देने के बारे में बाइबल क्या सिखाती है? (What Does The Bible Say About Giving?) बाइबल धन के विषय बहुत कुछ कहती है और इस संबंध में शिक्षा का मुख्य विषय है प्रबंधन। क्योंकि हमारे पास जो भी धन-सम्पत्ति इत्यादि है वह परमेश्वर का है। इसलिए यह बात बिल्कुल उचित है कि धन-सम्पति का इस्तेमाल इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे परमेश्वर प्रसन्न हो।
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एक महत्वपूर्ण विधि जिसके द्वारा परमेश्वर हमें यह प्रदर्शित करने का मौका देता है कि हम अपने धन के विषय में उसकी प्राथमिकताओं को समझते हैं, वह है देना।
“प्रभु यीशु की बातें स्मरण रखना अवश्य है, कि लेने से देना धन्य है।” – प्रेरितों के काम 20ः35
किसी ने इस प्रकार कहा है…
- कमाने के द्वारा हम जीते हैं, देने के द्वारा हम जीवन बनाते हैं।
- धन एक दोहरी आशीष है जब हम इसका उपयोग दूसरों के आशीष के लिए करते हैं।
- जब हमारे पास परमेश्वर के अलावा कुछ नहीं बचता है, तब हम पाएंगे कि परमेश्वर हमारे लिए पर्याप्त है।
- ये मायने नहीं रखता है कि आप कितना देते हैं, पर ये मायने रखता है कि आप कितना रखते हैं।
- अपने आप के लिए आप जो रखते हैं वह नुकसान है, परन्तु जो आप परमेश्वर को देते हैं वह सही लाभ है।
What Does The Bible Say About Giving?
देना मसीही जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। क्योंकि स्वयं सृष्टिकर्ता परमेश्वर देने वाला है जिसने हमें उद्धार, अर्थात पापों की क्षमा दी, उसके लिए उसने अपना प्रिय पुत्र भी दे दिया, उसने हमें बहुतायत का जीवन दिया, शैतान की गुलामी से आज़ादी दिया, हमें आनंद और शांति दिया।
संपूर्ण बाइबल में हमें यह बताया गया है कि हम उदार बनें। देने के विषय में उचित रवैया रखना आवश्यक है। हमारे पास जो कुछ भी है वह परमेश्वर का ही है, जिसके साथ हम एक सम्बन्ध में शामिल हैं। सब कुछ उसी ने हमें दिया है, इसलिए हम उसे वही लौटाते हैं; जो कि पहले से ही उसका है।
हम परमेश्वर को क्या दें?
जब सब कुछ परमेश्वर का है तो हमें भी अपना सब कुछ परमेश्वर को देना चाहिए। अपना देह, प्राण, आत्मा, अपना समय, कौशल और धन इत्यादि परमेश्वर को देना चाहिए। परमेश्वर सबसे पहले आपको चाहता है कि आप अपने आपको परमेश्वर को दे दें, क्योंकि परमेश्वर ने आपको अपने लिए बनाया है।
हमें परमेश्वर को क्यों देना चाहिए?
