शिष्यता के लिए एक अद्भुत बुलाहट (मती 11:28-30)

शिष्यता के लिए एक अद्भुत बुलाहट (The Call To Discipleship)

Posted by Anand Vishwas

December 30, 2020

शिष्यता के लिए एक अद्भुत बुलाहट (The Call To Discipleship) (मती 11:28-30) मती रचित सुसमाचार में जब आप इन प्रभु के वचनों को पढ़ते हैं तो आप कैसा महसूस करते हैं? मुझे आज भी याद है मेरे मसीही जीवन की शुरुआत में मुझे इन वचनों के द्वारा बहुत अधिक उत्साह और विश्राम मिला। क्योंकि यीशु सच में हमें विश्राम देना चाहते हैं; सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि पूरे जगत को वे विश्राम देना चाहते हैं। 

शिष्यता के लिए एक अद्भुत बुलाहट (The Call To Discipleship)
Contributed by LUMO project

वैसे भी अपने जीवन के संघर्षों से गुजरते हुए मैं काफी थकान महसूस कर रहा था। परन्तु जब सुसमाचार को सुनते हुए मुझ तक ये वचन पहुंचे तो मैंने इन वचनों से सीख लिया जो प्रभु यीशु सिखाना चाहते थे। हो सकता है कि बहुतों को अभी तक मालूम ही ना हो कि परमेश्वर ने उन्हें क्यों बुलाया है? आइए इन वचनों के अनुसार जानने का प्रयास करें।

हम विश्राम लेने के लिए बुलाए गए हैं।

प्रभु यीशु ही हमें पाप से छुड़ाकर आराम देते हैं। यीशु हमें मृत्यु के डर से विश्राम देते हैं और जो जीवन में मृत्यु के दास हैं वह उन्हें छुड़ाता है। प्रभु यीशु दंड की आज्ञा से विश्राम देता है। क्योंकि उनके अनुयाई अब आत्मा के अनुसार चलते हैं। (रोमियो 8:1)

वचन बताता है तुम जो सवेरे तड़के उठते हो और देर से विश्राम करते हो यह तुम्हारे लिए व्यर्थ है। क्योंकि हम नाशवान संसार में, नाशवान शरीर के लिए ये परिश्रम करते हैं। इसलिए प्रभु उन सभी को निमंत्रित करते हैं जो परिश्रम कर रहे हैं, ताकि वे अब यीशु में विश्राम पाएं।

बहुत से लोग अपने जीवन में शांति की खोज में हैं इसलिए प्रभु यीशु ने कहा, मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता : तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे। (यूहन्ना 14:27 HINDI-BSI) सांसारिक बातेंं और चीजें हमेंं कुछ पल के लिए शांति दे सकते हैं परन्तु प्रभु यीशु हमें स्थायी शांति देना चाहते हैं।

विश्राम किनके लिए है?

  • परिश्रम करने वालों के लिए।
  • बोझ उठाने वालों के लिए।

हम सेवा करने के लिए बुलाए गए हैं।

बेशक हम विश्राम लेने के लिए बुलाए गए हैं पर साथ ही हमें प्रभु यीशु ने कुछ जिम्मेदारियां भी सौंपी हैं। यीशु ने कहा कि मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लो। उसका बोझ सरल है। यीशु का जुआ परमेश्वर की इच्छा को पूरी करता है। क्योंकि यीशु ने कहा कि हे मेरे पिता, मेरी प्रसन्नता तेरी इच्छा पूरी करने में है।

हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं। उन लोगों के लिए जो उसको प्यार करते हैं, उसका जुआ हल्का है। इसलिए हमें प्रभु की सेवा को दबाव से नहीं करना है। क्योंकि हम भी उस उद्धार कार्य में परमेश्वर के साथ काम कर रहे हैं। 

ये कितनी बड़ी बात है हमें ये सौभाग्य मिला है कि हम जगत के रचयिता और उद्धारक के साथ कार्य कर रहे हैं। अगर आपको मौका मिले किसी राजनेता के साथ काम करने का, और वो राजनेता समाज सुधार के कार्य में संलग्न है तो क्या आप प्रसन्नतापूर्वक यह काम नहीं करेंगे? हम जबकि सारी सृष्टि के कर्ता के साथ आत्माओं के उद्धार कार्य में सम्मिलित हैं तो मेरे प्रियों, हमें बड़ी प्रसन्नता के साथ इस कार्य में बढ़ चढ़ कर भाग लेना चाहिए।

मेरे प्रिय, हमारा उद्धार तो हो गया है पर अब हमें दूसरों के हित की भी चिंता करनी चाहिए क्योंकि हमसे ये आशा की जाती है कि जैसा यीशु का स्वभाव था हमारा भी स्वभाव हो। (Philippians 2:4-5) 

हम सीखने के लिए बुलाए गए हैं।

यीशु ने कहा कि मुझसे सीखो। जब हम उसके वचन की समीपता में रहते हैं तो यह संभव हो जाता है कि हम उससे सीख लें। वह एक नम्र गुरु हैं। वह ह्रदय का दीन है। उसने जीवन की हर परिस्थितियों के लिए हमें सीख दी है कि कैसे हम भी उन परिस्थतियों से निबटें।

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उदाहरण के लिए उन्हें वचन कंठस्थ थे। जिस वजह से इब्लीस भी उन्हें हरा नहीं पाया। आज हमें भी उनसे ये सीखना है कि हम भी वचन को कंठस्थ कर लें ताकि जीवन के हर एक प्रलोभन में हम जय प्राप्त कर सकें।

यीशु ने कहा कि वह सेवा टहल करवाने नहीं पर सेवा टहल करने आया है। हम उससे सीख सकते हैं कि हम भी हर समय सेवा के लिए तैयार रहें।

हम लोगों के प्रति यीशु के जीवन में तरस को देख सकते हैं। वह सब नगरों और गावों में फिरता रहा, उपदेश देता रहा, राज्य का सुसमाचार प्रचार करता रहा और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। वचन हमें स्पष्ट बताता है कि जब उसने भीड़ को देखा वो तरस से भर गया। (मती 9:35-38)

आज जब आप इस विनाश की ओर जाते हुए संसार को देखते हैं तो आपकी प्रतिक्रिया क्या रहेगी? क्या आपको भी लगता है कि इस कार्य के लिए मजदूरों की कमी है? क्या आपको भी लगता है कि हमें खेत के स्वामी से विनती करने की आवश्यकता है? जैसे ही प्रभु यीशु ने प्रचार कार्य शुरू किया तो क्या उनका विषय परमेश्वर का राज्य नहीं था? आज आपके प्रचार का विषय क्या है? क्या आपकी प्रतिदिन की जीवन शैली इस बात को प्रकट करती है कि आप भी परमेश्वर के राज्य के प्रति गंभीर हैं जैसे स्वयं प्रभु यीशु मसीह हैं?

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आशा है कि यहाँ पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हमें बुलाया है।