कर्ज़ से बाहर कैसे निकलें? | एलिशा और विधवा

कर्ज़ से बाहर कैसे निकलें? एलिशा और विधवा (What To Do In Debt?)

Posted by Anand Vishwas

June 12, 2020

कर्ज़ से बाहर कैसे निकलें? (2 राजा 4:1-7)

कर्ज़ से बाहर कैसे निकलें? एलिशा और विधवा (What To Do In Debt?) मसीह में मेरे प्रिय, आशा करता हूं कि आप मसीही जीवन में निरंतर बढ़ते जा रहे हैं और आप मसीही जीवन का आनंद ले रहे हैं। मसीही जीवन, आनंद का जीवन है, शांति का जीवन है, एक अनंत और जीवित आशा का जीवन है, विजय का जीवन है। लेकिन साथ ही साथ इस दुनियां में हम अपने जीवन में संघर्ष को भी पाते हैं और वह इसलिए क्योंकि मसीही जीवन आत्मिक युद्ध का जीवन भी है। हम इस दुनियां के नहीं हैं, हम यहां पर एक परदेसी के रूप में अपना जीवन बिताते हैं और हमारा स्वदेश तो स्वर्ग में है।

यहां जीवन बिताते हुए कभी ना कभी हम आर्थिक रीति से बहुत आवश्यकता में होते हैं उस वक़्त हमारे सामने यह विकल्प होता है कि या तो हम अपना जीवन कमी में बिताएं या फिर हम किसी व्यक्ति से कर्जा लें या किसी बैंक से, और यह हमारे लिए एक प्रलोभन भी है। आइए आज एक विधवा के जीवन से सीखें कि किस प्रकार हमें अपने जीवन की तकलीफों में, या यूं कहें कर्ज में, प्रतिक्रिया करना चाहिए?

इस कहानी को आपने कई बार पढ़ा होगा, मुझे आशा है कि आप इस संदेश को पढ़कर आशीषित होंगे। यह भाग 2 राजा 4:1-7 में वर्णित है।

यहां एक विधवा (Widow) की कहानी हम देखेंगे कि कैसे उसके जीवन में आशीष पहुंची, इन बातों को हम आज सीखेंगे।

ये एक विधवा की कहानी है, यानी प्रभु के एक दास की पत्नी की। इसका पति मर गया था और ये किसी व्यक्ति का कर्जदार था। इस व्यक्ति की पत्नी एलिशा को जो प्रभु का एक नबी था कहती है कि मेरा पति तो मर गया, हम बड़े कर्ज में है। जिसका कर्जा चुकाना है वो आकर हमारे दोनों बच्चों को दास बनाने के लिए ले जाना चाहता है, अब मैं क्या करूं?

कर्ज़ से बाहर कैसे निकलें? एलिशा और विधवा (What To Do In Debt?)
Contributed by Lambsongs

पहली बात जो हमको इससे सीखना है कि समस्याएं हर किसी के जीवन में आ सकती हैं, चाहे हम साधारण लोग हैं, चाहे हम सेवक हों, हम कोई भी हैं, इस संसार में हर व्यक्ति के जीवन में समस्याएं हैं। कई बार हम सोचते हैं कि जो बड़े लोग होते हैं या करोड़पति होते हैं, उनकी जिंदगी में कोई समस्याएं नहीं है।

ऐसी बात नहीं है, हमारे आसपास ऐसे कई लोग हैं जिनके पास धन सम्पत्ति की कोई कमी नहीं है, पर उनको कोई न कोई बीमारी लगी हुई है, वो अच्छा खा नहीं सकते हैं, सोने के समय सो नहीं सकते हैं, तो समस्याएं हर किसी की जिंदगी में आएंगी।

इस बात को हमें याद रखना है। हम जो भी है, हम सबके जीवन में समस्याएं आएंगी। पर सवाल यह है कि जब समस्याएं हमारे जीवन में आती है तो हम क्या करते हैं? या हमें क्या करना चाहिए? समस्या में हमें प्रभु को पुकारना है।

हम अपनी समस्याओं में परमेश्वर को पुकारें।

उस स्त्री (Widow) ने पहले क्या किया जब उसके जीवन में समस्याएं आई। क्या वह सरकार के पास गई? क्या वह अपने पड़ोसियों के पास गई? या अपने रिश्तेदारों के पास गई? या किसी नेता के पास गई? नहीं, उसने परमेश्वर के जन को अर्थात परमेश्वर को पुकारा। (क्योंकि वचन हमें बताता है कि जो तुम्हें ग्रहण करता है वह मुझे ग्रहण करता है जो तुम्हारी सुनता है वह मेरी सुनता है) कि देख मेरी ऐसी दुर्दशा है।

