हे प्रभु, कब तक? (O Lord How Long?) (भजन संहिता 13:1-6) ऐसे समय में आपकी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए? आपके जीवन में भी कभी न कभी ऐसा समय जरुर आया होगा जब आपने यह पूछा हो कि, “हे प्रभु, कब तक?” ये संघर्ष और निराशा “कब तक” चलेगी? ये आर्थिक समस्याएं कब तक चलेंगी? ये स्वास्थ्य की परेशानी कब तक रहेगी? संबंधों में ये मुश्किलें कब तक रहेंगी? हमारे परिवार में कब तक सब अच्छा होगा? कब मेरे जीवन, मेरे परिवार में शांति होगी, कब तक कुशल होगा? हे प्रभु आप इस वक़्त कहाँ पर हैं?
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मैं इस व्यसन से कब तक जूझता रहूँगा? ये गंभीर लालसाएं कब तक रहेंगी? इस नुकसान से उबरने में मुझे कितना समय लगेगा? आखिर कब तक प्रभु? मेरे साथ ही ऐसा क्यों प्रभु? हालांकि ये कुछ ऐसी परिस्थितियां या बातें हो सकती हैं जिन्हें परमेश्वर के अलावा कोई भी नहीं समझ सकता है और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि वही उसमें से बाहर निकालने की सामर्थ भी रखता है।
“कब तक, हे प्रभु,कब तक?” आज हम भजनकार, राजा दाऊद के इन शब्दों पर गौर करेंगे। दाऊद लगातार चार बार पुकारता है, “कब तक……?” (भजन संहिता 13:1-2). जैसा कि आपको मालूम ही है राजा दाऊद एक ऐसा व्यक्ति था जो “परमेश्वर के मन के अनुसार” (A man after God’s own heart) व्यक्ति कहा गया। (1 शमूएल 13:14, प्रेरितों 13:22) और परमेश्वर ने उसे एक चरवाहे से राजा बना दिया था। राजा दाऊद एक ईश्वरीय ह्रदय वाला व्यक्ति था।
वो पूरे दिल से परमेश्वर पर भरोसा रखता था। उसके विश्वास से आज तक हम सबको प्रेरणा मिलती है। उसने हर मुश्किल घड़ी में परमेश्वर पर भरोसा रखा था। भजनसंहिता के अधिकतर भजनों में हम राजा दाऊद के गीतों को पाते हैं। जिससे मालूम होता है कि उसका परमेश्वर के ऊपर अटूट विश्वास था। वह एक प्रार्थना योद्धा भी था जो हर बात को परमेश्वर के साथ साझा किया करता था।
हमारे जीवन में ऐसा समय भी आता है जब ऐसा लगता है कि परमेश्वर हमें भूल गए हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने अपना मुख हमसे छिपा लिया है। किसी वजह से हम अपने साथ उनकी उपस्थिति महसूस नहीं कर पाते। हर दिन संघर्ष भरा दिन लगता है – अपने विचारों से लड़ते हुए। हर दिन दु:खों से भरा लगता है। ऐसा लगता है कि हम हार रहे हैं और शत्रु हम पर जय पा रहा है। (भजन संहिता 13:1-2)
ऐसे समय में आपकी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए?
ऐसे समय में आपकी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए? (भजन संहिता 13:1-6) हालांकि आगे बढ़ने का मन नहीं करता है, किसी भी काम को करने का मन नहीं करता है। आइए कुछ बातों को देखें जिन्हें आपको हर मुश्किल घड़ी में करते रहना चाहिये, और हम इस भजन में उन बातों को पाते हैं। वास्तव में परमेश्वर का वचन ही है जो ऐसे समय में हमें उत्साहित करता है।
प्रार्थना करते रहें।
दाऊद परमेश्वर को पुकारता रहा, “हे मेरे परमेश्वर यहोवा मेरी ओर ध्यान दे और मुझे उत्तर दे, मेरी आंखों में ज्योति आने दे” वह परमेश्वर के सामने अपना दिल उंडेल देता है। ऐसा लगता है कि परमेश्वर काफी दूर है पर जब भी आपको ऐसा दिखाई दे तब भी प्रार्थना करना मत छोड़िये।
भरोसा बनाए रखें।
“परन्तु मैं ने तो तेरी करूणा पर भरोसा रखा है” जब हमारे जीवन में चीजें अच्छी हो रही हों, तो भरोसा रखना आसान लगता है, लेकिन विश्वास की परीक्षा तब होती है जब ऐसा प्रतीत होता है कि चीजें अच्छी नहीं हो रही हैं। ऐसे वक्त भी हमें परमेश्वर पर अपना भरोसा बनाए रखना है।
आनंद मनाते रहें।
