जिम्मेदारी और काम (Responsibility And Work?)

बाइबल हमारे काम और जिम्मेदारी के बारे में क्या सिखाती है? (Responsibility And Work?)

बाइबल हमारे काम और जिम्मेदारी के बारे में क्या सिखाती है? (Responsibility And Work?) मसीह मेरे प्रिय, आशा करता हूँ कि आप प्रतिदिन अपने मसीही जीवन में उत्तरोतर बढ़ते जा रहे हैं। इस दुनियां में रहते हुए हमें धन की भी आवश्यकता होती है पर इसका अर्थ यह बिल्कुल भी नहीं है की धन-संपत्ति ही सब कुछ है। आज मनुष्य धन के प्रति यहाँ तक सोचता है कि धन-संपत्ति से ही मेरी सांसे चल रही हैं।

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बाइबल हमारे काम और जिम्मेदारी के बारे में क्या सिखाती है? (Responsibility And Work?)
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परमेश्वर का वचन हमें यही सिखाता है कि किसी का भी जीवन उसकी धन-संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता। (लूका 12:15) आज हम धन के प्रति अपने रवैए को बाइबल आधारित शिक्षा से दुरुस्त करेंगे। मुझे आशा है कि धन के प्रति आपके नजरिए में बदलाव जरूर आएगा।

परमेश्वर हमसे प्रेम करता है। परमेश्वर हमारा ध्यान रखता है, इस कारण धन-सम्पति के प्रयोग या इस्तेमाल के विषय में उसने हमें कुछ निर्देश दिये हैं, ताकि यह हमारे भले के लिये हो और हमें इससे खुशी मिले। उसके विचार हमारे विचारों से कहीं उत्तम हैं, उसकी सोच और हमारी सोच में जमीन और आकाश जितना अंतर है। (यशायाह 55:8-9)

बाइबल में धन से सम्बंधित लगभग 2350 बार लिखा गया है। प्रभु यीशु मसीह ने भी धन के विषय में बहुत कुछ कहा है। यीशु ने इतना अधिक दो कारणों से सिखाया: आध्यात्मिक कारण से और व्यवहारिक कारण से।

धन के इस्तेमाल के आध्यात्मिक कारण।

हम धन-सम्पति का इस्तेमाल किस तरह करते हैं इसका बड़ा ही प्रभाव प्रभु यीशु के साथ हमारे रिश्ते पर पड़ता है। जो भी धन सम्पति हमारे पास सौंपी गई है उसके प्रति हमें विश्वासयोग्य रहना है फिर चाहे वो किसी और का भी हो। (लूका 16:11) प्रभु यीशु मसीह के साथ अधिक निकटता का संबंध ही जीवन में “सच्चा धन” है।

धन-सम्पति हमारे जीवन में प्रभु यीशु की बराबरी में प्रभुता करता है। प्रभु यीशु के साथ धन मुख्य प्रतिस्पर्धी है। कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता… तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते। (मत्ती 6:24) इसलिए जब हम दुनियां में देखते हैं तो बहुत सारे लोगों का स्वामी धन दिखाई देता है। धन-सम्पति अपने आप में बुरे नहीं हैं। “रूपयों का लोभ अर्थात रुपयों से प्रेम सब प्रकार की बुराईयों की जड़ है।” (1 तीमुथियुस 6:10)

धन के इस्तेमाल के व्यवहारिक कारण।

परमेश्वर जानता है कि धन हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। परमेश्वर हम से प्रेम करता है इसलिए उसने पैसों का बुद्धिमानी के साथ उपयोग करने के लिए हमें निर्देश दिये हैं। परमेश्वर के वचन में कई सिद्धांत प्रस्तुत किये गये हैं – काम के क्षेत्र में, देने के क्षेत्र में, खर्च करने के क्षेत्र में, बचत करने के क्षेत्र में, ऋण से मुक्त होने के क्षेत्र में, परिवारिक योजना के क्षेत्र में, बच्चों को रूपये के व्यवहार के विषय शिक्षा देने के क्षेत्र में कि पैसों का उपयोग किस तरह किया जाता है।

