एक फलवन्त मसीही जीवन कैसे जीयें? एक मसीही होने के नाते हमारे लिए परमेश्वर की यही इच्छा है कि हम एक फलवन्त मसीही जीवन (Fruitful Christian Life) जीयें। एक ऐसा जीवन जीयें, जो दूसरों के लिए आशीष का कारण हो, जो एक आदर्श जीवन हों और यह जीवन, प्रभु यीशु के पीछे चलने से हम जी सकते हैं। परमेश्वर ने हमें धरती पर एक विशेष उद्देश्य के साथ रचा है। हम जितने भी वर्षों में यहाँ जीतें हैं, हमें एक फलदायी जीवन जीना है। किसी ने इस प्रकार कहा है कि…
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“यह मायने नहीं रखता है कि हम कितने वर्षों में जीते हैं पर यह बात बहुत मायने रखती है कि हम उन वर्षों के साथ करते क्या हैं।”
यूहन्ना 15:4-5 में मसीही जीवन (Christian Life) किस प्रकार प्रभु यीशु के साथ जुड़ा है, इस बात को समझाने के लिए प्रभु यीशु ने दाखलता और डालियों के आपसी संबंध के द्वारा हमें बताया कि हम भी प्रभु के साथ एक संबंध में जोड़े गए हैं। ये रिश्ता तभी फलवंत हो सकता है, यदि हम भी डालियों के समान दाखलता में जुड़े रहें।
यहां प्रभु यीशु संकेत दे रहे हैं कि यदि हम प्रभु यीशु में बने रहें और यीशु हमारे जीवन में बना रहे तो हम एक फलवंत जीवन जी सकते हैं। लेकिन यदि हम उससे अलग होने का चुनाव करते हैं तो फलवंत जीवन जीने की उम्मीद करना व्यर्थ होगा। क्योंकि उसके बिना हम फल नहीं सकते हैं। आइए सबसे पहले जानते हैं कि फलवंत होंने का मतलब क्या है?
फलवंत होने का क्या अर्थ है?
इसको समझने के लिए हमें बाइबल के संदर्भ की ओर देखना होगा। क्योंकि इसका अर्थ दोनों ही प्रकार के फलवंत होने से है। प्राकृतिक रूप से भी और आत्मिक रूप से भी।
प्राकृतिक रूप से फलवंत होना।
प्राकृतिक रूप से फल लाना, शारीरिक परिपक्वता को दर्शाता है। फल के पास वो योग्यता होती है जिसमें कि वह अपने जैसा नया फल पैदा कर सकता है। (उत्पत्ति 1:12, 13, 29) जहां तक मुझे लगता है कि आप इस बात से तो अनभिज्ञ नहीं होंगे कि एक पेड़ के लिए कुछ आवश्यक मापदंड है, जिनको पूरा करने के बाद एक समय में वह फल को पैदा करता है।
आत्मिक रूप से फलवंत होना।
आत्मिक रूप से फलवंत होना मसीही जीवन की एक आत्मिक आशीष है। एक मसीही की फलवंत्ता का क्या मानदंड होना चाहिए? उदाहरण के लिए; प्रेम, आनन्द, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम। ये वो बातें हैं जो कि फलवंत मसीही जीवन (Fruitful Christian Life) के लिए मूलभूत आवश्यक तत्व हैं। (गलातियों 5:22-23)
हमें फलवंत होने की आवश्यकता क्यों है?
