मूसा के जीवन से सबक (Paying the Price)

मूसा के जीवन से एक सबक (Paying the Price)

Posted by Anand Vishwas

November 13, 2020

मूसा के जीवन से सबक (Paying the Price) Hebrews 11:24-28 The Impact of Faith on your Life. बाइबल में कई विश्वास के नायक हुए जो कि अपने विश्वास को बचाने के लिए कीमत चुकाने को भी तैयार थे, और उन्होंने एक बड़ी कीमत भी चुकाई। हमारे जीवन में ऐसा समय भी आता है जब हमारे विश्वास का परीक्षण होता है। 

मूसा के जीवन से एक सबक (Paying the Price)
Contributed by Sweet Publishing

हमारा विश्वास हमें कीमत चुकाने के लिए भी तैयार करता है और विश्वासयोग्य होने में भी मदद करता है। परमेश्वर का वचन विश्वासयोग्यता के बारे में बहुत कुछ सिखाता है। बाइबल में बहुत से विश्वासयोग्य व्यक्तियों के जीवन से हम सीख सकते हैं। ये वे लोग थे जिन्हें जो जिम्मेदारी सौंपी गई थी उन्होंने उसको पूरी खराई से निभाया। ये वे धन्य विश्वासयोग्य दास थे जो थोड़े से थोड़े में भी विश्वासयोग्य रहे। (मती 25:21,23) वे आज हमारे लिए गवाहों के बादल हैं जो इब्रानियों का लेखक हमें बताता है। उन्होंने विश्वास का कदम बढ़ाया, विश्वास ही द्वारा इन्होंने ये कार्य किए।

विश्वासयोग्यता, ज्ञान और प्रशिक्षण की तुलना में आत्मिक परिपक्वता का एक बेहतर माप है। 

मसीही लोगों को विश्वासयोग्य होने के लिए भी बुलाया गया है। यह वह मापदंड है जो किसी व्यक्ति के बारे में स्पष्ट बताता है कि वह व्यक्ति मसीहत में परिपक्व है या नहीं। परमेश्वर चाहता है कि जो कार्य हमें सौंपा गया है ईमानदारी के साथ हम उस कार्य को पूरा करें। पौलुस ने कहा कि “मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है और मैंने अच्छी कुश्ती लड़ी है….” आज मेरा आपसे एक सवाल है, क्या हम भी इस दिशा की ओर बढ़ रहे हैं? (2 तीमुथियुस 4:7)

जीवन की चुनौतियों में विश्वासयोग्यता के साथ जीवन जीना, मसीही लोगों का सौभाग्य है। क्योंकि उन्हें सीखना है:

  • जीवन के दुखों में विश्वासयोग्य होना।
  • परीक्षाओं में विश्वासयोग्य होना। 
  • आत्मिक युद्ध में विश्वासयोग्य होना।

विश्वासयोग्यता एक चुनाव है। जिसे चुनाव करना पड़ता है। हमारे सामने सब कुछ है; आशीष भी, श्राप भी, जीवन भी, मरण भी। प्रभु उत्साहित करते हैं कि हम जीवन को चुन लें। हर दिन, हर पल चुनाव! ये पांच साल के बाद होने वाले कोई राजनैतिक चुनाव नहीं हैं। 

इब्रानियों की पत्री से सीख। 

इब्रानियों का लेखक हमें विश्वास में बने रहने के लिए उत्साहित करता है यह बताते हुए कि यीशु मसीह परमेश्वर का वास्तविक और अंतिम प्रकाशन है। इब्रानियों को पढ़ने से लगता है कि शायद इस पत्री के प्राप्तकर्ता बढ़ते हुए विरोध के कारण अपने मसीही विश्वास को त्यागने के खतरे में थे। (इब्रानियों 10:23, 12:3) इब्रानियों का लेखक हमें यीशु की श्रेष्ठता के बारे में बहुत से प्रमाण देता है। 

  • यीशु मसीह, परमेश्वर का वास्तविक और अंतिम प्रकाशन है। (इब्रानियों 1:1) 
  • लेखक बताता है कि यीशु मसीह पुराना नियम के भविष्यवक्ताओं, स्वर्गदूतों और मूसा से भी श्रेष्ठ हैं। (इब्रानियों 1, 2, 3)
  • अनंतकाल का महायाजक और पुराने नियम के महायाजकों से श्रेष्ठ हैं। (इब्रानियों 4:14-5:10)
  • यीशु के द्वारा ही हमें सच्चा उद्धार मिलता है। वही सिद्ध बलिदान है। (इब्रानियों 2:17, 10:18)

