शिष्यत्व की कीमत के बारे में बाइबल क्या कहती है? (The Cost Of Discipleship) पिछले विषय में हमने बुराई और दुख की समस्या पर विचार किया है और हमने देखा कि शैतान में इसकी उत्पत्ति हुई और उसने परमेश्वर के राज्य के विरुद्ध निरंतर अपना विद्रोह जारी रखा हुआ है। हमने यह भी देखा कि शैतान ने अय्यूब के जीवन पर हमला करने के लिए कैसे उकसाया जिसके कारण हमें उस संबंध के बारे में अद्भुत अंतर्दृष्टि मिलती है जो परमेश्वर का उसके लोगों के साथ है।
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परमेश्वर का व्यवहार हमारे प्रति पूरी तरह से धर्मी है जो कि अनुग्रह के अनुसार है। हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं जो कि सर्वशक्तिमान, सर्व बुद्धिमान, सर्व प्रेमी है। तब भी जब ऐसे दुख हमारे रास्ते में आते हैं जिसके हम हकदार नहीं हैं।
कीमत चुकाने के लिए तैयार रहें।
आज हम सताव के मुद्दे पर बात करेंगे। मसीही होने के नाते जब हम अपने उद्धारकर्ता के पुनरागमन का इन्तजार कर रहे हैं। सताव एक ऐसी चीज है जिसका सामना करने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।
मसीही होने के नाते सबसे कठिन चीजों में से एक यह है कि हमें अपने विश्वास के लिए दुख उठाने, और कुछ के लिए शायद शहीद होने के लिए भी तैयार रहना है।
बाइबल में प्रभु यीशु मसीह के लिए सताव और दुख के बारे में बहुत कुछ लिखा है। यीशु ने बार-बार अपने शिष्यों को चुनौती दी कि वह इसके लिए तैयार रहें। (मती 5:10-12)
प्रेरित पौलुस ने भी प्रभु यीशु की सेवा में बहुत दुख उठाया, फिलिप्पी में मसीहियों के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल किया। (याद रखें और उसको फिलिप्पी में पीटा गया और जेल में डाल दिया गया था) (प्रेरितों के काम 16:22-24) प्रेरित पौलुस हमें भी उत्साहित करता है कि न केवल उस पर विश्वास करो पर उसके लिए दुःख उठाने के लिए भी तैयार रहो। (फिलिप्पियों 1:29-30)
नए नियम में मसीही पीड़ा और सताव के बहुत से हवाले हैं यहां पर उन सभी पर विचार करना अभी संभव नहीं है, आगे आने वाले समय में हम उन पर भी चर्चा करेंगे।
सताव के बिना शिष्यत्व असंभव।
युगों से मसीही लोग दुःख उठाते आए हैं, निसंदेह यह आज भी सत्य है। वास्तव में सताव के बिना शिष्यत्व हो ही नहीं सकता। मसीह के पीछे चलना दुनियां को पिता से मिलाने की क्रूस उठाने वाली यात्रा में शामिल होना है।
हम सभी जो मसीही होने का दावा करते हैं उन्हें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या मैं दुख उठाने के लिए तैयार हूं? यहां तक कि शहीद होने के लिए भी? क्योंकि मैं यीशु मसीह में विश्वासी होने का दावा करता हूं। क्या हम यीशु के प्रति पूर्ण समर्पण के लिए तैयार हैं? उस पर भरोसा करते हुए चाहे कुछ भी हमारे रास्ते में आए? भले ही हमें उसके प्रति विश्वासयोग्य बने रहने के लिए उच्च कीमत चुकानी पड़े? यह एक कठिन सवाल है लेकिन यह प्रभु के साथ हमारे रिश्ते का वह स्तर है जो वह हम में से हर एक से चाहता है।
तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे। कोई जबरदस्ती नहीं है, चुनाव आपके साथ में है। (मती 16:24-25)
याद रखें कि यहां कुछ शर्ते हैं यदि हम सच में यीशु का अनुसरण करना चाहते हैं:-
- स्वयं का इनकार करना होगा।
- अपना क्रूस उठाना होगा।
- यीशु के पीछे चलना होगा।
ये शब्द यीशु की उस घोषणा पर पतरस की आपत्ति के जवाब में कहे गए थे, जब वह दुख उठाने और मारे जाने के लिए यरूशलेम जा रहा था। यीशु पतरस और अन्य शिष्यों को बता रहा था कि यदि वे वास्तव में उसके पीछे चलने के बारे में गंभीर हैं तो उन्हें स्वयं का इनकार करना होगा और अपना क्रूस उठाना होगा।
