Walking Away From God. (Luke 15:11-24) The Prodigal Son. क्या होगा जब हम पिता की इच्छा से या उसकी उपस्थिति से दूर जाते हैं? अगर आप भी इस दुनियां के चकाचौंध में निरन्तर परमेश्वर से दूर होते जा रहे हैं और आप हर दिन अपनी ही इच्छा से जीना चाह रहे हैं तो निश्चित ही आपको इसके परिमाण के बारे में भी सोचना होगा। क्योंकि दाखलता से अलग आप कब तक जीवित रहेंगे? चरवाहे के बिना आपको कैसे मार्गदर्शन मिल सकता है? जीवन के बिना कब तक रहेंगे? (1 यूहन्ना 5:12)
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किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। वह पिता उनसे प्रेम करता था। पिता ने उनको अपना बेहतर प्रदान किया। उन्हें अच्छी शिक्षा दी। छोटा पुत्र जो कि शायद अभी अविवाहित था, और लगभग 20 से 25 साल का होगा। पर अभी वो बुद्धिमता पूर्ण फैसले लेने के लिए परिपक्व नहीं था। इसलिए एक दिन उस छोटे पुत्र ने अपने पिता से दूर जाने का निर्णय ले लिया ताकि वो अपनी इच्छा के अनुसार जी सके। फिर एक दिन वो अपने पिता के पास आया। हालांकि अभी तक वो कई बार अपने पिता के पास आया था लेकिन अभी वह बिल्कुल अलग मंशा से आया था।
उसने अपने पिता से कहा कि पिता जी, मुझे संपति का अपना हिस्सा चाहिए। छोटे बेटे के एक फैसले ने पूरे घर की शांति को बदल दिया था। इसने पिता का दिल तोड़ दिया था। पिता ने अपने बेटे को यह समझने में मदद करने की कोशिश की कि यह सारी संपत्ति आपकी है। इसलिए घर छोड़कर मत जाओ, यहीं रहो और जीवन का आंनद लो, दुनियाँ बहुत क्रूर है।
पिता ने भी अपनी संपति का बटवारा कर के दोनों को उनका हिस्सा दे दिया। ज्यादा दिन नहीं बीते थे कि छोटे पुत्र ने अपनी संपति को बेच दिया और अपने पिता और भाई से दूर किसी देश में चला गया, वहां उसने अपनी सारी संपति को कुकर्म में उड़ा दिया।
फिर ऐसा हुआ कि जब वह सब कुछ खर्च कर चुका तो जिस देश में वो गया था वहां अकाल पड़ गया और वह अब तक कंगाल हो चुका था। अब वह उस देश में किसी के यहां काम की खोज में गया तो उसे वहां एक काम दिया गया, उसे सूअर चराने को भेजा गया। उसे कोई भी खाने को कुछ नहीं देता था और अब तो वह चाहता था कि जो फलियां सूअर खाते हैं वह भी उनसे ही अपना पेट भरे।
फिर उसे जब होश आया तो पश्चाताप करते करते मन ही मन सोचने लगा कि मेरे पिता के पास तो मजदूरों को भी भरपूर भोजन मिलता है और मैं यहां भूखा मर रहा हूं। अब मैं अपने पिता के पास जाऊंगा और कहूंगा कि मैंने स्वर्ग के विरोध में और आपकी दृष्टि में पाप किया है और अब में इस लायक नहीं रहा कि मैं आपका पुत्र कहलाऊं, अब तो मुझे भी एक मजदूर के समान अपने पास रख लें।
अब इस प्रकार पश्चाताप के बाद उसने निर्णय लिया और वह उठकर अपने पिता के पास जाने को चल पड़ा। अभी वो अपने घर के नजदीक पहुंचने ही वाला था कि पिता की दृष्टि उस पर पड़ी और उसकी हालत देखकर उस पर तरस खाया। वह दौड़कर अपने पुत्र के पास आया, उसे गले लगाया और उसे बहुत प्यार किया।
अब पुत्र ने भी अपने पिता से कहा कि पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरोध में और आपकी दृष्टि में पाप किया है और अब तो मैं आपका पुत्र कहलाने के लायक भी नहीं रहा। परन्तु पिता ने अपने दासों से कहा कि जल्दी से इसे अच्छे से अच्छा कपड़ा पहनाओ, इसके हाथ में अंगूठी और पांवों में जूतियां पहनाओ और आज हम जश्न मनाएंगे क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, अब जी गया है, खो गया था अब मिल गया है। तब वे आनंद करने लगे।