धन के विषय में परमेश्वर की जिम्मेदारियाँ और हमारी जिम्मेदारियाँ।

कुछ लोगों के लिए यह समझना मुश्किल है कि परमेश्वर उनके धन में दिलचस्पी रखता है क्योंकि परमेश्वर तो अदृश्य है। परंतु बाइबल यह बतलाती है कि धन और संपत्ति के विषय में परमेश्वर की भूमिका हमारे धनों के व्यवहार अथवा इस्तेमाल के विषय में जिम्मेदारियाँ विभाजित की गई हैं।

यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो, परमेश्वर की भी एक भूमिका है और हमारी भी एक भूमिका है। परमेश्वर की कुछ जिम्मेदारियाँ हैं और उसने हमें भी कुछ जिम्मेदारियाँ दी हैं। धन के व्यवहार में कई बार हम निराश हो जाते हैं क्योंकि हम पहचान नहीं पाते हैं कि कौन सी हमारी जिम्मेदारियाँ है और कौन सी नहीं। आइए सबसे पहले परमेश्वर की जिम्मेदारियों के बारे बात करते हैं।

धन के विषय में परमेश्वर की जिम्मेदारियाँ।

परमेश्वर सारी वस्तुओं का स्वामी है।

परमेश्वर का पवित्र वचन बाइबल हमें बताता है कि पृथ्वी और जो भी कुछ उसमें है वो सब कुछ परमेश्वर ही का है; अर्थात उसमें रहने वाले भी। (भजन सहिंता 24ः1) स्वर्ग और पृथ्वी और जो कुछ उसमें है, वह सब तेरे परमेश्वर के ही हैं। (व्यवस्थाविवरण 10ः14) भूमि परमेश्वर की है और सदा के लिए बेची न जाए उसमें तुम परदेशी और बाहरी होगे। (लैव्यव्यवस्था 25ः23)

सोना और चांदी भी परमेश्वर का ही है। (हाग्गै 2ः8) परमेश्वर कहते हैं कि वन के जीव जंतु, पहाड़ों के जानवर भी मेरे हैं और मैदान पर चलनेवाले जानवर भी मेरे हैं, जगत और जो कुछ भी है वो मेरा है। (भजन संहिता 50ः10-12) परमेश्वर ने सब कुछ बनाया है। (उत्पति 1:1) परमेश्वर सारी वस्तुओं का स्वामी है। और अगली बात जो हमें परमेश्वर के स्वामित्व के बारे में जानना है वह यह है कि परमेश्वर सारी बातों, परिस्थितियों पर नियंत्रण रखता है।

परमेश्वर सारी बातों पर नियंत्रण रखता है।

पवित्रशास्त्र बताता है कि आकाश, पृथ्वी और समुद्र में जो कुछ परमेश्वर ने चाहा है उसने वही किया है। (भजन संहिता 135:6) परमप्रधान परमेश्वर धन्य है, परमेश्वर स्वर्ग की सेना और पृथ्वी के रहने वालों के बीच में अपनी इच्छा के अनुसार काम करता है। कोई भी परमेश्वर को रोककर यह नहीं कह सकता है कि तूने ये क्या किया है? (दानिय्येल 4:34-35)

जितने लोग मसीह के पीछे चलते हैं और परमेश्वर से प्रेम करते हैं उन्हें इस बात से संतुष्टि होगी कि परमेश्वर हर बात का उपयोग हमारी अंतिम भलाई के लिए करता है फिर चाहे वो कठिन परिस्थितियां ही क्यों न हों। आप युसुफ के जीवन को देख सकते हैं यद्यपि उसके भाइयों ने उसके लिए बुराई का विचार किया परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में युसुफ के लिए भलाई का विचार किया। (रोमियों 8:28, उत्पति 45:5-8, 50:20)

इसलिए हमें यह बात स्मरण रखनी चाहिए कि परमेश्वर सारी बातों पर नियंत्रण रखता है। हालाँकि समस्या तब बढ़ जाती है जब हम स्वयं सारी चीज़ों पर नियंत्रण करना चाहते हैं। और अगली बात जो हमें परमेश्वर की प्रभुता के बारे में जाननी चाहिए वह यह है कि परमेश्वर हमारी जरूरतों को जानता है और पूरी भी करता है।