गवाहों का बादल हमें घेरे हुए है। 

इब्रानियों 12 बताता है कि हम गवाहों के बादल से घिरे हुए हैं। इसलिए हमें उत्साहित करते हुए कहता है कि “आओ, हम हर एक उलझाने वाले पाप को दूर करके, हर एक रोकने वाली वस्तु को दूर करके वह दौड़ धीरज से दौड़ें और विश्वास के निर्माणकर्ता और सिद्ध करने वाला यीशु की ओर ताकते रहें।” इब्रानियों 11 में बहुत से विश्वास के नायकों के बारे में लिखा गया है और इनके बारे में लिखते-लिखते लेखक के पास समय नहीं रहा कि हर व्यक्ति के उत्कृष्ट विश्वास और विश्वासयोग्य जीवन के बारे में बताए। (इब्रानियों 11:32)

मूसा के जीवन से एक सबक (Paying the Price)
Contributed by Sweet Publishing

हमारे चारों ओर गवाहों के बादल हैं जिन्होंने हर परिस्थिति में विश्वासयोग्य रहने का चुनाव किया। उन्होंने आगे की ओर देखा। उन्होंने अनदेखी वस्तुओं को देखा। आज हम क्या देखते हैं? हमारा ध्यान किधर है? क्या इस दुनियां की चकाचौंध में? या फिर इससे भी बहुमूल्य में? (इब्रानियों 12:1-3)

बाइबल में जिन विश्वासयोग्य लोगों की हम बात करते हैं कभी-कभी हमें उनके साथ अपनी तुलना करना अच्छा लगता है। पर… क्या हम वो सब कुछ सहने के लिए तैयार हैं जो उन्होंने सहा? क्या हम वो कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं जो उन्होंने चुकाई? 

इनके ऊपर झूठे आरोप लगाए गए। अय्यूब, यूसुफ, मूसा, दानियेल, शद्रक, मेशक, अबेदनगो जैसे कई लोग गवाह हैं… ऐसी सजा जिसके वो हकदार नहीं थे। उन्हें जेल में डाला गया, आग की भट्ठी में डाला गया, भूखे शेरों के आगे डाला गया, बड़े-बड़े शासकीय अधिकारियों के समक्ष खड़ा होना पड़ा… परमेश्वर ने अद्भुत रीति से उनको बचाया, छुड़ाया, उनके ऊपर लगे दागों को मिटाया और आज हम उनके जीवन से सीख ले सकते हैं। पर आज के संदेश में हम सिर्फ मूसा के बारे में बात करने वाले हैं। हम मूसा के जीवन से क्या सीख सकते हैं? 

मूसा एक विश्वासयोग्य सेवक।

बाइबल बताती है कि मूसा परमेश्वर के सारे घर में विश्वासयोग्य रहा। “वह अपने नियुक्‍त करनेवाले के लिये विश्‍वासयोग्य था, जैसा मूसा भी परमेश्‍वर के सारे घर में था। मूसा तो परमेश्‍वर के सारे घर में सेवक के समान विश्‍वासयोग्य रहा कि जिन बातों का वर्णन होनेवाला था, उन की गवाही दे।” (इब्रानियों 3:2‭, ‬5 HINOVBSI)

परमेश्वर ने मूसा को, अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए तैयार करने में लगभग 80 साल लगाए। चालीस साल मिस्त्र में और चालीस साल उसके ससुर के घर। परमेश्वर की पाठशाला में उसका अध्ययन, प्रशिक्षण, उसका ITI, उसका कोचिंग सब कुछ… क्योंकि परमेश्वर किसी बड़े कार्य को करवाने के लिए पहले प्रशिक्षण देता है। और यही बात आपके और मेरे लिए भी सत्य है।

मूसा ने क्या किया?

