Leadership Lessons From Joshua | यहोशू कौन था? | यहोशू से नेतृत्व के लिए हम क्या सीख सकते हैं? | यहोशू 1:1-24:33

Leadership Lessons From Joshua. यहोशू कौन था? और यहोशू से नेतृत्व के लिए हम क्या सीख सकते हैं? (यहोशू 1:1-24:33) मसीह यीशु में मेरे प्रिय, इन दिनों में जब मैं एक अगुवापन (Leadership) के दृष्टिकोण से यहोशू की पुस्तक का अध्ययन कर रहा था, कि कैसे एक अगुवे के रूप में जीना है जो निरंतर अपने जीवन के अंत तक प्रभु का भय मानता है। कहा जाए तो अपने जीवन का अच्छे से अंत करता है। किसी ने इस प्रकार कहा है…

हमारी शुरुआत चाहे कैसी भी हो लेकिन हम अपने जीवन का अच्छे से अंत कर सकते हैं।

यहोशू कौन था?

निर्गमन और गिनती की पुस्तक के अनुसार यहोशू ने मूसा के सहायक के रूप में कार्य किया, और बाद में यहोशू इस्राएली लोगों का एक सफल अगुआ बना। वह एप्रैम के गोत्र से सम्बन्ध रखता था, वह नून का पुत्र होशे था, लेकिन मूसा ने उसे यहोशू (“यहोशुआ” अंग्रेजी में “जोशुआ” के रूप में अनुवादित) कहा। (गिनती 11:28, 13:8, 16, यहोशू 2:1)

बाइबल के अनुसार यहोशू उन बारह जासूसों में से एक था जिन्हें कनान देश का भेद लेने के लिए मूसा ने भेजा था। कनान देश का भेद लेने के बाद यहोशू और कालेब ने ही सकारात्मक रवैया रखा था और इस्राएली लोगों को परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास करने के लिए प्रेरित भी किया था। (गिनती 14:6-9) मूसा की मृत्यु के बाद, यहोशू ने कनान की विजय में इस्राएली गोत्रों का नेतृत्व किया, और गोत्रों को भूमि आवंटित की। यहोशू की 110 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई। (यहोशू 24:29)

यहोशू की पुस्तक भी हमें अगुवापन के बारे में बहुत कुछ सिखाती है। मैं उसकी एक Summary आपके साथ भी साझा करना चाहता हूं। इससे हम यह भी सीख ले सकते हैं कि कैसे परमेश्वर के वचन को प्राथमिकता देना किसी व्यक्ति को प्रभावशाली बनाता है या सफल बनाता है। (यहोशू 1:6-9)

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यहोशू से नेतृत्व के लिए हम क्या सीख सकते हैं?

यहोशू पुस्तक में वर्णित कहानी हमें बताती है कि कैसे परमेश्वर ने अपने लोगों को वादा किए हुए देश पर विजय प्राप्त करने में मदद की। यहोशू की पुस्तक बताती है कि किस प्रकार इज़रायल, कनान में बसा, जिस भूमि को परमेश्वर ने उन्हें देने का वादा किया था। इस पुस्तक का नाम इसके मुख्य पात्र यहोशू से लिया गया है जो मूसा की मृत्यु के बाद इजरायल का अगुआ बना।

इस पुस्तक को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला भाग बताता है कि किस प्रकार इस्राइल ने कनान देश के शहरों और नगरों को लिया। (अध्याय 1 से 12) इस पुस्तक का दूसरा भाग बताता है किस प्रकार उन्होंने उस भूमि का बंटवारा किया। (अध्याय 13 से 24)

नीचे कुछ सारांश दिया गया है, मैं आपको उत्साहित करता हूं कि आप इसको विस्तृत तौर पर पढ़ें और जो कुछ भी आप उसमें से सीखते हैं आप हमारे साथ भी उसको साझा कर सकते हैं और साथ ही साथ मैं आप को उत्साहित करना चाहता हूं कि आप दूसरों के साथ भी उसको साझा करें।