परमेश्वर हमारी जरूरतों को पूरा करेगा।

परमेश्वर ही है जो हमारी जरुरतों को पूरा करता है। उत्पत्ति 22:14 में परमेश्वर को “यहोवा यिरे” कहा गया है, जिसका अर्थ है, परमेश्वर उपाय करेगा। परमेश्वर प्रबन्ध करने वाला परमेश्वर है, वह हमारे मांगने से पहले ही जानता है कि हमारी आवश्यकताएं क्या हैं। प्रेरित पौलुस ने परमेश्वर के उपाय को अपने जीवन देखा था तभी हमें वो बता पाया कि परमेश्वर अपने धन के अनुसार जो प्रभु यीशु मसीह में है तुम्हारी हर एक कमी को पूरा करेगा। (फिलिप्पियों 4:19)

परमेश्वर हम से वादा करता है कि यदि हम परमेश्वर को अपने जीवन में प्रथम स्थान देंगे तो वह हमारी जरुरतों को पूरा करेगा। (मत्ती 6:33) वह हमारी जरुरतों को पूरा करने में विश्वासयोग्य है। वह अपने लोगों की जरुरतों को कई तरह से और अद्भुत रीति से पूरा करता है – जैसे कि वेतन में बढ़ती या कोई ईनाम या बचत किये हुए पैसों की प्राप्ति होना। वह हमारी जरुरतों को पूरा करने के लिए जो भी तरीका अपनाए, यह बात स्पष्ट है कि वह पूर्ण रीति से विश्वसनीय और निर्भर रहने के योग्य है।

परमेश्वर आपकी थोड़ी सी चीज को बहुगुणित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए एलिशा और विधवा (2 राजा 4:1-7), एलिय्याह और सारपत की विधवा (1 राजा 17:8-16) के लिए परमेश्वर के उपाय को तो आप जानते ही हो। प्रभु यीशु ने पांच रोटी और दो मछलियों को पांच हजार लोगों को खिलाया। (मती 14:13-21) उसने इस्राइलियों को जंगल की यात्रा के दौरान मन्ना खिलाया था, उनकी हर जरुरत को पूरी किया था। इसलिए हमें हमेशा स्मरण रखने की जरुरत है कि परमेश्वर ही है जो हमारी जरूरतें भी पूरी करता है।

धन के सम्बन्ध में हमारी जिम्मेदारियाँ।

हम परमेश्वर की संपत्ति के भण्डारी हैं। भंडारी किसी और की सम्पति का प्रबंधन करता है। भण्डारी में विश्वासयोग्यता देखी जाती है। (1कुरिन्थियों 4:2) जो कुछ हमारे पास है उसमें, छोटी-छोटी बातों में हमें विश्वासयोग्य रहना है। क्योंकि जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है, और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है। (लूका 16ः10) बहुत बात लोगों को इसलिए भी आशीष नहीं मिलती है क्योंकि जो उनके पास सौंपा गया है वे उसमें भी ईमानदार नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए मैंने कई लोगों को यह कहते हुए सुना है कि “इस बार तो फसल ही नहीं हुई”, “इस बार तो बहुत कम है” इत्यादि।

जब हम विश्वासयोग्य रहेंगे, तब हमें तीन तरह से लाभ होगा:

  • हम प्रभु यीशु की नजदीकी में बढ़ेंगे। – जब हम प्रभु की आज्ञापालन में विश्वासयोग्य रहेंगे तब हम उसके लिए प्रेम में भी बढ़ेंगे। (यूहन्ना 14:21)
  • हममें ईश्वरीय चरित्र का विकास होगा। – धन के द्वारा परमेश्वर हमारे चरित्र को प्रकट करता है और उसे शुद्ध करता है। हम अपने धन का इस्तेमाल कैसे करते हैं यह बात हमारी आत्मिक दशा का बाहरी प्रकटीकरण होता है। इससे पता चलता है कि व्यक्ति ईमानदार है या नहीं। इससे यह भी मालूम चलता है कि व्यक्ति कहाँ पर खर्चा करता है किसी भले काम में या किसी बुरे काम में?
  • हमारे जीवन में आर्थिक स्थिरता आरंभ होगी। – जब हम धन-सम्पति के विषय में परमेश्वर के सिद्धांतों को लागू करेंगे तब हम और भी बुद्धिमानीपूर्वक खर्च करने लगेंगे और भविष्य के लिए बचत भी करेंगे और परमेश्वर के कार्य के लिए ज्यादा से ज्यादा देंगे।