अर्थात उन्होंने अपने जीवन के लिए जो भी अपेक्षाएं की हैं उन्हें त्यागना होगा, दुख उठाने के लिए तैयार रहना होगा, और उसकी इच्छा को पूरा करने के लिए, और शहीद होने के लिए भी तैयार रहना होगा। ऐसा उन्हें अपने प्राण को बचाने के लिए करना होगा।
यहां पर इस बात पर गौर करना जरूरी है कि यह पद पापों के दंड से मुक्ति के बारे में नहीं कह रहा है, पापों से मुक्ति केवल यीशु ही दे सकता है। यहां पर अपने जीवन को बचाने का अर्थ है उस दिन विजयी होना, जब हम प्रभु यीशु मसीह के सामने खड़े होंगे।
यह वास्तव में उसका हमसे शर्मिंदा होने के बजाय एक विश्वासयोग्य शिष्य बने रहने के लिए उसके द्वारा सराहा जाना है और इनाम प्राप्त करना है, जिसकी प्रतिज्ञा प्रभु ने विश्वासयोग्य बने रहने वालों से की है। मरकुस 8:38 में आप इसकी तुलना कर सकते हैं।
कलीसिया एक नीव
मसीही सताव पर विचार करना हालांकि दुखद विषय है लेकिन अच्छी बात यह है कि यीशु मसीह की कलीसिया ने कभी भी दुख उठाने के कारण हार का सामना नहीं किया। इतिहास गवाही देता है कि अक्सर अपने सबसे कठिन और दर्दनाक समय में कलीसिया ने सबसे अधिक उन्नति की है। अंग्रेजी में मसीही विश्वास पर उत्कृष्ट भजनों में से एक है “कलीसिया एक नीव” है, जो Samuel John Stone द्वारा लिखा गया है, उस गीत के चौथे और पांचवें अंतरे पर विचार करें।
कलीसिया एक नीव (Samuel John Stone)
कलीसिया एक नीव है
यीशु मसीह उसका प्रभु है
वह उसकी नई सृष्टि है
पानी और वचन के द्वारा
स्वर्ग से आकर उसने उसकी तलाश की
उसकी पवित्र दुल्हन होने के लिए
अपने लहू से उसने उसे खरीदा
और उसके जीवन के लिए वह मर गया
प्रत्येक जाति से चुने हुए
पूरी दुनिया में फिर भी एक
उसके उद्धार के विशेष अधिकारी
एक प्रभु, एक विश्वास, एक जन्म
एक ही नाम को धन्य कहती है
एक ही पवित्र भोज में भागी होती है
एक ही धन्य आशा पर जोर देती है
सब प्रकार की अनुग्रह के साथ
हालांकि एक अद्भुत आश्चर्य के साथ
लोगों ने उसके दुखित दमन को देखा
विद्वानों द्वारा किराए पर लेना
विधर्मियों द्वारा व्यथित
संत उसकी अभी भी निगरानी रख रहे हैं
उनका रोना बढ़ता है, "कब तक"
और जल्दी रोने की रात
गीत का स्वर होगा
कलीसिया कभी नष्ट नहीं होगी
उसका प्रिय परमेश्वर, बचाने को,
मार्गदर्शन करने, बनाए रखने, और संजोने को
अंत तक उसके साथ हैं
हालांकि ऐसे होंगे जो उससे नफरत करते हैं
फिर भी कुछ झूठे पुत्र उसके साथ होंगे
दुश्मन या गद्दार के विरुद्ध वह
हमेशा प्रबल होगी
कठिनाई और क्लेश के मध्य
और युद्ध की उलझन में
वह समाप्ति की प्रतीक्षा करती है
हमेशा के शान्ति की
जब तक की महिमामय दर्शन से
उसकी लालसा भरी आंखें धन्य नहीं हो जाती
और महान विजयी कलीसिया
वह कलीसिया होगी जो स्थिर रहेगी।
फिर भी पृथ्वी पर उसकी एकता है
उस परमेश्वर के साथ, जो त्रिएक है
उसकी मधुर, रहस्यमय संगति
उनके साथ जिनकी विश्राम जीत है
ओ सुखी और पवित्र
प्रभु हम पर कृपा करें कि हम
उनकी तरह नम्र और दीन
और ऊंचे पर उनके साथ वास करें
जो लोग प्रतिबद्धता (Commitment) से शिष्यता (Discipleship) का भार उठाते हैं, चाहे उन्हें कोई भी दुख क्यों ना उठाना पड़े, एक दिन जीत की खुशी मनाएंगे। जब प्रभु यीशु मसीह बुराई को समाप्त करने अपने धन्य राज्य का उद्घाटन करने के लिए लौट आएंगे। उस दिन तक हम सब विश्वास भरे हृदयों के साथ उसका इंतजार करते रहें।
शालोम
Thanks for the encouragement
सही बात है हमें परमेश्वर के लिए दुख उठाना है क्योंकि परमेश्वर का वादा है हमारे लिए स्वर्ग में प्रतिफल है
Very nice
Really its not to be easy the disciple of Jesus if anybody want to be Discple he has to be ready to pay the price of disciple and have to deny yourself and follow Lord .as a disciple of Jesus we got salvation and eternity and he become our savior and Lord .we have a great hope