आप किस प्रकार की भूमि से ताल्लुक रखते हैं? (Do You Have Ears That Hear?) क्या आप भी चिंतित है, ऐसे व्यक्तियों का जीवन देखकर जिनके जीवन में आप कोई परिवर्तन नहीं देखते हैं? वे सालों से विश्वासी हो सकते हैं पर उनमें शिष्यता दूर दूर तक दिखाई नहीं देती। जब आप उनके जीवन में कोई फल नहीं देखते? क्या ये बातें आपको चिंतित करती हैं?
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हालांकि आपका चिंतित होना भी लाज़मी है। इस बात को समझाने के लिए जो उदाहरण प्रभु यीशु द्वारा दिया गया शायद हम कभी कभी भूल जाते हैं, इसलिए चिंतित होना तो आम बात है।
ये तो आपको मालूम ही होगा कि प्रभु यीशु ज्यादातर भीड़ से गिरे रहते थे। तौभी ज्यादातर लोग केवल चिन्ह चमत्कारों को देखने या बीमारी से स्वस्थ होने ही आते थे, फिर भी बहुत कम लोग उनके शिष्य थे। आइए आज (मरकुस 4:3-9) पर गौर करें।
एक बार ऐसे ही प्रभु यीशु झील के किनारे दृष्टांतों में बहुत सी बातों को सिखाने लगे, कि एक बोनवाला बीज बोने निकलता है, बोते बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिर जाते हैं। उस बीज को तुरंत ही पक्षियों ने चुग लिया। कुछ बीज पथरीली जमीन पर गिरा जहां उस बीज को गहरी मिट्टी न मिलने से वह जल्दी तो उग गया पर जड़ न पकड़ने की वजह से जल्दी सूख भी गया।
बोते-बोते कुछ बीज झाड़ियों में भी गिरा पर वहां भी उस बीज को झाड़ियों ने दबा दिया और वो बीज भी बाकियों की तरह निष्फल रहा। लेकिन कुछ बीज अच्छी जमीन पर भी गिरा और वह बीज उगा और बढ़कर फलवंत भी हुआ। इस प्रकार कोई तीस गुना फल लाया, तो कोई साठ गुना और कोई सौ गुना भी फल लाया। ये सब दृष्टांत देने के बाद यीशु ने कहा कि जिसके कान हो वह सुन ले।
मुझे विश्वास है कि आपने इस उदाहरण को कई बार पढ़ा और सुना होगा, बस मेरा उद्देश्य यही याद दिलाना है कि ऐसी भूमि अथवा लोगों को देखकर चिंतित होकर अपनी ऊर्जा न गवाएं बल्कि आप एक फलदाई जीवन जिएं जिसके लिए परमेश्वर ने आपको बुलाया है। इसी बात से उसके शिष्य की पहचान भी होती है और यही बात पिता परमेश्वर को महिमा भी देती है। (यूहन्ना 15:8)
हालांकि जब शिष्य भी इस दृष्टांत को नहीं समझ पाए थे स्वयं प्रभु यीशु ने उन्हें इस का अर्थ भी बताया कि इस दृष्टांत का अर्थ क्या है?