हमें परमेश्वर को इसलिए देना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा हम परमेश्वर को अपना आदर और सम्मान प्रदर्शित कर सकते हैं। (नीतिवचन 3:9) यह स्वीकार करने के लिए कि इस संसार में जो कुछ है उन सबका स्वामी और मालिक वही है। उदाहरणः जक्कई (लूका 19:1-10) जो भी जीवित हैं वे जान लें कि परमप्रधान परमेश्वर मनुष्य के राज्य में प्रभुता करता है और उसको जिसे चाहे उसे दे देता है और वह छोटे से छोटे मनुष्य को को भी उस पर नियुक्त कर देता है। (दानिय्येल 4:17, 25, 5:21)
उचित भावना से देना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हम किस भावना से देते हैं इस पर परमेश्वर हमारे देने का मूल्यांकन करता है। उदाहरण के लिए फरीसी और शास्त्री लोग व्यवस्था के अनुसार छोटी सी छोटी चीज का भी यानि कि पोदीने, सौंफ और जीरे का भी दसवां अंश देते थे।
प्रभु यीशु उन्हें डांटते हुए पाखंडी की संज्ञा देते हुए कहते है कि तुमने व्यवस्था की गंभीर बातों को अर्थात् न्याय और दया और विश्वास को छोड़ दिया है, तुम्हें चाहिए था कि इन्हें भी करते रहते और उन्हें भी न छोड़ते। (मत्ती 23:23) और विधवा की दो दमड़ियां तो आपको स्मरण ही होंगी। अब हम कह सकते हैं कि परमेश्वर हमारे देने की भावना का मूल्यांकन करता है।
प्रेम के खातिर दें।
परमेश्वर ने हमसे इतना प्रेम किया कि उसने उस प्रेम के खातिर अपने पुत्र को मरने के लिए दे दिया। (यूहन्ना 3:16) उसने हमें प्रेम करना सिखाया। बिना प्रेम के समाज सेवा हम कर ही नहीं सकते। (1 कुरिन्थियों 13:3) क्योंकि प्रेम मूल्य की मांग करता है।
हर्ष के साथ दें।
परमेश्वर का वचन हमें बिना कुड़कुड़ाहट, बिना दबाव से और हर्ष के साथ देने को प्रोत्साहित करता है, क्योंकि परमेश्वर प्रसन्नता से देने वाले से प्रेम रखता है। (2 कुरिन्थियों 9:7)
सर्वप्रथम परमेश्वर को दें।
देना (What Does The Bible Say About Giving?) दर्शाता है कि हम परमेश्वर का आदर करते हैं और इस बात पर विश्वास करते हैं कि प्रभु ही सारी चीजों का स्वामी है। इसलिए नीतिवचन भी कहता है कि अपनी संपति के द्वारा और अपनी भूमि की सारी पहली उपज दे देकर परमेश्वर की प्रतिष्ठा करना। (नीतिवचन 3:9)
परमेश्वर को देना इस बात का स्मरण दिलाता है कि जो कुछ हमारे पास है उसका मालिक परमेश्वर है और वह हमारी जरूरतों को पूरा करता है। (मती 6:8, 24-34) यह परमेश्वर के सिद्धांतों के प्रति आज्ञाकारिता का सूचक है।
कितना देना चाहिए?
दसवांश – वचन हमें बताता है कि हम देने की शुरुआत अपने 10% के साथ शुरू कर सकते हैं। बहुत बार इसमें भी हम परमेश्वर को धोखा देते हैं जैसा कि प्रभु ने मलाकी में भी कहा है कि हम लोग परमेश्वर को लूटते हैं, धोखा देते हैं। और प्रभु हमारी इस हरकत से दुखी भी हैं।
अगला वचन हमें यह भी बताता है कि हमारे जीवन में यह श्राप का भी एक कारण रहता है। (मलाकी 3:8-9) मैं आपको उत्साहित करना चाहता हूँ कि आप इस कदम के साथ जरुर शुरुआत करें।