क्योंकि इससे परमेश्वर को महिमा मिलती है।
परमेश्वर का वचन स्पष्ट बताता है कि फलवंत होने से हम परमेश्वर को महिमा देते हैं। (यूहन्ना 15:8) और हम परमेश्वर के पवित्र आत्मा की सहायता से ही फलवंत हो सकते हैं। (रोमियों 7:4) और यह बात यह भी प्रकट करती है कि हम सचमुच में प्रभु यीशु के शिष्य हैं।
क्योंकि हमें इसलिए ही चुना गया है।
हमें फलवंत होने की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि परमेश्वर ने हमें फलवंत होने के लिए ही चुना और नियुक्त किया है। (यूहन्ना 15:16) उदाहरण के लिए एक फल लाने वाला पेड़ इसलिए उगाया जाता है या रोपा जाता है ताकि वह फल आए। यदि किसी कारणवश वह फल को नहीं लाता है और वह किसी काम नहीं आता है, तो उसका अंजाम सिर्फ यही होगा कि वह काटा जाए और ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाए। (लूका 13:6-9)
एक मसीही होने के नाते यदि हमेशा मुझ से यही उम्मीद रखी जाती है कि मैं फलवंत बना रहूं, तो मुझे यह बात भी याद रखने की जरूरत है कि प्रभु मेरे जीवन में से अनावश्यक बातों, चीजों या आदतों को भी छांटेगा (Pruning) ताकि मैं अधिक फल लाऊं। (यूहन्ना 15:2, 7, 8) यही फलवन्तता, ये बात भी साबित करेगी कि मैं प्रभु यीशु का एक शिष्य हूँ।
क्योंकि फल लाना मसीहियत के स्वभाव में है।
एक मसीही को फलवंत होने की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि फल लाना एक मसीह व्यक्ति के स्वभाव में है। (मती 12:33) इसी से उसकी पहचान भी है। क्योंकि एक अच्छा पेड़, बुरा फल कभी भी नहीं ला सकता। (मती 7:15-20) वो तो अपने मन के भले भण्डार से भली बातों को निकालता है। (लूका 6:43-45)
अलग-अलग प्रकार के फल।
पवित्रशास्त्र हमें स्पष्ट रीति से बताता है कि मसीही कैसे एक फलवंत व्यक्ति बन सकता है और वह फल किस किस प्रकार का फल होता है?
पवित्र आत्मा का फल।
पवित्रआत्मा का फल। (गलातियों 5:22-23) यदि मैं मसीह में बना रहूँ तो मेरे जीवन में प्रेम दिखेगा, प्रभु का आनंद दिखेगा जो कि हमारी ताकत है, प्रभु की शांति हमारे जीवन में उपस्थित रहेगी, हम एक धीरजवंत व्यक्ति होंगे, हमारे जीवन कृपा से भरपूर रहेंगे, हमारे जीवन से भलाई ही उत्पन्न होगी, हम विश्वास से जीने वाले व्यक्ति होंगे, हमारे जीवन में नम्रता आएगी और हमारा जीवन आत्मसंयम से भरा हुआ जीवन होगा।
काम का फल।
काम का फल। हमारा चालचलन प्रभु को प्रसन्न करने वाला होगा। हमारे जीवन में भले कामों के फल लगेंगे जिसके लिए हमें बनाया गया है। (कुलुसियों 1:10, इफिसियों 2:10, गलातियों 6:9)
धार्मिकता का फल।
धार्मिकता का फल। प्रभु यीशु में बने रहने का परिणाम यह भी होगा कि हम धार्मिकता के फल के द्वारा भरपूर होते जायेंगे। (फिलिप्पियों 1:11) क्योंकि एक धर्मीं व्यक्ति का फल जीवन का वृक्ष होता है। वह व्यक्ति सदा निश्चिन्त रहेगा। (नीतिवचन 11:30, यशायाह 32:17)
हमारे होंठो का फल।
हमारे होंठो का फल। हमें परमेश्वर की महिमा करने के लिए, उसके गुणानुवाद के लिए रचा गया है इसलिए हम उसको हमेशा अपने स्तुतिरुपी बलिदान चढ़ाया करें। ये उन होंठों का फल है जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं। (इब्रानियों 13:15) और उनके लिए यह वायदा है कि वे हमेशा अपने वचनों के फल के द्वारा भलाई से तृप्त होंगे। (नीतिवचन 12:14)
