एक मसीही के लिए आज्ञाकारिता आवश्यक क्यों है?

एक मसीही के लिए आज्ञाकारिता आवश्यक क्यों है? वैकल्पिक क्यों नहीं? (Why Obedience is not Optional?)

Posted by Anand Vishwas

September 22, 2020

एक मसीही के लिए आज्ञाकारिता आवश्यक क्यों है? वैकल्पिक क्यों नहीं? (Why Obedience is not Optional?) क्या प्रभु यीशु की आज्ञा मानना जरूरी है? आखिर ऐसा क्यों है? इसका क्या कारण है? आइए प्रभु यीशु द्वारा दिए गए उदाहरण से इसे समझते हैं। क्योंकि आज्ञाकारिता कोई विकल्प नहीं है पर यह एक आज्ञा है और यह आवश्यक है। (लूका 6:46-49) जहां तक मेरा मानना है, आपने इसे कई बार पढ़ा होगा।

जैसा कि आप जानते हैं कि मसीही जीवन परमेश्वर के साथ एक प्रगतिशील संबंध है। हमने बात किया था कि मसीही लोग परमेश्वर की आज्ञा डर या भय से प्रेरित होकर नहीं मानते हैं बल्कि हम प्रेम की वजह से परमेश्वर का भय मानते हैं। ये भी तभी संभव हुआ जब उसने हमसे निस्वार्थ प्रेम किया यानी कि अगापे प्रेम।

अब जब हम इस मसीही जीवन में आगे बढ़ ही रहे हैं, तो बार-बार इस दुनियां में रहते हुए ये बात सामने आती है कि परमेश्वर की आज्ञा को माने या नहीं? मै क्यों ऐसा कह रहा हूं? क्योंकि प्रभु यीशु जानते थे कि कुछ लोग हैं जो यीशु को प्रभु तो मानते या पुकारते (बिना आज्ञापालन के) हैं पर उसकी प्रभुता के अधीन नहीं रहते हैं।

क्या यीशु प्रभु हैं?

मेरे प्रिय, प्रभु ने हमारे सामने इतने साक्ष्य दिए हैं जो साबित करते हैं कि यीशु भी प्रभु नहीं बल्कि यीशु ही प्रभु हैं। प्रभु का अर्थ है जो प्रभुता करता है, राज करता है या शासन करता है। ये हम उसकी शिक्षाओं से, उसके कार्यों से उसके व्यवहार से देख सकते हैं। जैसे कि सृष्टि का निर्माण करना जो कि उसके शब्द से सृजी गई है, जब हम पवित्रशास्त्र बाइबल में प्रभु के किए कार्यों को देखते है तो हम कह सकते हैं कि यीशु ही प्रभु है। 

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वास्तव में यह एक बहुत बड़ा विषय है जिसके बारे में हम आने वाले समय में सीखेंगे। मैं आपके सामने कुछ उदाहरण रख रहा हूं जो कि उसकी प्रभुता को दर्शाते हैं। जैसे कि सूबेदार के सेवक को चंगा करना, जिससे हमें मालूम होता है कि उसके शब्दों में सामर्थ है। विधवा के पुत्र को जीवित करना। (लूका 7:11-17) आंधी को शांत करना। (मरकुस 4:35-41) दुष्टात्माओं को निकालना। (मरकुस 5:1-20) पापियों को क्षमा करना। (यूहन्ना 8:1-11) उनकी शिक्षाएं, जैसे कि अपने दुश्मनों से भी प्रेम करना, दोष ना लगाना इत्यादि ये बातें उसके चरित्र को बताती हैं कि यीशु ही प्रभु है। उसकी बातें सुनना ही नहीं मानना भी महत्वपूर्ण हैं, जिनका पालन कर हम हर कठिनाई में स्थिर रह सकते हैं।

