लोग जगत का न्याय करेंगे। और मसीहियों में आपस में कुछ मतभेद है तो उसका समाधान भी आपस में ही होना चाहिए ऐसा न हो कि हम लोग न्याय के लिए अधर्मियों के पास जाएं।
क्योंकि ये बात तो सत्य है कि इस संसार में हाकिमों की इच्छा के अनुसार न्याय व्यवस्था बदलती रहती है, परन्तु परमेश्वर की न्याय व्यवस्था कभी नहीं बदलती है। इस संसार के हाकिम नश्वर धन के लिए न्यायी से अन्यायी हो जाते हैं और बिक जाते हैं। इस संसार का कानून अँधा हो सकता है पर परमेश्वर का कानून अँधा बिल्कुल भी नहीं हैं यह बात तो आम व्यक्ति समझता है कि यदि किसी का मुक़दमा न्यायालय में चला जाए तो उसको न्याय मिलने में कितना समय लग जाता है, अर्थात् तारीक पर तारीक।
इसलिए आगे को हम ध्यान रखें कि हम पवित्र लोग हैं और जगत का न्याय भी करेंगे क्योंकि हम यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्मा से धोए गए और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे हैं। (1 कुरिन्थियों 6:11) जाहिर सी बात है कि जो दूसरों का न्याय करेंगे उन्हें स्वयं कैसा जीवन जीना चाहिए? अगली बात जो हमें जाननी चाहिए वह है….
अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।
प्रेरित पौलुस हमें याद दिला रहा है कि जब भी आपस में हमारा मुक़दमा होता है तो हमें अन्याय सहने और अपनी हानि उठाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। अर्थात् हमें दूसरों को क्षमा करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। अगर हम न्यायी लोग ही अन्याय करने लग जाएं और दूसरों को हानि पहुंचाने लग जाएं तब तो हम भी अन्यायी कहलाए जाएंगे और अन्यायी लोग तो परमेश्वर के राज्य के वारिस ही नहीं होंगे।
हमें धोखा नहीं खाना है क्योंकि वैश्यागामी, मूर्तिपूजक, परस्त्रीगामी, लुच्चे, पुरूषगामी, चोर, लोभी, पियक्कड़, गाली देने वाले, अंधेर करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस कदापि न होंगे। (1कुरिन्थियों 6:9-10, इफिसियों 5:3-7)
हमारी देह मसीह का अंग है।
अगली बात जिसे जानने के लिए प्रेरित पौलुस हमें उत्साहित करता है वह है कि हमारी देह मसीह का अंग है। (1 कुरिन्थियों 6:12-18) इस दुनियां में रहते हुए हो सकता है कि दुनियावी तरीके से कई बातें देह के लिए उचित हों परन्तु हमें यह बात भी याद रखनी है कि सब वस्तुओं लाभ की नहीं हैं। हमें हर एक बात के अधीन नहीं होना चाहिए। हां परमेश्वर ने भोजन को पेट के लिए और पेट भोजन के लिए बनाया है परन्तु ये चीजें नष्ट होने वाली हैं।
इस बात को भी सावधानी से जानने की जरूरत है कि परमेश्वर ने जो देह हमें दी है ये व्यभिचार के लिए तो बिल्कुल भी नहीं है। हमारी देह तो प्रभु के लिए है और प्रभु देह के लिए है। (1 कुरिन्थियों 6:13) कई लोग इस देह के महत्व को नहीं जानते हैं इसलिए वो एक लक्ष्यहीन जीवन जी रहे हैं और अपने जीवन को बस खाने-पीने और व्यभिचार में ही बर्बाद कर रहे हैं। तभी प्रेरित पौलुस कुरिंथ की कलीसिया को और वर्तमान में हमें याद दिला रहा है कि क्या हम नहीं जानते कि हमारी देह मसीह का अंग है? तो क्या ये देह व्यभिचार के लिए है? कदापि नहीं।
क्या हम नहीं जानते कि जो वैश्या के साथ संगति करता है वो उसके साथ एक तन हो जाता है? और जो प्रभु की संगति में रहता है वो प्रभु के साथ एक आत्मा हो जाता है। परमेश्वर का वचन हमें स्पष्ट करता है कि हम व्यभिचार से बचे रहें, क्योंकि जितने भी पाप मनुष्य करता है वे देह के बाहर हैं परन्तु व्यभिचार एक आंतरिक पाप है और व्यभिचार करने वाला अपनी ही देह के विरुद्ध पाप करता है। जबकि हमारी देह मसीह का अंग है तो हमें अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करना है, हम उसके साथ जोड़े गए हैं।
इफिसियों को लिखते हुए भी पौलुस कहता है कि हमें एक दूसरे से झूठ बोलना छोड़कर सच ही बोलना चाहिए क्योंकि हम एक दूसरे के अंग है। (इफिसियों 4:25, 5:30) आगे आत्मिक वरदानों के बारे में बताते हुए पौलुस बताते हैं कि जिस प्रकार देह तो एक है और उसके अंग बहुत से हैं, उस देह के सब अंग बहुत होने पर भी सब मिलकर एक ही देह है उसी प्रकार मसीह भी है, क्योंकि हमने एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिए बपतिस्मा लिया, और हम सबको एक ही आत्मा पिलाया गया है। इसी प्रकार हम सब मिलकर मसीह की देह हैं, और अलग-अलग उसके अंग हैं। (1 कुरिन्थियों 12:12-27, रोमियो 12:5)
इसलिए इस दुनियां में रहते हुए हमारे लिए यह जरूरी हो जाता है कि हम इस देह का इस्तेमाल कैसे करते हैं? जबकि यह मसीह की देह है तो इसे परमेश्वर की महिमा के लिए ही इस्तेमाल करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। अगली बात जो हमें जाननी आवश्यक है वह है कि हमारी देह पवित्र आत्मा का मंदिर है….