जितनी हमारी योग्यता है – पौलुस मकिदुनियां की कलीसिया के विषय गवाही देता है कि उन्होंने प्रभु की सेवा के लिए मुश्किल समय में भी, अपने सामर्थ से भी बाहर मन से दिया। (2 कुरिन्थियों 8:1-5)
अपने धन की घटती में से भी देना है। – हम उस विधवा औरत से सबक ले सकते हैं जिसने अपनी कमी में भी अपना सब कुछ दे दिया। (मरकूस 12:42-44) मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि वो परमेश्वर की संप्रभुता पर विश्वास करती थी।
हमारी योग्यता से बढ़कर भी देना है। क्योंकि व्यवस्था हमसे सिर्फ 10% की मांग करती है पर अनुग्रह, उससे ज्यादा की मांग करता है। (Law demanded 10%, Grace demands more.) जैसा कि हमने मकिदुनियां की कलीसिया के विषय पौलुस की गवाही भी सुनी। (2 कुरिन्थियों 8:1-5)
व्यवस्था के समय में भी दाऊद और उसके कर्मचारी परमेश्वर के अनुग्रह को समझते थे। इसलिए उन्होंने अपनी व्यक्तिगत भेंट भी दी जो कि दशवांश से कहीं अधिक थी क्योंकि वे इस बात को जानते थे कि हमारे पास जो भी है वो सब परमेश्वर का ही है।
दाऊद की ओर से यरूशलेम मंदिर के लिए व्यक्तिगत भेंट (1इतिहास 29ः4-9)
- 3000 किक्कार (Talents) सोना (Gold) 110 टन (Tons) or 100 मिट्रीक टन (Metric Tons)
- 7000 किक्कार (Talents) शुद्ध चांदी (Silver) = 260 टन (Tons) or 240 मिट्रीक टन (Metric Tons
तब अपनी इच्छा से अगुवे, हाकिमों, अधिकारियों ने दिया Verse 6-8
- 5000 किक्कार (Talents) सोना (Gold) = 190 टन (Tons) or 170 मिट्रीक टन (Metric Tons)
- 10000 दर्कनोन (darics) सोना (Gold) (Gold coins named for Darius) = 84 Kg.
- 10000 किक्कार (Talents) चांदी (Silver) = 375 टन (Tons) or 345 मिट्रीक टन (Metric Tons)
- 8000 किक्कार (Talents) पीतल (Bronze) = 675 टन (Tons) or 645 मिट्रीक टन (Metric Tons)
- 100000 किक्कार (Talents) लोहा (Iron) = 3750 टन (Tons) or 3450 मिट्रीक टन (Metric Tons)
Law demanded 10%, Grace demands more.
परमेश्वर के लिए कैसे देना चाहिए?
- नियमित रुप से दें। – (1कुरिन्थियों 16:2)
- व्यक्तिगत रुप से दें। – (1कुरिन्थियों 16:2)
- अपनी कमाई के अनुसार से दें। – (1कुरिन्थियों 16:2)
- आनंद से दें। – (2कुरिन्थियों 9:7)
- परमेश्वर ने जैसा दिया है वैसै ही दें। – (यूहन्ना 3:16, रोमियों 8:32, 2कुरिन्थियों 9:15)
- घटती में भी दें। – उदाहरणः मकिदुनिया की कलीसिया (2कुरिन्थियों 8:1-2)
देने (Giving) के द्वारा आशीषें।
1. देना हमारे हृदय को परमेश्वर की ओर खींचता है। या यूँ कहें कि देने के द्वारा ये दिखता है कि हम किससे ज्यादा प्रेम करते हैं; संसार से या परमेश्वर से। क्योंकि वचन बताता है कि जहां तेरा धन है वहां तेरा मन भी लगा रहेगा। (मत्ती 6:21) अब सवाल यह भी उठता है आपका धन कहाँ है? तभी तो आपका मन भी वहीं लगा रहेगा। जहां तेरा धन है वहां तेरा मन भी लगा रहेगा।
2. देने के द्वारा ईश्वरीय चरित्र का निर्माण होता है। परमेश्वर चाहता है कि हम यीशु के स्वरूप और समानता में बदलते चले जाएं। क्योंकि उस ने खुद भी हमारे लिए स्वयं को दे दिया।