प्रभु यीशु ने उनसे कहा कि जब तुम मेरा कहना नहीं मानते तो क्यों मुझे हे प्रभु, हे प्रभु कहते हो? जब प्रभु यीशु ये सवाल पूछ रहे थे तो हम एक विरोधाभास को यहां पर पाते हैं। क्योंकि उसके अनुयाई जो शब्द कहते हैं उसका अर्थ उन्हें मालूम होना चाहिए, अन्यथा उस शब्द को बोलने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है।

उदाहरण के लिए हमने कुछ दिनों पहले प्रार्थना के बारे में बात किया था जो प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को सिखाई थी। उसके एक एक शब्दों में बहुत ही गहरा राज छिपा है और यदि हम उनको बिना समझे ही कहते रहते हैं तो हम इंसान नहीं फिर रोबोट ही कहलाने के लायक हैं, जिनमें कि कोई भावना ही नहीं होती है।

आइए अब आगे बात करते हैं कि आज्ञाकारिता वैकल्पिक क्यों नहीं है? इसके लिए लूका 6:46-49 पढ़ें।

आज्ञाकारिता मसीह को प्रभु स्वीकार करने का सच्चा परीक्षण है। (लूका 6:46)

जब हमने मसीहियत में कदम रखा ही था यानी कि उस संबंध में जो परमेश्वर के साथ हमारा है, हमने अपने मुंह से स्वीकार किया था कि यीशु प्रभु है। पौलूस रोमियों  को लिखते समय कहते हैं कि “यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे……तो तू निश्चय उद्धार पाएगा।” और याकूब भी हमें चेतावनी देता है कि हमें वचन पर चलने वाला बनना है, और भूलना नहीं है। (याकूब 1:22-25) 

फिलिप्पियों 2:9-11 में पौलुस हमें पहले ही पवित्र आत्मा की प्रेरणा से बता रहा है कि वो समय आएगा जब हर एक जीभ स्वीकार करेगी कि “यीशु ही प्रभु है”, और हर घुटना उसके आगे झुकेगा, अर्थात उसकी प्रभुता को स्वीकार करेगा। 

आज जो लोग उसकी प्रभुता को तुच्छ जान रहे हैं चाहे वो विश्वासी ही क्यों ना हों, उस वक़्त उन्हें ये पछतावा जरूर होगा कि हमने बहुत बड़ी गलती कर दी है। 

और आज भी हमारे लिए यह एक सच्ची परीक्षा ही है कि क्या हम उसको मुंह से ही प्रभु मानते हैं, अर्थात बाहरी रीति से? या मन से भी प्रभु मानते हैं क्योंकि उसकी आज्ञापालन और अनाज्ञाकारिता ही सिद्ध करेगी कि हम उसकी प्रभुता को स्वीकार करते हैं या नहीं। और इसी से सिद्ध होगा कि हम किसके शिष्य हैं? क्योंकि उसके शिष्य इस बात से भी पहचाने जाते हैं कि वे उसके वचन में बने रहते हैं। (यूहन्ना 8:31)

यदि हम उसे प्रभु बोलते हैं तो उसकी आज्ञाकारिता भी जरूरी है। अन्यथा इसका कोई औचित्य नहीं होगा। आइए अगली बात की ओर बढ़ते हैं कि क्यों आज्ञाकारिता वैकल्पिक नहीं है? आज्ञाकारिता इसलिए वैकल्पिक नहीं है क्योंकि……

आज्ञाकारिता मसीही जीवन की नींव है। (लूका 6:47-48)

आज्ञाकारिता मसीही जीवन की नींव है जिसे समय आने पर परीक्षाओं का सामना करना पड़ेगा। लूका 6:47-48 में प्रभु यीशु आज्ञाकारिता के महत्व को समझाते हुए कहते हैं कि जो भी व्यक्ति प्रभु यीशु की बातें सुनकर मानता है वह उस बुद्धिमान मनुष्य के जैसा है जिसने घर बनाते समय भूमि गहरी खोद कर, चट्टान पर नींव डाली। 

जैसा कि सबको विदित है कि घर बनाने में, नीव बनाने में समय, धैर्य और मेहनत लगती है। किसी भी घर की मजबूती उसकी नीव ही निर्धारित करती हैं।

