बाइबल विश्वासियों लिए क्या महत्व रखती है?
Table of Contents
बाइबल विश्वासियों लिए क्या महत्व रखती है? (Importance of The Bible?) जैसा कि आप जानते हैं कि मसीही जीवन, जीवते परमेश्वर के साथ एक अनंतकालीन सबंध है। बिना बातचीत के कोई भी सम्बन्ध मजबूत बना नहीं रह सकता है। बातचीत जितनी मानवीय संबंधों में जरूरी है उतनी ही यह एक विश्वासी के लिए, प्रभु यीशु के साथ संबंध में भी जरूरी है। बातचीत के बिना हर एक संबंध प्रभावित होता है।
Bible के द्वारा आज भी परमेश्वर हम मनुष्यों के साथ बातचीत करता है। बाइबल सिर्फ यहूदी लोगों या सिर्फ इजरायलियों के लिए ही नहीं हैं बल्कि यह संपूर्ण जगत के लिए दिया गया परमेश्वर का अनमोल उपहार है।
बाइबल एक अनोखी पुस्तक है इसलिए इसे दूसरी सामान्य पुस्तकों जैसा समझना उचित नहीं होगा।
क्या आप जानते हैं कि सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने हमसे बातचीत करने लिए अपना वचन अर्थात Bible को दिया है? विश्वासी लोग भी आज दो प्रकार से बाइबल के प्रति, प्रतिउत्तर देते हैं। बहुत से विश्वासी बाइबल का अध्ययन करने के लिए इसलिए अपना कीमती समय निकालते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि यह सृष्टिकर्ता की ओर से एक अनमोल उपहार है, यह परमेश्वर का उनके लिए एक व्यक्तिगत पत्र है जो उनका बहुत ख्याल रखता है। इस प्रकार वे परमेश्वर के साथ अपने संबंध को और अधिक घनिष्ठ करते हैं।
कुछ विश्वासी सिर्फ अपना उतरदायित्व महसूस करते हैं और कर्तव्य के जैसे परमेश्वर के वचन के नजदीक आते हैं। जिस कारण वे गंभीरता से वचन का अध्ययन नहीं करते हैं और परमेश्वर की आवाज सुनने से वंचित रह जाते हैं जिस कारण वे परमेश्वर के साथ घनिष्ठता का आनंद नहीं ले पाते हैं।
बाइबल, सृष्टिकर्ता परमेश्वर के साथ सीधा वार्तालाप है। इसलिए जब भी हम बाइबल पढ़ते हैं तो हमें उत्साह के साथ पवित्रशास्त्र बाइबल के प्रत्येक शब्द के संदेश की खोज करनी चाहिए। हम परमेश्वर के इस कीमती उपहार का अध्ययन करते हुए, परमेश्वर के साथ संगति और घनिष्ठता में आनंदित हो सकते हैं।
भजनकार परमेश्वर के वचन का महत्व जानता था। इसी वजह से भजनकार कहता है कि परमेश्वर का वचन तो मधु से भी मीठा है। (भजन संहिता 19:10) परमेश्वर का वचन शुद्ध सोने से भी उत्तम चाहने योग्य है। परमेश्वर का वचन, मार्ग के लिए उजाला है।
आज हम जानेंगे कि बाइबल हर एक विश्वासी के लिए अति महत्वपूर्ण क्यों है? बाइबल हर एक विश्वासी के लिए महत्वपूर्ण है: परमेश्वर के साथ घनिष्ठता और एकता के लिए, मसीही जीवन में वृद्धि और परिपक्वता के लिए और सेवा करने की तैयारी के लिए।
बाइबल परमेश्वर के साथ घनिष्ठता के लिए महत्वपूर्ण है।
परमेश्वर हमारे साथ अपने वचन के द्वारा बातचीत करता है और हम भी परमेश्वर से प्रार्थना के द्वारा बातचीत करते हैं। हमारे रिश्ते की मजबूती उसके साथ संगति पर आधारित है। हम परमेश्वर से जितना ज्यादा संगति करेंगे हमारा रिश्ता उतना ही मजबूत होगा। इसलिए यीशु ने भी उसके साथ हमारे संबंध को दर्शाने के लिए और उस रिश्ते के महत्व को समझाने के लिए दाखलता और डालियों के उदाहरण का इस्तेमाल किया। (यूहन्ना 15:1-7)
जिस प्रकार डालियां दाखलता में जुड़ी रहती हैं हमें भी यीशु में जुड़े रहने की आवश्यकता है। उसमें जुड़े रहने का अर्थ है उसमें जीना। जिससे हम प्रतिदिन उसके साथ संगति का अनुभव कर सके।
