सलाह लेने के बारे में बाइबल क्या कहती है?

सलाह लेने के बारे में बाइबल क्या कहती है? हमें सलाह क्यों लेनी चाहिए? (What does the Bible say about seeking counsel?)

Posted by Anand Vishwas

July 20, 2020

सलाह लेने के बारे में बाइबल क्या कहती है? हमें सलाह क्यों लेनी चाहिए? (What does the Bible say about seeking counsel?) महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले सलाह क्यों लेना चाहिए? परमेश्वर हमें प्रोत्साहित करता है कि हम महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले सलाह लें। सलाह लेना आपको और अधिक बुद्धिमान बनने में मदद करता है। दूसरों के अनुभव कई बार हमारी मदद करते हैं और अनावश्यक खतरों से भी बचाते हैं। ये सिद्धांत हमारे आर्थिक मामलों के लिए भी उपयोगी है।

परमेश्वर का वचन हमें प्रोत्साहित करता है कि हम अपनी समझ का सहारा न लें, बल्कि हम पूरे मन से परमेश्वर पर भरोसा रखें। (नीतिवचन 3:5) सम्मति को सुनना और शिक्षा को ग्रहण करना जरुरी है ताकि हम बुद्धिमान ठहरे।

सलाह लेने के बारे में बाइबल क्या कहती है? हमें सलाह क्यों लेनी चाहिए? (What does the Bible say about seeking counsel?)
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बहुत बार हम इसलिए भी सलाह नहीं लेते हैं क्योंकि हमें अपने निर्णय ठीक जान पड़ते हैं। (नीतिवचन 10:20) परमेश्वर का वचन हमें बताता है कि ये मूर्खता का ही काम है क्योंकि मूर्ख को अपनी ही चाल सीधी जान पड़ती है परंतु जो सम्मति मानता, वह बुद्धिमान होता है। (नीतिवचन 12:15) घमंड के कारण लोग दूसरों से सलाह लेना पसंद नहीं करते हैं। क्योंकि वे सोचते हैं कि सलाह लेना कमज़ोरी है जबकि यह विचार बाइबल की शिक्षा के विपरीत है। बाइबल हमें प्रात्साहित करती है कि हम विभिन्न माध्यमों से सलाह लें।

सलाह किनसे लेना चाहिए?

हमें सर्वप्रथम परमेश्वर के वचन से सलाह लेना चाहिए।

बाइबल एक जीवित पुस्तक है जिसका इस्तेमाल परमेश्वर सारी पीढ़ियों का मार्गदर्शन के लिए करता है। इसमें लिखी बातें कालातीत हैं, अर्थात जो सिद्धांत इसमें बहुत पहले लिख लिया गया है वो आज के लोगों के लिए भी है। परमेश्वर का वचन अटल है।

मसीही जीवन में परमेश्वर के वचन को हमारे जीवन में प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर ने पहले से ही हमारे लिए दिशा निर्देश दे दिए हैं। उसका वचन हमारे मार्गों के लिए उजाला है। (भजन संहिता 119:105) उसकी चितौनियाँ हमारा सुखमूल और मंत्री है। (भजन संहिता 119:24) परमेश्वर ने अपने नाम से ज्यादा, अपने वचन को महत्त्व दिया है। उसमें लिखे उपदेश, चितौनियाँ, नियम हमें हमारे शिक्षकों से भी बुद्धिमान बनाते हैं। (भजन संहिता 119:98-100)

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उसका वचन जीवित, और प्रबल, दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है। परमेश्वर का वचन हमारी मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है। इसलिए हमें सर्वप्रथम परमेश्वर के वचन से ही सलाह लेना चाहिए। (इब्रानियों 4:12) परमेश्वर अद्भुत युक्ति करने वाला है। (यशायाह 9:6) जिस राह में आपको चलना चाहिए वो आपकी अगुवाई करेगा। उसने वादा किया है कि वह हमें बुद्धि देगा। (भजन संहिता 32:8)

अपने जीवन साथी से सलाह लें।

यदि आप विवाहित हैं तो आपको अपने जीवन साथी से भी सलाह लेनी चाहिए। बाइबल के अनुसार पति और पत्नी एक देह हैं। उचित निर्णय लेने के लिए भी उन्हें एक दूसरे की आवश्यकता है। स्त्रियों को अंतःप्रेरणा का स्वाभाविक रुप से वरदान प्राप्त है।

तथ्यों और विश्लेषण पर ध्यान लगाना पुरुषों के स्वभाव में है। कई बार प्रभु, पत्नी के माध्यम से पति के साथ स्पष्ट रुप से बातचीत करता है क्योंकि परमेश्वर ने उसे उसकी सहायक बनाया है। पत्नी के अनुभव का स्तर भले ही कम हो, परंतु पति को पत्नी की सलाह भी अवश्य लेनी चाहिए।