धन के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण।

सम्पति की सम्पन्नता या निर्धनता के बारे में कई शिक्षाएं हैं और लोगों ने अपने-अपने सिद्धांत बनाए हुए हैं। इसलिए हमें बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। एक प्रकार की विचारधारा के अनुसार भक्ति केवल दरिद्रता (गरीबी) में ही सिद्ध होती है। देखिये, पैसे का इस्तेमाल भलाई और बुराई दोनों के लिए किया जा सकता है। बाइबल में वर्णित कई धर्मी लोग उस वक्त के बहुत संपन्न व्यक्तियों में से एक थे। पुराना नियम में बताया गया है कि जब परमेश्वर के लोग परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी रहे तब परमेश्वर ने उन्हें आशीषित किया, जबकि दरिद्रता उनकी अनाज्ञाकारिता के परिणामस्वरुप थी। (व्यवस्थाविवरण 30:15-16)

परमेश्वर तो अपने लोगों के कुशल से प्रसन्न होता है। (भजन संहिता 35:27) जब परमेश्वर के साथ हमारा सम्बन्ध ठीक होता है और अपनी सम्पति के विषय में हमारा दृष्टिकोण सही होता है तब हम उचित तरीके से सम्पन्नता के लिए परमेश्वर से प्रार्थना भी कर सकते हैं। बाइबल यह नहीं कहती है कि धर्मी व्यक्ति को दरिद्रता में रहना चाहिए, धर्मी व्यक्ति के पास भौतिक सम्पति हो सकती है।

सम्पति की सम्पन्नता या निर्धनता के बारे में एक विचारधारा यह भी है कि सच्चे मसीही हमेशा आर्थिक रीति से संपन्न होंगे। यह भी एक भूल है। अगर आप युसुफ के जीवन का अध्ययन करें जो कि विश्वासयोग्य व्यक्ति का एक उदाहरण है, उसने सम्पन्नता और निर्धनता दोनों का अनुभव किया था। उसका जन्म एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। उसके ईर्ष्यालु भाइयों ने उसे गड्ढे में फैंका और उसके बाद एक गुलाम होने के लिए बेच दिया।

गुलामी की दशा में उसके स्वामी ने उसे अपने घर का अधिकारी नियुक्त किया। जहाँ युसुफ ने स्वामी की पत्नी से व्यभिचार न करने का नैतिक फैसला लिया। आप जानते ही हैं कि उसके सही निर्णय के बाद भी उसे जेल में समय बिताना पड़ा। परन्तु हम देखते हैं कि परमेश्वर ने उसे सही समय में पूरे मिस्र देश का प्रधानमंत्री बना दिया।

यहोशू 1:8 में भी एक निर्देश पाया जाता है जिसमें लिखा है कि “व्यवस्था की पुस्तक तेरे चित से कभी उतरने न पाए, इसी में रात दिन ध्यान दिए रहना और जो कुछ उसमें लिखा है उसके अनुसार करने की चौकसी करना; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सफल होंगे और तू सम्पन्न होगा।” इस आयत में सम्पन्नता के लिए दो शर्तें रखी गई हैं। परमेश्वर के वचन में ध्यान देना और उसके अनुसार जीना। जब आप इसे करते हैं तब आप सम्पन्नता पाते हैं।

परन्तु यह पक्का भी नहीं है कि फिर भी परमेश्वर आपके लिए सम्पन्नता का चुनाव करेगा। परमेश्वर जानता है कि आपके लिए सर्वोतम क्या है, उसकी योजना हमारी योजना से हमेशा बेहतर होती है इसलिए आपको उस पर भरोसा रखना होगा।

धन के प्रति हर एक व्यक्ति का अपना एक दृष्टिकोण है। धन के प्रति गरीब लोगों का मानना है कि सम्पन्नता बुरी है, सपन्न लोगों का मानना है कि सम्पन्नता मेरा अधिकार है और भंडारी का मानना ये है कि धन सम्पति का प्रबंधन मेरी जिम्मदारी है। काम करने के पीछे दरिद्र व्यक्ति का दृष्टिकोण है कि मैं तो काम अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए करता हूँ, संपन्न व्यक्ति इसलिए काम करता है कि अधिक धनवान बने और भंडारी इसलिए धन कमाता है कि और अधिक मसीह की सेवा और उसके राज्य के विस्तार में अपना योगदान दे सके।