आज के इस लेखांश (इब्रानियों 11:24-28) में हम मूसा के जीवन में से सीखेंगे कि किस प्रकार उन्होंने अपने नैतिक मूल्यों के साथ समझौता नहीं किया और अपने विश्वास के संरक्षण के लिए कीमत भी चुकाई। इस्राएल के इतिहास में मूसा मुख्य व्यक्ति थे। उन्होंने लोगों को दासत्व से बाहर निकाला। उन्होंने उन्हें नियम दिए। आज के लेखांश में इब्रानियों के लेखक दिखाते हैं कि मूसा उत्कृष्ट रूप से विश्वास के एक पुरुष थे।

मूसा ने अपनी बुलाहट को पूरा करने के लिए कीमत चुकाई। यहां कुछ बातें हैं जिन्हें हम इस लेखांश से सीख सकते हैं कि हम भी अपनी बुलाहट को पूरा करने के लिए कीमत चुकाने के लिए तैयार रहें। सबसे पहले हम देखते हैं कि मूसा ने इंकार किया।

मूसा ने इंकार किया।

मूसा ने इंकार किया। किस बात का? उसने फिरौन की पुत्री का पुत्र कहलाने से इंकार किया। (इब्रानियों 11:24) इसमें क्या गड़बड़ थी? वास्तव में उसने अपने उच्च नाम का इंकार किया। मूसा ने अपनी उच्च पदवी और उच्च अधिकार का इंकार किया। आने वाले समय में अगला राजा वो ही हो सकता था, पर जब वह परिपक्व हुआ तो उसने इंकार कर दिया।

मूसा के जीवन से एक सबक (Paying the Price)
Contributed by Sweet Publishing

मूसा साधारण बालक नहीं था। वह मिस्र के राजसी घराने में पले – बढ़े और पहले दर्जे की शिक्षा और प्रशिक्षण को पाया। वह भौतिक रूप से सुंदर दिखते थे। (निर्गमन 2:2) आज बहुत से लोग, पैसा, यौन-संबंध और ताकत की लालसा करते हैं। मूसा के पास यह सब बहुतायत में हो सकता था। पर फिर भी मूसा ने इंकार किया।

इंकार करना इतना आसान नहीं है क्योंकि ये कीमत की मांग करता है। प्रभु यीशु ने भी कहा कि यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आप का इंकार करे। या यूं कहे कि “मैं” के लिए कोई जगह नहीं। 

प्रभु यीशु ने भी हमारे लिए उच्च अधिकार और पदवी को छोड़ दिया और शून्य बन गए। हम जिन्होंने यीशु के पीछे चलने का चुनाव किया है क्या हम आज अपने आप को समर्पित करके, अपने आप का इंकार करने के लिए भी तैयार हैं? (फिलिप्पियों 2:5-7) अगली बात जो हम मूसा के जीवन से सीखते हैं वो है उसने चुनाव किया।

मूसा ने चुनाव किया।

मूसा ने चुनाव किया। किस बात का? मूसा ने थोड़े दिन पाप के सुख भोगने के बजाय परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगना अर्थात दुर्व्यवहार होने का चुनाव किया। (इब्रानियों 11:25) रुत ने भी अपनी सास के साथ दुःख में जीना स्वीकार किया जबकि उसकी जेठानी अपने देवताओं के पास लौट गई। (रुत 1:15-16)

बहुत बार लोग गलत चुनाव करते हैं। ऐसा ही अब्राहम के भतीजे लूत के साथ भी हुआ। जब वे साथ में रहते थे तो झगड़ा न हो इसलिए अब्राहम ने लूत से कहा कि सारा देश तेरे सामने है, अपने लिए चुनाव कर। तो लूत ने ऐसी जगह का चुनाव किया जो कि आंखों से देखने में काफी उपजाऊ लगती थी लेकिन उस जगह के लोग बहुत ही दुष्ट और पापी थे। (उत्पति 13:8-13) परमेश्वर ने उस जगह और लोगों का विनाश कर दिया। उस दौरान लूत को अपनी पत्नी को भी खोना पड़ा। 

और अभी जब हम मूसा के जीवन से सीख रहे हैं कि किस प्रकार उसने भी पाप में थोड़े दिन सुख भोगने के बजाय, परमेश्वर के लोगों के साथ दुर्व्यवहार होने का चुनाव किया। (इब्रानियों 11:25) प्रभु यीशु ने पहले ही साफ बता दिया है कि उसके पीछे चलना मानों सकरे रास्ते में चलना है। वचन स्पष्टता से बताता है कि जो भी भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे। अब चुनाव आपके हाथ में है कि आप क्या चुनते हैं। 

मूसा ने मसीह की खातिर अपमान होने को अधिक मूल्यवान जाना।

अधिक मूल्य के बावजूद – उसने क्या किया? मूसा ने मिस्र के खजाने की तुलना में, मसीह की खातिर अपमान होने को अधिक मूल्यवान जाना। (इब्रानियों 11:26) इस संसार की दृष्टि में तो ये बड़ी ही मूर्खता का काम था, क्योंकि उसने खजाने को अस्वीकार कर दिया। किस लिए? – मसीह के लिए। और यही बात हम प्रेरितों के जीवन में भी देख सकते हैं कि उन्होंने किस बात को बहुमूल्य जाना।