क्या आपने गौर किया कि छोटे पुत्र ने अपने पिता से दूर जाने का निर्णय क्यों लिया था? इसको समझने के लिए आइए चार शब्दों को देखें जो कि इंगलिश के “D” से शुरू होते हैं…
- Deceived – क्योंकि वह दुनियां के आकर्षण और वासना के धोखे में आ गया था।
- Desire – वह इस दुनियां के आकर्षण और वासना की इच्छा करने लग गया था।
- Decision – उसने अपने पिता और अपने घर को छोड़ने का फैसला किया।
- Departs – इसलिए उसने अपनी विरासत का अपना हिस्सा लिया और पिता से दूर चला गया।
यह बात सच है कि यह सब तब होने लगता है जब एक व्यक्ति इस संसार के धोखे में आ जाता है, फिर व्यक्ति सांसारिक सुख की इच्छा करने लग जाता है। तब वो एक निर्णय लेता है कि यही उसके लिए बेहतर है जिसके वजह से वो परमेश्वर से दूर हो जाता है। इसलिए तो परमेश्वर का वचन हमें अवगत करा देता है कि…
तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो। यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा और आँखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं परन्तु संसार ही की ओर से है। संसार और उसकी अभिलाषाएँ दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है वह सर्वदा बना रहेगा। (1 यूहन्ना 2:15-17 HINDI-BSI)
छोटा पुत्र क्या चाह रहा था?
- वह जवाबदेही से स्वतंत्रता चाहता था।
- वह अपनी इच्छा के अनुसार जीना चाहता था।
- वह इस दुनियां में सफलता, दोस्तों, महिलाओं, विलासिता, फैशन, पार्टियों आदि के रूप में दुनियां का आनंद लेना चाहता था।
इसलिए वह दूर देश में चला गया। ये दूर देश से क्या तात्पर्य है? ऐसी जगह जो परमेश्वर की इच्छा से बाहर है। और जिस घड़ी हम भी परमेश्वर की इच्छा से बाहर जाते हैं उस दौरान हम भी दूर देश में होते हैं।
पिता परमेश्वर भी ऐसा होने की अनुमति देते हैं, मालूम है क्यों?
- क्योंकि वह प्यार करने वाला और देने वाला पिता है।
- वह सच्चा प्यार चाहता है जो सच्चे दिल से आता है न कि दबाव से।
- उसने हर एक को स्वतंत्र इच्छा दी है।
क्या होगा जब हम पिता की इच्छा से या उसकी उपस्थिति से दूर जाते हैं?
इसको समझने के लिए आइए निम्नलिखित चार बातों पार गौर करें….
बर्बादी – जब वह पुत्र अपने पिता की इच्छा से दूर जाता है तो उसने अपना सारा धन बर्बाद कर दिया, उसने अपने दोस्तों को खोया, उसने अपने समय को खोया और तो और उसने अपने स्वास्थ्य को भी खोया। आपको लूत के बारे में तो मालूम ही होगा। जिसने उस भूमि का चुनाव किया था जो उसको दूर से देखने में काफी उपजाऊ लग रही थी पर उसका क्या अंजाम हुआ, आप उससे भी परिचित होंगे।
भटकने वाले – जब उस पुत्र ने अपने पिता से जुदा होने का फैसला लेता है उसके बाद वो एक जगह से दूसरी जगह भटकने वाला हो गया था। वो भी कैन से समान भगौड़ा हो गया था।
अत्याधिक थकावट – वह बहुत ज्यादा थक चुका था। वह मानसिक, शारीरिक रीति से बहुत थक चुका था, उसने अपनी शांति को खो दिया था। अब वह पापों से मिलने वाले अस्थाई सुख से भी थक चुका था।