धार्मिकता के लिए दरिद्र व्यक्ति का दृष्टिकोण है कि धर्मीं लोगों को दरिद्र होना चाहिए, संपन्न व्यक्ति का दृष्टिकोण है कि धर्मीं लोगों को धनवान होना चाहिए जबकि भंडारी का दृष्टिकोण ये है कि उसे धन सम्पति के प्रबंधन में विश्वासयोग्य होना चाहिए। दरिद्र लोगों का मानना है कि अधर्मी लोग धनवान होते हैं, सम्पन्न व्यक्ति सोचता है कि अधर्मी लोग दरिद्र होते हैं और भंडारी का दृष्टिकोण कहता है कि अधर्मी लोग विश्वासयोग्य नहीं होते हैं।

दरिद्र व्यक्ति का देने के पीछे मानना ये होता है कि मुझे तो देना ही है, संपन्न व्यक्ति इसलिए देता है कि और अधिक पा सके जबकि भंडारी इसलिए देता है क्योंकि वो परमेश्वर से प्यार करता है। इसलिए दरिद्र व्यक्ति का खर्च करना आनंदरहित और भय के साथ होता है, सपन्न व्यक्ति का खर्च करना लापरवाही और बर्बाद करने वाला होता है और एक भंडारी अपने धन का प्रबंधन प्रार्थनापूर्वक और जिम्मेदारी के साथ करता है।

दरिद्र व्यक्ति का दृष्टिकोणसम्पन्न व्यक्ति का दृष्टिकोण भण्डारी का दृष्टिकोण
सम्पन्नताबुरी है।मेरा अधिकार है।मेरी जिम्मेदारी है।
मैं काम करता हूँ ताकिमूल आवश्यकताओं को पूरा करूं।धनवान बनूं।मसीह की सेवा करूं।
धर्मी लोगों कोदरिद्र होना चाहिए।धनवान होना चाहिए।विश्वासयोग्य होना चाहिए।
अधर्मी लोगधनवान होते हैं।दरिद्र होते हैं।विश्वास के योग्य नहीं होते हैं।
मैं देता हूँ क्योंकिमुझे देना ही है।मैं और पा सकूं।मैं परमेश्वर से प्यार करता हूँ।
मेरा खर्च करनाआनन्दरहित और भय के साथ होता है।लापरवाही और बर्बाद करनेवाला होता है।प्रार्थनापूर्वक और जिम्मेदारी के साथ होता है।
धन के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण

बाइबल हमारे काम के बारे में क्या सिखाती है?

एक व्यक्ति अपने जीवनभर औसतन एक लाख घंटे काम करता है। फिर भी इतना काम करने के बावजूद व्यक्ति संतुष्ट नहीं हो पाता है। इसलिए यदि आप काम से सम्बंधित बाइबिल के सिद्धांतों को समझेंगे तो आप जरुर अपने जीवन में संतुष्टि को महसूस करेंगे। काम करना जरुरी क्यों है? हमें कितना काम करना चाहिए? इत्यादि बातों को जानने का प्रयास करते हैं।

परमेश्वर ने काम का निर्माण हमारे लाभ के लिए किया है।

परमेश्वर ने आदम की रचना के बाद आदम को अदन के बगीचे में रख दिया कि वो उसमें काम करे और उस बगीचे की रक्षा करे। (उत्पति 2ः15) परमेश्वर ने हमारे ही फायदे के लिए अदन की वाटिका के निष्पाप वातावरण में काम का निर्माण किया। परन्तु मनुष्यजाति के पतन के बाद पाप ने संसार में प्रवेश किया तब मनुष्य के लिए काम ज्यादा कठिन हो गया। क्योंकि मनुष्य के पाप के कारण भूमि श्रापित हो गई थी। अब मनुष्य को भूमि की उपज भी दुःख के साथ मिलनी थी। (उत्पति 3:17-19)