हमारी देह पवित्र आत्मा का मंदिर है।
जी हां हमारी देह पवित्र आत्मा का मंदिर है। इस बात से कई दूसरे मतावलंबी भी सहमत हैं कि हमारी देह में परमात्मा वास करते हैं। जैसे कि हम भारतवासी अपने आपको काफी आध्यात्मिक समझते हैं इसलिए हम हर एक किलोमीटर के दायरे में कई मंदिरों को पाते हैं। आपने गौर किया होगा कि हमारे यहां किस प्रकार उन मंदिरों की देख भाल होती है, साफ सफाई होती है?
उनके रखरखाव को भी आप जानते होंगे पर क्या हम इतने ही गंभीर हैं? क्या हम परमात्मा के जीवते मंदिर जो कि हमारी देह है इसके प्रति भी इतने गंभीर हैं? क्या गुटखा, खैनी, तम्बाकू, शराब, व्यभिचार इत्यादि के द्वारा इस परमात्मा के मंदिर को नाश नहीं किया जा रहा? (1 कुरिन्थियों 6:19) ये बात ध्यान देने वाली जरूर है कि जो भी इस परमेश्वर के मंदिर को नष्ट करेगा, परमेश्वर उसे नष्ट करेगा। क्योंकि परमेश्वर का मंदिर पवित्र है और वह तुम हो। (1 कुरिन्थियों 3:16-17)
हमें तो प्रेरितों और भविष्यवक्ताओं की नीव पर जिसके कोने का पत्थर स्वयं प्रभु यीशु मसीह हैं बनाया गया है। जिसमें सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मंदिर बनती जाती है। (इफिसियों 2:20-22) याद रखें कि हम तो जीवते परमेश्वर के मंदिर हैं, वो हमारा परमेश्वर है और हम उसके लोग हैं। (2कुरिन्थियों 6:16) अगली बात जो हमें जाननी आवश्यक है वह है कि आपको दाम देकर खरीदा गया है….
आपको दाम देकर खरीदा गया है।
अगली बात जो हमें जाननी है वो यह है कि हम एक बड़ी क़ीमत देकर खरीदे गए हैं। हम अपने नहीं हैं। हमें तो अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करना है। (1 कुरिन्थियों 6:20) हमारा निकम्मा चाल चलन तो बापदादों से चला आ रहा है, और उससे हमारा छुटकारा सोने चांदी अर्थात् नाशवान चीज़ों के द्वारा नहीं हुआ पर हमारा छुटकारा तो निर्दोष और निष्कलंक मेमने अर्थात् मसीह के बहुमूल्य लहू के द्वारा हुआ है। (1 पतरस 1:18-19)
हम परमेश्वर की कलीसिया है और मसीह ने अपने लहू से हमें मोल लिया है। (प्रेरित 20:28) मसीह के उस बहुमूल्य बलिदान के द्वारा एक बार ही हमने पवित्र स्थान में प्रवेश कर दिया है और अनंत छुटकारा प्राप्त कर दिया है। ताकि हम जीवते परमेश्वर की सेवा करें। (इब्रानियों 9:12,14, प्रकाशित वाक्य 5:9)
अभी तक हमने सीखा कि….
- पवित्र लोग जगत का न्याय करेंगे।
- अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।
- हमारी देह मसीह का अंग है।
- हमारी देह पवित्र आत्मा का मंदिर है।
- आपको दाम देकर खरीदा गया है।
अब जब हमने इन बातों को जान ही लिया है तो हमारा प्रतिदिन का जीवन कितना गंभीर होना चाहिए? हां यह बात जरूर है कि जब हम इन बातों को जान जाएंगे ये हमारे प्रतिदिन के जीवन शैली को जरूर प्रभावित करेंगे, और आप और अधिक परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाला जीवन जीयेंगे।
शालोम
Nice 1
Amen Praise the Lord