यीशु ने स्वर्ग राज्य के बारे में बताते हुए कहा कि स्वर्ग का राज्य ऐसा है मानो कोई व्यक्ति खजाने की खोज में था और जब उसे वह खजाना मिलता है तो अपना सब कुछ बेचकर उसने उसे खेत में छिपा दिया और उस खेत को ख़रीदा जिसमें उसने खजाना को रखा था। जी हाँ, स्वर्ग का राज्य कीमती है, बहुमूल्य है, और हमारी धन-सम्पति उसके सामने कुछ भी नहीं है। इस संसार की सारी सुख सुविधाएँ उसके सामने कुछ भी नहीं हैं। आपके लिए आज मसीह से ज्यादा मूल्यवान क्या है?

मूसा ने आगे की ओर देखा।

वचन बताता है कि मूसा ने आगे की ओर देखा। (इब्रानियों 11:26) क्या देखा? उसका अनन्त ईनाम। प्रेरित पौलुस भी कहते हैं कि मैं उस पदार्थ को पकड़ने के लिए दौड़ा चला जाता हूं जिसके लिए यीशु ने मुझे पकड़ा था। वह आगे कहता है कि मैं एक काम करता हूं जो बातें पीछे रह गई हैं उनको भूलकर आगे की ओर बढ़ता हुआ निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं ताकि वह ईनाम पाऊं जिसके लिए परमेश्वर ने मुझे मसीह में बुलाया है। (फिलिप्पियों 3:12-14) 

मूसा के जीवन से एक सबक (Paying the Price)
Contributed by Sweet Publishing

वचन हमें उत्साहित करता है कि हमें आगे की ओर बढ़ना आवश्यक है। क्योंकि हमें परमेश्वर ने एक उद्देश्य के लिए बुलाया और बनाया है। प्रभु यीशु ने भी क्रूस का दुःख सहा, और यह काम प्रभु यीशु ने बड़े आंनद के साथ किया इसके लिए उन्होंने लज्जा की भी चिंता नहीं की। हमें यीशु की ओर ताकने की आवश्यकता है जो कि हमारे विश्वास का निर्माणकर्ता है। (इब्रानियों 12:2)

मूसा नहीं डरा।

क्यों और किससे? वचन स्पष्टता से हमें बताता है कि मूसा, राजा के क्रोध से भी डरा नहीं। (इब्रानियों 11:27) उस समय फिरौन सबसे शक्तिशाली राजा था। मूसा परमेश्वर से डरा इसलिए वह मनुष्य से नहीं डरा। वचन हमें बताता है कि हमें उससे डरने की आवश्यकता है जो शरीर और आत्मा दोनों को नष्ट कर सकता है।

मूसा दृढ़ रहा।

क्यों दृढ़ रहा? क्योंकि वह अदृश्य को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा। (इब्रानियों 11:27) नूह भी 100 वर्षों से अधिक तक, परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार जहाज बनाने में दृढ़ रहा। इन वर्षों में उसने ना जाने कितने ताने सुने होंगे पर वह दृढ़ बना रहा। (इब्रानियों 11:36) और यहाँ मूसा की दृढ़ता के बारे में बताया हुआ है। उसे बहुत बार निराशा का सामना पड़ा। बार-बार इस्राइली लोग परमेश्वर से विद्रोह करते रहे, उन्होंने मूसा का विद्रोह किया, पर फिर भी मूसा दृढ़ रहा। 

मूसा ने विश्वास से फसह का पालन किया।

दूसरे शब्दों में कहें तो मूसा ने परमेश्वर के वचन का पालन किया। (इब्रानियों 11:28) क्योंकि आज्ञाकारिता बलिदान से उत्तम है। (1 शमूएल 13:13, 15:22, 23) मूसा ने उस वक्त विश्वास कर लिया था कि बिना लहू बहाए छुटकारा अर्थात बचाव नहीं।

मूसा के जीवन से एक सबक (Paying the Price)
Contributed by Sweet Publishing

क्या आप भी परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? तो आपको भी इन विश्वास के नायकों की तरह कीमत चुकाने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है। विश्वास का अर्थ है भरोसा करना कि परमेश्वर आपको सुरक्षाहीन नहीं छोड़ेंगे।