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काम के विषय में परमेश्वर का दृष्टिकोण।

काम के विषय में परमेश्वर का दृष्टिकोण ये है कि काम जरूरी है। यह इतना महत्वपूर्ण है इसके लिए आज्ञा भी दी गई है कि छः दिन तो परिश्रम करना। (निर्गमन 34ः21) काम करना हमारे फायदे के लिए ही है, वचन हमें निर्देश देता है कि अगर कोई काम करना न चाहे तो वो खाने भी न पाए। (2 थिस्सलुनिकियों 3:10) काम के विषय में दूसरा दृष्टिकोण यह है कि काम चरित्र का विकास करता है। काम का मूल उद्देश्य हमारे चरित्र का निर्माण करना है व्यक्ति जो भी काम करके बनाता है वही काम उसको भी बनाता है। काम के द्वारा निपुणता और विवेक में सुधार आता है।

इसलिए काम सिर्फ पैसा कमाने के लिए नहीं बल्कि हमारे जीवन में ईश्वरीय चरित्र का भी निर्माण करने के लिए है। काम हमारे फायदे के लिए ही है, क्योंकि कामकाजी लोग प्रभुता करते हैं, परंतु आलसी बेगारी में ही पकड़े जाते हैं। (नीतिवचन 12:24) और काम के बारे में तीसरा दृष्टिकोण यह है कि हम मसीह के लिए काम करते हैं।

पवित्र शास्त्र बाइबल हमें प्रोत्साहित करता है कि जो काम भी हमें मिले उसे पूरी शक्ति के साथ करना है। (सभोपदेशक 9:10) तन मन से करना है यह समझकर कि हम उस काम को किसी मनुष्य के लिए नहीं पर प्रभु के लिए करते हैं। (कुलुस्सियों 3:23-24) आप जो काम आज कर रहे हैं, आप किसके लिए कर रहे हैं? अपने उद्देश्य को जांचें और अपने नज़रिए को सुधारें।

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काम के विषय में परमेश्वर की जिम्मेदारी।

  • परमेश्वर हमें कार्य कुशलता देता है। परमेश्वर ने हर व्यक्ति को कुशलता और गुण दिए हैं। काम करने के लिए बुद्धि ज्ञान और समझ परमेश्वर ही देता है। (निर्गमन 36:1) बाइबल कहीं भी किसी कार्य की तुलना दूसरे कार्य से नहीं करता है। बाइबल में कई तरह के काम बताए गए हैं। जैसे कि दाऊद राजा और चरवाहा था, लूका वैद्य था, लुदिया कपड़े बेचती थी, दानिय्येल सरकारी कर्मचारी था, पौलुस तंबू बनाता था, यीशु के चेले मछुआरे थे, यीशु स्वयं बढ़ई का काम करते थे।
  • परमेश्वर हमें सफलता देता है। युसुफ इस बात का उदाहरण है कि परमेश्वर किस तरह लोगों की मदद करता है ताकि वे सफलता पाएं। युसूफ ने दासत्व में भी खराई और विश्वासयोग्यता के साथ अपने मिस्री स्वामी के घर काम किया। परमेश्वर उसके साथ रहता था। जिसके कारण युसूफ जो भी करता था, परमेश्वर उसके काम में सफलता देता था। (उत्पति 29:2-3)
  • हमारी उन्नति और बढ़ती परमेश्वर के हाथ में है। आशीष न किसी व्यक्ति की ओर से आती है और न किसी दिशा से, परन्तु परमेश्वर की ओर से ही आती है क्योंकि वो ही सच्चा न्यायी है। (भजन सहिंता 75:6-7) परमेश्वर ही आपको सफलता और उन्नति देता है।

काम के विषय में हमारी जिम्मेदारी।

जैसा कि हमने पहले ही बात किया है कि हम मसीह के लिए काम करते हैं। हम जो कुछ करें, तन मन से करें, यह जानकर कि मनुष्यों के लिए नहीं, परंतु प्रभु के लिए करते हैं। (कुलुस्सियों 3:23-24) हमें परिश्रम करना है। हमें जो काम भी मिले पूरी शक्ति के साथ करना है। (सभोपदेशक 9:10) मेहनती व्यक्ति को हमेशा अनमोल वस्तु मिलती है। (नीति.12:27)