नीचे दी गई प्रश्नावली के अनुसार आप भी अपने उत्तरों को क्रम अनुसार रख सकते हैं। जरूरी नहीं है कि यह क्रम सही है क्योंकि ये सारी बातें एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं आइए कुछ प्रश्न और उनके उत्तरों पर ध्यान दें जो हमने यहोशू की पुस्तक में से लिए हैं।

एक अगुवे के लिए क्या-क्या वादा है? जिस स्थान में पांव धरोगे वह सब मैं तुम्हें देता हूं। (यहोशू 1:3) तेरे संग भी रहूंगा, मैं तुझे धोखा ना दूंगा, न तुझको छोडूंगा। (यहोशू 1:5) जहां-जहां तू जाएगा वहां तेरा काम सफल होगा। (यहोशू 1:7, 8) जहां-जहां तू जाएगा वहां-वहां तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा। (यहोशू 1: 5, 9)

अगुवे के लिए क्या आज्ञा है? उठ। (यहोशू 1:2) कमर बांध। (यहोशू 1:2) सारी प्रजा समेत पार होकर उस देश को जा। (यहोशू 1:2) हियाव बांधकर दृढ़ हो जा। (यहोशू 1:6, 7, 9) बहुत दृढ़ होकर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना। (यहोशू 1:6-7) उससे ना दाएं मुड़ना ना बाएं। (यहोशू 1:7) व्यवस्था की पुस्तक तेरे चित से कभी ना उतरने पाए। (यहोशू 1:8) इसी में रात दिन ध्यान दिए रहना। (यहोशू 1:8) जो कुछ उसमें लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे। (यहोशू 1:8) भय न खा। (यहोशू 1:9) तेरा मन कच्चा न हो। (यहोशू 1:9, 8:1) मत डर। (यहोशू 10:8, 11:6)

अगुवा क्या कड़ी मेहनत करता है? परमेश्वर की व्यवस्था में रात दिन ध्यान देता है। व्यवस्था के अनुसार करने की चौकसी करता है। हिम्मत रखता है, अगुवों की अगुवाई करता है, पाप के साथ समझौता नहीं करता है। जो आज्ञाएं दी गई हैं उनको पूरी करता है। (यहोशू 11:15)

एक अगुवा क्या-क्या जोखिम उठाता है? उसके नेतृत्व में कई अगुवों और प्रजा का पालन पोषण होता है। (यहोशू 1:10-18, 9:2) अगुआ भी एक इंसान है और अपनी समझ का सहारा लेने वाले पाप में गिर सकता है। (यहोशू 9:14)

दूसरों की सफलता या असफलता उस अगुवे को कैसे प्रभावित करती है? दूसरों के गलत आचरण से उसको भी कष्ट होता है। (यहोशू 7:25) उसको भी हार का सामना करना पड़ता है। एक अगुवे के चारित्रिक क्षेत्र क्या क्या है? आज्ञाकारिता। (यहोशू 1:10,3:7-13, 4:15-16, 7:10, 8:18) पवित्रता। (यहोशू 6:18) एक अगुवे का समर्पण? रात दिन परमेश्वर की व्यवस्था में ध्यान। अगुवे का निर्णय? मैं और मेरा घराना नित्य प्रभु की सेवा करते रहेंगे। (यहोशू 24:15)

एक अगुवा अपने लोगों से, और टीम के सदस्यों से कैसा व्यवहार करता है? अगुवों को आज्ञा देता है, लोगों को परमेश्वर का वायदा याद दिलाता है। (यहोशू 1:10-12) एक दूसरे की मदद करने के लिए उत्साहित करता है। (यहोशू 1:12-15) निर्देश देता है। (यहोशू 22:5) लोगों को परमेश्वर का वचन सुनने के लिए पास बुलाता है। (यहोशू 3:9) रात को भी उनके साथ समय बिताता है। (यहोशू 8:9) अगुवों का चुनाव करता है। (यहोशू 8:12) उत्साहित करता है। (यहोशू 10:25)