अभावग्रस्त – अब वह आराम, शांति, आनंद और प्यार की कमी को महसूस करने लग गया था। अब वह ह्रदय की गहराई से अपने पिता के पास वापस जाना चाहता था। अब वह आराम, प्यार, क्षमा चाह रहा था।
हम सभी की शारीरिक, भावनात्मक और आत्मिक जरूरतें होती हैं और इस तरह की जरूरतें केवल उचित ईश्वरीय वातावरण में ही पूरी होती हैं।
अपने पिता के पास आने का ख्याल आना दर्शाता है कि अब वह अपने होश में आया है। उससे पहले तो वह मानों पागल हो गया था। क्योंकि कोई पैसा नहीं, कोई दोस्त, या घर या कोई देखभाल करने के लिए नहीं।
ऐसी परिस्थिति में पश्चाताप ही एक मात्र समाधान है और इसमें दो बातें सम्मिलित होती है… Decision और Action. (Luke 15:18,20) ये बात भी मायने रखती है कि बिना Action के Decision किसी काम के नहीं होते हैं।
पिता की प्रतिक्रिया।
पिता पहले दिन से ही उसके लौटने की आशा कर रहा था। हर दिन उसका इंतजार कर रहा था। उसने हिम्मत नहीं हारी। उसका प्यार उसके पुत्र के लिए कम नहीं हुआ। इसलिए जब उसका पुत्र लौट आया तो वह व्यक्ति दौड़कर उसके पास गया। उसके फटे हुए कपड़े, लंबे बाल और दाढ़ी के बावजूद भी उसने उसे अपने गले से लगाया। जिसे पहचानना भी मुश्किल था पर उसके पिता ने उसे पहचाना। पिता की हरकत पर कई स्थानीय लोग दंग रह गए होंगे क्योंकि…
- उसने अपने पुत्र को क्षमा किया।
- उसने अपने पुत्र को स्वीकार किया।
- उसने उसे पहला सा प्यार दिया।
- वह अत्याधिक आनंदित हुआ।
हम देख सकते हैं कि छोटा बेटा काफी समय के लिए पिता से दूर रहा फिर भी वह उसका बेटा ही था। पिता उसका इंतजार करता रहता कि उनका संबंध दुबारा स्थापित हो जाए। वह नौजवान बेशक दूर देश गया था और वहां उसके बारे में कोई नहीं जानता होगा, पर फिर भी उसके इस व्यवहार के कारण उसके रगों में बहने वाला खून नहीं बदला था। इसलिए जब उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ तो फिर से उस संबंध में जुड़ने के लिए वापिस अपने पिता के पास आया। पिता भी उसके इंतजार में था, पिता बड़ा खुश हुआ जब उसका खोया हुआ पुत्र उसके पास लौट आया।
हालांकि प्रभु यीशु ने पिता परमेश्वर और हमारे संबंध को दर्शाने के लिए ये दृष्टांत दिया। ऐसे ही जब हम भी वापिस पिता के पास लौट आते हैं तो पिता परमेश्वर हमारा खुशी से स्वागत करता है। परन्तु यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि कई लोग उस बड़े बेटे की तरह उसके नजदीक होते हुए भी उस संबंध का आंनद नहीं उठाते। आज भी कई मसिहियों की ऐसी ही दशा है। वे अपने आपको मसीही तो कहते हैं पर वे अपने अधिकारों को या तो जानते नहीं या उनका इस्तेमाल ही नहीं करते हैं। वे परमेश्वर को पिता तो कहते हैं पर उसका आदर नहीं करते हैं, उसकी इच्छा को जानने का प्रयास नहीं करते हैं।
पर वे आज अपनी ही इच्छा के अनुसार जीना चाहते है और हर वक्त परमेश्वर का दिल दुखाते रहते हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि परमेश्वर जबरदस्ती नहीं करते हैं। जब मनुष्य को यह एहसास होता है कि अब उसे पिता परमेश्वर के पास लौट जाना चाहिए तो ये उसके जीवन का एक बहुत बड़ा निर्णय होता है, क्योंकि वह प्रेमी परमेश्वर के पास लौट आता है। परमेश्वर भी इस घड़ी का बेसब्री से इंतजार कर रहे होते हैं और हमारा प्यार और खुशी के साथ स्वागत करते हैं।
क्या आप अभी भी अपनी ही इच्छा के अनुसार जीना चाह रहे हैं?
Praise Jesus Christ