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ठीक वैसे ही प्रभु की आज्ञाकारिता में रहना हमारे आत्मिक जीवन को मजबूती देता है। फिर चाहे हम घोर अंधकार से भरी हुई तराई में होकर चलें तो भी हानि से नहीं डरेंगे। फिर चाहे हमारे आत्मिक घर के विरूद्ध में कैसी भी धारा क्यों ना लगे या कैसी भी बाढ़ का सामना करना पड़े, हमारे आत्मिक जीवन को कुछ भी नुकसान नहीं होगा। पर यह बात तभी संभव है यदि उसकी आज्ञाकारिता हमारे जीवन की नीव है।

प्रभु की आज्ञाकारिता में रहना हमारे आत्मिक जीवन को मजबूती देता है।

याद रखें जो यीशु ने कहा “मेरी भेड़ें मेरी शब्द सुनती हैं। मैं उन्हें जानता हूं और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं।” यीशु ने उनको पूर्ण सुरक्षा का आश्वासन दिया है जो प्रभु यीशु के आज्ञाकारी रहते हैं। वे कभी नष्ट नहीं होंगे और कोई उन्हें उसके हाथ से छीन न सकेगा। इसलिए मेरे प्रिय, आप उसके पास पूर्ण सुरक्षा में हैं। (यूहन्ना 10:27-30) अगली बात जो हम देखते हैं कि आज्ञाकारिता वैकल्पिक नहीं है क्योंकि…..

जो अनाज्ञाकारिता में जीवन जी रहे हैं वे अचानक विनाश का सामना करेंगे। (लूका 6:49)

प्रभु यीशु ने आगे बताया कि जो लोग प्रभु यीशु का सुनकर उसका आज्ञापालन नहीं करते वे ऐसे घर बनाने वाले के समान है जिसने घर तो बनाया पर बिना नीव का घर बना डाला। बाढ़ की धारा उस घर पर भी लगी जिसकी वजह से वह घर तुरंत गिर पड़ा और गिरकर उसका सत्यानाश हो गया।

एक मसीही के लिए आज्ञाकारिता आवश्यक क्यों है? वैकल्पिक क्यों नहीं? (Why Obedience is not Optional?)
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यह उन लोगों के लिए चेतावनी है जो लगातार अनाज्ञाकारिता में अपना जीवन बिता रहे हैं। अनाज्ञाकारिता का परिणाम बहुत ही भयानक है। क्योंकि उन लोगों ने प्रभु यीशु का सुनकर भी नहीं माना। और कुछ तो ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि हम परमेश्वर को जानते हैं पर अपने कामों से इंकार करते हैं। (तीतुस 1:16) और कुछ ऐसे भी है जो प्रभु-प्रभु तो बोलते हैं पर उसकी इच्छा के अनुसार नहीं जीते। (मती 7:21-23)

इस उदाहरण में ध्यान देने वाली बात यह भी है कि धारा या परीक्षा का सामना तो दोनों घर बनाने वालों को करना पड़ा, पर स्थिर वहीं रहेगा जिसकी नीव पक्की है। 

आज्ञाकारिता मजबूती की नीव है। हमें यह बात याद रखना चाहिए कि हमें अनुग्रह से बचाया गया है अर्थात हम बिना कर्मों के विश्वास से धर्मी ठहरे हैं। (इफिसियों 2:8-9) पर इसका यह बिल्कुल भी मतलब नहीं कि अच्छे काम जरूरी नहीं हैं। हमारा अनुग्रह के द्वारा विश्वास से बचाया जाना हमारे अच्छे काम को लाता है। अक्सर इफिसियों 2:10 को नजरंदाज किया जाता है, कि हम भले कामों के लिए सृजे गए हैं।