3. देने के द्वारा हम अपना धन स्वर्ग में इकट्ठा करते हैं। देने के द्वारा हम अपने लिए स्वर्ग में जमा कर रहे हैं, और प्रभु हमें आश्वासन भी देते हैं कि वहां हमारा धन बिल्कुल सुरक्षित है क्योंकि न वहां कोई कीड़ा लगता है न काई और न चोर वहां चोरी कर सकते हैं। (मत्ती 6:20, फिलिप्पियों 4:17) “यह नहीं कि मैं दान चाहता हूँ परंत मैं ऐसा फल चाहता हूँ जो तुम्हारे लाभ के लिए बढ़ता जाए।”
4. देने के द्वारा, देने वाले की भौतिक संपति में बढ़ती हो सकती है। नीतिवचन 11:24-25 हमें बताता है कि ऐसे लोग भी हैं जो छितरा देते हैं, फिर भी उनकी बढ़ोतरी ही होती है; और कुछ ऐसे भी हैं जो यथार्थ से कम देते हैं यानि कि जितना दे सकते हैं उससे भी कम देते हैं और इससे उसकी घटती ही होती है।
“उदार जन हृष्ट पुष्ट हो जाता है और जो औरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी।” क्या आपने कभी सोचा कि आप जो दूसरे की खेतों में सिंचाई कर रहे हैं, प्रभु आपके खेतों में भी सिंचाई करेगा। बोने के सिद्धांत को तो आप जानते ही हैं, जितना आप बोयेंगे उतना आप काटेंगे भी। इन आयतों को जरुर पढ़ें। (2 कुरिन्थियों 9:6-11)
किसे दें?
- स्थानीय कलीसिया को। – (मलाकी 3:6-12) क्योंकि आपकी आत्मिक उन्नति के लिए, आत्मिक भोजन वहीं से मिलता है।
- मसीही सेवकों को। – (गलतियों 6:6, 1 कुरिन्थियों 9:14) ऐसा क्यों करना चाहिए? इसलिए कि इस रीति को प्रभु ने भी ठहराया है कि जो लोग सुसमाचार सुनाते हैं, उन की जीविका सुसमाचार से हो। गिनती 18:2 में भी हम पाते है कि मिलाप वाले तम्बू की जो सेवा लेवी करते हैं उसके बदले परमेश्वर ने इजराएलियों का दसमांश उनका निज भाग कर दिया था।’’
- सेवकाई और मिशन कार्य के लिए। – (प्रेरितों के काम 2:45, 2 कुरिन्थियों 8:4)
- गरीबों को। – (मत्ती 25:34-35) हमें हर एक जरूरतमंद की मदद भी करनी है, उनके साथ ऐसा व्यवहार करना प्रभु के साथ व्यवहार करना है।
Giving for Him is an investment you make. It’s not you are repaying. But you are giving from what is given to you.
परमेश्वर के वचन के अनुसार देना प्राथमिक महत्व की बात है। जब हम उचित भावना के साथ देते हैं तब देना, लेने से अधिक धन्य हो जाता है। इन बातों को स्मरण रखें कि देना खुशी के साथ होना चाहिए। (2कुरिन्थियों 8:2) देने वाले चाहे निर्धन भी हों तो भी दिया जा सकता है। (2कुरिन्थियों 8:2-3) देने वाला अपनी हैसियत से बाहर भी दे सकता है। (2कुरिन्थियों 8:3) देना स्वेच्छा से होना चाहिए। (2कुरिन्थियों 8:3, 9:5) देना प्राप्त करने वालों के साथ संगति को बढ़ाता है। (2कुरिन्थियों 8:4)
देना सबसे पहले अपने आप को प्रभु को देने से प्रारम्भ होना चाहिए। (2कुरिन्थियों 8:5) देने की मात्रा उस विश्वास तथा प्रेम के बराबर होनी चाहिए जो इसकी प्रेरणा है। (2कुरिन्थियों 8:7) मसीह हमारे खातिर कंगाल बन गया, देने के पीछे यह प्रेरणा होनी चाहिए। (2कुरिन्थियों 8:9) देने के परिणाम स्वरूप कलीसिया में समानता आनी चाहिए। (2कुरिन्थियों 8:13-15)
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