विश्वास वह चिड़िया है जो गाती है जब सुबह होने से पहले अंधेरा होता है। – रवींद्रनाथ टैगोर

वास्तव में मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता। हां सिर्फ हमें उद्धार मुफ्त में मिला है पर इसके लिए भी प्रभु ने एक महान कीमत चुकाई है। किसी ने कहा है कि “पहाड़ जितना अधिक ऊंचा होगा उतनी ही तेज हवा वहां होगी, इसी प्रकार जितना उच्च हमारा जीवन होगा वहां उतनी ही तेज परीक्षण भी होगा।” जितनी बड़ी कीमत आप चुकाते हैं उतना ही बड़ा ईनाम भी आपको मिलेगा।

जो कीमत आप चुकाते हैं वो अपमान हो सकता है, तभी यीशु ने कहा कि मेरे नाम के कारण सब लोग तुमसे बैर करेंगे। जो कीमत आप चुकाते हैं वो आपका सामाजिक बहिष्कार हो सकता है, हो सकता है कि आपको थोड़ा ज्यादा इंतजार करना पड़े पर याद रखिये जो परमेश्वर की बाट जोहते हैं वे नया बल प्राप्त करते हैं।

जो कीमत आप चुकाते हैं हो सकता है कि आपको भौतिक सम्पति की हानि सहन करनी पड़े, या सताव का सामना करना पड़े, पर याद रखिये “धन्य हैं वे जो धार्मिकता के कारण सताये जाते हैं क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।” या हो सकता है कि आपको अपने प्राणों की भी हानि उठानी पड़े पर याद रखिये प्रभु यीशु ने क्या कहा? “जो कोई मेरे लिए अपने प्राण को खोएगा वह उसे पायेगा।” (मती 16:25)

“यदि कोई मेरे पीछे चलना चाहे तो अपने आपका इंकार करे।” (मती 16:24) यहां एक कीमत चुकाने की बात कही गई है। क्या आप भी तैयार हैं कीमत चुकाने के लिए?

मुझे विश्वास है कि आपने कभी न कभी तो ये गीत जरुर सुना होगा। “यीशु के पीछे मैं चलने लगा न लौटूँगा, न लौटूँगा।” पर इस गीत के पीछे क्या घटना है, क्या आप उसे जानते हैं? मुझे भी कुछ समय पहले ही इस घटना को जानने का अवसर मिला और मैं चाहता हूँ कि यदि आप इस घटना के बारे में नहीं जानते हैं तो एक मसीही व्यक्ति होने के नाते आपको जानना ही चाहिए।

“यीशु के पीछे मैं चलने लगा न लौटूँगा, न लौटूँगा।” भारत में बना एक मसीही गीत है। यह गीत गारो जनजाति, असम के एक व्यक्ति के अंतिम शब्दों पर आधारित गीत है।

लगभग 150 वर्ष पूर्व वेल्स में एक महान जागृति हुई। इसके परिणामस्वरूप, कई मिशनरी उत्तर-पूर्वी भारत में सुसमाचार फैलाने के लिए आए। असम के नाम से जाना जाने वाला क्षेत्र सैकड़ों जनजातियों से बना था जो आक्रामक शिकारी थे।

इन शत्रुतापूर्ण और आक्रामक समुदायों में, अमेरिकी बैपटिस्ट मिशनों के मिशनरियों का एक समूह आया, जो यीशु मसीह में प्रेम, शांति और आशा का संदेश फैला रहे थे। स्वाभाविक रूप से, उनका स्वागत नहीं किया गया। पर एक मिशनरी, एक आदमी, उसकी पत्नी और दो बच्चों को यीशु मसीह को अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करवाने में सफल हुए। इस आदमी का विश्वास उन लोगों के लिए एक नीव साबित हुई और कई ग्रामीणों ने मसीहत को स्वीकार करना शुरू कर दिया।

गुस्साए कबिले के मुखिया ने सभी ग्रामीणों को बुलाया। फिर उसने उस परिवार को बुलाया जिसने पहले यीशु मसीह पर विश्वास किया था और सार्वजनिक रूप से अपने विश्वास को छोड़ने के लिए दबाव बनाया। पर पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर, उस व्यक्ति ने कहा:

“मैंने यीशु के पीछे चलने का निर्णय किया है।”