हो सकता है आपके परिवार में समस्याएं होंगी। आप दुनियां को पुकारने से पहले परमेश्वर को पुकारिए। आप जिस भी समस्या में है, परमेश्वर को पुकारिए। हमें परमेश्वर को पुकारने की आवश्यकता है। तो पहली बात हम सीखते हैं कि हमें अपनी समस्याओं में सर्वप्रथम परमेश्वर को पुकारना चाहिए।

हो सकता है कि आप कर्ज में होंगे, बीमारी में होंगे, आप किसी को मदद के लिए बुलाने से पहले खुद परमेश्वर को पुकारिए। यही तो मसीहत में एक खूबी है कि हम अपनी बातों को प्रार्थना के द्वारा प्रभु के सामने कभी भी व्यक्त कर सकते हैं। क्योंकि प्रार्थना क्या है? प्रार्थना एक बातचीत है।

हम परमेश्वर से कभी भी बात कर सकते हैं। हमें परमेश्वर को पुकारने के लिए किसी सहारे की जरूरत नहीं है। एक बच्चा जब अपने माता-पिता के पास जाता है तो क्या वह किसी से पूछ कर जाता है? कि मुझे मम्मी के पास जाना है मुझे पापा के पास जाना है? वह कभी भी जा सकता है। दूसरी बात जो हम इस कहानी से सीख सकते हैं, वह है कर्ज हमें गुलाम बनाता है।

कर्ज गुलाम बनाता है।

अब यह गुलामी कैसी है? इस औरत के बच्चों को, जिनके वह कर्जदार थे, दास बनाने के लिए ले जाने वाला था। यानी कि उनको बेच दिया जाएगा। आज हमारे देश में भी ऐसी बहुत सारी घटनाएं होती हैं, कई लोग कर्ज के कारण से अपने बच्चों की बिक्री कर देते हैं या फिर अपनी भूमि बेच देते हैं। कई मजदूर बने हुए हैं, गुलाम बने हुए हैं। कर्ज से आपको और हमको बचने की आवश्यकता है। क्योंकि परमेश्वर का वचन भी हमें प्रेरित करता है कि प्रेम को छोड़ और किसी दूसरी बात के कर्जदार ना हो। (रोमियों 13:8)

याद रखिए कर्ज लेना भी एक श्राप है, परमेश्वर का वचन क्या कहता है? यदि हम परमेश्वर के वचन का पालन करेंगे तो हम किसी से उधार लेने वाले नहीं बल्कि उधार देने वाले बनेंगे। हालांकि कोई भी कर्ज लेना नहीं चाहता क्योंकि कर्ज हमें गुलाम बनाता है। समझ लीजिए कि आपका किसी दुकान में कुछ उधार है, आप उधर से जाएंगे तो दुकानवाला आपको बार-बार आवाज देता रहेगा, फिर आप उधर से जाना पसंद नहीं करेंगे। दुकानदार रास्ते में दिखाई दिया तो आप दूसरे रास्ते से जाएंगे। अच्छा नहीं लगता है।

मैंने ऐसे कई मामले देखे है कि कर्जदार को कई जगह जलील होना पड़ता है, या आजकल तो कर्जदार फोन कॉल उठाने से भी कतराते है, क्यों? क्योंकि कर्जा जो देना है। आजकल तो लोग true caller से जान लेते हैं कि किसका फोन आ रहा है। यह बिल्कुल भी अच्छा आचरण नहीं है। क्योंकि कर्जा हमें गुलाम बनाता है। इससे बचने में ही फायदा है। इस औरत (Widow) के साथ भी यही हुआ था, पति मर गया और जिसका कर्जा चुकाना है वह उनके बच्चों को गुलाम बनाने के लिए ले जा रहा है।

गुलामी का एक और कारण भी है, बचत ना करना। इस औरत (Widow) के पति ने भी जीवन में कुछ बचाया नहीं। इसलिए जब उस औरत से प्रभु के दास ने पूछा कि तेरे पास क्या है? उसने क्या कहा? बस एक घड़े में थोड़ा सा तेल है और कुछ नहीं। उन्होंने बचत नहीं किया था।