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अगुवे का आत्मिक जीवन? लोग उसका अनुसरण करते हैं और लोग उसको उत्साहित भी करते हैं। (यहोशू 1:16-18) परमेश्वर की आज्ञा को पूरी करने का क्रम वह लगातार रखता है (Read Chapter 10) अगुवे का रवैया? तुरंत कदम उठाता है। (यहोशू 1:10-18) विश्वास के साथ आगे बढ़ता है। पाप के साथ समझौता नहीं करता है। (अध्याय 7) पापी को पश्चाताप करने के लिए प्रोत्साहित करता है। (यहोशू 7:19)

एक अगुवा कहां से सामर्थ प्राप्त करता है? एक अगुआ परमेश्वर से सामर्थ प्राप्त करता है। (यहोशू 4:14, 7:10) जब उसकी प्रार्थना से सूर्य थम गया। (यहोशू 10:12-14) परमेश्वर ने प्रार्थना सुन के सूर्य को भी ठहरा दिया था। (यहोशू 10:12-14, 11:6) परमेश्वर ने बार-बार उसको यह कहकर उत्साहित किया कि मत डर। एक अगुवा परमेश्वर से सामर्थ प्राप्त करता है। (यहोशू 14:6-15) (कालेब)

कैसे एक अगुवा एक उदाहरण बनते हुए अगुवाई करता है? अगुआ एक विश्वास से भरा हुआ जीवन जीता है। यरीहो के चारों ओर घूमना। जो आज्ञा परमेश्वर ने मूसा को दी थी उसी के अनुसार मूसा ने यहोशू को आज्ञा दी थी ठीक वैसा ही उसने किया भी। जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उनमें से उसने कोई भी पूरी किए बिना ना छोड़ी। (यहोशू 11:15) पक्षपात नहीं करता है। (यहोशू 17:4) दूसरों को उत्साहित करता है। (यहोशू 17:14-18, 18:3) परमेश्वर को मध्यनजर रखते हुए बटवारा करना।

एक अगुवा क्या-क्या रणनीति बनाता है? दूसरे अगुवों को भी उस काम में लगाता है जो उसको सौंपा गया है। (यहोशू 2:1) रात को भी उनके साथ समय बिताता है। (यहोशू 8:9) अगुवों का चुनाव करता है। (यहोशू 8:12)

एक अगुवे का क्या लक्ष्य होता है? उसने परमेश्वर के लिए वेदी बनाई, जिससे उसके परमेश्वर को महिमा देने का लक्ष्य मालूम होता है। (यहोशू 8:30) परमेश्वर के वचन को पढ़कर सुनाना, जिससे लोग परमेश्वर का भय माने और परमेश्वर की महिमा करें। (यहोशू 8:30-35) उसके कार्य करने की गति से हमें मालूम होता है कि वह जल्दी से जल्दी आशीष के देश में सब लोगों को स्थापित करना चाहता था, अर्थात परमेश्वर के लोगों को कनान देश में पूरी तरह से कब्जा करना। एक अगुवा किस बात में केन्द्रित रहता है? अपनी और अपने लोगों की पवित्रता। (यहोशू 3:5, 5:18-20)

उसका व्यक्तिगत बलिदान और कठिनाइयां? अंत तक विश्वासयोग्यता में जीना (यहोशू 23-24 Chapter) खुद चुनाव करता है और दूसरों को भी सही चुनाव करने के लिए प्रोत्साहित करता है। (यहोशू 24:15) अगुवे की दूरदर्शिता या भविष्य देखने की क्षमता? कार्यों का आकलन करके उसे मालूम होता है, कि परमेश्वर ने उसे दे दिया है। (यहोशू 2:24) व्यवस्था अथवा परमेश्वर के वचन का पाठ कराना। (यहोशू 8:35) परमेश्वर को जानता है। (यहोशू 24:19)

साथ ही साथ हम सीख सकते हैं कि कभी-कभी लक्ष्यों को पूरा करने में लंबा समय लगता है। अगुआ हमेशा अंत में खाता है। एक अगुआ कभी भी अगुवाई करना बंद नहीं करता है। एक अगुवा दशकों तक मजबूत बना रह सकता है। आइए इसके बारे में थोड़ा विस्तार से चर्चा करें…