अपने माता-पिता से सलाह लें।

वचन हमें उत्साहित करता है कि हमें अपने अभिभावकों से भी सलाह लेनी चाहिए। (नीतिवचन 6:20) हमें उनकी आज्ञा और शिक्षा को कभी नहीं भूलना है क्योंकि हमारे माता-पिता के पास वर्षों का अनुभव है, उन्होंने हमसे पहले कई बातों को सीखा है, अपनी गलतियों से भी सीखा है। वैसे भी परमेश्वर ने माता-पिता के पास बच्चों को सही मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी दी है। (व्यवस्थाविवरण 6:6-9) वे हमें बेहतर तरीके से जानते हैं।

इसलिए माता-पिता से सलाह लेना भी मददगार सिद्ध होता है, उन्होंने हमसे पहले कई बातों को अनुभव किया है। वो हमें कभी भी गलत सलाह नहीं देंगे। आप कभी भी उनके पास जाकर मदद मांग सकते हैं और उन्हें भी यह बात अच्छी लगेगी कि हम उनका आदर करते हैं उनके अनुभवों की कद्र करते हैं।

परमेश्वर के लोगों से सलाह लें।

अनुभवी लोग जो बाइबल जानते हैं वे विशेषकर अनमोल सलाहकार होते हैं। वे जानते हैं कि परमेश्वर के वचन में पाए जाने वाले सिद्धांतों को कैसे लागू करना है। परमेश्वर के वचन में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं कि राजा और लोग भी परमेश्वर के लोगों से सलाह लिया करते थे। इस प्रकार वे कई जीवन के खतरों से बचते भी थे।

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कई लोगों से सलाह लेना।

पवित्रशास्त्र हमें बताता है कि हम जो भी कल्पनाएं या योजनाएं बनाएं उसमें सम्मति की आवश्यकता होती है, क्योंकि बहुत से मंत्रियों की सम्मति से बात ठहरती है। (नीतिवचन 15ः22) बिना योजनाओं के हम विपत्तियों को आमंत्रित करते हैं, परन्तु सलाह देनेवालों की बहुतायात के कारण बचाव होता है। (नीतिवचन 11ः14)

सलाह किससे न लें?

  • जादू टोने करने वालों से सलाह न लें।
  • ओझाओं से सलाह न लें।
  • तंत्र-मंत्र करने वालों से सलाह न लें।
  • ज्योतिषियों से सलाह न लें।
  • इनसे सलाह लेकर हम परमेश्वर के अनाज्ञाकारी होते हैं और अपने जीवन को अशुद्ध कर देते हैं।

परमेश्वर का वचन हमें स्पष्ट निर्देश देता है कि हम भविष्य बतानेवाले साधनों और आत्माओं को जगाने वालों से सलाह न लें। “ऐसों की खोज करके अशुद्ध न हो जाना।” (लैव्यव्यवस्था 19:31) आप राजा शाऊल के बारे में तो जानते ही होंगे, उसने परमेश्वर से विश्वासघात किया। उसने परमेश्वर का वचन टाल दिया था, क्योंकि उसने भूतसिद्धि करने वाली से पूछा था। इसी कारण से उसे राज गद्दी से उतारा गया और यही कारण उसकी मृत्यु का कारण भी बना। (1 इतिहास 10:13-14) इसलिए हमें परमेश्वर के वचन और वचन में उपलब्ध सलाह लेने के माध्यमों से ही सलाह लेनी चाहिए।

सारांश।

परमेश्वर हमें प्रोत्साहित करता है कि हम कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले सलाह लें। सम्मति को सुनना और शिक्षा को ग्रहण करना जरुरी है ताकि हम बुद्धिमान ठहरे। (नीतिवचन 19:20) हमें बुद्धि, सुझाव और विकल्प जान लेने के लिए सलाह लेनी चाहिए ताकि हम उतम निर्णय ले सकें। हमेशा याद रखें मसीही जीवन में सर्वोपरि अधिकार परमेश्वर के जीवते वचन को ही है। इसलिए इसको नियमित पढ़ने के लिए समय निर्धारित करें, ताकि आप सही वक़्त में उत्तम निर्णय ले सकें।

शालोम

बाइबल के आर्थिक सिद्धांत जानिए

2 Comments

  1. Ranjeet Singh

    Great teaching

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  2. Vinod Kumar

    Sahi teaching hai hamen Karz se dur rahana chahie karj Insan ko Das banaa deta hai

    Reply

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anandvishwas

Anand Vishwas

आशा है कि यहाँ पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हमें बुलाया है।