जो काम में आलस करता है वह नुकसान करवाता है। (नीतिवचन 18:9) पौलुस ने एक आदर्श ठहराया वो परिश्रम और कष्ट से रात दिन काम धन्धा करते थे, ताकि तुम में से किसी पर भार न हो… इसलिए वो कहता है कि तुम हमारी सी चाल चलो। (2 थिस्सलुनिकियों 3:8-9)

हमें आवश्यकता से अधिक काम नहीं करना चहिए। परिश्रम के साथ-साथ हमें हमारी अन्य जिम्मेदारियों को भी ध्यान देना है। यदि आप काम में ही ज्यादा ध्यान देंगे तो आपके और आपके प्रियजनों के बीच दूरियां आ जाएँगी। आपको अपने काम और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना सीखना होगा। आपको अपनी प्राथमिकताओं का भी ध्यान रखना होगा। हाँ विश्राम भी जरुरी है। छः दिन तो काम करना, परंतु सातवें दिन विश्राम करना। (निर्गमन 34:21) इसलिए परमेश्वर ने हमारे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए साप्ताहिक विश्राम को रखा है।

काम के विषय में हमारी जिम्मेदारी यह भी है कि हम ईमानदारी से काम करें। चोरी न करें, कपट न करें और न ही झूठ बोलें। (लैव्यव्यवस्था 19:11) और जब हम किसी की अधीनता में काम करते हैं तो हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमें अपने मालिकों का आदर करना करें। (1 पतरस 2:18) जिनके साथ हम काम करते हैं उनका आदर करना चाहिए न कि किसी की निंदा। किसी दास की उसके स्वामी से चुगली न करना। (नीतिवचन 30:10) और हमें ईमानदार बने रहना है।

बाइबल हमारे काम और जिम्मेदारी के बारे में क्या सिखाती है? (Responsibility And Work?)
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परिश्रमी व्यक्ति के लिए आशीष।

  • पर्याप्त प्रबंध: (नीतिवचन 6:6-8)
  • संपति: कामकाजी लोग अपने हाथों के द्वारा धनी होते हैं। (नीतिवचन 22:29)
  • अगुवाई: कामकाजी लोग प्रभुता करते हैं। (नीतिवचन 12:24)

आलसी व्यक्ति के लिए परिणाम।

  • दरिद्रता: “जो काम में ढिलाई करता है वह निर्धन हो जाता है।” (नीतिवचन 22:29)
  • कठिनाई: “आलसी का मार्ग कांटों से रून्धा हुआ होता है।” (नीतिवचन 15:19)
  • मृत्यु: आलसी अपनी लालसा ही में मर जाता है, क्योंकि उसके हाथ काम करने से इन्कार करते हैं। (नीतिवचन 21:25)

सारांश।

परमेश्वर हमसे प्रेम करता है। प्रभु यीशु ने रुपयों और संपति के विषय में इतना कुछ कहा है क्योंकि वह जानता था कि इन सिद्धांतों के पालन से हमें लाभ होगा। परमेश्वर हमारे वस्तुओं का मालिक है और उसने हम में से हरेक को उसमें से कुछ दिया है ताकि हम उसका प्रबंधन करें। वह चाहता है कि हम उसके वचन में दिए गए आर्थिक सिद्धांतों का पालन करें, और परमेश्वर के बुद्धिमान और विश्वासयोग्य भण्डारी बनें।

उसने हमें काम दिये हैं ताकि वह हमारी जरुरतों को पूरा करे और हमारे चरित्र का निर्माण करे। हमें परिश्रम करना है और कुशल बनने का प्रयास करना है, क्योंकि हम वास्तव में प्रभु के लिए कार्य कर रहे हैं। धन के प्रति अपना दृष्टिकोण जरुर जांचें।

शालोम

बाइबल के आर्थिक सिद्धांत जानिए।

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Anand Vishwas
Anand Vishwashttps://disciplecare.com
आशा है कि यहां पर उपलब्ध संसाधन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए सहायक उपकरण सिद्ध होंगे। आइए साथ में उस दौड़ को पूरा करें, जिसके लिए प्रभु ने हम सबको बुलाया है। प्रभु का आनंद हमारी ताकत है।

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