उस आदमी के इंकार पर क्रोधित होकर, उस कबीले के मुखिया ने अपने धनुर्धारियों को उसके दोनों बच्चों को मारने का आदेश दिया। कबीले के मुखिया ने पूछा, “क्या तुम अब अपने विश्वास को नकारोगे? क्योंकि अब तो आपने अपने दोनों बच्चों को खो दिया है। तुम अपनी पत्नी को भी खो दोगे? लेकिन उस व्यक्ति ने जवाब दिया:

“यदि कोई मेरे साथ न चले, फिर भी मैं यीशु का अनुसरण करूँगा।”

कबीले के मुखिया ने क्रोध के साथ उसकी पत्नी को तीर चलाने का आदेश दिया। एक पल में वह अपने दो बच्चों के साथ मौत में शामिल हो गई। अब उसने आखिरी बार पूछा, “मैं तुम्हें अपने विश्वास को नकारने और जीने का एक और मौका दूंगा।” मृत्यु के सामने उस व्यक्ति ने अंतिम यादगार पंक्तियाँ कही:

“मेरे सामने क्रूस, मेरे पीछे दुनियां, वापस नहीं लौटूँगा।”

उनके परिवार के बाकी सदस्यों की तरह उसकी भी हत्या कर दी गई। लेकिन उसकी मौत के साथ एक चमत्कार हुआ। जिस मुखिया ने हत्याओं का आदेश दिया था, वह उस व्यक्ति के विश्वास से हिल गया था। उसने सोचा, कि क्यों “यह व्यक्ति, उसकी पत्नी और दो बच्चों के साथ, उसके लिए मरने को भी तैयार था जो लगभग 2,000 साल पहले दूसरे महाद्वीप के दूर देश में रहता था? परिवार की आस्था के पीछे कोई न कोई उल्लेखनीय शक्ति तो जरूर रही होगी और मैं भी उस विश्वास का स्वाद चखना चाहता हूँ।

विश्वास के इस अंगीकार में, उसने भी घोषणा की, कि “मैं भी यीशु मसीह का हूँ!” जब भीड़ ने अपने मुखिया के मुख से यह सुना, तो पूरे गाँव ने मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता स्वीकार कर लिया।

यह गीत भारत के असम (अब मेघालय और कुछ असम में) के गारो जनजाति के एक व्यक्ति नोक्सेंग (Nokseng) के अंतिम शब्दों पर आधारित है। यह आज गारो लोगों का गीत है। और मेरे ख्याल से पूरा मसीही परिवार आज इस गीत को जानता है और अपने जीवन में ये समर्पण करता है कि यीशु के पीछे मैं चलने लगा न लौटूँगा, न लौटूँगा।

क्या आप भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं?

  • उसने मेरे लिए सब कुछ किया तो मुझे फिर भी विश्वासयोग्य रहने क्या परेशानी है?
  • उसने मेरे लिए कीमत चुकाई, तो मुझे फिर भी विश्वासयोग्य रहने क्या परेशानी है?
  • उसने मेरे लिए कुछ भी रख ना छोड़ा, तो क्या मैं विश्वासयोग्य रहने का चुनाव नहीं करूँ?
  • उसने मेरे लिए कीमत चुकाई, तो क्या मैं विश्वासयोग्य रहने का चुनाव नहीं करूँ?
  • मुझे अंधकार के वश से छुड़ाया… तो क्या मैं विश्वासयोग्य रहने का चुनाव नहीं करूँ? 
  • अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया… तो क्या मैं विश्वासयोग्य रहने का चुनाव नहीं करूँ?
  • उसने मेरे लिए अपना सर्वोत्तम किया, तो मुझे फिर भी विश्वासयोग्य रहने या होने में क्या परेशानी है?

विश्वासयोग्य लोगों को क्या मिलेगा?

विश्वासयोग्यता कीमत की मांग करती है। हमें और हमारे परिवार को भी सीखना होगा कि “कीमत लगती है…” पर हमारा परिश्रम व्यर्थ नहीं होगा। हम यीशु मसीह के प्रकाशितवाक्य में देखते हैं कि जो जय पाएगा उन्हें सम्मानित किया जाएगा… तो फिर हम क्यों इस पल भर के हल्के क्लेश से घबराते हैं? आइए हम भी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहें अपने विश्वास के लिए और विश्वासयोग्य होने के लिए। 

शालोम

0 Comments

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

anandvishwas

Anand Vishwas

आशा है कि यहाँ पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हमें बुलाया है।