हो सकता है कि आप सोचने लगें कि हमने धन के रूप में तो किसी से कर्जा नहीं लिया है। मेरे प्रिय, हो सकता है कभी आपने किसी से कोई पुस्तक ली हो कुछ दिनों में पढ़ने के लिए, पर आपने लौटाई ही ना हो, वह भी कर्ज है। हो सकता है कि आपने कुछ भी चीज, किसी से ली हो और लौटाई ना हो तो आप कर्ज में है। हमेशा याद रखिए कर्जे में रहना यानी श्राप में रहना, गुलामी में रहना। श्राप में रहना, गुलामी में रहना बहुत खतरनाक है। आप व्यवस्थाविवरण में दिए गए श्रापों को तो जानते ही होंगे। आइए अगली बात की और आगे बढ़ते हैं जो हम इस भाग में से सीखते हैं।

जो कुछ भी आपके पास है उसे परमेश्वर को सौंप दें।

क्या है आपके पास जो आप ईश्वर को दे सकते हैं? आपके पास जो कुछ भी है वह सब परमेश्वर का दिया हुआ है। (भजन संहिता 24:1) यानी आप भी परमेश्वर के हैं। हमारी जिंदगी परमेश्वर की दी हुई है, हमारी सांसें उसके अनुग्रह से चलती हैं। हमारी योग्यताएं भी उसी की दी हुई है। इसलिए एक मसीही व्यक्ति परमेश्वर का हर बात के लिए धन्यवाद देता है, इसलिए परमेश्वर के लोग अपनी धन संपत्ति में भी पहला स्थान परमेश्वर को देते हैं। क्योंकि वे परमेश्वर का, परमेश्वर के लिए ही देते हैं। यह परमेश्वर को आदर देना भी है।

एलिशा ने उस विधवा (Widow) से यही पूछा था कि तेरे पास क्या है? और उसने बड़ी ईमानदारी से जवाब दिया कि एक हांडी में थोड़ा सा तेल है। हर व्यक्ति के पास कुछ ना कुछ जरूर है देने के लिए। हमारी ऊर्जा को हम परमेश्वर के लिए दे सकते हैं। यहां ये विधवा (Widow) कहती है कि मेरे पास तो तेल है। अगली बात जो हम इस से सीखते हैं वह यह है कि प्रभु के दास एलीशा ने उसे कहा कि अपने बच्चों समेत अपने घर के अंदर जा और पड़ोसियों से खाली बर्तन ले आना, और उस हांडी से सभी बर्तनों में उस तेल (Oil) को उंडेलना।

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उसने इतना ही कहा था कि पड़ोसियों से खाली बर्तन ले आना। वह विधवा क्या होगा, क्या ना होगा नहीं जानती थी पर जरूर उसके जीवन में आज्ञाकारिता और विश्वास नजर आता है। हो सकता है कि उसके पास एक लीटर तेल होगा पर उसने बहुत सारे बर्तन ले आए। इस औरत ने बर्तन कहां से लाए थे? पड़ोसियों से। और अगली बात जो सीखते हैं:

हमें अपने पड़ोसियों से अच्छा रिश्ता बनाए रखना है।

तकलीफ के समय दूर का भाई आपकी मदद करने के लिए नहीं आएगा, आपके सगे संबंधी नहीं आएंगे। क्योंकि उन्हें समय पर आने के लिए काफी समय लग जाएगा। उस वक्त आपका पड़ोसी ही आपके काम आएगा। तभी नीतिवचन इस प्रकार कहता है प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। (नीतिवचन 27:10) प्रभु यीशु मसीह ने भी कहा कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखो। (मरकुस 12:31)

इस औरत ने अपने पड़ोसियों के साथ अच्छा रिश्ता बनाया था, इसी कारण इसके पड़ोसियों ने इसको बर्तन दे दिए। और यह बर्तन लेकर आ गई। जब बर्तन लेकर आई, अब कमरे में पूरे बर्तन भरे हुए हैं, इधर इनके छोटी सी हांडी में तेल है। अब इसे इन बर्तनों में डालना है, यहां हम इस औरत से विश्वास के कदम बढ़ाने को देखते हैं।

हमें विश्वास में कदम बढ़ाना है।

विश्वास क्या होता है? – आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण। (इब्रानियों 11:1) इस औरत को विश्वास करना था कि जब मैं बर्तनों में तेल डालूंगी तो तेल गिरना बंद नहीं होगा बल्कि सभी बर्तन भर जाएंगे, और ऐसा करके सभी बर्तन भरते गए और वह अपने बेटों को कहती कि बर्तन लाओ, और बर्तन लाओ। देखते ही देखते सभी बर्तन भर गए। और जब सारे बर्तन भर गए तब तेल गिरना बंद हो गया। क्योंकि परमेश्वर की आशीष व्यर्थ नहीं जाती है। ध्यान दें, चमत्कार तभी हुआ था जब उन्होंने विश्वास में कदम उठाया था।