बने रहना या जुड़े रहना उसके वचन के द्वारा संभव है। जैसा कि हम 1 यूहन्ना 2:24 में पढ़ते हैं, “जो कुछ तुमने आरंभ से सुना है, वही तुम में बना रहे; जो तुमने आरंभ से सुना है यदि वह तुम में बना रहे तो तुम भी पुत्र में और पिता में बने रहोगे।” वचन में बने रहना हमारा परमेश्वर के साथ रिश्ते को घनिष्ठ बनाता है क्योंकि इससे हम उसकी इच्छा को भी जान पाते हैं।
जैसा कि आप जानते ही हैं कि किसी भी रिश्ते में एक दूसरे को जानना बेहद जरूरी होता है। परमेश्वर ने मानव की रचना की है तो जाहिर सी बात है वो हमें बारीकी से जानता है, हमारा उठना-बैठना, हमारा चलना-फिरना जानता है और तो और हमारे विचारों को भी जानता है। (भजन संहिता 139) परमेश्वर की रचना होने के नाते हमें भी परमेश्वर की इच्छा को जानना जरुरी है क्योंकि उसने हमें बनाया है।
अगर उसने हमें बनाया है तो किसी खास उद्देश्य के साथ बनाया है। हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा और उद्देश्य क्या है इसको हम बाइबल के द्वारा ही जान सकते हैं। Bible परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते को घनिष्ठ बनाने के लिए परमेश्वर द्वारा दिया गया प्रेमपत्र है। इसलिए बाइबल एक विश्वासी के लिए बहुत महत्व रखती है।
बाइबल मसीही जीवन में परिपक्वता के लिए महत्वपूर्ण है।
परमेश्वर का वचन, बाइबल न सिर्फ हमें परमेश्वर के साथ संगति तथा घनिष्ठता की ओर हमारा मार्गदर्शन करती है बल्कि यह हमारे आत्मिक वृद्धि के लिए भी जरूरी है ताकि हम परिपक्व हो जाएं या यूं कहें कि यह परिपक्वता की ओर हमारा मार्गदर्शन करती है। बहुत से लोग आज आत्मिक जीवन में वृद्धि चाहते हैं उनकी जानकारी के लिए बता दूं कि बिना बाइबल अध्ययन के आपके आत्मिक जीवन में कोई उन्नति नहीं हो सकती है और न आप मसीह में परिपक्व हो सकते हैं।
1 पतरस 2:2 हमें उत्साहित करता है कि हम भी नए जन्मे हुए बच्चों के समान निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करें ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिए बढ़ते जाएं। परमेश्वर का वचन हमारी बढ़ोतरी के लिए दूध जैसा है। जिस प्रकार एक बच्चे की बढ़ोतरी के लिए दूध आवश्यक होता है उसी प्रकार एक मसीही व्यक्ति के आत्मिक उन्नति के लिए परमेश्वर का वचन अति आवश्यक है।
पतरस यहां पर ध्यान दिलाता है कि एक विश्वासी में परमेश्वर के वचन के लिए इच्छा होनी चाहिए जैसे कि एक बच्चा दूध की इच्छा करता है।
इब्रानियों में परमेश्वर का वचन हमें बताता है कि हमें समय के साथ परिकक्वता में भी बढ़ना है। अब सिर्फ बच्चा बने रहने की आवश्यकता नहीं है बल्कि हमें आत्मिक परिपक्वता में भी बढ़ना है। जो वचन हम पढ़ते हैं उसका हमें निरंतर अभ्यास करने वाले बनना है।
आत्मिक रूप से कहें तो यह भोजन वचन की गहराई की ओर संकेत करता है। जिस प्रकार एक बच्चा धीरे-धीरे बढ़ता जाता है समझदार होता जाता है, वैसे ही हमें भी परमेश्वर के वचन को समझने वाले बनना है उसको अपने जीवन में लागू करना है। (इब्रानियों 5:11-14) बिना लागूकरण के वचन अध्ययन निरर्थक होगा।
यह बात सच है कि बाइबल अध्ययन परमेश्वर के साथ हमारे संबंध को मजबूती देता है और हमारे आत्मिक जीवन में परिपक्वता की ओर बढ़ाता है। यह ध्यान रखें कि परमेश्वर के साथ हमारे परिपक्व संबंध, परमेश्वर के वचन को पढ़े बिना घटित नहीं होते हैं और यह भी सच है कि परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना भक्ति और परिपक्वता की गारंटी नहीं देता है।