सुसमाचार का फल।
सुसमाचार का फल। वचन हममें बताता है कि सुसमाचार, फल को लाता है और हमारे जीवन में बढ़ता भी जाता है। (कुलुस्सियों 1:6, रोमियों 1:13) जब हम किसी को सुसमाचार सुनाते हैं और वह व्यक्ति प्रभु यीशु को अपना मुक्तिदाता स्वीकार करता है तो हम एक फल को लाते हैं। परमेश्वर का वचन ही है जो उस फल को लाने में अपनी भूमिका अदा करता है। (यशायाह 55:10-11) पर हमारा कर्तव्य तो यह है कि हम सुसमाचार सुनाएं।
ज्योति का फल।
ज्योति का फल। एक समय था कि हम सब अंधकार में थे, परन्तु परमेश्वर ने हमें अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है। अब हमारी ये जिम्मेदारी बन जाती है कि हम उस ज्योति के गुणों को अपने जीवन के द्वारा प्रकट करें। (इफिसियों 5:9) ज्योति का फल तो सब प्रकार की भलाई, धार्मिकता और सच्चाई है।
आत्मा का फल।
यह बात ध्यान रखें कि आत्मा का फल और आत्मा के वरदान दो अलग-अलग बातें हैं। आत्मा के वरदान इसलिए दिए जाते हैं ताकि वे परमेश्वर की सेवा में इस्तेमाल हो सके, (1 कुरिन्थियों 12:7) लेकिन आत्मा का फल मसीही जीवन का स्वभाव है।
याद रखें कि आत्मा का फल को बताने के लिए परमेश्वर का वचन में “एकवचन” का ही इस्तेमाल किया गया है। जैसे की “आत्मा का फल” प्रेम, आनंद, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम। (गलातियों 5:22-23) अब यह भी सवाल उठता है कि मैं कैसे एक फलवंत जीवन जी सकता हूं या मैं कैसे फलवंत बन सकता हूं?
मैं कैसे फलवंत बन सकता हूँ?
जैसे कि एक पेड़ को फलवंत होने के लिए एक अच्छी भूमि और अच्छी परिस्थितियां होना आवश्यक है, उसी प्रकार से एक मसीही व्यक्ति को फलदायी बनने के लिए जो कुंजी है वह यह है कि हम उस में अर्थात मसीह में बने रहें।
हाँ यह बहुत जरुरी हो जाता है कि हम फल कैसे लाएं या फलवन्त कैसे बने रहें। भजन संहिता 1:1-3 एक ऐसे व्यक्ति का वर्णन करती है जो रात-दिन परमेश्वर के वचन पर ध्यान देता है। वह एक ऐसे पेड़ के समान है जो बहती नाली के किनारे लगाया गया पेड़ है, जो अपने समय में फलता है, उसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं हैं और जो भी वह व्यक्ति करता है उसमें उसे सफलता मिलती है।
यह एक ऐसा व्यक्ति है जो परमेश्वर के वचन को सिर्फ सुनता ही नहीं बल्कि अपने जीवन में लागू भी करता है। उसने तो परमेश्वर को अपने जीवन का आधार बना लिया है, इसलिए उसे मुश्किल समय में भी फलवन्त होने से कोई नहीं रोक सकता है। (यिर्मयाह 17:6-7)
फलदायी होने के लिए हमें आवश्यकता है कि हम हमेशा प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करें और उसके वचन में बने रहें। (यूहन्ना 15:4-5) हम उसी में जड़ पकड़ते जाएं, उसी में बढ़ते जाएं, विश्वास में मजबूत होते जाएं और हमेशा हम उसके धन्यवादी बने रहें। (कुलुस्सियों 2:6-7)
आशा है कि यह लेख आपकी आत्मिक उन्नति में सहायक सिद्ध होगा। प्रभु आपको एक योग्य फल लाने वाला व्यक्ति बनायें।
शालोम