कभी-कभी लक्ष्यों को पूरा करने में लंबा समय लगता है।

यहोशू की पुस्तक से हम यह भी सबक ले सकते हैं कि कभी-कभी लक्ष्यों को पूरा करने में लंबा समय लगता है। जब आप इस पुस्तक के शुरुआती हिस्सों को ध्यान से देखते हैं और फिर इस पुस्तक के अंत में ध्यान से देखते हैं तो आपको पता चलता है कि पहले अध्याय की शुरुआत से अंत के अध्याय तक लगभग 40 साल चले गए हैं। और इन वर्षों में यहोशू और कालेब अपनी टीमों का नेतृत्व कर रहे थे।

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अगुआ हमेशा अंत में खाता है।

हम इस पुस्तक में यह भी पाते हैं कि जब भूमि का वितरण करना समाप्त हो गया था तो लोगों ने यहोशू को भी विरासत दी। एक कहावत है कि Leader हमेशा अंत में खाता है। और यहोशू के जीवन से हम यह सीख ले सकते हैं कि हमें सेवकाई के दौरान अपने बारे में सोचने की जरूरत नहीं है।

यहोशू ने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार लोगों को भूमि बांट दी, पर उसने अपने बारे में सोचा भी नहीं। और हम देख सकते हैं बेशक उसने अपने बारे में नहीं सोचा परंतु प्रभु अगुवे बारे में सोचता है, लोग हमारे बारे में सोचते हैं जब हम उनके जीवन में निवेश करते हैं। क्योंकि जो दूसरे की खेती सींचता है उसकी भी खेती सींची जाती है। यहोशू ने अपना पुरस्कार तब तक नहीं लिया जब तक सभी लोगों को यह पुरस्कार प्राप्त नहीं हुआ।

एक अगुआ कभी भी अगुवाई करना बंद नहीं करता है।

एक अगुआ कभी भी अगुवाई करना बंद नहीं करता है। यहोशू का अगुवाई करना भूमि की जीत के साथ समाप्त नहीं हुआ। परमेश्वर के वचन में हम पाते हैं उसके बाद भी उसने एक शहर का पुनर्निर्माण किया। (यहोशू 19:49-50) बेशक अब उसके नेतृत्व के दायरे में पूरा देश नहीं था, पर फिर भी वह जहां रहा, अगुवाई करता रहा। (पढ़ें: यहोशू 20-24 अध्याय)

एक अगुवा दशकों तक मजबूत बना रह सकता है।

इस बात को भी हम यहोशू और कालेब के जीवन से सीख सकते हैं कि एक अगुवा दशकों तक मजबूत बना रह सकता है या यूं कहूं तो अपने जीवन के अंत तक वह मजबूत बना रह सकता है, शारीरिक तौर पर भी, मानसिक तौर पर भी और आत्मिक तौर पर भी।

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  • हियाव रखने के लिए आज्ञा दी गई है। (यहोशू 1:6-9)
  • जो काम परमेश्वर ने दिया है उसे मिलकर करना चाहिए। (यहोशू 1:14-15)
  • अगुवापन में वास्तविक अधिकार परमेश्वर की अधीनता में रहने से आता है। (यहोशू 5:13-15)
  • पवित्रता, विजय से पहले आती है। (यहोशू 7:10-12)
  • अंदाजा, विपत्ति की ओर अगवाई करता है। (यहोशू 7:3-4)
  • नेतृत्व के लिए परमेश्वर का वचन आपके नींव और अधिकार है। (यहोशू 8:30-35)
  • लगातार लोगों को परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य बने रहने के लिए और उसकी ही आराधना करने के लिए उत्साहित करना चाहिए। (यहोशू 24:14-21)

मैं आप को भी उत्साहित करना चाहता हूं, देखें कि हर एक अध्याय से आप क्या सबक ले सकते है? देखें कि क्या ऐसी जगहें हैं आपके व्यक्तिगत जीवन में जहां आप गलतियां कर रहे हैं, जो आपको एक ईश्वरीय अगुआ बनने से रोक रही हैं?

ऐसा अगुआ बनें जैसा परमेश्वर चाहता है कि आप बनें।

शालोम

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Anand Vishwas
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आशा है कि यहां पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हम सबको बुलाया है। प्रभु का आनंद हमारी ताकत है।

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