शास्त्री और फरीसी इसके उदाहरण हैं जो पवित्रशास्त्र को अच्छे से जानते थे, वे पुराने नियम में से बहुत सी आयतों को याद भी कर लेते थे इसके बावजूद उनका हृदय परमेश्वर के लिए नहीं था। वे न तो नम्र थे, न आत्मिक जन थे। इसलिए आप जो भी वचन पढ़ते हैं उसे समझना और अपने जीवन में लागू करना अतिआवश्यक है। बिना लागूकरण के वचन अध्ययन न तो हमारे आत्मिक जीवन में वृद्धि करेगा और न हम परिपक्व होंगे।
बाइबल सेवा करने की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रेरित पौलुस एक और कारण की ओर संकेत कर रहा है कि हमें बाइबल अध्ययन क्यों करना चाहिए। (2 तिमुथियुस 3:14-17) तिमुथियुस को लिखे इस पत्र में पौलुस ने बाइबल के विषय में दो महत्वपूर्ण सच्चाइयों की घोषणा की है। सबसे पहले उसने कहा कि बाइबल…
- परमेश्वर की ओर से प्रेरित है।
- यह संपूर्ण वचन लाभदायक है।
परमेश्वर का वचन हमारी धार्मिकता के प्रशिक्षण को हमारे लिए उपदेश, समझाने और सुधारने के लिए उपलब्ध कराता है। इस आलौकिक प्रबंध का उद्देश्य है, हमें सिद्ध करना जिससे हर एक भले कामों के लिए हम तैयार हो सके। बाइबल को जानना हमें परमेश्वर के लिए इस्तेमाल होने को तैयार करता है और उसकी सेवा करने के योग्य बनाता है।
बाइबल का अध्ययन सिर्फ पासवानों या मसीही अगुवों के लिए नहीं है। बल्कि सभी विश्वासियों के लिए यह एक जरूरी प्रशिक्षण है। क्योंकि परमेश्वर ने प्रत्येक विश्वासी को इस दुनियां में रोशनी के जैसे इस्तेमाल होने के लिए और मसीह की देह का निर्माण करने के लिए चुना है। ताकि आप अपने जीवनों के द्वारा भले कामों को करें और लोग उन भले कामों को देखकर स्वर्गीय पिता की बड़ाई करें। (मती 5:16) हमें दूसरों से प्रेम करने और सेवा करने के लिए बुलाया गया है। हमारा जीवन सिर्फ हमारे लिए नहीं हैं बल्कि दूसरों के लिए भी है।
पवित्रशास्त्र बताता है कि परमेश्वर द्वारा दिए गए दानों वरदानों का कैसे दीनता के साथ दूसरों की सेवा में इस्तेमाल करना है। वचन न सिर्फ परमेश्वर की शिक्षा को हम तक पहुंचाता है बल्कि यह परमेश्वर के हृदय और चरित्र जो भी प्रकट करता है। परमेश्वर यह कभी नहीं चाहता है कि उसके लोग बाइबल की शिक्षा के तो विद्वान बने परंतु जिसने बाइबल दी है उस परमेश्वर को जानने में असफल रह जाएं।
प्रभु के साथ हमारा संबंध ही बाइबल की हमारी शिक्षा का स्त्रोत होना चाहिए। यीशु के समय के धार्मिक अगुवे भी वचन के तो विशेषज्ञ थे पर यह समझने में नाकाम रहे कि वचन जो वे पढ़ रहे थे, यीशु की गवाही देते थे। (यूहन्ना 5:39-40) वे विश्वास के बिना वचन का प्रतिउत्तर दे रहे थे।
जिस प्रकार विश्वास की कमी उन धार्मिक अगुवों ने दिखाई आज भी लोग उसी प्रकार विश्वास की कमी के साथ बाइबल के पास आते हैं। विश्वासी लोग भी इस फंदे में फंस सकते हैं इसलिए हमें बाइबल अध्ययन करते हुए सावधान रहने की आवश्यकता है। हमें याद रखने की आवश्यकता है कि Bible हर एक विश्वासी के लिए महत्वपूर्ण है: परमेश्वर के साथ घनिष्ठता और एकता के लिए, मसीही जीवन में वृद्धि और परिपक्वता के लिए और सेवा करने की तैयारी के लिए।
हे स्वर्गीय पिता आपके पवित्र वचन के लिए धन्यवाद जो आपने मेरे लिए दिया है ताकि मैं आपको जान सकूं, आपके साथ अपना रिश्ता मजबूत कर सकूं, मैं सिद्धता में बढ़ता जाऊं और जो सेवा मुझे सौंपी गई है उसके लिए तैयार हो सकूं। प्रभु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।