परमेश्वर की देने की क्षमता हमारी लेने की क्षमता से बढ़कर है।

हमेशा याद रखिए कि परमेश्वर की क्षमता हमारी क्षमता से कहीं अधिक है। परमेश्वर के देने की क्षमता आपके लेने की क्षमता से कहीं बढ़कर है। हम कितना ले सकते हैं? पतरस ने कहा कि प्रभु हमने सारी रात मछली पकड़ने की कोशिश है पर कुछ नहीं मिला। तब प्रभु यीशु ने उसे कहा कि चल अभी मछली पकड़ने को जाते हैं। वचन हमें बताता है कि पतरस ने इतनी मछलियां पकड़ी कि उनका जाल फटने की स्थिति में आ गया उनकी किश्ती डूबने की स्थिति में आ गई। (लूका 5:1-11)

बहुत बार हम भी उस परमेश्वर को सीमित कर देते हैं या हम उसे बहुत छोटा समझने लग जाते हैं। लेकिन मेरे प्रिय, परमेश्वर की क्षमता हमारी क्षमता से बहुत बढ़कर है। प्रभु अद्भुत रीति से काम करता है। इसलिए हमें उस पर विश्वास करने की जरूरत है और परमेश्वर का वचन भी हमें उत्साहित करता है कि विश्वास के बिना परमेश्वर को प्रसन्न करना असंभव बात है परमेश्वर के पास आने वाले को यह विश्वास करना चाहिए कि परमेश्वर है और अपने खोजनेवालों को फल देता है। (इब्रानियों 11:6)

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जब इस औरत के घर में सभी बर्तन भर गए तो तेल गिरना भी बंद हो गया क्योंकि परमेश्वर की आशीष व्यर्थ नहीं जाती है। तब उसने क्या किया? वह फिर प्रभु के दास के पास गई, कि अब क्या करूं? तब प्रभु के दास ने कहा कि जा, इसे बेचकर के अपना कर्ज चुकता कर, और जो बच जाएगा उससे अपना जीवन निर्वाह करो। परमेश्वर ने इस औरत को इतना दिया कि इसका कर्ज भी चुकता हो जाए और उसके जीने के लिए भी बच जाए।

याद रखिए परमेश्वर हमारी Need को पूरी करने का वादा करता है हमारी Greed को नहीं।

परमेश्वर हमारी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, वह हमारी आवश्यकताओं को जानते हैं और प्रभु यीशु ने हमें प्रार्थना करना भी सिखाया कि हमें आज की रोटी दे। कल की चिंता ना कर क्योंकि कल का दिन अपनी चिंता आप कर लेगा।

हमें काम भी करना है।

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इस भाग में हम देखते हैं कि उस औरत ने न सिर्फ विश्वास किया बल्कि कर्म भी किया। कर्म बिना विश्वास के कोई भी लाभ नहीं। (याकूब 2:14-26) वचन भी हमें बताता है जो काम न करें वह खाने भी न पाए। (2 थिस्सलुनीकियों 3:10) उत्पत्ति में जब परमेश्वर ने मानव की रचना की थी और उनको अदन के बगीचे में रखा था तो उनको काम करने और उस बगीचे की रक्षा करने के लिए वहां रखा था। (उत्पत्ति 2:15)

शालोम

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8 Comments

  1. Vishwas Hanok

    Praise God. Great sermon prepration. I am blessed. God bless you

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  2. Ranjeet Singh

    सुन्दर व्याख्या , अतिउत्तम शिक्षा।
    आमीन

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  3. Balwan Sharma

    Jai masih ki

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    • Anand

      Jai Masih ki

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  4. Vinod Kumar

    कर्ज हमें गुलाम बनाता है, हमें कर्ज नहीं लेना चाहिए। प्रभु आपको आशीष दे।

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  5. Rajesh Kumar

    Acha message h bde bhaiya…prbhu apko bahut Ashish de

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  6. Pankaj

    Bhaiya ji jai Masih ki
    Content bahut acha hai

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    • Anand Vishwas

      Jai Masih Ki. Prabhu Ki Mahima Ho….

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anandvishwas

Anand Vishwas

आशा है कि यहाँ पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हमें बुलाया है।