अनाज्ञाकारिता | आज्ञाकारिता

अनाज्ञाकारिताआज्ञाकारिता
अनाज्ञाकारिता हमेशा नुकसान ही करवाती है।हमेशा लाभ ही होता है।
अनाज्ञाकारिता परमेश्वर को निरादर देती है।आज्ञाकारिता परमेश्वर को आदर देती है
अनाज्ञाकारिता के द्वारा परमेश्वर के साथ हमारे संबंध में रुकावट आती हैवहीं आज्ञाकारिता परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते को मजबूती देती है।
हमारी अनाज्ञाकारिता सिर्फ हमें प्रभावित नहीं करती है बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करती है। आदम और हव्वावैसे ही हमारी आज्ञाकारिता से सिर्फ हमें ही लाभ नहीं होता है, पर पूरे समाज को लाभ होता है।
अनाज्ञाकारिता से मृत्यु का प्रवेश हुआ।आज्ञाकारिता के द्वारा जीवन का प्रवेश हुआ। (फिलिप्पियों 2:8)
अनाज्ञाकारिता का परिणाम हमेशा शाप, हानि को ही लाता है।आज्ञाकारिता हमेशा आशीष को ही लाती है।
पाप का प्रवेश, जल प्रलय, सदोम और अमोराअब्राहम (उत्पति 22:18), यीशु।
अनाज्ञाकारिता विनाश लाती है। (लूका 6:49)आज्ञाकारिता सुरक्षा लाती है। (लूका 6:47-48)
Disobedience vs Obedience

परमेश्वर हमसे आज्ञाकारिता की अपेक्षा करता है। हमारे जीवन में यीशु का चुनाव करना आज्ञाकारिता है। (यूहन्ना 14:15,21) अनाज्ञाकारिता परमेश्वर के विरूद्ध पाप करना, और विद्रोह करना है। (1 शमूएल 15:22-23)

परमेश्वर की आज्ञाकारिता में रहना हमारे लिए महत्वपूर्ण क्यों है?

  • आपको आज्ञाकारिता के लिए बुलाया गया है। यदि आप यीशु से प्यार करते हैं तो उसकी आज्ञा भी मानेगे। (यूहन्ना 14:15)
  • आज्ञाकारिता आराधना का एक कार्य है। (रोमियो 12:1)
  • परमेश्वर आज्ञाकारिता को इनाम देता है। (उत्पति 22:18, लूका 11:28, याकूब 1:22-25)
  • आज्ञाकारिता साबित करती है कि आप परमेश्वर से प्रेम करते हैं। (1 यूहन्ना 5:2-3, 2 यूहन्ना 1:6)
  • आज्ञाकारिता परमेश्वर पर हमारे विश्वास को प्रदर्शित करती है। (1 यूहन्ना 2:3-6)
  • आज्ञाकारिता बलिदान से बढ़कर है। (1 शमूएल 15:22–23)
  • आज्ञाकारिता धर्मी ठहराती है, जीवन देती है। (रोमियो 5:19, 1 कुरिंथियों 15:22)
  • आज्ञाकारिता के द्वारा हम पवित्र जीवन शैली की आशिषों को पाते हैं। (भजन 119:1-8, 2 कुरिंथियों 7:1)

याद रखिए किसी ने इस प्रकार कहा है;

आज्ञाकारिता सुरक्षा लाती है और अनाज्ञाकारिता विनाश।

इसलिए आज्ञाकारिता वैकल्पिक नहीं है क्योंकि…

  • आज्ञाकारिता मसीह को प्रभु स्वीकार करने की सच्ची परीक्षा है। (लूका 6:46)
  • आज्ञाकारिता मसीही जीवन की नीव है। (लूका 6:47-48)
  • जो लोग अनाज्ञाकारिता में जीवन जी रहे हैं वे अचानक विनाश का सामना करेंगे। (लूका 6:49)

हमें आज्ञाकारी होने के लिए बुलाया गया है, हम रात भर में ही आज्ञाकारिता नहीं सीखते हैं; यह एक आजीवन प्रक्रिया है, हम इसे दैनिक लक्ष्य बनाकर अपनाते हैं।

शालोम

1 Comment

  1. Ranjeet Singh

    🙏 Amen

    Reply

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anandvishwas

Anand Vishwas

आशा है कि यहाँ पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हमें बुलाया है।