राजा दाऊद परीक्षा में आनंद नहीं मनाता है, बल्कि परमेश्वर के उद्धार में आंनद मनाता है। वह कहता है, “मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा” एक दूसरा अनुवाद कहता है राजा दाऊद यहाँ पहले ही अपने बचाव का उत्सव मना रहे हैं। हो सकता है कि कुछ लोग कहें कि ऐसा कैसे कर सकते हैं? पर मेरे प्रिय, परमेश्वर की सामर्थ से हम सब कर सकते है। वो ही हमें सच्चा आंनद देता है, और छुटकारा देता है। (भजन संहिता 13:5)
आराधना करते रहें।
राजा दाऊद कई परेशानियों से गुजर रहा था इसके बावजूद भी दाऊद परमेश्वर की भलाई को देख पाया। “मैं परमेश्वर के नाम का भजन गाऊंगा, क्योंकि उसने मेरी भलाई की है” परमेश्वर ने उसके लिए जो भी किया था वह सब उसे याद है।
जब आप परमेश्वर की स्तुती और आराधना करने लगते हैं, तो परमेश्वर आपकी समस्याओं का समाधान लाते हैं। कभी-कभी, मैंने भी अपने जीवन में पीछे देखना और परमेश्वर को धन्यवाद देना लाभदायक पाया है कि परमेश्वर ने मुझे खुद के अनेक संघर्षों, निराशाओं और शोक से उबारा है।
यह याद करना लाभदायक होता है कि परमेश्वर ने इन सब में मुझ पर किस तरह भलाई की है। (भजन संहिता 13:6) राजा दाऊद हमेशा अपने आप को याद दिलाते हैं कि मुझे कभी भी परमेश्वर के उपकारों को नहीं भूलना है। (भजन 103:2)
ऐसे कई उदाहरण हैं जब लोगों ने परमेश्वर की आराधना किया और परमेश्वर ने समाधान दिया। राजा यहोशापात भी जब चारों ओर से मुश्किलों से गिरा हुआ था तो उसने पूरे ह्रदय से परमेश्वर की खोज की, परमेश्वर पर भरोसा रखा और परमेश्वर को धन्य कहा। और परमेश्वर ने अद्भुत तरीके से उनको बचाया। (2 इतिहास 20:1-30) इसका मतलब है हम उसको अपने जीवन में प्राथमिकता देते हैं, हम उस परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं। वही हमें भी चारों ओर से विश्राम देगा। (2 इतिहास 20:30)
आराधना के बारे में जब हम बात करते हैं तो बहुत से लोग सोचते हैं कि भजन गाना ही आराधना है। पर बाइबिल हमें सिखाती है कि हमारे जीवन की हर एक प्रतिक्रिया जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होती है, वो ही हमारी आत्मिक आराधना है। अर्थात हमें अपने सम्पूर्ण जीवन में अपने शरीरों को जीवित, पवित्र और परमेश्वर को भावता हुआ समर्पित कर देना है ये ही हमारी आत्मिक आराधना है। (रोमियों 12:1)
सारांश
मेरे प्रिय, जब हमारे पास ये उदाहरण हैं तो हमें भी इस बातों को अपने जीवन में लागू करना चाहिए कि हर परिस्थिति में हम…
- प्रार्थना करते रहें।
- परमेश्वर पर भरोसा रखें।
- आनंद मनाते रहें।
- उसकी भलाइयों को याद कर, धन्यवाद देते रहें।
मैंने भी जब इन प्रार्थनाओं को दोहराया है, मैंने आंतरिक रीति से मजबूती को पाया है, और मैंने भी अपने जीवन में परमेश्वर के अनुग्रह और उद्धार को देखा है। परमेश्वर हर समय भला परमेश्वर है। हां परमेश्वर कई बार हमारे जीवन में ऐसी परिस्थितियों को आने की अनुमति देता है तब हम भी राजा दाऊद की तरह पुकारते हैं कि हे प्रभु कब तक! (O Lord How Long?) (भजन संहिता 13:1-6)
पर उस वक़्त भी हम परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं, भरोसा रख सकते है, उसमें आनंद मना सकते हैं और उसकी आराधना कर सकते हैं। परमेश्वर की उपस्थिति को अपने जीवन में महसूस कर सकते हैं, क्योंकि उसकी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है। (2 कुरिन्थियों 12:9-10)
ऐसे समय में मैं भाई अनिल कांत जी के गीत काफी सुनता था जो कि वचन के आधार पर होते थे। जैसे कि कब तक खुदा मेरे कब तक, ऐ खुदा मेरी रोशनी मेरी नजात है तू, डर नहीं मुझको कोई, जब मेरे साथ है तू। आत्मिक गीत भी आपको आत्मिक रीति से मजबूत करने के लिए काफी सहायक सिद्ध होते हैं।
शालोम