बीज परमेश्वर का जीवित वचन।
परमेश्वर का वचन वह बीज है जो बोने वाला बोता है। (Mark 4:14) पतरस भी जब इस बात को समझा तो बता पाया कि हमने नाशवान बीज से नहीं पर अविनाशी बीज से परमेश्वर के जीवते और सदा ठहरने वाले वचन के द्वारा नया जन्म पाया है और प्रभु का वचन युगों युगों तक स्थिर रहता है। (1 Peter 1:23-25)
याद रखिए कि जिस भी काम के लिए परमेश्वर ने अपने वचन को भेजा है वह उसे सफल करेगा, वह परमेश्वर की इच्छा को पूरी करेगा। (Isaiah 55:11) तभी पौलुस भी कहता है कि जो वचन की शिक्षा पाता है वह सब अच्छी वस्तुओं में सिखाने वालों को भागी करे। (Galatians 6:9)
और वही बीज विभिन्न प्रकार के खेतों में या यूं कहें चार प्रकार के खेतों में बोया जाता है।
मार्ग के किनारे बीज।
इस प्रकार के लोग वचन को सुनते तो हैं पर समझते नहीं। वे इस वचन का कोई लाभ नहीं समझते हैं। शैतान उस वचन को तुरंत छीन ले जाता है। यहां एक और बात समझ में आती है कि कोई है जो यही चाहता है कि हम उस वचन को नहीं समझें। इस प्रकार का जीवन निष्फल रह जाता है। क्योंकि हृदय का वो खेत तो बीज अर्थात वचन के लिए तैयार ही नहीं।
पथरीली भूमि पर बीज।
इस प्रकार के लोग वचन को प्रसन्नता के साथ सुनते तो हैं और स्वीकार भी कर लेते हैं पर वचन उनके अंदर जड़ नहीं पकड़ता है। थोड़े दिन तक ही वचन उस भूमि में रहता है। फिर जब वचन के कारण क्लेश और उपद्रव अर्थात् जब जीवन में मुश्किलें आती हैं तो वे ठोकर खाते हैं और निष्फल रहते हैं।
ऐसे लोगों के विषय में पौलूस ने ठीक ही कहा है कि ऐसे लोग आत्मा की रीति पर आरंभ तो करते हैं पर शरीर के अनुसार खत्म कर देते हैं। (Galatians 3:2) वचन ये भी बताता है कि ….तुम तो अच्छी तरह से दौड़ रहे थे अब किसने तुम्हें रोक दिया है कि सत्य को न मानो। (Galatians 5:7-8)
झाड़ियों में गिरा बीज।
तीसरे प्रकार के लोग ऐसे होते हैं जो वचन को सुनते हैं पर वे लोग भी झाड़ियों में फंस कर अर्थात् संसार की चिंता और धन का धोखा और अन्य वस्तुओं के लालच में अपने जीवन को निष्फल कर देते हैं और फलवंत नहीं होते हैं। यीशु ने इन सबको झाड़ियों की उपमा दी।
क्योंकि ये सब झाड़ियां बीज को बढ़ने में रुकावट डालती हैं। जिस वजह से फल नहीं लगते हैं अर्थात जीवन में कोई परिवर्तन नहीं होता है। वे वचन के सुनने वाले तो हैं पर उसके अनुसार जीने वाले नहीं है।
अच्छी भूमि पर बीज।
इस प्रकार के लोग भी वचन को सुनते हैं पर इस प्रकार के लोग उस वचन को अपने जीवन में पूरा कार्य करने देते हैं अर्थात् उनके जीवन में वचन की उपस्थिति के कारण बदलाव भी आता है। और वे मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते हैं जिस कारण उनका जीवन फलवंत होता है और वे तीस गुना, साठ गुना और सौ गुना फल लाते हैं।
ऐसे लोग परमेश्वर की इच्छा के अनुसार अपने जीवन को जीते हैं इसलिए उनमें आत्मिक उन्नति होती है। इस वजह से वे दूसरों के लिए भी उमड़ने वाले सोते बन जाते हैं।
आरंभ से ही परमेश्वर की इच्छा है कि हम एक फलवंत जीवन जीयें। हम भी संसार की झाड़ियों में खो ना जाएं। हमारे जीवन में भी बदलाव हो। हम दूसरों के लिए भी आशीष के एक सोते हों। इसलिए हम वचन में भी कई जगह भूमि, किसान, बीज, दाख की बारी इत्यादि के उदाहरण पाते हैं क्योंकि परमेश्वर के लोग अर्थात यीशु के शिष्यों से ये अपेक्षा की जाती है कि वे बहुत से फल लाएं और पिता की महिमा करें। (यूहन्ना 15:8)
क्या आपने गौर किया कि उनमें समानता क्या थीं? उन सबने वचन को सुना। पर अन्तिम वाली अच्छी भूमि ने बीज को अपने जीवन में पूरा काम करने दिया, जिस वजह से वो बीज भी सफल रहा और वो फलवंत भी हुआ।
बीज की समस्या नहीं है समस्या तो भूमि की है। – Anand Vishwas
वचन को सुनना, समझना और लागू करना परमेश्वर को आदर देना ही है… उसने अपने बड़े नाम से ज्यादा अपने वचन को ही महत्व दिया है। (भजन 138:2) क्या आपके पास भी ऐसे कान हैं जो सुनते हैं? (Do You Have Ears That Hear?) अर्थात् क्या आप भी वचनों को सुनने के बाद अपने जीवन में लागू करते हैं? आपका जीवन इन में से कौन सी भूमि को प्रदर्शित करता है?
Right answer
And प्रभु आपको आशीष दे
Bahut badia bhaiya g…..keep doing